पश्चिम बंगाल : नाराज शुभेंदु अधिकारी को अब भी मनाने में क्यों जुटी है ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस?

शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल के प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं और उनका राज्य की 65 विधानसभा सीटों पर काफी प्रभाव है, जहां वे ममता बनर्जी के लिए दिक्कतें पैदा कर सकते हैं...

Update: 2020-11-28 05:43 GMT

शुभेंदु अधिकारी. 

जनज्वार। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ममता बनर्जी कैबिनेट से वरिष्ठ मंत्री शुभेंदु अधिकारी के इस्तीफे ने तृणमूल की चिंताएं बढा दी हैं। तृणमूल कांग्रेस पहले ही भाजपा की मजबूत चुनौती और असदु्द्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम की मुसलिम बहुल इलाकों में सक्रियता से जूझ रही है। ऐसे में राज्य के प्रभावशाली नेता शुभेंदु अधिकारी के इस्तीफे ने पार्टी की परेशानी और बढा दी है। तृणमूल के लिए फिलहाल राहत की बात है कि शुभेंदु ने अबतक पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है, बहले उन्होंने हुगली रिवर ब्रिज कमिश्नर के चेयरमन पद से इस्तीफा दिया और उसके अगले दिन शुक्रवार को परिवहन मंत्री पद से इस्तीफा दिया। उनके पास सिंचाई व जल संसाधन विभाग भी था और इसके साथ ही वे हल्यिाद विकास प्राधिकरण के प्रमुख थे। उन्होंने हल्दिया विकास प्राधिकारण पद से भी इस्तीफा दे दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुभेंदु के प्रभार वाले विभाग खुद के पास रखा है।

पार्टी से अबतक उनका इस्तीफा नहीं होने से सुलह की थोेड़ी गुंजाइश बची हुई है और तृणमूल सांसद सौगात राय इसको लेकर आशान्वित हैं। सौगात राय अबतक दो बार शुभेंदु के साथ मीटिंग भी कर चुके हैं और उन्होंने यह संकेत दिया है कि वे फिर उनसे वार्ता करेंगे। सौगात राय ने कहा है कि उन्होंने विधायक पद व पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है, इसलिए वे पार्टी में बने हुए हैं। मंत्री पद पद बने रहना या न रहना उनका निजी निर्णय है। राय ने कहा है कि वे शुभेंदु से बात करेंगे और उन्हें पार्टी में बने रहने के लिए कहेंगे।

दिलचस्प यह कि शुभेंदु अधिकारी ने अपना इस्तीफा सीधे इमेल से राज्यपाल को भेजा जिसे स्वीकार कर लिया गया।

शुभेंदु अधिकारी मंत्री पद छोड़ने के बाद 29 नवंबर को महिषादल में अपनी पहली गैर राजनीतिक सभा करेंगे। संभावना है कि इसमें वे अपने भविष्य की राजनीति का कोई संकेत दें। हालांकि जानकारों का कहना है कि उनकी अंदरखाने भाजपा से वार्ता चल रही है। अगर उन्हें मामला जमा तो वे भाजपा में जा सकते हैं या फिर नई राजनीतिक पार्टी के गठन की भी पहल कर सकते हैं।

शुभेंदु अधिकारी का बंगाल में कितना प्रभाव?

शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल की राजनीति के एक प्रभावशाली परिवार से आते हैं। वे खुद नंदीग्राम से विधायक हैं और उनके पिता शिशिर अधिकारी व देवेंदु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस से लोकसभा सांसद हैं। पश्चिम बंगाल की राजनीति को लंबे समय से कवर कर रहे कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार अजय विद्यार्थी कहते हैं कि शुभेंदु अधिकारी का राज्य के छह जिलों व करीब 65 विधानसभा क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव है। ऐसे में अगर वे तृणमूल छोड़ते हैं तो वहां ममता बनर्जी की चुनावी संभावनाओं को सीमित कर सकते हैं। और, अगर वे भाजपा में जाते हैं उन इलाकों में उसे लाभ दिलवा सकते हैं। उधर, भाजपा के प्रदेश प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि शुभेंदु की ओर से उनके भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव अबतक नहीं आया है।

शुभेंदु अधिकारी का बंगाल के पूर्वी मिदनापुर, पश्चिम मिदनापुर, मुर्शिदाबाद, मालदा, बीरभूम, बांकुड़ा जिले में व्यापाक प्रभाव है। तृणमूल कांग्रेस को इस इलाके में शुभेंदु अधिकारी के साथ होने का लाभ भी होता रहा है। अगर वे पार्टी छोड़ते हैं तो उनकी भरपाई तृणमूल कैसे करेगी यह ममता बनर्जी के लिए एक बड़ा सवाल है।

शुभेंदु अधिकारी ममता कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों में शामिल रहे हैं और लंबे समय से वे नाराजगी की वजह से कैबिनेट की बैठकों में शामिल नहीं होते रहे हैं।


शुभेंदु को दिक्कत क्या है?

तृणमूल कांग्रेस के कई दूसरे वरिष्ठ नेताओं की तरह शुभेंदु अधिकारी को ममता बनर्जी के नेतृत्व में काम करने में दिक्कत नहीं है, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री द्वारा भतीजे अभिषेक बनर्जी को तरजीह दिए जाने और उन्हें पार्टी में नंबर दो की हैसियत पर लाने से दिक्कत है। ममता बनर्जी ने इस बार अपने चुनाव प्रबंधन का काम प्रशांत किशोर को सौंपा है। उससे शुभेंदु के सामने दोहरी असहज स्थिति हो गई। अनुभवी शुभेंदु को अभिषेक व प्रशांत किशोर के तौर-तरीके पसंद नहीं हैं। युवा लड़कों द्वारा लोगों को पार्टी के अंदर डिक्टेट किया जाना ने भी उनके लिए असहज स्थिति बनायी।

पार्टी उम्मीदवार तय करने में प्रशांत किशोर की भूमिका इस बार अहम होने वाली है, ऐसे में यह भी संभावना है कि उम्मीदवार तय करने में उनके प्रभाव क्षेत्र में उनकी पसंद की जगह दो युवाओं की पसंद का पार्टी हाइकमान अधिक ख्याल रखे।


भाजपा का प्रभाव व ओवैसी की चुनौती

भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 18 सीटें राज्य में हासिल की थी। पत्रकार अजय विद्यार्थी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 294 विधानसभा सीटों में 126 पर लीड किया था। इससे भाजपा की मजबूत चुनौती तो ममता बनर्जी के सामने है ही और 30 प्रतिशत मुसलिम आबादी वाले बंगाल में ओवैसी अगर मैदान में आएंगे तो उनके लिए चुनौती और बढ जाएगी। बंगाल में करीब 60 से 65 विधानसभा सीटें मुसलिम बहुल हैं। इन दो चुनौतियों के बीच शुभेंदु अधिकारी का पार्टी से बाहर जाना तीसरी बड़ी चुनौती बन जाएगी।

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