दूसरे चरण की 55 विधानसभा सीटें BJP पर क्यों पड़ने वाली है भारी, ये है बड़ी वजह

UP Election 2022 : दूसरे चरण में भी वेस्ट यूपी के मतदाताओं ने भाजपा से बेरुखी दिखाई तो यह पार्टी पर भारी पड़ेगा और इससे उबर पाना पार्टी के लिए मुश्किल भरा होगा।

Update: 2022-02-13 04:40 GMT

गऊ और मऊ को सताने वाले 10 मार्च को धुआं-धुआं हो जाएंगे।

UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण (Second Phase Election) के लिए चुनाव प्रचार समाप्त हो गया। 14 फरवरी यानि सोमवार को इन सीटों पर मतदान होगा। पहले चरण के मतदान को लेकर भी संकेत यही है कि मतदाताओं ने BJP के खिलाफ वोटिंग की है। ऐसे दूसरा चरण का मतदान भाजपा के लिए अहम है। ऐसा इसलिए कि अगर इस चरण में मतदाताओं ने बेरुखी दिखाई तो यह भाजपा पर भारी पड़ेगा और इस झटके से पार्टी का उबर पाना मुश्किल भरा होगा।

दरअसल, दूसरे चरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश ( West UP ) के सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, बदायूं और शाहजहांपुर की 55 सीटों पर मतदान होगा। इन सीटों पर मुस्लिम और दलित आबादी को देखते हुए पहले चरण की तुलना में यह चुनाव सभी पार्टियों के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण है। 25 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता अपने दम पर निर्णायक भूमिका हैं। 20 सीटों पर दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 20 फीसदी से अधिक है। इन जिलों में समाजवादी और रालोद गठबंधन ( SP-RLD Alliance ) मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहा है। भारतीय जनता पार्टी ( BJP ) को किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।

5 साल पहले मोदी लहर में भी 11 मुस्लिम प्रत्याशी बने थे विधायक

पांच साल पहले यानि 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद वेस्ट यूपी की इन 9 जिलों की 55 सीटों में सबसे ज्यादा 11 मुस्लिम उम्मीदवार समाजवादी पार्टी ( Samajwadi Party ) से जीते थे। इसमें मुरादाबाद जिले की 6 सीटों में से 4 सीटों पर सपा के मुस्लिम प्रत्याशी की जीत हुई थी। मोदी लहर के बावजूद दूसरे चरण की इन सीटों में सपा को 27 सीटों पर जीत मिली। भाजपा को 13 पर और बसपा को 11 सीटों पर जीत मिली। 2012 के विधानसभा चुनाव में भी सपा को 27 सीट पर जीत मिली थी। जबकि भाजपा को 8 सीटें ही मिली थीं।

सपा की पकड़ ज्यादा मजबूत

नौ जिलों की 55 विधानसभा सीटों में मुस्लिम और दलित मतदाताओं ( Muslim-Dalit Voters ) के कारण सपा और बसपा की पकड़ लंबे अरसे से मजबूत रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों में जब सपा का बसपा और आरएलडी से गठबंधन था। इसके बाद बसपा ने 11 में से चार सीटों अमरोहा, बिजनौर, नगीना और सहारनपुर पर जीत हासिल की थी। पा को रामपुर, मुरादाबाद और संभल में जीत मिली थी। सात जिलों में 35 सीटों पर दलित और मुस्लिम आबादी जीत में एक अहम माने जाते हैं। जाट और ओबीसी मतदाता की संख्या भी अच्छी खासी है। बदायूं को यादव बाहुल्य जनपद माना जाता है जिसके चलते इसे सपा का गढ़ माना जाता है।

मुस्लिम और दलित निभाएंगे अहम भूमिका

लोकसभा चुनाव 2014 के बाद विधानसभा चुनाव 2017 में भी पूरे पश्चिमी यूपी में मोदी लहर ( Modi wave ) देखने को मिली थी। भाजपा ( BJP ) कैराना और मुज्जफरनगर दंगे के मुद्दे पर साप्रदायिक ध्रुवीकरण से हिंदू वोट अपने पाले में करने में सफल रही थी। वहीं इस बार स्थिति बिल्कुल अलग है। इस चुनाव में फसल की खरीद न होने और गन्ना बकाया भुगतान में देरी से किसान भाजपा से खफा हैं। थाना स्तर पर भ्रष्टाचार से भी जनता इस बार परेशान है। इस क्षेत्र में बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा है। सियासी जानकारों का कहना है कि दूसरे चरण में शामिल जिलों में मुस्लिम और दलित मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। सपा को मुस्लिम सीटों पर फायदा मिल सकता है। इस बार भाजपा को पहले की तुलना में ज्यादा नुकसान हो सकता है।

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