Tripura में भाजपा ने क्यों बदले सीएम, अब नये सीएम माणिक साहा को पाना होगा इन चुनौतियों से पार

​त्रिपुरा ( Tripura ) भाजपा युवा कार्यकर्ताओं एक हिस्सा यानि 'बाइक गैंग' कुछ ऐसी कार्यों में लिप्त था जिसकी वजह से पार्टी की छवि को धक्का लगा है। आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग से भी भाजपा की पकड़ कमजोर हुई है।

Update: 2022-05-15 08:59 GMT

नई दिल्ली। अगामी त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा नेतृत्व को अपनी नैया फंसी हुई दिखाई दे रही है। यही वजह है कि पार्टी ने एक रणनीति के तहत युवा सीएम बिप्लब कुमार देब ( Biplab Kumar deb ) की जगह अधिक उम्र वाले डेंटल सर्जन और स्वच्छ छवि के नेता डॉ. माणिक साहा ( Dr manik Saha ) को मुख्यमंत्री बनाया है। ताकि आगामी सात-आठ माह में उत्तराखंड के पुष्कर धामी की तरह त्रिपुरा ( Tripura ) में भी संगठन सक्रिय करने के साथ भाजपा की छवि को दुरुस्त करना संभव हो सके।

डॉ. माणिक शाहा ( manik Saha ) का त्रिपुरा ( Tripura ) का सीएम बनने के बाद सबसे अहम चर्चा यह है कि युवा नेता बिप्लब देब को भाजपा को बदलने की जरूरत क्यों पड़ी? इसका जवाब यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मुख्यमंत्री बदलने की सिफारिश की थी। भाजपा नेतृत्व ने यह फैसला आरएसएस द्वारा भेजे गए एक विश्लेषण के बाद लिया। आरएसएस ने संकेत दिए थे कि त्रिपुरा में पार्टी और सरकार में बदलाव करने की जरूरत है। सत्तारूढ़ दल के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि राज्य में अगले आठ से नौ महीने में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों से पहले संगठन को 'तत्काल मजबूती देने' के लिए यह कदम जरूरी था।

बाइक गैंग से पार्टी की छवि को पहुंचा नुकसान

आरएसएस के विश्लेषण के मुताबिक जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच स्थिति ठीक नहीं चल रही थी, क्योंकि युवा कार्यकर्ताओं का एक वर्ग, जिसे 'बाइक गैंग' कहा जाता है, इस तरह की गतिविधियां कर रहा था, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंच रहा था।

नये सीएम की अहम चुनौतियां

त्रिपुरा में भाजपा के लिए वास्तव में जो सबसे बड़ी चुनौती सामने आ रही थी, वह थी राज्य में त्रिपुरा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन या टिपरा मोथा का अचानक वहां पर उभरना। टिपरा मोथा शाही वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा के नेतृत्व वाला एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल है, जो त्रिपुरा के आदिवासियों के लिए अलग राज्य की स्थापना की मांग कर रहा है। टिपरा मोथा ने अप्रैल 2021 में हुए त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वशासी जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन के साथ सीधे मुकाबले में ग्रेटर टिपरालैंड की मांग की थी। गठबंधन ने 28 में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

इसके बाद सवाल यह उठने लगा था कि अलग राज्य की मांग कई विधानसभा सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि आदिवासी वहां निर्णायक भूमिका में हैं। 'टिपरा मोथा' ने आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग उठाकर त्रिपुरा की राजनीति का पूरी तरह से ध्रुवीकृत कर दिया है। इससे राज्य के मिश्रित आबादी वाले कुछ इलाकों में तनाव पैदा हो गया जहां आदिवासियों की संख्या एक-तिहाई के करीब है।

वर्तमान में भाजपा आदिवासी बहुल इलाकों में 'टिपरा मोथा' के उदय से निपटने की स्थिति में नहीं है। अगले चुनावों में गठबंधन की इन क्षेत्रों में भारी जीत की संभावना जताई जा रही है। यही नहीं, 'टिपरा मोथा' ने कुल 40 सामान्य सीटों में से कम से कम 25 पर उम्मीदवार उतारने की चेतावनी दी है। इन सीटों पर आदिवासी वोटों की संख्या काफी अधिक है। ऐसे में देबबर्मा का समर्थन अगले चुनावों में अहम साबित हो सकता है।

भाजपा की आदिवासी सहयोगी 'द इंडीजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी)' आदिवासी परिषद के पिछले चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई थी। इतना ही नहीं हाल ही में पार्टी को विभाजन का सामना करना पड़ा। यह दो मौजूदा मंत्रियों के नेतृत्व में बंट गई। हालात को देखते हुए भाजपा ने संगठन के स्तर पर पार्टी को मजबूत बनाने का निर्णय लिया और अपनी आदिवासी इकाई 'जनजाति मोर्चा' के नेतृत्व में फेरबदल किया।

भाजपा की नैया पार लगा पाएंगे माणिक?

क्या मिलनसार स्वभाव वाले डॉ. माणिक साहा ( manik Saha ) अपने पूर्ववर्ती द्वारा छोड़े गए विविध मुद्दों से निपटने में सक्षम होंगे। क्या भाजपा को बड़ी जीत की ओर ले जाएंगे? नए कलेवर में उतरे वामदल या युवा शाही पार्टी के सहयोग से राज्य में दस्तक देने वाली तृणमूल कांग्रेस उसके हाथों से जीत छीनने में कामयाब रहेगी? इन सभी सवालों का जवाब देने के लिए आरएसएस—भाजपा ने बिप्लब देब को हटाकर माणिक साहा को सीएम बनाया है।

कौन है नये सीएम माणिक साहा?

उत्तर प्रदेश लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के छात्र रह चुके 69 वर्षीय साहा 2016 में भाजपा में शामिल होने से पहले विपक्षी दल कांग्रेस के सदस्य थे। 2020 में बिप्लब देब के त्रिपुरा भाजपा का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद उन्होंने राज्य में पार्टी की कमान संभाली थी। राज्य के दिग्गज बैडमिंटन खिलाड़ियों में शुमार रह चुके साहा त्रिपुरा क्रिकेट संघ के अध्यक्ष भी हैं। भाजपा में साहा का कद उनकी साफ छवि और ट्रैक रिकॉर्ड के कारण बढ़ा। नवंबर 2021 में त्रिपुरा में हुए निकाय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस से कांटे की टक्कर के बीच सभी 13 नगर निकायों में पार्टी को जीत दिलाना शामिल है।  


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