दलित मतदाता कम होने के बावजूद चंद्रशेखर आजाद गोरखपुर से क्यों लड़ रहे हैं चुनाव? क्या हैं समीकरण?

UP Election 2022 : चंद्रशेखर आजाद गोरखपुर से चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा को वोट बंट सकता है। इसका लाभ भी भाजपा को ही मिलेगा। लेकिन योगी के दलित समर्थन को चंद्रशेखर अपनी ओर आकर्षित कर लेंगे तो भाजपा लिए मुश्किल जरूर खड़ी कर सकते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही चंद्रशेखर रावण ने मंडल बनाम कमंडल का नारा दिया है।

Update: 2022-01-22 10:12 GMT

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UP Election 2022 : गोरखपुर सदर सीट पर दलित मतदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। दलित समुदाय के अधिकांश लोग भी योगी को ही वोट देते हैं, इसके बावजूद आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने यहीं से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। सवाल यह है कि आखिल चंद्रशेखर आजाद ऐसा क्यों कर रहें, वो किस भरोसे यहां से चुनाव जीतने की उम्मीद कर सकते हैं। इसके बावजूद गुरुवार को दलित युवा नेता चंद्रशेखर ने वहां की लड़ाई को मंडल बनाम कमंडल बताकर इसे अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश की है, तो इससे वहां के मतदाता उन्हें जिता देंगे। ऐसा कहना मुश्किल है, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। ये बात अलग है कि गोरखपुर सदर सीट पर इसकी संभावना न के बराबर है। तो फिर इसके सियासी मायने क्या हैंं।

गोरखपुर सदर का समीकरण

गोरखपुर सदर सीट पर 430 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इनमें सबसे अधिक कायस्थ मतदाताओं की संख्या है। गोरखपुर सदर सीट पर कायस्थ मतदाताओं की संख्या 95 हजार, ब्राहम्ण 55 हजार, मुस्लिम 50 हजार, क्षत्रिय 25 हजार, वैश्य 45 हजार, निषाद 25 हजार, यादव 25 हजार, दलित 30 हजार इसके अलावा पंजाबी, सिंधी, बंगाली और सैनी कुल मिलाकर करीब 30 हजार वोटर हैं। शेष अन्य समुदायों के मतदाता हैं। लेकिन यहां पर जाति से ज्यादा अहम गोरखनाथ मंदिर की है। अधिकांश मतदाता मठ के प्रत्याशी को वोट करते हैं।

इससे पहले चंद्रशेखर आजाद ने 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बनारस से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। हालांकि, उन्होंने नामांकन नहीं भरा। अगर चंद्रशेखर आजाद गोरखपुर से चुनाव लड़ते हैं तो दो चीजें हो सकती हैं। पहला भाजपा को वोट बंट सकता है। इसका लाभ भी भाजपा को ही मिलेगा। ऐसा होने पर योगी को अप्रत्यक्ष रूप से मदद मिलेगी। लेकिन योगी के दलित समर्थन को चंद्रशेखर अपनी ओर आकर्षित कर लेंगे तो योगी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते है।

भाजपा वोट बांटने की बात को ध्यान में रखकर ही उन्होंने यहां पर मंडल और कमंडल ( Mandal vs Kamandal ) का नारा दिया हैं। मंडल का मतलब का सीधा मतलब आरक्षण से है और कमंडल का मतलब सवर्ण वोटों के ध्रुवीकरण से है। बीजेपी की धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति को कमंडल की राजनीति नाम से जाना जाता है। फिर चंद्रशेखर आजाद ने कहा था कि योगी आदित्यनाथ अपने खिलाफ लोगों को बोलने नहीं देते हैं। उनके शासन में नौकरी मांगने पर पुलिस युवाओं पर हमला करती है, दलित न्याय मांगते हैं तो उन्हें मार दिया जाता है। ऐसे में उन्हें वापस मंदिर भेजना ज़रूरी है। यानि चंद्रशेखर मंडल और कमंडल के मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहते हैं।

मोहन दास अग्रवाल फैक्टर अहम

दूसरी तरफ एक सियासी सच यह भी है कि 1998 से 2017 के बीच योगी आदित्यनाथ पांच बार गोरखपुर से लोकसभा सांसद चुने गए। गोरखपुर में मंदिर के प्रभाव के कारण दलितों मतदाताओं का समर्थन भी योगी को मिलता रहा है। चंद्रशेखर दलित वोटरों को अपने पक्ष करने के लिए राधा मोहन दास अग्रवाल को साध सकते हैं। पर क्या सीट न मिलने से नाराज राधा मोहन अग्रवाल चंद्रशेखर पक्ष में भीतरघात करेंगे। अग्रवाल बच्चों के डॉक्टर हैं और 2002 से गोरखपुर सदर से विधायक हैं। अग्रवाल पार्टी के भीतर योगी के आलोचक के रूप में जाने जाते हैं।

पिछले साल अग्रवाल एक वीडियो में कहते दिखे थे कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ ठाकुर सुरक्षित हैं। सीएम की जाति ठाकुर है। बीजेपी ने 200 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इसमें अग्रवाल का नाम नहीं है। लेकिन किसी अन्य विधानसभा क्षेत्र में अग्रवाल के नामांकन से इनकार नहीं किया जा सकता है। गोरखपुर में राधा मोहन अग्रवाल की छवि अच्छी है। वह बच्चों का इलाज निशुल्क करते हैं। फिलहाल वो शांत हैं। अगर चुनावी प्रचार से वह खुद को दूर रखते हैं तो योगी को नुकसान हो सकता है। चंदशेखर इस पर अपनी नजर टिका सकते हैं।

दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को लखनऊ में कहा था कि अगर अग्रवाल समाजवादी पार्टी में शामिल होने की दिलचस्पी रखते हैं तो हम उन्हें गोरखपुर शहर सीट से पार्टी का प्रत्याशी बना सकते हैं। एक जानकारी यह भी है कि समाजवादी पार्टी शुभावती शुक्ला को योगी के खिलाफ मैदान में उतर सकती है। शुभावती उपेंद्र दत्त शुक्ला की विधवा हैं। 2018 में गोरखपुर में सांसदी के उप-चुनाव में उपेंद्र दत्त शुक्ला भाजपा के उम्मीदवार थे। उन्हें 4,34,788 वोट मिले थे। वह सपा समर्थित उम्मीदवार निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद से 21,801 मतों से हार गए थे। अब निषाद पार्टी बीजेपी की सहयोगी है। 2019 में बीजेपी ने गोरखपुर लोकसभा सीट फिर से जीत ली थी। गोरखपुर (शहर ) सीट पर मतदान छठे चरण में तीन मार्च को है। 

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