Loksabha Election 2024 : प्रधानमंत्री मोदी ने क्यों पूछा कि क्या इंदौर में ज़्यादा वोटिंग नहीं होगी?
Loksabha Election 2024 : 4 जून को होने वाली गिनती में कांग्रेस को मिल सकने वाले सारे वोट ‘नोटा’ में नज़र नहीं आए तब ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, पर भाजपा के वोटों की गिनती पीएम को बताए गए ग्यारह लाख के आँकड़े से कम निकली तो सवाल किससे पूछे जाएँगे और जवाब कौन देगा...
वरिष्ठ संपादक श्रवण गर्ग की टिप्पणी
Loksabha Election 2024 : कांग्रेस का उम्मीदवार दिन-दहाड़े मैदान से हटवा दिया गया! दूसरे दलों का भी कोई ताकतवर प्रत्याशी लड़ाई में नहीं है! राज्य में हुकूमत भी भाजपा की ही है फिर भी मोदीजी की पार्टी डरी हुई है? डर का कारण इतना भर है कि 4 जून को मोदी जी के सामने मुँह कैसे दिखाना है! ‘बम कांड’ के कारण चर्चा में आए देश के सबसे ‘स्वच्छ’ शहर के कांग्रेसी प्रत्याशी का नामांकन आख़िरी वक्त में डरा-धमकाकर या अन्य देसी उपायों के ज़रिए वापस तो करवा दिया गया, पर उसके कारण इंदौर सहित आसपास की सीटों के मतदाताओं पर जो ख़ौफ़नाक प्रतिक्रिया हुई है उसने भाजपा को ऊपर से नीचे तक हिलाकर रख दिया है।
भाजपा में भय व्यक्त किया जा रहा है कि ‘जो कुछ हुआ है’ से नाराज़ इंदौर के संवेदनशील मतदाताओं ने अगर 13 मई को होने वाले चौथे चरण के मतदान में इवीएम मशीनों पर बड़ी संख्या में ‘नोटा’ का बटन दबा दिया तो दुनियाभर में शहर के पोहे-जलेबियों का स्वाद बिगड़ जाएगा। कांग्रेस के ‘खोटे सिक्के’ को सूरत की तर्ज़ पर मैदान से हटवा कर भाजपा के जीतनेवाले उम्मीदवार को बिना मुक़ाबले के जितवाने की जब तैयारी शहर के बलशाली नेताओं द्वारा की गई होगी, तब इतनी गहराई से नहीं सोचा गया होगा कि उनका ऑपरेशन मोदी जी के सवालों में शामिल हो जाएगा!
7 मई को नरेंद्र मोदी इंदौर संभाग की उन दो सीटों (धार और खरगोन) के दौरे पर थे, जहां भाजपा को कड़े मुक़ाबले का सामना करना पड़ रहा है। इंदौर एयरपोर्ट पर आगमन और प्रस्थान के समय मोदी जी जिन बूथ कार्यकर्ताओं से मिले, उनसे उन्होंने कथित तौर पर सिर्फ़ दो सवाल पूछे! पहला यह कि क्या इंदौर में ज़्यादा वोटिंग नहीं होगी? दूसरा यह कि भाजपा प्रत्याशी कितने मतों से जीतेगा?
पीएम के सवालों में उनकी चिंता की तलाश की जा सकती है। चूँकि कांग्रेस का कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं है और पंजीकृत मतदाता भी पिछली बार से अधिक हैं, अतः भाजपा प्रत्याशी को वोट भी 2019 से ज़्यादा मिलने चाहिए। एयरपोर्ट पर मौजूद बूथ कार्यकताओं ने जवाब दिया कि पहले आठ लाख से जीते थे, अब ग्यारह लाख से जीतेंगे। (हक़ीक़त में 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का प्रत्याशी दस लाख से ज़्यादा मत पाकर कांग्रेसी उम्मीदवार के मुक़ाबले 5,47,754 के मतों से विजयी हुआ था।)
फीडबैक देने के लिए एयरपोर्ट पर बुलाए गए पार्टी के बूथ कार्यकर्ताओं को क़तई अनुमान नहीं रहा होगा कि इंदौर की सीट पर मोदीजी इतनी बारीकी से नज़र रखे हुए हैं और इतने तीखे सवाल पूछ लेंगे। दूसरी बात यह कि पीएम से भेंट करने का मौक़ा पाने वालों में जिनके नाम सामने आए, उनमें न तो कांग्रेस छोड़ भाजपा में भर्ती हुए उम्मीदवार का नाम था और न ही उन महारथियों में किसी का जिन्होंने पूरे ड्रामे को अंजाम दिया।
पार्टी के महारथियों द्वारा कोशिश तो यही की गई थी कि सूरत मॉडल की कॉपी के मुताबिक़ इंदौर की लोकप्रिय लोकसभा सीट पर भाजपा के ख़िलाफ़ एक भी प्रत्याशी नहीं बचने दिया जाए ! निर्दलियों सहित अन्य दलों के सभी उम्मीदवारों के नामांकन पत्र वापस करवा दिए जाएँ ! तमाम कोशिशों के बावजूद दो साम्यवादी उम्मीदवारों ने दबाव में आने से इनकार कर दिया और अब तेरह मई को मतदान भी होगा और चार जून को मतों की गिनती भी।
देवी अहिल्या की नगरी में राजनीतिक शक्ति-परीक्षण की एक अभूतपूर्व स्थिति निर्मित हो गई है।कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की कोशिश है कि भाजपा-विरोधी मतदाता तेरह मई को ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में ‘नोटा’ के बटन का इस्तेमाल करें। दूसरी ओर, भाजपा नेताओं की तैयारी अपने समर्थकों को घरों से बाहर निकालकर मतदान केंद्रों पर ले जाने की है। इंदौर संसदीय क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में कुल मतदाताओं की संख्या पच्चीस लाख से ऊपर है। शहर की नाराज़गी के मद्देनज़र भाजपा नेताओं के इस संकट को समझा जा सकता है कि उनके प्रत्याशी को अगर पिछली बार जितने वोट नहीं मिले और/या कांग्रेस को प्राप्त हो सकने वाले वोट ‘नोटा’ की गिनती में प्रकट हो गए तो ड्रामे के योजनाकार और पार्टी प्रत्याशी पीएम को क्या जवाब देंगे?
पूरे ड्रामे के निपट जाने के बाद चाहे देर से ही सही 1989 से 2019 तक शहर का प्रतिनिधित्व करने वाली पूर्व सांसद और स्पीकर सुमित्रा महाजन ने आख़िरकार टिप्पणी कर ही दी कि पार्टी उम्मीदवार जब जीत ही रहा था तो इस तरह का ऑपरेशन करने की क्या ज़रूरत थी? उन्होंने कांग्रेसी उम्मीदवार द्वारा ख़ुद की पार्टी को धोखा देने की भी आलोचना की। सुमित्रा महाजन की टिप्पणी को अगर उनके समर्थक मतदाताओं ने गंभीरता से ले लिया तो भाजपा को होने वाला नुक़सान ज़्यादा भारी पड़ सकता है। इंदौर में सुमित्रा महाजन को संघ-नेतृत्व के काफ़ी निकट माना जाता है।
मुद्दा यह है कि 4 जून को होने वाली गिनती में कांग्रेस को मिल सकने वाले सारे वोट ‘नोटा’ में नज़र नहीं आए तब ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, पर भाजपा के वोटों की गिनती पीएम को बताए गए ग्यारह लाख के आँकड़े से कम निकली तो सवाल किससे पूछे जाएँगे और जवाब कौन देगा? भाजपा उम्मीदवार को अगर पिछली बार से कम वोट मिले तो क्या उसे मोदी सरकार के प्रति इंदौर की जनता का विरोध नहीं माना जाएगा? उस स्थिति में भाजपा उम्मीदवार विजयी घोषित होने के बाद भी नैतिक रूप से हारा हुआ साबित हो जाएगा!
प्रधानमंत्री ने 5 महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों के दौरान 14 नवम्बर को इंदौर में एक ज़बर्दस्त रोड शो में भाग लिया था। लोकसभा चुनावों के दौरान मोदीजी एयरपोर्ट को दो बार छूकर लौट गए, पर इंदौर के मतदाता उन्हें सुनने से वंचित रह गए। सुर्ख़ियों में बने रहने के अभ्यस्त हो चुके राजनेताओं को लोकसभा चुनावों के बहाने एक और कारण मिल गया, पर उसके लिये नागरिकों को क़ीमत बड़ी चुकानी पड़ गई!
(इस लेख को shravangarg1717.blogspot.com पर भी पढ़ा जा सकता है।)