ईद के बाद अब बकरीद पर भी कोरोना की छाया, बकरा व्यापारियों को नहीं मिल रहे ग्राहक
देश भर में एक अगस्त को बकरीद मनाई जाएगी, लेकिन कोरोनावायरस के कारण इस साल की ईद बिल्कुल फीकी है, जामा मस्जिद के बाहर उर्दू पार्क में हर साल एक लाख बकरे बिकने आते थे लेकिन इस बार मंडी नहीं लगी, और ग्राहक भी नदारत हैं...
नई दिल्ली। कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण इस बार मुस्लिम समुदाय के त्योहार ईद तो फीकी रही ही थी, अब बकरीद के भी फीका रहने के आसर दिख रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी की जामा मस्जिद के बाहर उर्दू पार्क में हर साल बकरीद पर बकरों की मंडी लगती रही है। लेकिन इस बार कोरोनावायरस महामारी के कारण यह मंडी नहीं लगी है। बकरा व्यापारी सड़कों पर ही ग्राहक ढूंढ़ रहे हैं, लेकिन ग्राहकों का कहीं अता-पता नहीं है।
देश भर में एक अगस्त को बकरीद मनाई जाएगी लेकिन कोरोनावायरस के कारण इस साल की ईद बिल्कुल फीकी है। जामा मस्जिद के बाहर उर्दू पार्क में हर साल एक लाख बकरे बिकने आते थे। लेकिन इस बार मंडी नहीं लगी और ग्राहक भी नदारत हैं। सड़क पर इक्के -दुक्के बकरे ही बिक रहे हैं।
बकरा कारोबारी शाकिर हुसैन ने आईएएनएस से कहा, हर साल मैं उर्दू पार्क में बकरे बेचने आता था। करीब 300 से 400 बकरों को लेकर आता था और यहां बेच कर जाता था। लेकिन इस बार अभी तक सात बकरे ही बेचे हैं। इस वक्त तक यहां पैर रखने की जगह नहीं होती थी।
शाकिर ने आगे कहा, एक बकरा जिसकी कीमत 17 हजार रुपये थी, उसे हमने 12 हजार रुपये में बेचा है। हम अब जितने भी बकरे लेकर आएं है, उन्हें बेच कर जाएंगे, घर नहीं ले जा सकते। चाहे इसके लिए हमें घाटा ही सहना पड़े।
हर साल विक्रेता दूसरे राज्यों से भी कुबार्नी के लिए बकरे मंगाते थे। राजस्थान, उत्तरप्रदेश के बरेली, बदायूं, हरियाणा के मेवात से बकरे जामा मस्जिद के बाहर उर्दू पार्क में बिकने आते थे। लेकिन इस बार सिर्फ स्थानीय बकरे ही बिक रहे हैं।
यहां बिकने वाले बकरों की कीमत उनकी नस्ल के आधार पर तय होती है। तोता परी, दुम्बा आदि नस्लों में तोता परी बकरा मुंडा होता है यानी इस बकरे के कान बड़े होते हैं। इसकी कीमत करीब 30 से 40 हजार रुपये होती है। वहीं दुम्बा बकरा वजनी होता है और यह बड़ा और ऊंचा भी होता है। इसकी कीमत 70 हजार रुपये से शुरू होकर डेढ़ लाख रुपये तक पहुंच जाती है। लेकिन इस सल ग्राहकों की अनुपस्थिति के कारण इन कीमतों का कोई मतलब नहीं रह गया है।
स्थानीय निवासी मोहम्मद समीर कहते हैं, इस साल बकरे सस्ते बिक रहे हैं। बकरों के दाम आधे हो गए हैं। कोरोनावायरस के कारण इस बार यहां मंडी भी नहीं लगी है।बिक्रेताओं का कहना है कि इस साल खरीददार ही नहीं हैं, सभी ग्राहक सस्ता और हल्का बकरा देख रहे हैं। जो शख्स हर साल चार कुर्बानी करता था, वह इस साल एक ही कुर्बानी कर रहा है। कोरोनावायरस की वजह से लोगों का व्यापार में बहुत नुकसान हुआ है। त्योहार फीके पड़ गए हैं।
स्थिति इतनी खराब है कि दिन भर इंतजार करने के बावजूद विक्रेताओं को बकरों के खरीददार नहीं मिल रहे हैं। एक तरफ बकरों के खरीददार नहीं है, तो दूसरी तरफ पुलिस भी सड़क किनारे बकरे नहीं बेचने दे रही है। विक्रेताओं का कहना है कि बकरों को देखने के लिए भीड़ लग जाती है। जिसकी वजह से पुलिस भगा देती है। चलते-चलते किसी को पसंद आ जाए तो तुरंत पैसे लेकर बकरा बेच देते हैं।
मुस्लिम धर्म में दो मुख्य त्योहार मनाए जाते हैं -ईद-उल-अजहा और ईद-उल फितर। ईद-उल-अजहा बकरीद को कहा जाता है। मुसलमान यह त्योहार कुर्बानी के पर्व के तौर पर मनाते हैं। इस्लाम में इस पर्व का विशेष महत्व है। लेकिन कोरोनावायरस के कारण यह त्योहार इस बार फीका दिखाई दे रहा है।