केरल के पुजारी ने ग़रीबों के लिए बनवाए 100 से ज़्यादा केबिन मकान, हर घर में बेडरूम, किचन, हॉल, बाथरूम और वरांडा
फ़ादर जीजो इदुक्की ज़िले के नटुकनी स्थान के निवासी हैं। उन्होंने यह पहल उसी ज़िले में सबसे पहले की। बाद में उन्होंने और उनकी टीम ने ये काम दूसरे ज़िलों में भी शुरू किया। दो साल के भीतर टीम ने 100 से ज़्यादा केबिन मकान बना डाले। ऐसा समान सोच रखने वाले बहुत सारे लोगों की मदद से संभव हो सका।
हरिता जॉन की रिपोर्ट
2018 में जब केरल में सदी की सबसे भयानक बाढ़ आई तब बहुत लोगों के मकान बह गए। ऐसे में इन लोगों की अब बस एक ही चिंता थी -रहने के लिए सुरक्षित मकान का प्रबंध कैसे हो ? इन लोगों की इस चिंता को इदुक्की ज़िले के एक मठ में रहने वाले पुजारी फ़ादर जीजो कुरियन ने उस समय भांप लिया जब बाढ़ के दौरान वो बचाव कार्य में लगे थे। सुरक्षित जगह पर रहने के लिए संघर्ष कर रहे परिवारों की दुर्दशा से विचलित हो फ़ादर जीजो और उनके दोस्तों ने छोटे परिवारों के लिए छोटे सस्ते लेकिन सुन्दर केबिन मकानों का निर्माण करना शुरू कर दिया।
फ़ादर जीजो ने इस पहल को समझाते हुए बताया, "मैंने टिन शीट की दीवारों और छत से बने शेड में एक औरत को रहते देखा। उस समय बरसात हो रही थी जिसके चलते छत से पानी चूं रहा था। मैं उस औरत के लिए एक छोटा मकान बनवाना चाहता था,ऐसा मकान जो चुए नहीं। इस बारे में मैंने अपने दोस्तों से बात की। विभिन्न आयोजलों के माध्यम से हम 1.50 लाख रूपया इकट्ठा कर पाए और उसके लिए एक केबिन मकान बना दिया।"
फ़ादर जीजो इदुक्की ज़िले के नटुकनी स्थान के निवासी हैं। उन्होंने यह पहल उसी ज़िले में सबसे पहले की। बाद में उन्होंने और उनकी टीम ने ये काम दूसरे ज़िलों में भी शुरू किया। दो साल के भीतर टीम ने 100 से ज़्यादा केबिन मकान बना डाले। ऐसा समान सोच रखने वाले बहुत सारे लोगों की मदद से संभव हो सका।
फ़ादर जीजो के केबिन मकानों का फ़ायदा उन लोगों को मिल सका जिन्हें सरकारी योजनाओं के तहत मकान नहीं मिल पाए थे। फ़ादर ने The News Minute को बताया,"उन्हीं लोगों को लाभकर्ताओं के रूप में चुना जाता है जो दिव्यांग हैं, जिनकी मदद करने वाला कोई नहीं होता,बूढ़े लोग,बीमार लोग,कमाई करने वाले केवल एक या दो लोगों वाला परिवार और जो लोग दोनों टाइम भोजन का जुगाड़ नहीं कर पाते हैं।" फ़ादर जीजो और उनकी टीम हर ज़रूरतमंद के पास यह जानने के लिए जाती है कि वाकई वे ज़रूरतमंद हैं या नहीं ? ये माकन 300 स्क्वॉयर फ़ीट के होते हैं और 2 सेंट या उससे ज़्यादा की ज़मीन पर बने होते हैं।
हर एक घर में एक बेड रूम,किचन,हॉल,बाथरूम और वरांडा होगा। मकान की लागत 1.5 लाख से 2.50 लाख रुपये होगी। बड़े परिवार के लिए 2 बेडरूम्स होंगे और उसकी लागत 2 से 4 लाख रुपये होगी। इन केबिन मकानों को बनाने में छत के लिए टाइल्स,बेसमेंट के लिए सीमेंट ब्लॉक्स,स्टील पाइप और फाइबर सीमेंट बोर्ड्स का इस्तेमाल दीवार बनाने के लिए किया जाता है।
अगर सही रख-रखाव किया जाये तो ये मकान भी दूसरे मकानों की तरह ही टिकाऊ रहते हैं। केबिन मकानों को ठोस ज़मीन के लिहाज से डिज़ाइन किया जाता है। जहां के ज़मीन दलदल होती है वहां के परिवारों को कहा जाता है कि वहां के पर्यावरण के हिसाब से नीँव तैयार करें और फिर उसके ऊपर केबिन मकान बनायें।
फ़ादर ने बताया,"बहुत सारे लोग यह कहते हुए मेरे पास आये कि मकान बनाने के लिए वे रुपये-पैसे से मदद करना चाहते हैं। हम ऐसे लोगों को सीधे ज़रूरतमंदों से मिला देते हैं। अभी तक हमने फंड इकट्ठा करने के लिए कार्यक्रम नहीं चलाया है।"
आम तौर पर मकान के निर्माण में कोई प्रायोजक ही पैसा खर्च करता है। हालाँकि कई बार लाभार्थी भी कुछ पैसा लगाते हैं ताकि प्रायोजक के बोझ को कम किया जा सके। परियोजना को वित्तीय सहायता देने के लिए दानकर्ता संगठन भी आगे आते हैं।
वो बताते हैं,"हमने सामाजिक कार्यकर्ताओं की पाँच टीमें बनाई हैं जो निर्माण कार्य को देखती हैं। मिस्त्री और दूसरे मज़दूरों को स्थानीय स्तर लिया जाता है। एक महीने में तकरीबन 5 से 7 मकान बन कर तैयार होते हैं।"
हालाँकि फ़ादर जीजो ने स्वीकार किया कि उनके पास बहुत सारी गुज़ारिशें आती हैं लेकिन सभी को पूरी कर पाना असंभव है। उन्होंने कहा,"हम बहुत दूर तक यात्रा नहीं कर सकते और इसलिए योजना अनुसार कम बजट के मकान नहीं बना सकते।हम यात्रा पर और दूसरे मदों पर ज़्यादा नहीं खर्च कर सकते। इसलिए कभी-कभी श्रमशक्ति कम होने के कारण टीम दूर-दराज से आई गुजारिशों को स्वीकार नहीं कर पाती है।"
फ़ादर जीजो के अनुसार चूंकि बहुत सारे दयालू लोगों ने उनकी मदद की है इसलिए इस मिशन में उन्हें किसी बड़ी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा है। फिर भी निर्माण सामग्री के दामों में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी और गैर-योजनाबद्ध खर्चे कुछ ऐसी छोटी चुनौतियाँ हैं जो कभी-कभी पैदा हो जाती हैं।
फ़ादर जीजो कहते हैं,"कुछ देनदारियों के साथ यह मिशन आगे बढ़ता जाता है। ऐसी निर्माण योजनाएं सामाजिक सेवा के तहत ही चलाई जा सकती हैं क्योंकि यह एक ऐसा व्यापारिक कार्य नहीं है जिससे कोई भी चाहे तो मुनाफा कमा सकता हो। आम तौर पर प्रायोजक एक तय राशि देते हैं।हालाँकि अप्रत्याशित खर्चे हमें वित्तीय संकट में डाल देते हैं। लेकिन कुछ दोस्त और कुछ अन्जान लोग हमारी मदद करने आगे आ जाते हैं। "
(हरिता जॉन की यह रिपोर्ट पहले मूल रूप से अंग्रेजी में द न्यूज मिनट में प्रकाशित।)