संपत्ति हड़पने के लिए रंगकर्मी के भाइयों ने किया जानलेवा हमला, सुपौल पुलिस प्रशासन पर भी लगाये गंभीर आरोप
रंगकर्मी राजेश चंद्र का आरोप है कि मुझ पर भाइयों और उनके परिवार द्वारा जानलेवा हमला किये जाये की घटना सामने आने के बावजूद सुपौल पुलिस प्रशासन ने मौन साधा हुआ है, एक तरफ जहां वह पत्नी और बेटी का इलाज करा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन से सुरक्षा और न्याय की अपील कर रहे हैं...
सुपौल। मूल रूप से बिहार स्थित सुपौल के रहने वाले रंगकर्मी और लेखक राजेश चंद्र ठाकुर ने अपने भाइयों पर जानलेवा हमले का आरोप लगाया है। राजेश चंद्र ठाकुर का आरोप है कि 01 अक्टूबर को जब वह अपनी बेटी के इलाज के लिए पटना गए थे और 15 दिनों के बाद सुबह 5 बजे सुपौल स्थित अपने घर पहुंचे थे, तो उसी समय उनके बड़े भाई शिवेश चन्द्र ठाकुर, छोटे भाई ज्ञानेश चन्द्र ठाकुर, बड़े भाई की पत्नी आशा देवी औऱ उनके बेटे प्रणव ने उन पर हमला बोल दिया।
राजेश का आरोप है जब वे अपनी पत्नी और बेटी के साथ घर लौटे तो उनके घर पर लगे उनके ताले के उपर ताला जड़ा हुआ था। अपना ताला खोलने के बाद जब राजेश ने कई बार पूछना चाहा कि उनके मकान में दूसरा ताला किसका है, तो कोई जवाब देने को तैयार नहीं हुआ। हां इस बीच उनके बड़े और छोटे भाई के परिवार के सभी सदस्य बाहर आ गये, लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। उन्हें परेशान देखकर वह सभी लोग हंस रहे थे।
पुलिस अधीक्षक सुपौल को न्याय के लिए लिखे गये पत्र में उन्होंने लिखा है,‘मैं राजेश चन्द्र ठाकुर, पिता – स्वर्गीय प्रोफेसर शारदा नन्द ठाकुर, चाणक्यपुरी, वार्ड संख्या -8, बसंतपुर, थाना – वीरपुर, सुपौल गंभीर रूप से बीमार अपनी बेटी, पत्नी और अपना इलाज करा कर लगभग 15 दिनों बाद विगत 01 अक्टूबर, 2023 को पटना से सुबह 5 बजे सपरिवार अपने घर लौटा था। हमने देखा कि दालान स्थित हमारे छतदार मकान के लोहे के मुख्य दरवाजे में हमारे द्वारा लगाये गये ताले के अलावा नीचे की सांकल में किसी ने एक और बहुत भारी ताला लगा रखा है। अपना ताला खोलने के बाद हमने कई बार ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगा कर पूछा कि हमारे मकान में यह दूसरा ताला किसने लगाया है, तो दोनों बेटों के परिवार के सभी सदस्य बाहर आ गये, लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। हमें परेशान देख कर वे सभी हंस रहे थे और बड़ी बहू आशा देवी हमें लगातार अंगूठा दिखा रही थी।
राजेश का आरोप है, लंबे समय तक बीमार रहने से आयी कमज़ोरी, रातभर की बस यात्रा की थकावट और भूख-प्यास की लाचारी के बीच अपने मकान में लगा दूसरा ताला तोड़ने के अलावा कोई और उपाय नहीं देखकर जैसे ही उन्होंने पास पड़े लकड़ी के एक टुकड़े से ताला तोड़ना चाहा तो उनके भाई शिवेश चन्द्र ठाकुर और उसकी पत्नी आशा देवी, उनका बेटा प्रणव ‘पप्पू’ और ज्ञानेश चन्द्र ठाकुर अचानक एक साथ चीखते-चिल्लाते और गंदी-गंदी गालियां देते हुए उनकी तरफ़ मारने के लिए दौड़ पड़े। राजेश कहते हैं, इन सभी ने मिलकर मेरे अलावा मेरी पत्नी उषा ठाकुर और बेटी पाखी ठाकुर के साथ भी धक्का-मुक्की और मारपीट शुरू कर दी। इन लोगों के ख़ूनी और बेहद ख़तरनाक इरादों को देख मैंने अपनी बेटी से चिल्ला कर कहा कि वह मोबाइल से वीडियो बनाये।
राजेश का आरोप है, लंबे समय तक बीमार रहने से आयी कमज़ोरी, रातभर की बस यात्रा की थकावट और भूख-प्यास की लाचारी के बीच अपने मकान में लगा दूसरा ताला तोड़ने के अलावा कोई और उपाय नहीं देखकर जैसे ही उन्होंने पास पड़े लकड़ी के एक टुकड़े से ताला तोड़ना चाहा तो उनके भाई शिवेश चन्द्र ठाकुर और उसकी पत्नी आशा देवी, उनका बेटा प्रणव ‘पप्पू’ और ज्ञानेश चन्द्र ठाकुर अचानक एक साथ चीखते-चिल्लाते और गंदी-गंदी गालियां देते हुए उनकी तरफ़ मारने के लिए दौड़ पड़े। राजेश कहते हैं, इन सभी ने मिलकर मेरे अलावा मेरी पत्नी उषा ठाकुर और बेटी पाखी ठाकुर के साथ भी धक्का-मुक्की और मारपीट शुरू कर दी। इन लोगों के ख़ूनी और बेहद ख़तरनाक इरादों को देख मैंने अपनी बेटी से चिल्ला कर कहा कि वह मोबाइल से वीडियो बनाये।
राजेश का आरोप है कि पहले उनके भाई शिवेश चन्द्र ठाकुर ने मेरी बांह पूरी ताकत से मरोड़ कर तोड़ने की पूरी कोशिश की, कमीज़ फाड़ दी, बाल पकड़ कर उखाड़ने की कोशिश की, सिर में कई घूंसे मारे और गला पकड़ कर पीछे की तरफ़ धकेलते हुए मुझे सीढ़ियों से नीचे की ओर ज़ोर से धक्का दे दिया। इस बीच ज्ञानेश चन्द्र ठाकुर ने मेरी पत्नी उषा ठाकुर को भी थप्पड़ मारा, आशा देवी ने मेरी पत्नी का गला दबाया, कलाई तोड़ने की कोशिश की और बाल पकड़ कर घसीटा। मेरी पत्नी, जो पहले से ही लकवाग्रस्त और बेहद कमज़ोर है, पिछले दस वर्षों से दवाइयों के सहारे जीवन काट रही है, दर्द से चीख रही थी, लेकिन इन दरिंदों पर कोई असर नहीं पड़ रहा था। शिवेश चन्द्र ठाकुर और आशा देवी का बेटा प्रणव ‘पप्पू’ भी वीडियो बनाते हुए लगातार मुझे और मेरी पत्नी को लात से मार रहा था।
राजेश की शिकायत के मुताबिक, जब मैंने शिवेश चन्द्र ठाकुर और ज्ञानेश चन्द्र ठाकुर से पूछा कि हमारी अनुपस्थिति में तुम लोगों ने हमारे मकान में ताला क्यों लगाया तो शिवेश चन्द्र ठाकुर ने बेहयाई से कहा कि जहां हमारी मर्जी होगी हम ताला लगायेंगे। यहां तुम्हारा कोई घर नहीं है। अपना बैग उठाओ और जान बचाना चाहते हो तो यहां से भाग जाओ। मैंने कहा कि यह हमारा मकान है, माता-पिता ने मुझे रहने का अधिकार दे रखा है, हमारा सामान, कपड़े, गैस, चूल्हा, बरतन, राशन सारा कुछ अंदर बंद है। तुम लोग हमारे मकान में ताला नहीं लगा सकते। या तो ताला खोल दो, या हमें इसे तोड़ना पड़ेगा। अगर तुम लोग हमारी जान लेना चाहते हो तो हम जान दे देंगे, लेकिन अपना घर छोड़ कर कहीं नहीं जायेंगे। ऐसा कहने के बाद मैं अपने परिवार सहित दरवाजे के पास ही नीचे बैठने की कोशिश करने लगा, लेकिन आशा देवी, ज्ञानेश चन्द्र ठाकुर और ‘प्रणव पप्पू’ हमें धक्का देकर लगातार वहां से दूर हटा रहे थे।
यह देख कर शिवेश चन्द्र ठाकुर ने फिर से ज्ञानेश चन्द्र ठाकुर, अपनी पत्नी और बेटे को ललकारते हुए कहा कि यह ऐसे नहीं भागेगा, इसका पूरा इलाज करना ही पड़ेगा। उसने हमारा बैग और यात्रा का सारा सामान उठा-उठा कर दूर फेंक दिया और एक बार फिर से चारों दरिन्दे की तरह हमें मारने के लिये दौड़े। मैं अपनी पत्नी के साथ दरवाज़े की ग्रिल पकड़ कर खड़ा था। शिवेश चन्द्र ठाकुर ने पहले मेरी बांह और दाहिनी टांग तोड़ने की कोशिश की, फिर दोनों हाथों से मेरी गरदन पकड़ कर ज़ोर से मेरा गला दबाने लगा। मेरा दम घुटने लगा था, और साफ़ लग रहा था कि वह मेरी जान लेना चाहता है।
जब मुझे बचाने के लिये मेरी पत्नी दौड़ी तो शिवेश चन्द्र ठाकुर ने मुझे धक्का दे दिया और मेरी पत्नी के ऊपर झपटा। उसने मेरी पत्नी को बाल पकड़ कर खींचा, दोनों बांह मरोड़ कर पीठ की तरफ कर दिया और पीछे लात मारी, जिसके कारण उसका सिर सामने की दीवार से टकरा गया। हम इन दरिन्दों से जान बचाने के लिये ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे, लेकिन आस-पड़ोस का एक भी आदमी हमारी चीख-पुकार सुन कर वहां नहीं आया। जब शिवेश चन्द्र ठाकुर ने मेरी बेटी को वीडियो बनाते देखा तो उसके हाथ से मोबाइल झपट कर दूर फेंक दिया और सिर पर मुक्के से प्रहार किया। वह नीचे गिर कर छटपटा रही थी, तो मेरी पत्नी ने उसे उठाया।
राजेश चंद्र ठाकुर का आरोप है कि जब हमारे अंदर इस गुंडागर्दी का विरोध करने की शक्ति नहीं बची तो हम तीनों बैग और सामान समेट कर सामने सड़क के किनारे धूल में ही बैठ गये। मेरी पत्नी और बेटी की हालत काफ़ी ख़राब हो रही थी। मैंने सुपौल के पुलिस अधीक्षक महोदय को फ़ोन पर इस गुंडागर्दी और मारपीट की सूचना दी तो उन्होंने वीरपुर के थाना प्रभारी से बात कर तुरंत घटना-स्थल पर पहुंचने का निर्देश दिया। फिर मैंने अपने दो दोस्तों- अरुण कुमार और चन्द्रशेखर प्रसाद कर्ण को फ़ोन किया और सारी बात बता कर बेटी के लिये खाना और पानी लेकर आने का आग्रह किया। जिन पड़ोसियों को इस मोहल्ले में बसाने के लिये कभी हमारे पिताजी ने अपने घर का दरवाज़ा खोल दिया था, आठ-आठ लोगों के परिवार को साल-साल भर अपने घर में रखा, अपने बच्चों का खाना उनके बच्चों को खिलाया, अपना बिस्तर सोने को दे दिया था, उनकी जवान पोती, उनका बेटा-बहू घायल अवस्था में सुबह 5 बजे से लेकर अगली सुबह तक रात भर भूखे-प्यासे और निढाल सड़क किनारे पड़े रहे, लेकिन किसी ने अपने घर का दरवाज़ा खोलना तो दूर, एक गिलास पानी तक नहीं दिया।
राजेश कहते हैं 1 अक्टूबर को दिनभर शिवेश चन्द्र ठाकुर, ज्ञानेश चन्द्र ठाकुर, आशा देवी और उनकी गुंडा टोली हमारे मकान के दरवाज़े पर तैनात रही। शाम 7 बजे इस गुंडागर्दी और मारपीट को लेकर वीरपुर थाने में एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद लगभग 8.30 बजे गुंडों की यह टोली उठ कर चुपचाप भीतर चली गयी और हमने अपने मकान के गेट पर लगा ताला तोड़ना शुरू कर दिया। ताला इतना मज़बूत था कि टूटने का नाम नहीं ले रहा था। रात के लगभग 11.30 बजे भीमनगर के मेरे दोस्त चन्द्रशेखर का फ़ोन आया कि शिवेश चन्द्र ठाकुर चाबी दे रहा है, यह कहने के लिये उसने अभी फ़ोन किया था। मैंने चन्द्रशेखर से कहा कि शिवेश चन्द्र ठाकुर को अगर चाबी देनी ही थी तो पहले क्यों नहीं दी, मारपीट क्यों की? अगर पुलिस प्रशासन के दबाव में दे रहा है तो रात 9 बजे क्यों नहीं दी, जब हमने ताला तोड़ना शुरू किया था?
इतने में हमारे पड़ोस के दिलीप कुमार ठाकुर चाबी लेकर आ गये, लेकिन कोशिश करने के बाद भी उनसे ताला नहीं खुला तो वे घर चले गये। पूरी रात ताला तोड़ने और कुंडी निकालने की कोशिश करते रहने के बाद जब हम अंततः दरवाजा खोल कर भीतर गये तो सुबह के 4 बज चुके थे। मेरी बेटी को 104 बुखार था, और पत्नी लगभग बेहोशी की हालत में दर्द से कराह रही थी। दिन में मेरी पत्नी की हालत और बिगड़ती चली गयी। वह बार-बार रोती-बिलखती, सिर पटकती हुई बेहोश हो रही थी।
राजेश कहते हैं, सनातन हिन्दू संस्कृति और कुलीन ब्राह्मण परिवार के संस्कारों में पली-बढ़ी मेरी धर्मभीरु पत्नी, जिसे बचपन से यह सिखाया गया था कि पति के बड़े भाई या भैंसुर की छाया तक से दूर रहना है, उसका नाम कभी गलती से भी मुंह पर नहीं लाना है, उसी कथित भैंसुर ने सम्पत्ति के लिये उसका धर्मभ्रष्ट कर दिया। उसकी बांह मरोड़ी, बाल खींचा और लातों से मारा- यह बात उसके दिमाग में बुरी तरह घर कर गयी थी, जो उसे जीने नहीं दे रही थी।
राजेश कहते हैं, रात के 9 बजे बेहोशी की हालत में पत्नी को बेटी की मदद से मोटरसाइकिल पर बैठा कर वीरपुर के अनुमंडल अस्पताल ले जाना पड़ा, जहां अमरजेंसी वार्ड में रातभर मेरी पत्नी को होश में लाने के लिये कई इंजेक्शन लगाये गये और लगातार पानी चढ़ाया गया। डॉक्टर काफी परेशान थे, क्योंकि उसके ब्लडप्रेशर का किसी भी तरह पता नहीं चल पा रहा था। इस बीच बुखार में पड़ी बेटी को देखने वाला कोई नहीं था। सुबह 4 बजे पत्नी को अस्पताल से लाने के बाद 10 बजे फिर उसकी हालत बिगड़ गयी। मैंने आस-पड़ोस के कई लोगों को मदद के लिये फ़ोन किया, जिसके बाद मनीष कुमार झा, गौतम कुमार भगत,डैनी कुमार झा, दिलीप कुमार ठाकुर और प्रशांत कुमार झा आदि भागे हुए आये और मेरी पत्नी की हालत देख वे लोग भी घबरा गये।
पड़ोस के मनीष कुमार झा और गौतम कुमार भगत जल्दी से एक नज़दीकी स्वास्थ्यकर्मी अंजनी कुमार को घर पर लेकर आये, जिन्होंने मेरी पत्नी का आवश्यक उपचार शुरू किया और दिनभर स्लाइन आदि चढ़ाने की व्यवस्था की। मेरी बेटी को भी पहली बार बुखार की दवा खिलायी गयी, जो इस घटनाक्रम के कारण लगातार गहरे सदमे में थी। मेरा दाहिना हाथ चोट के कारण सूजा हुआ था, और पत्नी के पूरे शरीर पर गहरे नीले रंग के निशान उभर आये थे। मेरे परिवार के साथ शिवेश चन्द्र ठाकुर और उसकी गुंडा टोली द्वारा की गयी इस हैवानियत को देख कर सभी लोग हतप्रभ थे। काफी देर बाद मेरी पत्नी की हालत में कुछ सुधार होते देख कर ये सभी लोग अपने-अपने घर चले गये।
राजेश कहते हैं, पत्नी और बेटी के लगातार अस्वस्थ रहने के अलावा अपने ख़िलाफ़ थाना वीरपुर, सुपौल में एफ़आईआर दर्ज़ कराये जाने के बाद से बड़े और छोटे बेटे तथा उनके परिवार द्वारा हमें लगातार तरह-तरह से सताने और परेशान किये जाने की रोज़-रोज़ की घटनाओं और बेहद असुरक्षित वातावरण को देखते हुए मेरा परिवार तात्कालिक रूप से कुछ बेहद ज़रूरी कपड़े-लत्ते, बिस्तर, थोड़े से रसोई-बरतन, गैस-चूल्हा और कुछ अन्य उपयोगी सामान लेकर पिछले अगस्त महीने में मेरे साथ दालान वाले मकान में रहने आ गया था, ताकि उनकी समुचित देखभाल और सुरक्षा हो सके। तात्कालिक रूप से ज़रूरी रोज़ाना उपयोग की कुछ चीज़ों को छोड़कर हमारी गृहस्थी और रसोई का सारा सामान हमारे आंगन वाले दोनों कमरों में ही रखा हुआ है, जिसमें हमने ताला लगा रखा है और आवश्यकता पड़ने पर वहां से निकाल कर ले आते हैं।
राजेश का कहना है कि माता-पिता द्वारा वर्ष 2000 से ही मेरे परिवार को रहने के लिये आंगन में दक्षिण दिशा में टिन की छत वाला एक कमरा और एक रसोई मिली हुई है, जिसमें मेरी पत्नी और बेटी रहती रही है, और साथ वाली रसोई में मृत्यु से पहले तक मेरे साथ रहने वाले पिताजी का भी भोजन तैयार होता रहा है। मेरी मां सुगंधा देवी द्वारा त्याग दिये जाने और बड़े बेटे-बहू शिवेश चन्द्र ठाकुर और आशा देवी द्वारा सेवा और देखभाल की ज़िम्मेदारी उठाने से पूरी तरह मना कर देने के बाद वर्ष 2000 से मैं स्वयं पिताजी की सेवा और देखभाल के लिये दालान स्थित पिताजी द्वारा निर्मित दो कमरों के छतदार मकान में रहता आ रहा हूं, जिसमें पिताजी पिछले कई वर्षों से अकेले रहते थे। पिताजी जब तक जीवित रहे उनकी पत्नी और अन्य दोनों बेटों के परिवार ने उनसे न तो कोई संबंध रखा और न ही कभी उनको देखने आये, लेकिन जैसे ही पिताजी की मृत्यु हुई तो उनका पेंशन-एरियर हड़पने के लिये सारे गिद्ध इकट्ठा हो गये हैं।
राजेश का आरोप है कि 18 साल पहले माता-पिता द्वारा चल-अचल संपत्ति और पेंशन-एरियर का बंटवारा कर दिये जाने के बावज़ूद उनका बड़ा और छोटा बेटा आज तक मेरा हिस्सा नहीं दे रहे हैं। मेरे साथ रहते हुए पिताजी मेरा अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ रहे थे, बड़े और छोटे बेटे की गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ सामाजिक पंचायत बुला रहे थे, जिला पुलिस अधीक्षक से गुहार लगा रहे थे और इसके साथ-साथ मेरे हिस्से का मकान भी बनवा रहे थे। लेकिन 31 मई, 2022 को उनका देहांत हो जाने के बाद बड़े और छोटे बेटे ने उनके पेंशन-एरियर का एक-एक पैसा लूट लिया।
राजेश का यह भी आरोप है कि उनके भाई शिवेश चन्द्र ठाकुर और आशा देवी ने पहले किसी को पैसा देकर उनके ख़िलाफ़ दिल्ली में झूठा केस दर्ज़ करवाने की नाकाम कोशिश की, और अब दोनों बेटों, बड़ी बहू और पोते के साथ मारपीट और गाली-गलौज का उलटा और झूठा आरोप लगाकर 80 साल की हमारी मां के द्वारा मेरे, मेरी पत्नी और बेटी के ख़िलाफ़ झूठा केस दर्ज़ करवाया है। शिवेश चन्द्र ठाकुर और आशा देवी को अच्छी तरह मालूम है कि साक्ष्यों और सबूतों के सामने यह झूठा केस न्यायालय में टिक नहीं पायेगा, इसीलिये उन्होंने यह केस मां की तरफ़ से दर्ज़ करवाया है, ताकि जो भी फजीहत और जगहंसाई होनी हो, मां की हो। इसके माध्यम से ये दोनों पिताजी द्वारा शिवेश चन्द्र ठाकुर से अपना एटीएम कार्ड छीन लिये जाने का भयानक बदला चुकाना चाहते हैं। पिताजी की ही मेहनत का पैसा बहाकर अब वे 80 वर्ष की उनकी पत्नी को कोर्ट-कचहरी में घसीटेंगे। अपने ही बेटे-बहू और पोती के ख़िलाफ़ झूठा केस दर्ज़ कराने और पति के साथ न रहने को लेकर जब वकील मां को बेइज़्ज़त करने वाले सवाल पूछेगा, तब पिताजी की आत्मा तड़पेगी और शिवेश चन्द्र ठाकुर-आशा देवी का बदला पूरा होगा। अभी इनके पापों का घड़ा शायद भरना बाक़ी है।’
रंगकर्मी राजेश चंद्र का आरोप है कि इस घटना को लेकर प्रशासन गूंगा-बहरा बना हुआ है। एक तरफ जहां वह पत्नी और बेटी का इलाज करा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन से सुरक्षा और न्याय की अपील कर रहे हैं। पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई गई है, इसके बावजूद भी जांच अधिकारी द्वारा मेडिकल नहीं कराया गया है कि जख्म और घटना की गंभीरता का सही मूल्यांकन किया जा सके। राजेश कहते हैं, परिवार की बिघटित इकाइयों ने संपत्ति हड़पने के प्रयास में उन्हें अपने ही घर से न सिर्फ बेघर करने की कोशिश की है, बल्कि अपमानित और जान से मारने का भी प्रयास किया है।