जानी-मानी हस्तियों ने लिखा राष्ट्रपति को पत्र, कहा औरतों पर जुल्म के खिलाफ कार्रवाई में पक्षपात देख हमें शर्म आती है !

UP में तकरीबन रोज ही दिल हिला देने वाली वारदातें हो रही हैं, जिनमें से एक चन्द दिन पहले ही यूपी की राजधानी क्षेत्र में हुई, जिसमें एक एम्बुलेस हाइवर ने एम्बुलेंस में ही मरीज़ को मार डाला और उसकी पत्नी से बलात्कार की कोशिश की। मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में जो हुआ वो बताते भी शर्म आती है। एक गरीब महिला का बलात्कार दिनदहाड़े भरी सड़क पर किया गया और कुछ लोग वीडियो बनाते रहे...

Update: 2024-09-10 15:45 GMT

Crime Against Women : देश में महिलाओं पर बढ़ती हिंसा और इन घटनाओं पर असमानतापूर्ण कार्यवाही के खिलाफ देश की मशहूर हस्तियों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम पत्र लिखा है। औरतों पर जुल्म के खिलाफ कार्रवाई में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने के खिलाफ जिन जानी-मानी हस्तियों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है, उनमें सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, लेखक, वकील और सिनेमा-नाटक क्षेत्र से जुड़ी ​42 हस्तियां शामिल हैं।

पत्र में लिखा है, हम देश के नागरिक कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं और आशा करते हैं कि आप इन बिंदुओं पर ध्यान देते हुए निष्पक्ष, सुरक्षित तथा संवेदनशील समाज बनाने हेतु समुचित कार्यवाही करेंगी ।

1. इधर कुछ वर्षों में हर तरह की हिंसा, खासकर महिलाओं पर, बेतहाशा बढ़ी है। हिंसा के इस आलम में यौनिक हिंसा की बढ़ोतरी और उसमें होने वाली दरिंदगी विचलित करने वाली है।

2. इस दरिंदगी की शिकार 2 साल की बच्चियों से लेकर 70-80 साल तक की बूढ़ी महिलायें हैं। ये दिखाता है कि हमारा समाज गम्भीर रूप से बीमार हो रहा है। ये बीमारी तेजी से बढ़ेगी अगर इस मुद्दे पर धार्मिक, जातीय और क्षेत्रीय राजनीति के दखल को रोका न गया।

3. इन घटनाओं में शासन, प्रशासन और पुलिस के रवैये में ढीलापन बढ़ा है। ऐसा लगता है कि बहुत जल्दी ही इस तरह की घटनायें समाज को नॉर्मल लगने लगेंगी और इसलिये स्वीकृत होने लगेंगी।

4. ज्यादा अफसोस की बात ये कि सरकार और पुलिस के रवैये में दिलाई ही नहीं, पक्षपात भी मिलता है। ये पक्षपात अपने आप में जुर्म है।

5. पक्षपात और ढीलापन दोनों ही अपराधियों के हौसले बुलन्द करके हिंसा को बढ़ाने में मदद करते हैं। बड़ी संख्या में बलात्कार-कत्ल जैसे भयंकर अपराधों में "पहुँच" वाले अपराधी और अभियुक्त बड़ी आसानी से, और बार बार, पैरोल या फरलो पर या जमानत पर छोड़ दिये जाते हैं। इनका सत्तासीन पार्टियों से नाता छिपा नहीं होता।

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यथा :

• बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के बलात्कार काण्ड के तीनों अभियुक्त मध्य प्रदेश में एक पार्टी के चुनाव अभियान में सक्रिय थे, जिसके कारण कई महीनों तक उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी, और अभी फिर एक प्रान्त में चुनाव से पहले उन्हें जमानत दी गयी है। उनके लिये आजाद घूमना आसान कर दिया गया, जबकि इस मामले में दोषियों की पहचान करने और गिरफ्तार करने की मांग उठाने वाले विद्यार्थियों पर हक्मरान ने शान्ति अंग अपराध का आरोप लगाया है।

• सजायाफ्ता अपराधी राम रहीम कई बार लम्बे पैरोल पर छोड़ा गया है। मुख्य रूप से किसी न

किसी चुनाव के पहले। चन्द दिनों पहले वो और आसाराम फिर छोड़े गये हैं।

• गुजरात की बिल्किस बानो के गैंग रेपिस्टों और उनके परिजनों के हत्यारे बार-बार अत्यंत मामूली कारणों के बहाने छोड़े जाते रहे और जब उनकी सजा बीच में ही माफ करके छोड़े गये तो रुलिंग पार्टी के कछ प्रभावशील लोगों ने उनका स्वागत मालाओं, मिठाई और आरती से किया। यानी, समाज में संदेश दिया कि वो पूज्य हैं। इन लोगों को सजा पूरी करने के लिये पीड़िता और कुछ नागरिकों को अदालत जाना पड़ा।

• कठुआ में छोटी सी बच्ची का सामूहिक बलात्कार कर के मार दिया गया और बलात्कारियों की सहानु‌भूति में राष्ट्रीय ध्वज लेकर रैली निकाली गयी। कोई कार्यवाही उनके खिलाफ नहीं हुई, जबकि देश के तमाम हितैषी अगर वाजिब माँग के लिये प्रदर्शन करते हैं तो उनके खिलाफ कार्यवाही होती है।

• उत्तर प्रदेश में तकरीबन रोज ही दिल हिला देने वाली वारदातें हो रही हैं, जिनमें से एक चन्द दिन पहले ही यूपी की राजधानी क्षेत्र में हुई, जिसमें एक एम्बुलेस हाइवर ने एम्बुलेंस में ही मरीज़ को मार डाला और उसकी पत्नी से बलात्कार की कोशिश की। मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में जो हुआ वो बताते भी शर्म आती है। एक गरीब महिला का बलात्कार दिन दहाड़े भरी सड़क पर किया गया और कुछ लोग वीडियो बनाते रहे।

उदाहरणों की सूची बहुत लम्बी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, ओडिशा, मणिपुर, आदि अन्य बहुत से प्रदेशों में बहत से शर्मनाक कांड हुए हैं।

6. हिंसा की बड़ी घटनाओं पर देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे जिम्मेदार व्यक्तियों का मौन और उच्च न्यायालयों दद्वारा संगीन मामलों में भी स्वतः संज्ञान का अभाव भी हिंसा की स्वीकृति को साधारण सी बात मानने और उसे बढ़ाने में सहयोगी बनते हैं। मणिपुर में सालभर से ज्यादा चलने वाली हिंसा इसका एक उदाहरण है। अगर मौन टूटता भी है या स्वतः संज्ञान होता भी है तो उसमें विभाजित संवेदना के दर्शन होते हैं। मणिपुर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, इत्यादि के लिये मौन और केवल बंगाल के लिये संवेदना। ये परिदृश्यडर और तकलीफ देने वाला है।

7. हमें खुशी है कि बंगाल में हई घटना के सन्दर्भ में उच्चतमल न्यायालय ने स्वतः संज्ञान ले कर मेडिकल कर्मियों की सुरक्षा के विषय में पड़ताल करने और निर्देश देने का निर्णय लिया है। हम अधिक आश्वस्त होते अगर माननीय न्यायालय देश में बड़ी संख्या में हर प्रकार के वर्ग की महिलाओं और बच्चियों पर होने वाली हिंसा के समस्त दौर ट्रेड का संज्ञान लेते और सामान्य स्त्री की गरिमा को भी उतना ही महत्व देते हुये पूरे परिदृश्य पर समाधान खोजते। हम अधिक आश्वस्त होते अगर मणिपुर में लम्बे समय से तार-तार होने वाली गरिमा का संज्ञान लिया जाता।

8. ऐसा होता तो समाज में संदेश जाता कि देश में हर स्त्री और बच्ची की गरिमा एक समान मूल्यवान है, उनकी सुरक्षा के मामले में हमारे संरक्षक समान दृष्टि रखते हैं और इस विषय पर हमारी संवेदनायें विभाजित नहीं है।

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हमारी आप से ये सुनिश्चित करने की आशा और प्रार्थना है कि इन घटनाओं पर संवैधानिक संस्थायें निष्पक्ष दृष्टि और निष्पक्ष सम्वेदना से कानून के अनुरूप बिना समय खोये मुस्तैद कार्यवाही करें, व्यस्वस्था में समाज का विश्वास पुनस्थापित करें और महिलाओं की गरिमा व सुरक्षा सुनिश्चित करें।

जिन लोगों ने महिला सुरक्षा का सवाल उठाते हुए राष्ट्रपति के नाम पत्र लिखा है उनमें शामिल हैं—

1. प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा

2. असगर मेहदी, जन संस्कृति मंच

3. ग्रुप कैप्टन दिनेश चंद्रा

4. वंदना मिश्रा, पत्रकार व लेखक

5.कौशल किशोर, जन संस्कृति मंच

6. प्रोफेसर रमेश दीक्षित

7. प्रोफेसर नदीम हसनैन

8. नवीन जोशी, लेखक

9. राजीव ध्यानी, व्यंग्यकार

10. राकेश वेदा, इप्टा

11. मीना सिंह, ऐपवा

12. डॉ. दुर्गेश कमार चौधरी, शिक्षक

13. सबीहा अनवर, लेखक

14. मीना काला, रिटायर्ड शिक्षक

15. डॉ चंदेश्वर, शिक्षक

16. राम किशोर, सोशलिस्ट फाउंडेशन

17. दिनकर कपूर, श्रमिक अधिकार कार्यकर्ता

18. मधु गर्ग, जनवादी महिला समिति

19. दयाशंकर राय, लेखक

20. कान्ति मिश्रा, महिला फेडरेशन

21. प्रताप दीक्षित, लेखक

22. ममता सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता

23. आकांक्षा आजाद

24. ज्ञान चंद्र शुक्ला, रंगमंच कर्मी

25. नजम ए फॉरुकी, लेखक

26. अरुण खोटे, श्रमिक अधिकार कार्यकर्ता

27. अरुंधती पूरु, एनएपीएम

28. यासमीन फातिमा, शिक्षक

30. किरण पाण्डेय, होममेकर

31. शहजाद रिज़वी, इप्टा

32. नाइश हसन, सामाजिक कार्यकर्ता

33. प्रौफेसर राजेन्द्र वर्मा

34. फरजाना मेहदी, जन संस्कृति मंच

35. शावेज वारिस, सामाजिक कार्यकर्ता

36. तसनीम फातिमा, सामाजिक कार्यकर्ता

37. अंकिता मिश्रा, सामाजिक कार्यकर्ता

38. तजीन फातिमा, सामाजिक कार्यकर्ता

39. कलदीप सिंह चौहान, संगीतज्ञ

40. लाल बहादर सिंह, लेखक

41. ऐडवोकेट मोहम्मद शोएब

42. रफीक खान, उत्तर प्रदेश डेमकैटिक फोरम

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