चीन के कारण भारत पर बड़ा खतरा, 180 नेताओं-अधिकारियों की कर रहा डिजिटल जासूसी
पीएम मोदी जिस समय चीन का नाम लेते हुए भी डरते हैं उस समय वह हमारी भूमि पर कब्जा करता जा रहा है और ढिठाई के साथ अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत बता रहा है...
दिनकर कुमार का विश्लेषण
जनज्वार। चीन की शेनज़ेन स्थित सूचना तकनीक की कंपनी 'ज़ेन्हुआ' पर लगभग 10 हज़ार भारतीय नागरिकों पर 'डिजिटल निगरानी' का गंभीर आरोप लगा है। इन नागरिकों में उत्तर-पूर्व के कई राजनेता और नौकरशाह भी शामिल हैं। उत्तर-पूर्व पर चीन की नजरें शुरू से ही गड़ी हुई हैं और वह अरुणाचल प्रदेश में लगातार घुसपैठ कर रहा है।
अंग्रेज़ी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की तरफ से ये दावा किया है। अख़बार की रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि इस कंपनी के तार चीन की सरकार और ख़ास तौर पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कंपनी के निशाने पर भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा कई केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता- जैसे सोनिया गांधी और बड़े अधिकारी तो हैं ही, साथ ही चीफ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़, तीनों सेनाओं के प्रमुख और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, जज और कई जाने माने उद्योगपति भी शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-पूर्व के कम से कम 180 नेताओं और नौकरशाहों की डिजिटल निगरानी हो रही है। ऐसे नेताओं में असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत, तरुण गोगोई, केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा और नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ़्यिओ रियो के नाम शामिल हैं। इस तरह चीन असम के दो, अरुणाचल प्रदेश के तीन,मेघालय के दो,मणिपुर,सिक्किम और मिजोरम के एक एक पूर्व मुख्यमंत्रियों की डिजिटल निगरानी कर रहा है। अरुणाचल में बोमडिला के पूर्व विधायक जापू डेरु का नाम भी उन नेताओं में शामिल है जिनकी निगरानी हो रही है।
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चीन की निगाहें शुरू से ही अरुणाचल प्रदेश और बौद्ध मठ तवांग पर रही हैं। वर्ष 1962 के युद्ध के समय भी तवांग पर उसका कब्जा हो गया था। लेकिन बाद में युद्धविराम के तहत उसे पीछे हटना पड़ा था। चीन तवांग को अपने साथ लेकर तिब्बत की तरह ही प्रमुख बौद्ध स्थलों पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है। वह तवांग को तिब्बत का हिस्सा मानता है। उसका दावा है कि तवांग और तिब्बत में काफी सांस्कृतिक समानताएं है। तवांग मठ को एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है। चीन के साथ अरुणाचल प्रदेश की 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है।
अरुणाचल को अपना हिस्सा मानने की वजह से ही वह दलाई लामा, भारतीय प्रधानमंत्री और दूसरे शीर्ष मंत्रियों के दौरों का विरोध करता रहा है। इस राज्य के लोगों को स्टैपल वीजा जारी करने के चीनी फैसले का भी काफी विरोध हुआ था, लेकिन चीन अपने रवैए पर कायम रहा।
अरुणाचल पर चीन के दावों में कोई दम नहीं है। उसने वर्ष 1951 में तिब्बत पर कब्जा किया था जबकि वर्ष 1938 में खींची गई मैकमोहन लाइन के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है। तवांग भारत के लिए सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए भारत उस पर किसी भी सूरत में कब्जा छोड़ नहीं सकता। तवांग के कब्जे में आने पर ही चीन देर-सबेर पूरे राज्य पर अपना दावा ठोंक सकता है।
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चीन उत्तर-पूर्व के उग्रवादी संगठनों की भी पांच दशकों से सहायता करता रहा है। वह गुप्त रूप से उत्तर-पूर्व के उग्रवादी संगठनों के लिए हथियार और प्रशिक्षण का इंतजाम करता रहा है। 1967 में नगा नेशनल काउंसिल के नेताओं को उसने प्रशिक्षण दिया। फिर मिज़ो नेशनल फ्रंट और मणिपुर की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी के सदस्यों को तिब्बत में प्रशिक्षण दिया।
अस्सी के दशक में चीन ने म्यांमार की काचीन इंडिपेंडेंस आर्मी के जरिये उत्तर-पूर्व के उग्रवादियों को प्रशिक्षण देने का इंतजाम किया। चीन इन उग्रवादी संगठनों की सहायता इसीलिए करता रहा है कि समय आने पर उनका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सके।
डिजिटल निगरानी की खबर से इस बात की पुष्टि होती है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति को अंजाम देना चाहता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस समय चीन का नाम लेते हुए भी डरते हैं उस समय चीन भारत की भूमि पर कब्जा करता जा रहा है और ढिठाई के साथ अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत बता रहा है।