Deoria Election 2022: देवरिया में दलों को पुराने चेहरे पर नहीं रहा भरोसा, जानें क्या है चुनावी समीकरण
Deoria Election 2022: यूपी विधान सभा चुनाव अब अपने सबाब पर है। सभी दलों के अधिकांश सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर देने से तस्वीरें भी साफ होने लगी है। इस बीच विधान सभा की देवरिया सीट को लेकर दलों की निष्ठा व मतदाताओं की आस्था दोनों की परीक्षा पांच साल के अंदर तीसरी बार होने जा रही है।
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
Deoria Election 2022: यूपी विधान सभा चुनाव अब अपने सबाब पर है। सभी दलों के अधिकांश सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर देने से तस्वीरें भी साफ होने लगी है। इस बीच विधान सभा की देवरिया सीट को लेकर दलों की निष्ठा व मतदाताओं की आस्था दोनों की परीक्षा पांच साल के अंदर तीसरी बार होने जा रही है। जिससे चुनावी मुकाबला दिलचस्प होने के आसार हैं।
वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव में यहां से भाजपा के सिंबल पर जन्मेजय सिंह निर्वाचित हुए थे। इन्हें 48.03 प्रतिशत मत मिला था। जबकि सपा के जेपी जायसवाल को 22.80 प्रतिशत व बसपा के अभय नाथ त्रिपाठी को 15.94 प्रतिशत वोट हासिल हुआ। इस चुनाव के तकरीबन साढे़ तीन वर्ष बाद ही विधायक जन्मेजय सिंह का 21 अगस्त 2020 को निधन हो गया। लिहाजा इस सीट पर नवंबर 2020 में उप चुनाव कराना पड़ा।
उप चुनाव में भाजपा के दिवंगत नेता जन्मेजय सिंह के लड़के अजय सिंह की उम्मीदवारी की शुरूआत में खुब चर्चा रही। लेकिन नेतृत्व ने डा. सत्य प्रकाश मणि को उम्मीदवार बनाया। जबकि सपा ने अपने पुराने चेहरे जय प्रकाश जायसवाल पर विश्वास जताने के बजाए चुनावी मैदान में पांच बार विधायक व दो बार कैबिनेट मंत्री रहे ब्रम्हाशंकर त्रिपाठी को उतार दिया। हालांकि बसपा ने अपने पुराने चेहरे अभय नाथ त्रिपाठी के प्रति ही अपना भरोसा जताया। इस चुनाव में जन्मेजय सिंह के लड़के अजय सिंह भाजपा से टिकट न मिलने पर निर्दलीय मैदान में उतर गए। चुनावी नतीजा भाजपा के पक्ष में आया। डा.सत्य प्रकाश मणि ने 20 हजार मतों से सपा को हराया।
उप चुनाव के मात्र चैदह माह बाद ही एक बार फिर मतदान होने जा रहा है। इस बार सभी प्रमुख दलों को अपने नेता के निष्ठा पर भरोसा नहीं रहा। सभी ने अपने पुराने उम्मीदवारों को बदल कर नया चेहरा मैदान में उतारा है। जिसकी शुरूआत सबसे पहले भाजपा ने की। पार्टी ने अपने विधायक डा. सत्यप्रकाश मणि का टिकट काटकर यहां से शलभ मणि त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि इस निर्णय पर पार्टी के एक हिस्से में काफी नाराजगी भी दिखी। इसके बाद सपा ने भी अपना उम्मीदवार बदलते हुए भाजपा के विधायक रहे स्व. जन्मेजय सिंह के लड़के अजय सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है। बसपा से रामशरण सिंह सैंथवार उम्मीदवार हैं। पूर्व में बसपा से चुनाव लड़ रहे अभय नाथ त्रिपाठी भाजपा में चले गए हैं। इसी तरह कांग्रेस पार्टी ने भी इस बार मुकुन्द भाष्कर मणि की जगह पुरूषोत्तम नारायण सिंह को उम्मीदवार बनाया है।
सभी दलों के नामांकन पत्रों के दाखिले के बाद नतीजों को लेकर मंथन शुरू हो गया है। यह सवाल आमतौर पर लोग उठा रहे हैं कि दलिय निष्ठा की बात करने वाले दलों के नेतृत्व को ही अपने चेहरे पर भरोसा नहीं रह जा रहा है। लिहाजा अपने उम्मीदवार बदलने पड़ रहे हैं। यहां चुनाव मुकाबले की बात करें तो जिला मुख्यालय की सीट होने के कारण यहां शहरी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। इस सीट पर डेढ साल पहले हुए उपचुनाव में विद्रोह और भितरघात के बावजूद भाजपा के डॉ सत्यप्रकाश मणि त्रिपाठी ने जीत हासिल की थी। उन्होंने क्षेत्र के कद्दावर नेता और सपा के ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले पूर्व मंत्री ब्रह्मशंकर त्रिपाठी को 20 हजार मतों से हराया था। लेकिन पार्टी ने इस बार उनकी छुटटी करते हुए शलभ मणि त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाई है। पत्रकारिता छोड़ कर राजनीति में आए शलभ मणि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार हैं। मौजूदा विधायक डा. सत्यप्रकाश मणि के टिकट कटने से उनके समर्थकों में निराशा है। ऐसे में ये चुनाव में क्या भूमिका निभाते हैं,यह तो अंदर खाते की बात है। यही हाल प्रमुख प्रतिद्वंदी दल सपा का भी है। वर्ष 2017 का चुनाव लड़े पूर्व एमएलसी जयप्रकाश जायसवाल को इस बार टिकट मिलने की उम्मीद थी। हालांकि नेतृत्व ने उनके उम्मीदों पर पानी फेरते हुए अजय सिंह सैंथवार को उम्मीदवार बना दिया। जिससे जयप्रकाश के समर्थकों का हतोत्साहित होना स्वाभाविक है। है। बसपा की राजनीति के नया चेहरा हैं रामशरण सिंह सैंथवार।जिसे पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है। ये उप निबंधन कार्यालय के कर्मचारी रहे हैं।
देवरिया सदर विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। इसे ब्राह्मण बाहुल्य इलाका माना जाता है। इसके बावजूद भी 1989 के चुनाव के बाद यहां से कोई ब्राह्मण विधायक नहीं बन पाया। 1989 के चुनाव में इस सीट पर जनता दल से राम छबीला मिश्रा विधायक बने थे। उसके 32 साल बाद ब्राह्मण नेता के रूप में डॉक्टर सत्यप्रकाश मणि त्रिपाठी चुनाव जीते। हालांकि हर चुनाव में विभिन्न दलों से कई ब्राह्मण नेताओं ने यहां से अपनी किस्मत आजमाई। मगर सफलता नहीं मिली। बीते उपचुनाव में चारों प्रमुख पार्टियों भाजपा सपा, बसपा और कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रत्याशी उतारे थे। इस बार भाजपा ने ब्राम्हण तथा सपा व बसपा ने पिछडी जाति के सैंथवार विरादरी के उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है। इस सीट पर मुख्य मुकाबला सपा व भाजपा के बीच ही होनी है। जिसे बसपा के उम्मीदवार त्रिकोणीय बनाने में कोई कसर छोड़ना नहीं चाहेंगे। सबसे खास बात है कि भाजपा व सपा दोनों के उम्मीदवारों को भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में देखना है कि दलगत निष्ठा की बात जहां बेईमानी हो चुकी है,वैसे प्रमुख दलों को अपने परंपरागत मतदाताओं का कितना आशीर्वाद मिल पाता है। इसी आधार पर हार जीत के नतीजे सामने आएंगे।