Deoria News: सत्ता में परिवार की भागीदारी बढ़ाने की देवरिया के कद्दावर BJP नेताओ को सता रही चिंता, जानिए, देवरिया का चुनावी मूड
Deoria News: विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल होने की बात करनेवाली भाजपा संगठन व कार्यकर्ताओं को तवज्जो देने की बात भले ही करती रही है,पर यह भी सच है कि इसमें भी कांग्रेस व सपा समेत अन्य दलों की तरह परिवारवाद व वंशवाद का राजनीतिक कल्चर अब धीरे-धीरे हावी होने लगा है।
देवरिया से जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
Deoria News: विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल होने की बात करनेवाली भाजपा संगठन व कार्यकर्ताओं को तवज्जो देने की बात भले ही करती रही है,पर यह भी सच है कि इसमें भी कांग्रेस व सपा समेत अन्य दलों की तरह परिवारवाद व वंशवाद का राजनीतिक कल्चर अब धीरे-धीरे हावी होने लगा है। यूपी के देवरिया जिले में संगठन की मजबूत नींव भाजपा के स्थापना के बाद से ही पड़ने लगी थी। बिहार से सटे इस जिले ने प्रदेश अध्यक्ष से लेकर पार्टी को राष्टीय नेता देने का काम की है। देवरिया जनपद में अब यहां के नेताओं में भी कार्यकर्ताओं को तवज्जो देने के बजाए अपने परिवार के सदस्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने की बेचैनी साफ दिख रही है। जिसके चलते नेताओं व कार्यकर्ताओं में दूरी स्वाभाविक तौर पर आनेवाले दिनों में बढ़ने के कयास से इंकार नहीं किया जा सकता।
भाजपा के यूपी के सांगठनिक व राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो पार्टी के स्थापना के बाद अगर पहली बार राज्य में पार्टी को पूर्वांचल की एकमात्र सीट मिली तो यह सलेमपुर से थी। भाजपा को यहां से 1980 में जीत मिली थी। बैंक केें कैशियर की नौकरी छोडकर दुर्गा प्रसाद मिश्र यहां से भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे। उनके निधन के बाद राजनीतिक विरासत दीपक मिश्र उर्फ शाका संभालने के लिए लंबे समय से जददोजहद कर रहे हैं। भागलपंर के ब्लाक प्रमुख रहे शाका विधान सभा क्षेत्र बरहज से पार्टी का टिकट मांग रहे हैं। जनसंघ के प्रदेश अध्यक्ष व बाद में रामनरेश यादव की जनता पार्टी के सरकार में मंत्री रहे रविंद्र किशोर शाही के राजनीतिक विरासत उनके भतीजे सूर्य प्रताप शाही बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं।मौजूदा सरकार में कृषि मंत्री श्री शाही पूर्व की सरकारों में भी आबकारी मंत्रालय,स्वास्थ्य मंत्रालय समेत प्रमुख विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। साथ ही संगठन में मजबूत पकड़ के लिहाज से प्रदेश अध्यक्ष की भी जिम्मेदारी निभा चुके हैं। उनके पुत्र सुब्रत शाही पथरदेवा के ब्लाक प्रमुख व भाई मुरारी मोहन शाही ग्राम प्रधान हैं।
अब बात करें आगामी विधान सभा चुनाव की तो इसमें भाग्य आजमाने के लिए पार्टी के कई कददावार नेता के पुत्र व भाई कोशिश में लगे हैं। जिन्हें पूर्व के चुनाव में भी अवसर मिला उनमें सलेमपुर के सांसद रविंद्र कुशवाहा के भाई जयनाथ कुशवाहा उर्फ गुडडन शामिल हैं। ये वर्ष 2017 का विधान सभा चुनाव भाटपार रानी के सीट से भाजपा के सिंबल पर लड़ चुके हैं।जिसमें पार्टी के लहर के बावजूद इन्हें हार का सामना करना पड़ा। पार्टी से अब एक बार फिर यहां से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। सलेमपुर के विधायक काली प्रसाद के उम्मीदवारी को लेकर बने संशय को देखते हुए यहां से अन्य लोगों की दावेदारी तेज हो गई है। भाजपा नेता छेदी प्रसाद अपने पतोहू निर्मला गौतम के लिए यहां से टिकट मांग रहे हैं। निर्मला को पार्टी में प्रदेश मंत्री की जिम्मेदारी मिली है।विधान सभा क्षेत्र बरहज से भाजपा विधायक सुरेश तिवारी अपने बेटे संजय तिवारी उर्फ संगम के लिए देवरिया सीट से उम्मीदवारी की उम्मीद लगाए बैठे हैं। रामपुर कारखाना विधान सभा क्षेत्र से भाजपा विधायक कमलेश शुक्ल अपना टिकट कटने की स्थिति में अपने बेटे डा़ संजीव शुक्ला को टिकट देने की हाईकमान से वकालत कर रहे हैं।
प्रदेश के दुग्ध विकास मंत्री जयप्रकाश निषाद विधान सभा क्षेत्र रूद्रपुर से सदन में प्रतिनिधित्व करते हैं। इस सीट से भाजपा को जब भी जीत मिली है तो एकमात्र जयप्रकाश निषाद ने ही जीत का सेहरा बाधा है। इनकी भी उम्मीदवारी खारिज होने की स्थिति में ये अपने बेटे विश्वविजय निषाद को टिकट देने की मांग कर रहे हैं। मौजूदा समय में विश्वविजय की पत्नी गौरीबाजार की ब्लाक प्रमुख हैं। कुछ लोगों का कहना है कि भाजपा जिलाध्यक्ष अंतर्यामी सिंह भी आगामी चुनाव में अपनी दावेदारी करने के प्रयास में हैं। इसके अलावा अन्य कई नाम है,जो अपनी टिकट न मिलने की स्थिति में परिवार के सदस्य को टिकट देने की वकालत कर रहे हैं।
इन सारी बातों से यह बात साफ हो गई है कि भाजपा भी वंशवाद व परिवारवाद की राजीति से उबर नहीं पा रही है। हालांकी संगठनात्मक ढांचा के़ लिहाज से पार्टी ने हमेशा संगठन के कार्यकर्ताओं को तवज्जों
दी है। लेकिन अब स्थिति यह है कि सत्ता के मोह में अन्य दलों की तरह ही भाजपा के नेता भी अपने परिवार के सदस्यों के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने में जूटे हैै। जिसका असर अब साफ देखने को मिल रहा है। आगामी विधान सभा चुनाव में वंशवाद व परिवारवाद की संकृति को तेजी से हवा मिलने के आसार हैं। ये लोग अपने परिवार के सदस्य की उम्मीदवारी तय कराने के लिए पूरा जोर लगाने में लगे है।