Kishore Upadhyay : अखिलेश से किशोर की मुलाकात के बाद फिर बढ़ा राजनैतिक पारा, पत्ते शो करने से किशोर का अभी तक परहेज

Kishore Upadhyay : विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही किशोर ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने पूर्व अनन्य सहयोगी व प्रदेश में कांग्रेस के मुख्य चेहरे हरीश रावत पर हमला बोलना शुरू कर दिया...

Update: 2021-12-08 08:51 GMT

(अखिलेश यादव के साथ किशोर उपाध्याय)

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Kishore Upadhyay : कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में लंबे समय से हाशिये पर चल रहे व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) से सोशल मीडिया पर भिड़ंत कर रहे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय (Kishor Upadhyay) की समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से हालिया मुलाकात के बाद एक बार फिर राज्य में कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में हलचल शुरू हो गयी है। इस बार उनके समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में शामिल होने की कयासबाजियां है।

इससे पूर्व चार दिसम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) की देहरादून रैली की पूर्व संध्या पर उनके मोदी की मौजूदगी में भाजपा (BJP) का दामन थामने की चर्चा भी उड़ चुकी है। भाजपा में शामिल होने की चर्चा तो इतनी तेज थी कि रैली वाले दिन किशोर के दो सौ किमी. दूर पौड़ी में होने के बाद भी मीडिया उन्हें भाजपा में शामिल किए जाने पर उतारू हो गया था। लेकिन रैली बीतते-बीतते मीडिया की तमाम आशंकाएं उसी तरह निर्मूल साबित हुईं जैसे अब तक कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने के बारे में हो रही हैं।

दरअसल कभी दिवंगत राजीव गांधी कैम्प के किशोर उपाध्याय उनके निर्वाचन क्षेत्र अमेठी की बागडोर संभालने वालों में रहे हैं। गांधी फैमिली के निकटस्थ किशोर राज्य की पहली विधानसभा में सदस्य निर्वाचित होकर तिवारी सरकार में राज्यमंत्री भी बने। दो बार विधायक व एक बार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे किशोर ने राज्य की राजनीति में हरीश रावत के साथ रहना चुना। लेकिन 2017 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद किशोर व हरीश के संबंधों में खटास आ गयी।

इसके साथ ही किशोर ने अपने राजनैतिक एजेंडे में परिवर्तन करते हुए राज्य के निवासियों को पुश्तैनी वनाधिकार दिए जाने, हिमालयी क्षेत्र को आरक्षण की परिधि में शामिल किए जाने, उत्तराखण्ड को ओबीसी क्षेत्र घोषित कर, उनकी वकालत करनी शुरू कर दी।


विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही किशोर ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने पूर्व अनन्य सहयोगी व प्रदेश में कांग्रेस के मुख्य चेहरे हरीश रावत पर हमला बोलना शुरू कर दिया। जिसका हरीश की ओर से भी सोशल मीडिया पर जवाब दिया जाने लगा। दोनो के बीच की यह तनातनी सार्वजनिक तौर पर इतनी बढ़ी कि लोगों ने इसे किशोर के भाजपा में शामिल होने के लिए जमीन तैयार करना समझ लिया।

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के दिल्ली बुलावे पर पौड़ी में होने के कारण दिल्ली न जाने के प्रकरण ने भी कांग्रेस की इस आग को और भड़कने के तौर पर देखा। अब ऐसे ही विकट वातावरण में किशोर उपाध्याय ने जब सोमवार को लखनऊ जाकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की तो उनके भाजपा के बजाए सपा में शामिल होने की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी।

वैसे सपा अध्यक्ष अखिलेश से किशोर की मुलाकात की बाबत प्रदेश प्रभारी राजेंद्र चौधरी ने बताया कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं वनाधिकार आंदोलन के प्रणेता किशोर उपाध्याय ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से गंगा-यमुना एवं हिमालय को बचाने व वनवासियों को वनों पर उनके पुश्तैनी अधिकार दिलाने आदि मुद्दों पर चर्चा कर संसद के वर्तमान सत्र में इन मुद्दों को उठाने का आग्रह किया है।

बकौल चौधरी किशोर ने हिमालयी नदियों में कम हो रहे पानी और प्रदूषण, जल-जंगल और जमीन पर स्थानीय समुदायों का अधिकार, उनके पुश्तैनी अधिकार और हक-हकूक बहाल किए जाने, हिमालयी क्षेत्र के विकास के लिए केन्द्र में अलग मंत्रालय का गठन किया जाने जैसे मुद्दों पर चर्चा कर उनका सहयोग मांगा।

लेकिन अखिलेश से उनकी इस मुलाकात ने प्रदेश के राजनैतिक माहौल में हलचल पैदा कर दी है। लोग उनके सपा में शामिल होने की चर्चा करने लगे हैं।

इस मामले में जनज्वार ने जब सीधे किशोर उपाध्याय से बात कर उनका मन टटोलने का प्रयास किया तो "किशोर तो पानी है, हर परिस्थिति में अपना रास्ता बना लेगा" जैसी दार्शनिक टिप्पणी से अपनी बात खत्म करने से पूर्व किशोर ने कहा कि चर्चाएं होती रहनी चाहिए। चर्चाएं होंगी तो कुछ समाधान भी निकलेगा। खबरनवीसों को काम भी मिलता रहेगा। कांग्रेस के सहयोगियों से नाराजगी के परिणामस्वरूप किसी अन्य दल में जाने की गुंजाइश पर उन्होंने सीधे कुछ नहीं कहा। अलबत्ता उन्होंने अपने वनाधिकार के मुद्दे उठाते रहने का भरोसा दिलाया।

कुल मिलाकर गांधी परिवार के निकटस्थ किशोर ने कांग्रेस से अपने रिश्ते खत्म करने पर संभावनाओं को खत्म नहीं किया। लेकिन उनकी हरीश रावत से तल्खी बता रही है कि दिल्ली दरबार के हस्तक्षेप के बगैर यह आग नहीं बुझेगी। देखना होगा कि दिल्ली दरबार इस मामले में हस्तक्षेप करता है या नहीं ?

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