Supreme Court : उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी न देने वाली दलों की रद्द हो मान्यता, SC में याचिका दाखिल

Supreme Court : 25 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि प्रत्येक उम्मीदवार चुनाव आयोग के सामने चुनाव लड़ने से पहले अपना पिछला रिकॉर्ड यानी क्रिमिनल रिकॉर्ड घोषित करें...

Update: 2022-01-17 12:43 GMT

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Supreme Court : पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) की तारीखों का ऐलान हो चुका है। नामांकन की प्रक्रिया भी जारी है। लेकिन इस बीच फिर राजनीति का अपराध जगत से तालमेल की चर्चा फिर गायब हो गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Corut) में दायर एक नई याचिका ने फिर इस मुद्दे को फिर उठा दिया है। कोर्ट में गुहार लगाई गई है कि ऐसी पार्टियों पर कड़ी कार्रवाई करते हुए मान्यता रद्द कर दी जाएं जो अपने उम्मीदवारों को चुनाव में उतारते वक्त उनके आपराधिक पृष्ठभूमि की पूरी जानकारी नहीं दे रहे हैं।

याचिकाकर्ता एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी 2020 को आदेश में सभी राजनीति पार्टियों कहा था कि वह कैंडिडेट के खिलाफ पेंडिंग क्रिमिनल केसों के बारे में जानकारी अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति में अपराधीकरण (Criminalization) की बढ़ती संख्या के मद्देनजर राजनीतिक पार्टियों से कहा था कि वह पेंडिंग क्रिमिनल केसों के बारे में डीटेल वेबसाइट पर डालें। साथ ही कहा है कि पेंडिंग क्रिमिनल केसों के बारे में एक स्थानीय और एक राष्ट्रीय अखबार में डीटेल में जानकारी दी जाए। कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों से कहा था कि वह क्रिमिनल केस जिनके खिलाफ पेंडिंग हैं, उन्हें उन्हें कैंडिडेट के तौर पर सेलेक्ट करने का कारण बताएं। 

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग (ECI) और केंद्र सरकार (Centre Govt) को प्रतिवादी बनाते हुए कहा कि हाल ही में समाजवादी पार्टी ने 13 जनवरी 2022 को कैराना से जिसे उम्मीदवार बनाया है उसके खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज हैं और उम्मीदवार बनाने के बाद भी समाजवादी पार्टी न उस उम्मीदवार के बारे में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए सार्वजनिक नहीं किया कि क्या केस पेंडिंग है। इस तरह से देखा जाए तो समाजवादी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के 25 सितंबर 2018 और उस फैसले के बाद कंटेप्ट अर्जी पर दिए 13 फरवरी 2020 क फैसल का पालन नहीं किया है। इसी कार यह अर्जी दाखिल की गई है। 

याचिका में चुनाव आयोग को निर्देश दिए जाने की गुहार लगाई गई है कि वो राजनीतिक दलों से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सख्ती से पालन करवाए। बता दें कि 25 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि प्रत्येक उम्मीदवार चुनाव आयोग के सामने चुनाव लड़ने से पहले अपना पिछला रिकॉर्ड यानी क्रिमिनल रिकॉर्ड घोषित करे। ये जानकारी लोकतंत्र की आधारशिला है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि दागी को चुनाव लड़ने से रोकने के मामले में कानून बनाने पर विचार करें ताकि राजनीति में अपराधीकरण का खात्म हो सके।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक पार्टियों का दायित्व है कि वह तमाम उम्मीदवारों के बारे में जानकारी अपनी वेबसाइट पर डालें। कोर्ट ने कहा था कि उम्मीदवार अपने क्रिमिनल रिकॉर्ड के बारे में राजनीतिक दलों को बताएं। राजनीतिक पार्टी ऐसे नेताओं का पिछला रिकॉर्ड प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लोगों के सामने रखें। 

सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी 2020 के फैसले में भी कहा था कि यह अनिवार्य होगा कि राजनीतिक पार्टियां अपनी वेबसाइट पर कैंडिडेट के बारे में जानकारी डालें कि उनके खिलाफ क्या क्रिमिनल केस दर्ज हैं। केस का स्टेज क्या है। क्या आरोप तय हो चुके हैं ? कोर्ट ने कहा था कि ऐसे उम्मीदवार को सेलेक्ट करने का कारण राजनीतिक पार्टियां बताएं। वो बताएं कि साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवार को टिकट नहीं देकर किसी दागी को उम्मीदवार क्यों बनाया गया।

कोर्ट ने कहा था कि उम्मीदवार तय करने का आधार सिर्फ जीतने की क्षमता न हो बल्कि शिक्षा, उपलब्धि और मेरिट पर भी ध्यान जरूरी है। एक स्थानीय भाषा और एक राष्ट्रीय अखबार में उम्मीदवार के बारे में जानकारी दी जाए कि क्या केस दर्ज हैं। साथ ही फेसबुक और टि्वटर पर इस बारे में जानकारी दी जाए।

शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि उम्मीदवार सेलेक्ट करने के 48 घंटे के भीतर या फिर नॉमिनेशन से 15 दिन पहले कंडिडेट के बारे में जानकारी सार्वजनिक करें।राजनीतिक पार्टी ऐसे उम्मीदवार के सेलेक्शन के बारे में 72 घंट के भीतर चुनाव आयोग को सूचित करें। अगर चुनाव आयोग को कोर्ट आदेश के अमल के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है तो चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट को बताए ताकि अवमानना कार्रवाई के लिए आदेश पारित हो सके।

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