UP Election 2022: देवरिया के भाटपार रानी सीट पर आज तक नहीं जीती BJP, , जानिए क्या है वजह

UP Election 2022: यूपी की फिजाओं में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में कभी लहर रही तो, कभी राम मंदिर आंदोलन व मोदी के चलते भाजपा की लहर।जिसका नतीजा रहा कि दोनों दलों को मतदाताओं ने यूपी की कमान सौंप दी।

Update: 2022-01-04 09:25 GMT

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

UP Election 2022: यूपी की फिजाओं में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में कभी लहर रही तो, कभी राम मंदिर आंदोलन व मोदी के चलते भाजपा की लहर।जिसका नतीजा रहा कि दोनों दलों को मतदाताओं ने यूपी की कमान सौंप दी। इस माहौल का राज्यभर में भले ही असर दिखा हो पर बिहार की सीमा से सटे एक ऐसा भी क्षेत्र है जहां के मतदाता लहर के विपरित ही चले। हम बात कर रहे हैं देवरिया जिले के विधान सभा क्षेत्र भाटपार रानी की।

चार दशक से दो परिवारों का दबदबा

विधान सभा क्षेत्र भाटपार रानी की यह सीट ज्यादातर समाजवादियों के ही कब्जे में रही। इसमें भी पिछले 4 दशकों से 2 परिवारों का ही दबदबा रहा है। यहां के मतदाताओं के इस विशेष मिजाज के पीछे कारण जो भी हो लेकिन यह बात साफ है कि प्रत्याशियों के चयन में दलों ने हमेशा जातिय अंकगणित का विश्लेषण हर बार किया। इसके बाद भी लोगों ने राजनीतिक बयार को नजर अंदाज ही करने का कार्य किया। इसे समझने के लिए सबसे पहले बात करते हैं इंदिरा गांधी के नाम पर चली लहर की। वर्ष 1984 के 31 अक्टूबर को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। हत्या के बाद देशभर में एक सहानुभूति की लहर दौड़ गई। इसके छह माह के अंदर ही 1985 में विधानसभा के चुनाव हुए। जिसमें निर्दलीय कामेश्वर उपाध्याय ने चुनाव जीत कर एक रिकार्ड बनाया। इस सीट से पहली बार किसी निर्दलीय उम्मीदवार की यह जीत रही। कांग्रेस उम्मीदवार रघुराज प्रताप सिंह दूसरे स्थान पर रहे। जबकि लोकदल से जीते तत्कालीन विधायक हरिवंश सहाय तीसरे स्थान पर चले गए। 1991 के राम लहर की बात करें तो यहां से भाजपा उम्मीदवार लड़ाई से काफी दूर रहे तथा सपा के टिकट से हरिवंश सहाय ने अपनी जीत दर्ज कराई। जबकि यूपी के ऐसे तमाम सीटों पर भाजपा ने अपना परचम लहराया था,जहां उसे उम्मीद भी नहीं थी।

भाजपा का मोदी मैजिक भी नहीं आया काम

अब हम बात करते हैं मोदी मैजिक की। वर्ष 2017 का विधान सभा चुनाव को भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे करके लड़ा। जिसका नतीजा रहा कि अखिलेश सरकार के तमाम विकास के दावे के बाद भी भाजपा का चुनावी मैनेजमेंट भारी पड़ा। भाजपा यूपी के चुनावों में सबसे अधिक बढ़त के साथ सत्ता की कमान संभाल ली। इस मोदी लहर में भी भाटपार रानी विधान सभा क्षेत्र के मतदाताओं पर इसका असर नहीं दिखा। समाजवादी पार्टी के आशुतोष उपाध्याय ने पूर्व सांसद स्व. हरिकेवल प्रसाद के बेटे एवं बीजेपी सांसद रविंद्र कुशवाहा के छोटे भाई जयनाथ कुशवाहा को लगभग 15 हजार वोटों से पराजित कर दिया।

आजादी के बाद से अब तक इस सीट पर 18 बार हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे देखें तो 4 बार पूर्व सांसद हरिवंश सहाय और 7 बार से पूर्व मंत्री कामेश्वर उपाध्याय एवं उनके बेटे आशुतोष उपाध्याय का कब्जा है।सन् 1952 में पहली बार यहां से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सच्चिदानंद त्रिपाठी ने कांग्रेस से जीत दर्ज की थी। 1957 में कांग्रेस के ही अयोध्या प्रसाद आर्य एमएलए बने। साल 1962 के चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से कैलाश कुशवाहा और 1967 में अयोध्या प्रसाद आर्य ने फिर एक बार कांग्रेस से जीत दर्ज की। 1969 के चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से हरिवंश सहाय, 1974 में कांग्रेस से रघुराज प्रताप सिंह और 1977 में जनता पार्टी के राज मंगल तिवारी विधायक हुए। 1980 में लोकदल के टिकट पर फिर हरिवंश सहाय जीत गए।

वर्ष 1985 के चुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार रघुराज प्रताप सिंह को हराकर कामेश्वर उपाध्याय निर्दल विधायक बने थे। 1989 के चुनाव में उपाध्याय जनता दल के हरिवंश सहाय से चुनाव हार गए। 1991 के राम लहर में भी हरिवंश सहाय ने बतौर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अपना वर्चस्व कायम रखा। 1993 के चुनाव में कांग्रेस से उम्मीदवार बने कामेश्वर उपाध्याय ने एक बार फिर विजय हासिल की। 1996 में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार योगेंद्र सिंह सेंगर ने कामेश्वर उपाध्याय को पराजित कर दिया। इसके बाद वर्ष 2002,वर्ष 2007,वर्ष 2012 का चुनाव लगातार कामेश्वर उपाध्याय ने ही जीता। 2012 के चुनाव में बीमार रहे सपा नेता कामेश्वर उपाध्याय ने बसपा के सभा कुंवर को बड़े अंतर से पराजित कर दिया था। हालांकि चुनाव के कुछ ही दिन बाद ही कामेश्वर उपाध्याय का निधन हो गया। 2013 में खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुए। इस चुनाव में कामेश्वर उपाध्याय के पुत्र आशुतोष उपाध्याय को समाजवादी पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया। बसपा ने सभा कुंवर कुशवाहा पर ही भरोसा जताते हुए मैदान में उतारा। सपा प्रत्याशी आशुतोष उपाध्याय ने अपने पिता की सीट पर बसपा के सभा कुंवर को पराजित करने में सफल रहे। वर्ष 2017 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद एसपी के आशुतोष उपाध्याय ने पूर्व सांसद स्व. हरिकेवल प्रसाद के बेटे एवं बीजेपी सांसद रविंद्र कुशवाहा के छोटे भाई जयनाथ कुशवाहा को लगभग 15 हजार वोटों से हरा दिया।

यूपी विधान सभा चुनाव की सरगर्मियां एक बार फिर बढ़ गई। देखना है की इस बार भाटपार रानी के मतदाता क्या नतीजा देते हैं। लेकिन यहां के इतिहास की बात करें तो कांग्रेस पार्टी,सोशलिस्ट पार्टी,लोकदल व समाजवादी पार्टी सभी को यहां के मतदाताओं ने अवसर दिया,पर बसपा व भाजपा को कभी जीत का खिताब हासिल नहीं हुआ है। ये सीट ज्यादातर समाजवादियों के कब्जे में रही है। खास बात यह है कि वर्ष 2007, 2012 और 2013 में इस सीट पर बसपा जरूर दूसरे स्थान पर रही। जबकि विधानसभा चुनाव 2017 में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी आशुतोष ने 61,862 मत प्राप्त कर जीत हासिल की थी और भाजपा प्रत्याशी जयनाथ कुशवाहा 50765 मत के साथ हार का सामना करना पड़ा था। बसपा से सभा कुंवर 44161 मत के साथ तीसरे स्थान पर थे।

अब जब ऐक बार फिर चुनावी माहौल गरमाने लगा है,तब सपा से मौजूदा विधायक आशुतोष उपाध्याय की दावेदारी जहां तय मानी जा रही है,वहीं पिछले चुनाव में भाजपा से भाग्य आजमा चुके जयनाथ कुशवाहा के अलावा सभाकुंवर व अश्वनी सिंह भी टिकट मांग रहे हैं। पिछला चुनाव सभाकंवर बसपा के टिकट पर लड़े थे। इस बार कांग्रेस पार्टी भी दमदारी से चुनाव लड़ने की बात कर रही है। पार्टी युर्थ फ्रंट के राष्टीय अध्यक्ष रहे केशव यादव की कांग्रेस के तरफ से प्रमुख दावेदारी है।जबकि बसपा से इस बार सभाकुंवर के न होने के चलते कोई नया चेहरा मैदान में होगा।फिलहाल सभी दलों के उम्मीदवारों के घोषणा के बाद ही हार जीत का समीकरण कुछ तय हो पायेगा। जिसका सबको इंतजार है।

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