UP Election 2022: यूपी विधानसभा में 3 दशक से कोई पार्टी नहीं जीत सकी लगातार दो बार, भाजपा के लिए 2022 की राह नहीं होगी आसान

UP Election 2022: यूपी में विधान सभा चुनाव का बिगुल बज चुका है।भाजपा व सपा से लेकर अन्य दलों की जीत को लेकर अपने अपने दावे है। उधर उत्तर प्रदेश के अब तक के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो वर्ष 1989 से गैर कांग्रेसी सरकारों का दौर शुरू हुआ।

Update: 2022-01-12 04:59 GMT

अखिलेश यादव ने CM योगी पर साधा निशाना

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

UP Election 2022: यूपी में विधान सभा चुनाव का बिगुल बज चुका है।भाजपा व सपा से लेकर अन्य दलों की जीत को लेकर अपने अपने दावे है। उधर उत्तर प्रदेश के अब तक के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो वर्ष 1989 से गैर कांग्रेसी सरकारों का दौर शुरू हुआ।इसमें अधिकांश सरकारें अपना कार्यकाल नहीं पूरा कर सकी।इसमें भी खास बात यह रही कि लगातार न किसी नेता को यूपी का तख्त मिला और न किसी दल को सत्ता पर लगातार काबिज रहने का अवसर। ऐसे में अब सवाल उठता है कि इस बार यूपी का अपना मिजाज बदलेगा या अपने पूराने परंपरागत इतिहास को दोहराएगा।

अठारहवी विधान सभा के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया के क्रम में राज्य में चुनाव आचार संहिता लग चुका है। जिसके साथ ही चुनावी माहौल गरमाने लगा है। भारतीय संविधान के पूर्ण रूप से लागू हो जाने के बाद उत्तर प्रदेश में 1952 में पहली बार हुए चुनाव में डा. संपूर्णानंद मुख्यमंत्री बने। उनके बाद दूसरी विधानसभा चुनाव 1957 में चंद्रभानु गुप्ता, 1962 में सुचेता कृपलानी सीएम बनीं। चैथी विधानसभा 1967 में फिर से चंद्रभानु गुप्ता सीएम बने। हालांकि वह सिर्फ 19 दिन सीएम रहे। अब तक ये सभी भारतीय राष्टीय कांग्रेस की गठित होनेवाली सरकारों के मुख्यमंत्री थे। उसके बाद चरण सिंह मुख्यमंत्री बने। पांचवी विधानसभा चुनाव 1969 में हुए त्रिभुवन नारायण सिंह यूपी के सीएम बने। उनके बाद अप्रैल 1971 में कमलापति त्रिपाठी सीएम की कुर्सी पर बैठे। इसके बाद दिसंबर 1973 में हेमवती नंदन बहुगुणा को यूपी की कमान मिली। छठवीं विधानसभा चुनाव 1974 में हुए जिसमें नारायण दत्त तिवारी सीएम बने। सातवीं विधानसभा चुनाव 1977 में हुए यूपी सीएम बनारसी दास बने। 8वीं विधानसभा चुनाव 1980 में हुए और श्रीपति मिश्र यूपी सीएम बने। नवीं विधानसभा चुनाव 1985 में हुए और यूपी के सीएम वीर बहादुर सिंह बने। उनके बाद 1988 में नारायाण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे।इस तरह कांग्रेस पार्टी का यह अंतिम कार्यकाल रहा।

10वीं विधानसभा के गठन के साथ गैर कांग्रेसी सरकारों का चल रहा दौर

उत्तर प्रदेश में दसवी विधान सभा के गठन के साथ गैर कांग्रेसी सरकारों का दौरा शुरू हो गया,जो लगातार चला आ रहा है। प्रदेश में जनता दल की सरकार बनी और मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री बने। उनका मात्र 488 दिनों का कार्यकाल रहा। 11वीं विधानसभा का चुनाव 1991 में हुआ। यूपी में भाजपा के सीएम कल्याण सिंह बने। लेकिन कल्याण सिंह को भी 538 दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद 6 दिसंबर 1992 को इस्तीफा देना पड़ा। 12वीं विधानसभा चुनाव 1993 में मुलायम सिंह यादव सीएम बने। 1 साल 181 दिन सीएम रहने के बाद मायावती इस कुर्सी पर बैठीं। यूपी में 1 साल 154 दिनों तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। 13वीं विधानसभा चुनाव 1996 में हुए कल्याण सिंह यूपी के सीएम बने। उनके बाद रामप्रकाश गुप्ता सीएम बनाए गए। इसी विधानसभा में राजनाथ सिंह भी यूपी सीएम बने। 14वीं विधानसभा में मायावती और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री रहे। 15वीं विधानसभा 2007 से लेकर 2012 तक यूपी की सीएम मायावती रहीं। 16वीं विधानसभा में अखिलेश यादव यूपी सीएम बने। 2017 में 17वीं विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बने।

चौथी विधानसभा के गठन के साथ सतह पर आ गई गुटबाजी

लम्बे समय से चरण सिंह कांग्रेस में अपनी स्थिति से असंतुष्ट थे और पार्टी के नेतृत्व से नाराज थे। ऐसे में अंततः चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़कर पिछड़ों और किसानों की राजनैतिक ताकत के दम पर सिंहासन कब्जाने का फैसला किया। 1967 में हुए चैथी विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस घिसटते-घिसटते बहुमत तक पहुंच पायी पर चन्द्र भानु गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाने के सवाल पर चरण सिंह ने कुछ अन्य मुद्दों का बहाना बनाकर पार्टी तोड़ दी। उनके साथ कांग्रेस के 16 और विधायक भी चल दिए और गुप्ता सरकार अल्पमत में आ गई। 19 दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद गुप्ता को कुर्सी छोड़नी पड़ी और कम्युनिस्टों, समाजवादियों, जनसंघियों और अम्बेडकरवादियों, यानी समूचे विपक्ष की मदद से चैधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री बने। अपने विचारधारात्मक अंतर्विरोधों के चलते ये सरकार एक साल भी न चल पायी और आखिर फरवरी 1968 में प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।1969 में हुए पांचवीं विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को 425 सीटों में से 211 पर विजय मिली, जबकि जनसंघ को 49, कम्युनिस्ट पार्टियों को 5, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को 33 और चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल को 98 सीटें मिलीं। जोड़-तोड़ करके कांग्रेस के चन्द्र भानु गुप्त एक बार फिर मुख्यमंत्री बने पर उनकी सरकार एक साल से ज्यादा नहीं चल पायी। ऐसे में अस्थिरता का जो दौर शुरू हुआ था वो जारी रहा, लेकिन मुख्यमंत्रियों की संख्या के मामले में इस विधानसभा ने रिकॉर्ड बनाया। पहले गुप्ता की सरकार को पटखनी देकर चरण सिंह मुख्यमंत्री बने, पर उनकी सरकार 8 महीनों में ही धराशायी हो गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। अक्टूबर 1970 में जोड़ तोड़ करके कांग्रेस ने फिर सरकार बनायी और एक नया मुख्यमंत्री- त्रिभुवन नारायण सिंह गद्दी पर बैठे। लगभग पांच महीनों में ही उनकी जगह कमलापति त्रिपाठी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसके 2 साल 2 महीने बादउनके हाथ से भी कुर्सी सरक गई। लगभग पांच महीने फिर राष्ट्रपति शासन रहा और उसके बाद नवम्बर 1973 से मार्च 1974 तक हेमवती नन्दन बहुगुणा राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इस एक विधानसभा के दौरान 5 मुख्यमंत्री बने और दो बार राष्ट्रपति शासन लगा।

छठी विधानसभा के दौरान भी अस्थिरता चलती रही और बार बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। 1974 के चुनाव में कांग्रेस 215 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी का अपना रुतबा बरकरार रखे हुए थी। एक सशक्त विकल्प के लिए राज नारायण की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल ने विलय करके 1974 में ही भारतीय लोक दल की स्थापना की। बाद में इंदिरा गांधी की लगाई इमरजेंसी के चलते समूचा विपक्ष एकजुट हुआ और जनता पार्टी के रूप ने सभी विपक्षी पार्टियां 1977 के चुनाव में उतरीं। सातवीं विधानसभा में जनता पार्टी को 425 में से 352 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस 47 सीटों पर सिमट गई। ऐसे में कांग्रेस के खिलाफ एकजुट हुए नेताओ में से राम नरेश यादव काबिज हुए,पर वे भी दो साल भी मुख्यमंत्री नहीं रह पाए और फरवरी 1979 में बनारसी दास को जनता पार्टी सरकार का मुखिया बनाया गया। दलों की आपसी फूट तब भी नहीं रुकी और अंत में जनता सरकार अपनों के खींचे ही मुंह के बल गिरी तथा प्रदेश में फिर राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा।

1980 में हुए आठवीं विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस ने धमाकेदार वापसी की और 425 में से 309 सीटों पर अपना परचम लहराया, जबकि बिखर चुका विपक्ष सवा सौ सीटों तक भी नहीं पहुंच सका। नवीं विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस 269 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत लेकर आई। हालांकि कांग्रेस की गुटबाजी फिर अपने चरम पर पहुंच गई और इन दो विधानसभाओं में कांग्रेस ने 5 बार मुख्यमंत्री बदले।दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं विधानसभाओं में अस्थिरता के दौर की वापसी हुई और कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी। बाद के दौर में भी प्रदेश की राजनीति दो राजनैतिक शख्सियतों- मायावती और मुलायम सिंह के इर्द गिर्द ही घूमती रही।

2002 में हुए चुनावों के बाद गठित चैदहवीं विधानसभा की शुरुआत ही राष्ट्रपति शासन से हुई, क्यूंकि कोई भी दल सदन में बहुमत नहीं ला पाया था। लेकिन उम्मीद से इतर इस विधानसभा ने सिर्फ दो महीने ही राष्ट्रपति शासन झेला, जो पिछली विधानसभाओं के मुकाबले सबसे कम था। मई 2002 में ही भाजपा के समर्थन से मायावती मुख्मंत्री बनीं। एक साल चार महीने बाद मायावती ने सदन भंग करने की चिट्ठी राज्यपाल को दे दी, पर मुलायम सिंह ने जोड़-तोड़ करके सदन में अपना बहुमत साबित कर दिखाया। 2007 के चुनाव में मायावती 207 विधायकों के स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में आयीं। वर्ष 2012 में हुए सोलहवीं विधानसभा में 224 विधायकों के साथ सपा की सत्ता में वापसी हुई। लेकिन वर्ष 2017 को हुए सत्रहवी विधान सभा चुनाव में भाजपा अब तक की सर्वाधिक सीटों के साथ सत्ता में लौटी।

सियासी परंपरा के अनुसार भाजापा की वापसी मुश्किल

अठारहवीं विधान सभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। भाजपा एक बार फिर सत्ता में वापसी के अपने दावे करने में लगी है। जबकि सच्चाई यह है कि राजनीतिक मिजाज सरकार के अनुकुल नहीं है। इधर कुछ दिनों से भाजपा के बड़े नेताओं के सपा में जाने से माहौल कुछ और ही कह रहा है। हालांकि भाजपा भी सपा के नेताओं को तोड़ने में पीछे नहीं है। पंद्रहवी विधान सभा चुनाव से अब तक हुए तीन चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो सभी सरकारें पूर्ण बहुमत की रही है।इन तीनों चुनावों में क्रमशः सरकार की कमान बसपा,सपा व भाजपा के पास रही है।ऐसे में अब तक कोई ठोस चुनावी अंक गणित ऐसा नहीं दिख रहा कि जिससे यह दावा किया जा सके की भाजपा की सत्ता एक बार फिर बरकरार रहेगी। इन सबसे इतर यह सच है कि हमारे यहां चुनाव को संभावनाओं का खेल कहा गया है। ऐसे में देखते हैं कि गैर कांग्रेसी सरकारों के जब से दौर शुरू हुए हैं,तब से लगातार सत्ता के उलट फेर का चल रहा खेल इस बार भी चलेगा की, प्रदेश की जनता नया इतिहास रचेगी। यह आनेवाला वक्त बतायेगा। जिसका सभी को इंतजार है।

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