सत्ता में वापसी से चूकी सपा, पर अखिलेश का सियासी कद हो गया पहले से कई गुना बड़ा

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कोई गलती नहीं है। यूपी विधानसभा चुनाव 2017 और लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में उनका कद ऊंचा हुआ है। अब उन्हें भाजपा के खिलाफ अपने दम पर डटे रहने और अवसरवादियों से बचे रहने की जरूरत है।

Update: 2022-03-11 03:11 GMT

अखिलेश यादव ने BJP पर लगाया पैसे बांटने का आरोप

यूपी चुनाव परिणाम 2022 पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट 


नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे आ गए हैं। इस चुनाव में जिस राज्य के नतीजों पर पूरे देश की सबसे ज्यादा नजर बनी हुई थी उसका नाम यूपी है। यहां पर नरेंद्र मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ की तिकड़ी ने समाजवादी पार्टी ( Samajwadi Party ) के जोरदार चुनावी अभियान के चक्रव्यूह को भेदने के एक बार फिर कामयाब हुई। इस तिकड़ी के सामने एक बार फिर सत्ता में वापसी करने से सपा चूक गई। इससे समाजवादी पार्टी की कमजोरी एक बार फिर सामने आई है, लेकिन ये भी सच है कि सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav )  विधानसभा चुनाव 2017 और लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में ज्यादा ताकतवर और जुझारू नेता के रूप में सामने आये हैं। उनके नेतृत्व में सपा ( SP ) दिखाया है उनमें क्षमता है भाजपा ( BJP ) को मात देने की। बस, कुछ और सियासी मोर्चों रणनीतिक चूक से बचने की जरूरत है।

फिलहाल, यूपी चुनाव परिणामों से तय है कि सपा ने भाजपा को टक्कर दी। वेस्ट यूपी, बुंदेलखंड, अवध के क्षेत्रों में अनुमान के मुताबिक सफलता नहीं मिली, लेकिन ईस्ट यूपी में सपा को पहले की तुलना में ज्यादा मजबूती मिली है। अखिलेश यादव के दावों के विपरीत भाजपा सत्ता में वापसी करने में सफल हुई। फिलहाल, सपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई है और अखिलेश यादव युवा और सियासी करियर के लिहाल से उनके पास भाजपा को मात देने के अभी कई मौके सामने आएंगे

UP Election Result 2022 : कहने का मतलब है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) ने कोई गलती नहीं है। पहले के विधानसभा और लोकसभा चुनावों की तुलना में उनका कद ऊंचा हुआ है। भाजपा के खिलाफ अपने दम पर डटे रहने और अवसरवादियों से बचे रहने की जरूरत है। 

अखिलेश के मजबूती के गवाह हैं ये आंकड़ें

यूपी विधानसभा चुनाव में जहां बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पूरी तरह से बेदम साबित हुई हैं, वहीं अखिलेश यादव कई मायनों में सफल साबित हुए हैं। यूपी चुनाव परिणाम कुछ बातें ऐसी भी हुई हैं जिनसे अब अखिलेश यादव को हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई है जो उनके सियासी राह में रोड़ा बने थे। 

1.  उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2012 में सपा की जीत के बाद जब अखिलेश यादव सीएम बने थे तो कहा गया था कि मुलायम सिंह यादव ने अपनी सीट उन्हें दे दी है। इसके लिए नेताजी ने अपने भाई शिवपाल यादव और कद्दावर नेता आजम खान से नाराजगी भी मोल ली थी।

2. विधानसभा चुनाव मुलायम सिंह यादव की सफलता थी न कि अखिलेश यादव की। सपा को 2012 में 403 में से 224 सीटें मिली थी। इसमें अखिलेश का योगदान न के बराबर था। यही वजह है कि सीएम बनने के बाद भी चार साल तक अखिलेश यादव को नेताजी के करीबियों यानि शिवपाल, आजम खान व सपा के अन्य बड़े नेताओं से पाने में लग गया। बतौर सीएम अखिलेश को केवल एक साल खुलकर काम करने का अवसर मिला था।

3. यूपी विधानसभा चुनाव 2012 में सपा को 2024 सीटें जरूरी मिली थी लेकिन मतदाताओं का समर्थन 29.13 फीसदी ही मिला था। जबकि 2022 में 113 सीटें मिली लेकिन 32 प्रतिशत मतदाताओं का साथ मिला है। यानि सपा का जनाधार ज्यादा मजबूत हुआ है। 2012 में भाजपा को 47 सीटें मिली थी और केवल 15 फीसदी लोगों का साथ मिला था।

4. अखिलेश यादव ने इस बार सपा को एमवाई यानि मुस्लिम-यादव और परिवार की पार्टी से बाहर निकाला है। बहुत हद तक सपा ने उन बाहुबलियों व नकारात्मक ताकतों से भी मुक्ति पा ली है जिसके वजह से मतदाताओं को एक बड़ा तबका पार्टी ने दूरी बनाकर रखते हैं।

5. अखिलेश यादव ने अपने नेतृत्व में इस बात का संकेत दिया है कि अबकी सपा पहले वाली नहीं है। हम कानून व्यवस्था को दुरुस्त करेंगे, महिला सुरक्षा पर जोर देंगे, राम मंदिर और काशी कॉरिडोर पर सकारात्मक रुख अपनाएंगे।

6. इस सपा प्रमुख ने साफ कर दिया है कि हम उन दलों से दूरी बनाकर चलेंगे, जो केवल खुद के हित को पूरा करने के लिए गठबंधन करना चाहेंगे। हालांकि, अखिलेश यादव को अभी इस मोर्चे पर बहुत कुछ करना बाकी है। इसके लिए अभी उनके पास समय है। सपा प्रमुख युवा नेता हैं और इस दिशा में तेजी से काम कर सकते हैं।

7. सपा प्रमुख को अवसरवादियों से बचने पर ज्यादा जोर देना होगा। ऐसा इसलिए कि अवसरवादी यानि जातिवादी नेता केवल सपा के प्लेटफॉर्म का लाभ उठाने की कोशिश करते हैं और इससे पार्टी की ब्रांडिंग को धक्का लग रहा है, जो सीधे अखिलेश की सियासी ईमेज को भी खराब करता है। 

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