Uttarakhand Election 2022 : बड़ी निर्दयता से कटेंगे सिटिंग विधायकों के टिकट, भाजपा के आंतरिक सर्वे में दो दर्जन विधायकों की स्थिति कमजोर

Uttarakhand Election 2022 : पार्टी के आंतरिक सर्वे में जिन मौजूदा दो दर्जन विधायकों की स्थिति कमजोर बताई गई है। उन्हें किसी सूरत पार्टी चुनाव मैदान में बल्लेबाजी के लिए नहीं भेजेगी....

Update: 2021-12-27 11:13 GMT

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Uttarakhand Election 2022 : उत्तराखण्ड में सत्ता विरोधी रुझान के बीच कार्यकर्ताओं के हौसले को बढ़ाने के लिए विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election 2022) में सिक्सटी प्लस का नारा दे चुकी भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपने मौजूदा विधायकों का टिकट काटने के मामले में किसी पर रहम नहीं करेगी। राज्य में सरकार बनाने के लिए ज़रूरी 36 विधायकों के आंकड़े को छूने के लिए पार्टी टिकट वितरण में केवल चुनावी जीत के मानक को ही लागू करेगी। जिस वजह से पार्टी के करीब ऐसे दो दर्जन मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं मिलेगा, जिनके रिपोर्ट फाइल पर रेड या ऑरेंज रिबन लगा होगा।

पहले चरण में उन्हीं विधायकों (MLAs) का टिकट फाइनल किया जाएगा, जिन विधायकों की रिपोर्ट फाइल पर ग्रीन रिबन होगा। येलो रिबन फाइल को विचार के लिए रखा जाएगा। बेहतर विकल्प न मिलने पर ही उनका नम्बर टिकट के लिए आएगा। पुराने कार्यकर्ता, निष्ठावान कार्यकर्ता, संघ पृष्ठभूमि का होना जैसे कार्ड प्रत्याशी की जीत की संभावनाओं के बाद देखे जाएंगे। मुख्य बात प्रत्याशी की जीत ही होगी। इसके लिए पार्टी ने फील्ड और पैवेलियन, दोनो स्तर पर व्यापक तैयारी की है।

ऊपरी स्तर पर बिना किसी संकोच के केवल विजय को ही ध्यान में रखते हुए काम होगा तो निचले स्तर पर बूथ लेबल पर ही ऐसा चक्रव्यूह रचा जाएगा कि विपक्षियों पर निर्णायक बढ़त का सिलसिला यहीं से शुरू हो। कार्यकर्ताओं की फौज को अपने बूथ से पार्टी के लिए विधानसभा का द्वार खोलने के लिए "मेरा बूथ-सबसे मजबूत" थीम पर ही काम किया जाएगा।

पार्टी के आंतरिक सर्वे में जिन मौजूदा दो दर्जन विधायकों की स्थिति कमजोर बताई गई है। उन्हें किसी सूरत पार्टी चुनाव मैदान में बल्लेबाजी के लिए नहीं भेजेगी। ऐसे विधायक वरिष्ठ हो या कनिष्ठ, सबके लिए मानक सख्ती से लागू किया जाएगा।

टिकट वितरण के बाद दूसरा चरण चुनावी मैदान में शुरू होगा। इसकी तैयारी के लिए पार्टी पहले ही कार्यकर्ताओं को मनोवैज्ञानिक तौर पर जुझारू तेवरों के लिए तैयार करने के लिए सिक्सटी प्लस का कठिन टार्गेट दे चुकी है। जिससे यदि कुछ अप्रत्याशित बातें भी चुनाव में हो तो कम से कम सरकार बनाने लायक 36 के आंकड़े को छुआ जा सके। पार्टी की ओर से विधानसभा चुनावों में किसी प्रकार की हीलाहवाली की गुंजाइश न छोड़ते हुए कार्यकर्ताओं की पूरी ताकत झोंकने निर्णय लिया है।

सबसे मुख्य बात पार्टी ने बूथ प्रबंधन को जीत का आधार मानते हुए एक फार्मूला तैयार किया है। सभी कार्यकर्ताओं को इसी फार्मूले के अनुसार काम करना होगा। इसके तहत विधानसभा प्रभारियों, विस्तारकों को जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं।

भाजपा ने "हर वर्ग का मतदाता महत्वपूर्ण है" सूत्र देकर चुनाव से पहले सभी मतदाताओं से संपर्क कर उनसे बातचीत की भी योजना तैयार की है। यहां तक कि जिन वोटर्स का वोट पार्टी को आज तक नहीं मिला और भविष्य में भी नहीं मिलेगा, उन मतदाताओं तक को भी चुनाव में टच किया जाएगा। अपने विरोधियों से भी पार्टी के पक्ष में मतदान की अपील के साथ उन्हें भी पार्टी के सिद्धांतों और कार्यों के बारे में जानकारी दी जाएगी। चुनाव से पहले मतदाताओं से केवल एक बार औपचारिक तौर पर नहीं बल्कि कई बार संपर्क कर उनसे पार्टी के पक्ष में मतदान की अपील की जाएगी।

प्रत्येक बूथ पर ऐसे मतदाताओं की ज़ुची अलग से बनेगी जो पहले पार्टी को वोट दे चुके हैं। लेकिन इन दिनों पार्टी से खफा हैं। ऐसे मतदाताओं के लिए पार्टी का मानना है कि पांच साल सरकार में रहने की वजह से कई बार वोटरों में सरकार के खिलाफ नाराजगी देखी जाती है। ऐसे में ऐसे नाराज लोगों से संपर्क कर दोबारा उन्हें पार्टी से जोड़ने की कोशिश की जाएगी। ऐसे मतदाताओं की नाराजगी दूर कर उन्हें अपने पाले में लाने के लिए पार्टी के मुख्य कार्यकर्ता उनके साथ बैठक करेंगे।

बूथ स्तर पर ही उस बूथ के दस-पांच मतदाताओं तक को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाले प्रभावशाली व्यक्तियों को भी सूचीबद्ध कर उनकी पहले से ही घेराबन्दी की जाएगी। ऐसे प्रभावशाली लोगों को पार्टी "की-वोटर्स" के तौर पर चिन्हित करेगी। यहां तक की प्रवासी मतदाताओं को भी साधा जाएगा। उनका वोट जहां भी होगा, उनकी सेवा वहीं ली जाएगी।

कुल मिलाकर पार्टी ने कई आंतरिक सर्वे में अपनी स्थिति को कमजोर देखते हुए भी अपनी रणनीति इस प्रकार तैयार की है कि चुनाव के आरम्भ से अंत तक वह किसी भी मोर्चे पर न तो कमजोर दिखे और न ही विपक्षी उसे कमजोर मानकर उस पर हावी हो सकें। जब चुनाव का नतीजा आने के बाद ही विजय-पराजय तय होनी है तो कमजोर होने के बाद भी पार्टी पहले से ही अपने को कमजोर स्थिति में दिखाकर कार्यकर्ताओं का मनोबल नहीं तोड़ना चाहती। सत्ता में होने के बाद भी पार्टी इस चुनाव कक रक्षात्मक मुद्रा में नहीं अपने चिर-परिचित आक्रामक तेवर के साथ ही लड़ेगी। उसी के अनुरूप उसकी तैयारी है।

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