मायावती को छोड़ यूपी की राजनीति में पिछले 40 वर्षों में क्यों नहीं उभर पाई कोई बड़ी महिला नेता
UP Election 2022 : भारत की राजनीति का दिशा और दशा दोनों को काफी हद तक उत्तर प्रदेश का जनादेश तय करता है। और यूपी की राजनीति में महिलाओं की बड़ी भूमिका रहती है।
मोना सिंह की रिपोर्ट
UP Election 2022 : भारत की राजनीति का दिशा और दशा दोनों को काफी हद तक उत्तर प्रदेश का जनादेश तय करता है। और यूपी की राजनीति में महिलाओं की बड़ी भूमिका रहती है। लेकिन जिस उत्तर प्रदेश से पूरे देश की राजनीति तय होती है वहां की जब कभी महिला नेताओं की चर्चा होती है तो हमेशा कुछ गिने-चुने नाम ही उभरकर सामने आते हैं। अगर पिछले 40 साल के इतिहास की बात करें तो एक ही नाम सबकी जुबां पर आता है। वो नाम है मायावती।
बहन जी के नाम से फेमस। बसपा सुप्रीमो। यानी बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख। खुद के दम पर राजनीति में अपनी खासी पकड़ बनाने वाली महिला नेता मायावती 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन चुकीं हैं। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास का करीब से विश्लेषण करें तो पिछले 40 सालों में मायावती के अलावा कोई महिला नेता अपने दम पर राजनीति में सक्रिय नहीं रहीं। वर्तमान में कुछ महिला नेता राजनीति में सक्रिय हैं। तो जानते हैं कि मायावती का राजनीतिक सफर कैसा रहा?और उनके अलावा उन महिला नेताओं के बारे में जो वर्तमान में राजनीति में सक्रिय हैं।
मायावती का राजनीतिक सफर
राजनीति में आने से पहले मायावती स्कूल टीचर थीं। वे एलएलबी यानी वकालत की पढ़ाई करने के साथ सिविल सर्विसेज यानी आईएएस की तैयारी भी कर रहीं थीं। आईएएस की तैयारी का मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक सेवा में आकर दलितों की सेवा करना था। लेकिन उस समय के जाने-माने दिग्गज दलित नेता और भारतीय राजनीति में दलितों के मुख्य वक्ता मान्यवर कांशीराम से साल 1977 में मायावती की मुलाकात हुई। इस मुलाकात के बाद ही मायावती के विचार बदल गए। उन्होंने आईएएस की तैयारी छोड़कर राजनीति में आने का निर्णय लिया।
इसके बाद मायावती के राजनीतिक जीवन का वह दौर शुरू हुआ जो वक्त के साथ आगे बढ़ता गया और मायावती राजनीति की दिग्गज हस्ती बनकर उभरीं। फिर मायावती ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे अपनी कड़ी मेहनत और राजनीतिक मामलों में सही फैसलों के चलते कांशीराम ने मायावती को अपना राजनीति वारिस घोषित कर दिया। जिससे उन्हें आंबेडकरवादी खेमे में सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक माना जाने लगा। इसके बाद मायावती का राजनीतिक ग्राफ बहुत तेजी से आगे बढ़ा। 2001 में कांशीराम ने उन्हें पार्टी अध्यक्ष घोषित कर दिया था। मायावती 1989 में पहली बार लोकसभा सीट कैराना से सांसद बनीं थीं। 1995 में वह अनुसूचित जाति( एससी) की उत्तर प्रदेश की पहली मुख्यमंत्री बनीं।
वे 18 अक्टूबर 1995 तक अपने पद पर बनी रहीं। बसपा प्रमुख के पद पर कांशीराम के रहते हुए ही मायावती नंबर दो की पोजीशन हासिल कर ली थी। पार्टी के भीतर के उनके समांतर नेताओं दीनानाथ भास्कर, आर के चौधरी, राजबहादुर, मसूद अहमद जैसे नेताओं ने मायावती को खूब विरोध किया। इस विरोध के चलते उन्हें बसपा से बाहर जाना पड़ा। इसके अलावा बाबू सिंह कुशवाहा, दद्दू प्रसाद और स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा छोड़ दी या वे निकाल दिए गए। मायावती के विरोधी नेता राजनीति में आगे नहीं बढ़ सके। इसी से मायावती का कद राजनीति में बढ़ता चला गया।
बसपा सुप्रीमो का तमगा उन्होंने बड़ी मेहनत से हासिल की। मायावती ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझा और दलित मुद्दे उठाकर अपनी पकड़ मजबूत बना ली। मुख्यमंत्री के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर 1997 तक रहा। तीसरा कार्यकाल 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक और चौथा कार्यकाल 13 मई 2007 से 2012 तक रहा। साल 2012 के चुनाव हुए तो बीएसपी समाजवादी पार्टी से हार गईं।
मायावती का विवादों से रिश्ता
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2002 में ताज हेरिटेज कॉरिडोर का निर्माण शुरू कराया। यह प्रोजेक्ट जल्द ही विवादों के घेरे में आ गया। उनके पास पर्यावरण विभाग के नोटिस, सीबीआई के नोटिस, सुप्रीम कोर्ट के नोटिस आ गए। साथ ही साथ विपक्षी दलों ने भी हमलावर रुख अपना लिया। उन पर पार्टी की छवि को चमकाने के लिए फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगते रहे हैं। इसी समय सीबीआई ने मायावती के 12 आवासों पर रेड डालकर आय से अधिक संपत्ति का खुलासा किया। उन पर 17 करोड़ की हेराफेरी के आरोप लगे।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई द्वारा मायावती के खिलाफ दर्ज कराई गई याचिका को खारिज कर दिया था। नोटों की माला पहनने और विदेश से सैंडिल मंगवाने को लेकर भी वे विवादों में रह चुकीं थीं। इसके अलावा जन्मदिन अनोखे तरीके से मनाना और अपने कार्यकाल के दौरान राज्य के विभिन्न जगहों पर बौद्ध धर्म और अंबेडकर की मूर्तियों के निर्माण और नोएडा के एक पार्क में हाथियों की मूर्तियों के निर्माण को लेकर भी वे विवादों में घिरीं रहीं।
मायावती द्वारा अपने जीवन और बहुजन आंदोलन पर लिखित तीन भागों में प्रकाशित किताब काफी चर्चा में रही। वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस की किताब 'बहन जी' पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती सबसे चर्चित किताब मानी जाती है।
मौजूदा यूपी चुनाव मायावती के लिए बड़ी चुनौती
मायावती की बीएसपी बसपा पार्टी साल 2012 के बाद से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है। 2012 की यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 403 सीटों में से 80 सीटें प्राप्त हुई थी। 2017 में सिर्फ 19 सीटें और 2019 के लोकसभा चुनाव बसपा और सपा साथ मिलकर लड़े। लेकिन दलितों का करीब 48% समर्थन के बाद भी गठबंधन को सफलता नहीं मिली थी। इस तरह मायावती की रणनीति कारगर साबित ना हो सकी।
वर्तमान में मायावती के सामने पार्टी के मूल वोट बैंक को सेंधमारी से बचाने के साथ-साथ यूपी की राजनीति में अपना पुराना कद वापस पाना बड़ी चुनौती है। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारी जोरों पर चल रही है। मायावती मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं। उनकी पार्टी अकेले ही चुनाव में उतरेगी। उन्होंने वर्ष 2002 के चुनाव आंबेडकरनगर के जहांगीरगंज और हरोड़ा से लड़ा था। उन्होंने दोनों सीटों पर जीत हासिल की इसमें उन्होंने हरोड़ा सीट को अपने पास रखा था और जहांगीरगंज से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने कभी भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। 2007 में जब बीएसपी को स्पष्ट बहुमत मिला था तो उन्होंने विधानसभा परिषद में रहकर ही सरकार चलाई थी। इस वर्ष पूरी संभावना है कि मायावती चुनाव ना लड़े।
मायावती के अलावा आइए देखते हैं उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय अन्य महिला नेताओं के बारे में
प्रियंका गांधी वॉड्रा
नेहरू गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वाली प्रियंका गांधी वॉड्रा 2019 से राजनीति में सक्रिय हैं। प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की ब्रांड अंबेसडर हैं। पहले भी कांग्रेस की स्टार प्रचारक थीं। वह कांग्रेस की पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव थीं जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास था। लेकिन सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद पूरा उत्तर प्रदेश प्रियंका गांधी वॉड्रा के पास है। अक्टूबर 2021 में लखनऊ में मीडिया को संबोधित करते समय उन्होंने कहा कि वे चुनाव लड़ भी सकती हैं और नहीं भी। उन्होंने ये भी कहा था कि जैसे जैसे चीजें आगे बढ़ेंगे उसी के मुताबिक वो निर्णय लेंगी।
कांग्रेस ने यूपी के विधानसभा चुनाव में 300 सीटों में से 40 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की हैं। प्रियंका गांधी द्वारा लड़कियों को स्मार्टफोन और स्नातक लड़कियों को स्कूटी देने का ऐलान उनकी छवि महिलाओं के साथ खड़ी होने वाली और उन्हें आगे लाने वाली नेता के रूप में उभर कर सामने आई है। जमीनी स्तर पर यह प्रयास कांग्रेस में नई जान भी फूंक सकते हैं।
कुसुम सिंह का राजनितिक करियर
साल 1997 में भाजपा के टिकट पर लखनऊ के राजा जी पुरम से सभासद का चुनाव जीतीं थीं। 1995 से 2000 तक लखनऊ नगर निगम की पार्षद रहीं कुसुम सिंह कल्याण सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुकीं हैं। बीजेपी की वरिष्ठ नेता और यूपी महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष और पार्टी के महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं।
अनुप्रिया पटेल
ये मोदी सरकार की सबसे युवा महिला नेता हैं। ये अपना दल के संस्थापक डॉक्टर सोनेलाल पटेल की पुत्री हैं और भारत की 16वीं लोकसभा में सांसद हैं। वर्तमान में यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं। साल 2016 से 2019 तक भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री थीं। यह अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।
स्वाति सिंह
यह एनआरआई बाढ़ नियंत्रण कृषि आयात कृषि विपणन कृषि विदेश व्यापार की मंत्री और महिला कल्याण मंत्रालय परिवार कल्याण मातृत्व और बाल कल्याण मंत्री हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कैबिनेट में राज्य मंत्री हैं। इन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती को चुनाव लड़ने के लिए खुली चुनौती दी थी। पिछली विधानसभा में वे लखनऊ के सरोजनी नगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ीं थीं। वह बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दयाशंकर सिंह की पत्नी हैं। और उत्तर प्रदेश के बीजेपी महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष भी हैं।
आराधना मिश्रा
वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी की बेटी और यूपी की विधानसभा की सदस्य हैं। वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी से जुड़ी हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से लगातार तीसरी बार ब्लॉक प्रमुख के रूप में चुनी गईं। वह ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार के तहत उत्तर प्रदेश राज्य निगरानी और सतर्कता समिति की सदस्य हैं।