Ground Report : यूपी के भवानीपुर गांव में दलितों के पास अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं जमीन, मुर्दे भी छुआछूत के शिकार

यूपी के भवानीपुर गांव में आधी से ज्यादा आबादी दलित वर्ग से हैं इस गांव में दलितों की जनसंख्या करीब चार सौ से ज्यादा हैं लेकिन इनमें से किसी की मौत होने पर लाश फूंकने के लिए कहीं जगह नहीं है...

Update: 2022-01-06 13:30 GMT

UP विधानसभा चुनाव 2022 : भारत देश एक तरफ जहां तरक्की की नई बुलंदियों को छू रहा है, तो वहीं समाज में एक तबका ऐसा भी है जो 21वीं सदी में भी छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों से पीड़ित है। ऊंचे जाति के लोगों द्वारा दलित वर्ग (Dalits) पर शोषण की खबरें आए दिन सामने आती हैं।

आमतौर पर ऐसे किस्से ग्रामीण इलाकों में ज्यादा देखने को मिलते हैं, जब गांव के मंदिर या सार्वजनिक स्थलों पर दलितों की एंट्री पर पांबदी होती है। मगर उत्तर प्रदेश में एक गांव ऐसा है जहां मुर्दों को श्मशान में जाने की अनुमति भी नहीं है। जी हां, यूपी के भनावीपुर गांव में दलित समुदाय के लोगों के पास शवों के अंतिम संस्कार के लिए जमीन नहीं है। वहीं, गांव के श्मशान में उनके घुसने पर भी पांबदी है।

जनज्वार से बातचीत के दौरान गांव की एक दलित महिला ने बताया कि उनके जैसे अन्य दलित लोगों के पास इस गांव में अपनों के शव जलाने के लिए जमीन नहीं है। यूपी में एक ओर जहां मंदिर मस्जिद के नाम पर हजारों एकड़ जमीन का गबन घोटाला हो रहा है, उसी यूपी (Uttar Pradesh) में लोगों के पास चिता सजाने के लिए जमीन न होना बड़े दुर्भाग्य की बात है।

गांव की एक महिला जनज्वार से बातचीत में कहती है, उनके पास पहले जगह थी लेकिन अब उस पर तार-कांटे से घेर दिया गया है। महिला ने बताया कि वह दलित समाज से हैं। गांव के प्रधान ने श्मशान में तार बाड़ लगा दिया है। तार बाड़ क्यों किया है, ये उन्हें भी पता नहीं है। महिला ने बताया कि जब उनके पति का देहांत हुआ था, तो उनका अंतिम संस्कार (Last Rites) उसी जमीन पर हुआ। तब तार बाड़ नहीं किया गया था, लेकिन अब वहां जाना भी मुश्किल है।

गौरतलब है कि यूपी के भवानीपुर गांव (Bhawanipur Village UP) में आधी से ज्यादा आबादी दलित वर्ग से हैं। इस गांव में दलितों की जनसंख्या करीब चार सौ से ज्यादा है, लेकिन इनमें से किसी की मौत होने पर लाश फूंकने के लिए कहीं जगह नहीं है।

दलित वर्ग से संबद्ध अन्य ग्रामीण बताते हैं, गांव में लोग अपनी अपनी जमीन पर लाश जलाते हैं। लेकिन हमारे पास रहने तक के लिए जगह नहीं है, कल अगर हम मरेंगे तो हमारे बच्चे हमारी लाशें कहां जलाएंगे, पता नहीं। बुजुर्ग महिला ने बताया कि गांव के सेठ जमीनदार लोग अपने अपने जमीन पर शवों का अंतिम क्रिया करते हैं। नीच जाति के लोगों को उनके जमीन पर शव जलाने की इजाजत नहीं है।

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