Environmental Performance Index 2022: पर्यावरण प्रदूषण में भारत बना विश्वगुरु, दिल्ली में रहने वालों की उम्र हो रही 10 वर्ष कम
Environmental Performance Index 2022: प्रधानमंत्री मोदी लगातार हमारे देश को विश्वगुरु बनाते रहे हैं| पहले तो यह कल्पना या फिर जुमलेबाजी नजर आती थी, पर इस बार तो कम से कम पर्यावरण विनाश के सन्दर्भ में उन्होंने भारत को विश्वगुरु बना कर ही अभूतपूर्व कारनामा कर दिया है|
महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
Environmental Performance Index 2022: प्रधानमंत्री मोदी लगातार हमारे देश को विश्वगुरु बनाते रहे हैं| पहले तो यह कल्पना या फिर जुमलेबाजी नजर आती थी, पर इस बार तो कम से कम पर्यावरण विनाश के सन्दर्भ में उन्होंने भारत को विश्वगुरु बना कर ही अभूतपूर्व कारनामा कर दिया है| आजादी का अमृत महोत्सव और मोदी जी के शासनकाल के 8 तथाकथित स्वर्णिम वर्ष के जश्न के बीच ऐसी दो खबरों का आना सचमुच विश्वगुरु का अहसास कराता है| इस वर्ष के पर्यावरण प्रदर्शन इंडेक्स, यानि एनवायर्नमेंटल परफॉरमेंस इंडेक्स (Environmental Performance Index 2022) में कुल 180 देशों में भारत का स्थान 180वां है| इस इंडेक्स को वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के लिए येल यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक संयुक्त तौर पर तैयार करते हैं और इसका प्रकाशन वर्ष 2012 से हरेक दो वर्षों के अंतराल पर किया जाता है|
वर्ष 2020 के इंडेक्स में भारत 168वें स्थान पर था| पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में हमारी विश्वगुरु सरकार बस एक ही काम करती है – हरेक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक रिपोर्ट को अवैज्ञानिक तरीके से नकारना – इस रिपोर्ट को भी हमारी सरकार नकार चुकी है| इस इंडेक्स में सबसे आगे डेनमार्क है और इसके बाद क्रम से यूनाइटेड किंगडम, फ़िनलैंड, माल्टा, स्वीडन, लक्सेम्बर्ग, स्लोवेनिया, ऑस्ट्रिया, स्विट्ज़रलैंड और आइसलैंड का स्थान है| इंडेक्स भारत पर ख़त्म होता है और भारत से पहले क्रम में म्यांमार, वियतनाम, बांग्लादेश, पाकिस्तान, पापुआ न्यू गिनी, लाइबेरिया, हैती, तुर्की और सूडान का स्थान है| एशिया के देशों में सबसे आगे जापान 25वें स्थान पर है| साउथ कोरिया 63वें, ताइवान 74वें, अफ़ग़ानिस्तान 81वें, भूटान 85वें और श्री लंका 132वें स्थान पर है| चीन 160वें, नेपाल 162वें, पाकिस्तान 176वें, बांग्लादेश 177वें, म्यांमार 179वें स्थान पर है| जाहिर है, हमारे सभी पड़ोसी देश हमसे बेहतर स्थान पर हैं| दुनिया के प्रमुख देशों में जर्मनी 13वें, ऑस्ट्रेलिया 17वें, न्यूज़ीलैण्ड 26वें, अमेरिका 43वें, कनाडा 49वें और रूस 112वें स्थान पर है|
इसके ठीक बाद यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट (Energy Policy Institute of University of Chicago) ने एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (Air Quality Life Index) यानि वायु गुणवत्ता से प्रभावित जीवन इंडेक्स, प्रकाशित किया है| इस इंडेक्स के अनुसार दुनिया में वायु में पीएम2.5 प्रदूषण के कारण वर्ष 2020 में दुनिया में लोगों की औसत आयु में 2.2 वर्ष की कमी आती है, पर भारत समेत दक्षिण एशिया में यह कमी 5 वर्ष है| इस इंडेक्स के अनुसार दिल्ली में पीएम2.6 प्रदूषण के कारण औसत आयु में 10 वर्ष जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में यह 8 वर्ष है| इस रिपोर्ट को भी जल्दी ही हमारी सरकार नकार देगी| आखिर हमारे देश में अमृत काल है, फिर भला कोई कैसे मर सकता है?
इस रिपोर्ट के अनुसार भले ही दुनियाभर में चर्चा की गयी हो कि वर्ष 2020 में कोविड 19 के कारण दुनिया में वायु प्रदूषण लगभग ख़त्म हो गया था, पर वास्तविकता अलग है| नीला आसमान और साफ़ हवा की बहुत चर्चा की गयी, पर यह सब चन्द दिनों में ही ख़त्म हो गया| वास्तविकता यह है कि वर्ष 2020 में पीएम2.5 प्रदूषण का विश्वव्यापी स्तर वर्ष 2019 के जितना ही था, और दक्षिण एशिया समेत बहुत सारे क्षेत्रों में इसका स्तर वर्ष 2019 की तुलना से अधिक था| विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के अनुसार हवा में पीएम2.5 की सांद्रता 5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए, पर वर्ष 2020 में दुनिया में इसकी औसत सांद्रता 27.5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर थी| भारत, बंगला देश, नाइजीरिया, पाकिस्तान, अमेरिका, कम्बोडिया और थाईलैंड – कुछ ऐसे देश है जिसमें वर्ष 2020 में पीएम2.5 की औसत सांद्रता वर्ष 2019 की तुलना में प्रभावी तौर पर बढी थी| भारत में यह बृद्धि 2.9 प्रतिशत थी| चीन में पीएम2.5 की सांद्रता में पिछले सात वर्षों में 40 प्रतिशत की कमी आई है| चीन में पीएम2.5 की सांद्रता में कमी के कारण लोगों की औसत आयु में 2 वर्ष की बृद्धि हो गयी है|
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2013 से पीएम2.5 को कैंसर-जनक पदार्थों की सूचि में रखा है| बांग्लादेश में पीएम2.5 की औसत सांद्रता विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों की तुलना में 15 गुना अधिक, भारत में 10 गुना अधिक और नेपाल और पाकिस्तान में 9 गुना अधिक रहती है|
हमारे देश में पर्यावरण पर कोई चर्चा नहीं की जाती और यदि चर्चा होती भी है तो वह एक तमाशा से कम नहीं होती| अभी 8 वर्षों की उपलब्धियों पर तथाकथित अमृत काल से सम्बंधित खूब विज्ञापन केंद्र सरकार की तरफ से भी और तमाम राज्यों की तरफ से भी प्रकाशित किये जा रहे हैं, पर किसी में भी पर्यावरण के बारे में कुछ नहीं कहा गया है| मोदी सरकार ने वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और कचरा प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि को अलग कर दिया है| पिछले कुछ दिनों के भीतर ही 2-3 भाषणों में प्रधानमंत्री जलवायु परिवर्तन के बारे में प्रवचन दे चुके हैं| हरेक भाषण में यही बताया गया कि जलवायु परिवर्तन में हमारे देश का कोई योगदान नहीं है, फिर भी हम विश्वगुरु हैं| वास्तविकता यह है कि भारत दुनिया में अमेरिका और चीन के बाद जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक है| इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है| वायु प्रदूषण के ही कारण जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि की समस्या है, जाहिर है वायु प्रदूषण में कमी लाते ही जलवायु परिवर्तन नियंत्रण में भी मदद मिलेगी|
दुनियाभर में 22 देशों की उस सूची में जिसमें पर्यावरण संरक्षण करते लोगों की ह्त्या की गई, उसमें भारत भी केवल शामिल ही नहीं है बल्कि दुनिया में सबसे खतरनाक 10वां देश और एशिया में फिलीपींस के बाद दूसरा सबसे खतरनाक देश है| भले ही भारत का स्थान 22 देशों की इस सूची में 4 हत्याओं के कारण 10वां हो, पर हमारे देश और पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर अपनी पैनी नजर रखने वाले इन आंकड़ों पर कभी भरोसा नहीं करेंगें| पर्यावरण संरक्षण का काम भारत से अधिक खतरनाक शायद ही किसी देश में हो| यहाँ के रेत और बालू माफिया हरेक साल सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं, जिसमें पुलिस वाले और सरकारी अधिकारी भी मारे जाते हैं| पर, इसमें से अधिकतर मामलों को दबा दिया जाता है, और अगर कोई मामला उजागर भी होता है तो उसे पर्यावरण संरक्षण का नहीं बल्कि आपसी रंजिश या सड़क हादसे का मामला बना दिया जाता है| इसी तरह, अधिकतर खनन कार्य जनजातियों या आदिवासी क्षेत्रों में किये जाते हैं| स्थानीय समुदाय जब इसका विरोध करता है, तब उसे माओवादी, नक्सलाईट या फिर उग्रवादी का नाम देकर एनकाउंटर में मार गिराया जाता है, या फिर देशद्रोही बताकर जेल में डाल दिया जाता है| आदिवासी और पिछड़े समुदाय के अधिकारों की आवाज बुलंद करने वाले पर्यावरण और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भी आतंकवादी और देशद्रोही बताकर जेल में ही मरने को छोड़ दिया जाता है| फादर स्टेन स्वामी का उदाहरण सबके सामने है| दरअसल जिस भीमा-कोरेगांव काण्ड का नाम लेकर दर्जन भर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सरकार ने साजिश के तहत आतंकवाद का नाम देकर जेल में बंद किया है, वे सभी आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार की आवाज ही बुलंद कर रहे थे| बड़े उद्योगों से प्रदूषण के मामले को भी उजागर करने वाले भी किसी न किसी बहाने मार डाले जाते हैं| इन सभी हत्याओं में सरकार और पुलिस की सहमति भी रहती है|
प्रधानमंत्री जी जब हाथ हवा में लहराकर पर्यावरण संरक्षण पर प्रवचन दे रहे होते हैं, उसी बीच में कुछ जंगल कट जाते हैं, कुछ लोग पर्यावरण के विनाश और प्रदूषण से मर जाते हैं, कुछ जनजातियाँ अपने आवास से बेदखल कर दी जाती हैं, कुछ प्रदूषण बढ़ जाता है और नदियाँ पहले से भी अधिक प्रदूषित हो जाती हैं| पर, प्रधानमंत्री जी इसे पर्यावरण संरक्षण का बहुआयामी विकास बताते हैं|