दुनिया के सिर्फ 3 हजार अरबपतियों की संपत्ति पर लग जाए टैक्स तो 1 अरब आबादी हो जाएगी खुशहाल

पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत में 81 करोड़ लोगों को जिन्दा रखने के लिए 5 किलो मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है, और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के बाद भी इन 81 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलता रहेगा...

Update: 2024-06-27 08:23 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

A survey among the adults of 17 G20 Member countries, including India, clearly indicates that general public of large economies thinks that economies should move beyond a singular focus on economic growth. The country’s economic progress should be measured by health and well being of its citizens and also of environment rather than how fast economy is growing : दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह जी20 भले ही अपने वक्तव्यों में दुनिया के पूरी आबादी के समृद्धि की बात करता हो, पर सच यही है की जी20 की नीतियों ने ही दुनिया को पूंजीवाद की चपेट में ला खड़ा किया है। दूसरी तरफ सामान्य आबादी तक बढ़ती अर्थव्यवस्था का कोई प्रभाव नहीं पहुँचता, कई मामलों में तो बढ़ते पूंजीवाद से सामान्य आबादी का जीवन पहले से अधिक बदहाल हो जाता है।

एक नए सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि सामान्य आबादी पूंजीवाद का विरोध करती है और बेहतर अर्थव्यवस्था के आकलन का पैमाना बदलना चाहती है। हमारे देश में भी मोदी सरकार वर्ष 2014 से लगातार बड़ी अर्थव्यवस्था और पांच खरब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था का ढिंढोरा पीट रही है, इसे अपनी बड़ी कामयाबी बता रही है, तो दूसरी तरफ सामान्य आबादी सामाजिक और आर्थिक पैमाने पर कराह रही है। अर्थव्यवस्था के आकार बढ़ने के दावे कितने खोखले होते हैं – पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में 81 करोड़ लोगों को जिन्दा रखने के लिए 5 किलो मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है, और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के बाद भी इन 81 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलता रहेगा। जाहिर है, अर्थव्यवस्था के पांचवीं से तीसरी होने पर भी कम से कम 81 करोड़ लोगों के जीवनस्तर पर कोई फर्क नहीं पडेगा, यह तो सरकार स्वयं बता रही है। चुनावी नतीजे कुछ भी कहते हों, पर जनता सत्ता और अर्थव्यवस्था दोनों में बदलाव चाहती है।

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हाल में ही जी20 समूह के भारत समेत 17 सदस्य देशों में आम जनता के बीच सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि लोग सामाजिक और आर्थिक स्तर पर ऐसे बदलाव चाहते हैं जिसके केंद्र में बड़ी आबादी के भले के साथ ही पर्यावरण का संरक्षण भी हो। अधिकतर आबादी अपने देशों की वर्तमान राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था से खुश नहीं है और दुनिया के भविष्य के लिए निराशावादी है। इस सर्वेक्षण को दो संस्थाओं - अर्थ4आल और द ग्लोबल कॉमन्स अलायन्स – ने सम्मिलित तौर पर करवाया है और ग्लोबल रिपोर्ट 2024 में प्रकाशित किया है।

इस सर्वेक्षण के लिए रूस, टर्की, यूरोपियन यूनियन और अफ्रीकन यूनियन को छोड़कर हरेक जी20 सदस्य देशों में एक बड़ी वयस्क आबादी से तमाम प्रश्न पूछे गए। चीन में कुछ प्रश्नों के आधार पर ही सर्वेक्षण किया गया – इस सर्वेक्षण के नतीजे जी20 के 17 सदस्य देशों पर आधारित हैं, इनमें भारत भी शामिल है।

इस सर्वेक्षण में 68 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अर्थव्यवस्था की प्राथमिकता मुनाफ़ा और जीडीपी को बढ़ाना नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य और सामान्य आबादी की खुशहाली के साथ ही प्रकृति का संरक्षण होनी चाहिए। कुल 62 प्रतिशत लोगों के अनुसार किसी देश के आर्थिक विकास का पैमाना अर्थव्यवस्था के विस्तार के बदले इसके नागरिकों का जनस्वास्थ्य और खुशहाली होनी चाहिए। सर्वेक्षण में केवल 39 प्रतिशत प्रतिभागियों ने अपने देश की सत्ता की जन लाभकारी नीतियों पर भरोसा जताया, जबकि महज 37 प्रतिशत लोग मानते हैं कि सत्ता की दीर्घकालीन योजनाओं से सामान्य जन का भी जीवन सुगम होगा।

हरेक देश की आधी से अधिक आबादी मानती है कि अर्थव्यवस्था का लक्ष्य ही गलत है – पारंपरिक तौर पर पूंजीवाद में इसका बढ़ना अर्थव्यवस्था में विकास के संकेत हैं, जैसा मोदीराज में हमेशा बताया जाता है - पर जनता की नजर में अर्थव्यवस्था के विकास के परिभाषा बदलने की जरूरत है, इसे आम जनता के आर्थिक विकास के साथ ही पर्यावरण संरक्षण से भे जोड़ने की जरूरत है। जनता के अनुसार वर्तमान आर्थिक विकास से आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है।

आर्थिक असमानता कम करने के लिए जनता व्यापक राजनीतिक और आर्थिक बदलाव के साथ ही टैक्स की वसूली में भी बदलाव चाहती है - 17 जी20 देशों की सामान्य आबादी में से लगभग दो-तिहाई यानी 68 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि सत्ता अरबपतियों से संपत्ति-टैक्स वसूले। भारत में 74 प्रतिशत लोग संपत्ति-टैक्स का समर्थन करते हैं। कुल 70 प्रतिशत लोगों के अनुसार पूंजीपतियों से अधिक आयकर की वसूली की जानी चाहिए। लगभग 69 प्रतिशत आबादी बड़े कार्पोरेट घरानों से अधिक टैक्स वसूली का समर्थन करती है।

फ्रांस के अर्थशास्त्री गैब्रियल जुकमैन ने हाल में ही ब्राज़ील में जी20 सम्मलेन में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में बताया है कि यदि दुनिया के 3000 अरबपतियों की संपत्ति पर टैक्स वसूला जाए तो सरकारों के पास हरेक वर्ष लगभग 250 अरब डॉलर प्रतिवर्ष अतिरिक्त जमा होंगे, जिनसे आम जनता की भलाई के लिए कई योजनायें चलाई जा सकती हैं। इससे ग्रीन एनर्जी, श्रमिकों के अधिकार और सबके लिए स्वास्थ्य जैसी कई योजनायें तेजी से आगे बढ़ाई जा सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार पूंजीपतियों से वसूले जाने वाले टैक्स से 1 अरब से भी ज्यादा गरीब आबादी का जीवनस्तर सुधारा जा सकता है।

अरबपतियों पर टैक्स बढ़ाना, पूंजी को जनता तक पहुंचाने या फिर संपत्ति के सामाजिक बंटवारे का ही एक स्वरूप है। सर्वेक्षण से इतना तो स्पष्ट है की संपत्ति के सामाजिक बंटवारे का सभी अमीर देशों की जनता भी समर्थन करती है, पर पूंजीपतियों के प्रभाव से बनी सरकारें इसे नकारती हैं। हमारे देश में तो सत्ता संपत्ति के बंटवारे का मजाक उड़ाती है, इसे मंगलसूत्र और भैंस छीनने के समतुल्य बताती है। ऐसे मजाक उड़ाने में और अनरगल प्रलाप करने की शुरुआत तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचारों में किया, और अपनी तरफ से इस सन्दर्भ में जनता को खूब भ्रमित किया।

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जी20 देशों के सर्वेक्षण में प्रतिभागियों ने यूनिवर्सल बेसिक इनकम, प्रजातंत्र की मजबूती जैसे विषयों के साथ ही संपत्ति के पुनः-बंटवारे और आर्थिक समानता का भी समर्थन किया। प्रतिभागियों ने जलवायु परिवर्तन रोकने और पर्यावरण संरक्षण पर अतिशीघ्र, एक वर्ष के भीतर, प्रभावी कदम उठाने का व्यापक समर्थन किया। मेक्सिको में 91 प्रतिशत, साउथ अफ्रीका में 83 प्रतिशत और ब्राज़ील में 81 प्रतिशत प्रतिभागियों ने इसका समर्थन किया। भारत में 68 प्रतिशत प्रतिभागियों ने इसका समर्थन किया, जबकि जी20 देशों के लिए यह औसत 71 प्रतिशत है।

इस सर्वेक्षण के सबसे आश्चर्यजनक नतीजे भविष्य के प्रति आश्वस्त होने से सम्बंधित हैं। लगभग 62 प्रतिशत प्रतिभागी अपने भविष्य के प्रति आशावादी हैं, पर 44 प्रतिशत प्रतिभागी ही अपने देश के भविष्य के प्रति आशावादी हैं। आश्चर्य तो यह है कि महज 38 प्रतिशत प्रतिभागी ही दुनिया के भविष्य के लिए आश्वस्त हैं।

इस सर्वेक्षण से इतना तो स्पष्ट है कि पूंजीवाद के साथ ही पूंजीवाद के समर्थन में खड़ी सत्ता के विरोध में सभी अमीर देशों की जनता खड़ी है। जनता आर्थिक समानता चाहती है, और यह भी जानती है कि बड़ी अर्थव्यवस्था और आम जनता का हित दो बिलकुल विपरीत बाते हैं। राजनीतिक तौर पर देखें तो इस सर्वेक्षण के परिणाम कुछ तथ्य बहुत स्पष्ट तौर पर बताते हैं। सामान्य जनता आर्थिक विषमता और पर्यावरण विनाश को समझती है, और विपक्ष को इन मुद्दों को जनता के बीच स्पष्ट तरीके से तथ्यों के साथ समग्र तौर पर सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए। विपक्ष इन तथ्यों को आंशिक तरीके से प्रस्तुत करता है, जिसका प्रभाव जनता पर नहीं होता और पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना दिखाने वाले सत्ता तक पहुँच जाते हैं।

संदर्भ:

1. Earth for All Survey 2024/ G20 Global Report: Attitudes to political and economic transformation - https://ifz.org.br/earth-for-all-survey-2024-g20-global-report-attitudes-to-political-and-economic-transformation/

2. Tax the rich, say a majority of adults across 17 G20 countries surveyed - https://phys.org/news/2024-06-tax-rich-majority-adults-g20.html

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