Human Rights Index: भारत – आंशिक प्रजातंत्र मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए खतरनाक

Human Rights Index: हमारा प्रजातंत्र गजब है, यह प्रधानमंत्री के जयकारे और तस्वीरों पर टिका है| प्रजा हरेक समय गायब रहती है और अब तो लाभार्थियों का समय है|

Update: 2022-03-04 12:59 GMT

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट 

Human Rights Index: हमारा प्रजातंत्र गजब है, यह प्रधानमंत्री के जयकारे और तस्वीरों पर टिका है| प्रजा हरेक समय गायब रहती है और अब तो लाभार्थियों का समय है| प्रधानमंत्री देश के प्रधानमंत्री हैं या एक पार्टी के स्टार प्रचारक, इस प्रश्न का उत्तर भी खोजना कठिन है| प्रधानमंत्री को अपनी छवि सुधारने की इतनी चिंता रहती है कि वे जनता की जिन्दगी सरे आम दांव पर लगा देते हैं| उक्रेन (Ukraine) में फंसे भारतीय छात्र जब पांच दिनों तक युद्ध की विभीषिका झेल चुके तब मोदी जी के जयकारे के साथ उन्हें वापस भारत लाने का काम केवल शुरू ही नहीं किया गया बल्कि पूरी सरकार मोदी जी और सनकी तानाशाह पुतिन की नजदीकियों के प्रचार में लग गयी|

यह पहला मौका नहीं है, जब सरकार ने जनता को दांव पर रखकर केवल अपनी वाहवाही के लिए देर की हो| याद कीजिये, कोविड 19 (COVID 19) की दूसरी लहर का दौर, जब हरेक घर में लोग मर रहे थे, ऑक्सीजन के लिए लोग बदहवास भटक रहे थे, अस्पतालों में इंतजाम नहीं थे – उस दौर में मोदी जी खामोश रहे, पर स्थिति सुधरते ही ऑक्सीजन आपूर्ति पर बैठकों का दौर शुरू हुआ और फिर जनता के सामने अपने आप को मसीहा साबित करने की जुगत में लग गए| कोविड 19 के पहले दौर के समय जब हजारों श्रमिक पैदल हजारों किलोमीटर लांघ गए, फिर मोदी जी की स्पेशल ट्रेनों का काफिला चल पड़ा| एक वर्ष के किसान आन्दोलन (Farmers Agitation) के दौरान जब 700 से अधिक किसान मर गए, उसके बाद मोदी जी कृषि कानूनों को वापस लेकर अपने आप को किसानों का मसीहा साबित करने में जुट गए|

हमारे देश के लोग तो एक अजीब से नशे में डूब गए हैं, पर दुनिया हमारे प्रजातंत्र का हाल देख रही है और समझ भी रही है| अमेरिका के फ्रीडम हाउस (Freedom House) ने कुछ दिनों पहले फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2022 (Freedom in the World 2022) प्रकाशित की है| इसमें कुल 195 देशों में प्रजातंत्र का विश्लेषण किया गया है, इनमें से भारत समेत 56 देशों में आंशिक प्रजातंत्र (Partial Democracy) है| पिछले वर्ष की रिपोर्ट में भी भारत आंशिक लोकतंत्र था| इस रिपोर्ट के अनुसार भारत को 100 में से कुल 66 अंक मिले हैं, जबकि वर्ष 2021 की रिपोर्ट में 67 अंक थे| रिपोर्ट के अनुसार भारत में राजनैतिक अधिकार तो बहुत हैं पर नागरिक अधिकारों की लगातार अवहेलना की जा रही है| राजनैतिक अधिकारों के तहत कुल 40 अंकों में से भारत को 33 अंक मिले हैं, जबकि नागरिक अधिकारों के तहत कुल 60 अंकों में से महज 33 अंक ही दिए गए हैं|

रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षों से दुनिया में प्रजातंत्र खतरे में है और सत्तावादी, राष्ट्रवादी और निरंकुश शासकों का वर्चस्व लगातार बढ़ता जा रहा है| दुनिया में पूरी तरह से प्रजातांत्रिक देशों (Democracy) की संख्या 83 है, जिनमें दुनिया की 20.3 प्रतिशत आबादी रहती है| कुल 56 देशों में आंशिक प्रजातंत्र (Partial Democracy) है, जिसमें 41.3 प्रतिशत आबादी रहती है और 56 देशों में प्रजातंत्र नहीं है जिनमें दुनिया की 38.4 प्रतिशत आबादी है| दुनिया की 80 प्रतिशत आबादी ऐसे देशों में रहते है जहां जीवंत प्रजातंत्र (Liberal Democracy) नहीं है| इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 के दौरान दुनिया के 60 देशों में प्रजातंत्र का ह्रास हुआ है, जबकि 25 देशों में इसकी स्थिति में सुधार हुआ है|

वर्ष 2005 से दुनिया भर में प्रजातंत्र बदहाल है| वर्ष 2005 में दुनिया की 46 प्रतिशत आबादी जीवंत प्रजातंत्र में थी, पर वर्ष 2021 तक यह आबादी 20.3 प्रतिशत ही रह गयी| दूसरी तरफ वर्ष 2005 में दुनिया की 17.9 प्रतिशत आबादी ही ऐसे देशों में थी जहां आंशिक प्रजातंत्र था, पर अब यह आबादी 41.3 प्रतिशत तक पहुँच गई है| इसी रिपोर्ट में भारत को इन्टरनेट फ्रीडम (Internet Freedom) के सन्दर्भ में 100 में से महज 49 अंक दिए गए है और इसे आंशिक स्वतंत्र देशों की श्रेणी में रखा गया है|

एक दूसरी रिपोर्ट ग्लोबल एनालिसिस 2021 (Global Analysis 2021) के अनुसार पिछले वर्ष के दौरान दुनिया के कुल 35 देशों में 358 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं (Human Rights Defenders) की ह्त्या की गयी, और इसमें कुल 23 हत्याओं के साथ हमारा देश चौथे स्थान पर है| इस रिपोर्ट को दो संस्थाओं – फ्रंटलाइन डिफेंडर्स और ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स मेमोरियल (Frontline Defenders & Human Rights Defenders Memorial) ने संयुक्त रूप से प्रकाशित किया है| मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ह्त्या के सन्दर्भ में पिछले वर्ष की संख्या एक नया रिकॉर्ड थी, वर्ष 2020 में 25 देशों में कुल 331 कार्यकर्ताओं की ह्त्या की गयी थी| इससे इतना तो स्पष्ट है कि साल-दर-साल केवल हत्याओं की संख्या ही नहीं बढ़ रही है, बल्कि उन देशों की संख्या भी बढ़ रही है, जहां ऐसी हत्याएं हो रही हैं| जाहिर है, ऐसी हत्यायों में बृद्धि का सबसे बड़ा कारण दुनिया में प्रजातंत्र का सिमटना और पूंजीवाद का प्रभाव बढ़ना है|

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या के सन्दर्भ में सबसे खूंख्वार देश कोलंबिया है जहां पिछले वर्ष 138 कार्यकर्ताओं की ह्त्या की गयी, इसके बाद मेक्सिको में 42 हत्याएं और फिर ब्राज़ील में 27 हत्याएं की गईं| इसके बाद 23 हत्याओं के साथ भारत का स्थान है| भारत के बाद क्रम से अफ़ग़ानिस्तान, फिलीपींस, होंडुरस, निकारागुआ, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, म्यांमार और पकिस्तान का स्थान है| इस पूरी सूचि से इतना तो स्पष्ट है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के सन्दर्भ में सबसे खतरनाक दक्षिण अमेरिका और दक्षिणी एशिया है| इसका सबसे बड़ा कारण है, ये दोनों ही क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों के सन्दर्भ में सबसे समृद्ध हैं, और पूंजीवादी ताकतें हमेशा से इन संसाधनों को लूटती रही हैं| पिछले वर्ष जिन 358 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ह्त्या की गयी, उसमें से लगभग 60 प्रतिशत पर्यावरण, जंगल और आदिवासी समुदाय के संरक्षण का काम करते थे| दुनिया में कुल आबादी में से महज 6 प्रतिशत आदिवासी आबादी है, पर कुल मारे गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से इनकी संख्या एक-तिहाई से भी अधिक है| पिछले वर्ष मारे गए सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से 18 प्रतिशत महिलायें थी, जबकि वर्ष 2020 में इनका अनुपात महज 13 प्रतिशत ही था|

जाहिर है, प्रजातंत्र के हनन के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, आन्दोलनकारियों, और सरकार विरोधियों की ह्त्या में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है और इसके लिए जिम्मेदार निरंकुश सरकारें और पूंजीवाद है| 

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