International Girl Child Day 2022: कन्या पूजन वाले देश में हर घंटे कोख में मारी जा रहीं 52 कन्याएं, इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर जानें क्या है हालात
International Girl Child Day 2022: जिस देश में कन्या पूजा होती है उसी देश में गर्भ में ही उनकी हत्या कर दी जाती है। साल 2013 से 2017 की हाल में आई रिपोर्ट चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 4 लाख 60 हजार लड़कियां को गर्भ में ही मार दिया गया।
मोना सिंह की रिपोर्ट
International Girl Child Day 2022: जिस देश में कन्या पूजा होती है उसी देश में गर्भ में ही उनकी हत्या कर दी जाती है। साल 2013 से 2017 की हाल में आई रिपोर्ट चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 4 लाख 60 हजार लड़कियां को गर्भ में ही मार दिया गया। यानी हर दिन 1260 और हर घंटे 52 कन्या भ्रूण हत्या हुई। इन भ्रूण हत्याओं के पीछे तमाम वजहें हैं। लेकिन इन वजहों से हटकर जो सच है वो ये कि आज लड़कियां जितनी आगे बढ रहीं हैं, उसे देख इन्हें कम आंकने वालों के एक बडा सबक है। 11 अक्टूबर को इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे है। इसे क्यों मनाया जाता है। साल 2022 की थीम क्या है। जानते हैं इस रिपोर्ट में।
ऐसे शुरू हुआ इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे
1995 में बीजिंग में महिला सशक्तिकरण के लिए पहला विश्व सम्मेलन हुआ था। जिसमें सभी देशों ने सर्वसम्मति से बीजिंग घोषणा पत्र को अपनाया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 दिसंबर 2011 को एक प्रस्ताव पारित कर 11 अक्टूबर इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे के रूप में घोषित किया। तब से इसे हर साल 11 अक्टूबर को मनाया जाता है।
क्या है इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे का उद्देश्य
इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे का उद्देश्य दुनिया भर में लोगों को लड़कियों के लिए लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। सामाजिक मुद्दे जैसे शिक्षा, पोषण, कानूनी अधिकार, चिकित्सा देखभाल, भेदभाव से सुरक्षा, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और जबरन बाल विवाह के लिए सामाजिक जागरूकता लाना ही इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे का उद्देश्य है। कुल मिलाकर यदि महिलाएं सशक्त होंगी तो हमारी दुनिया कम समस्याओं से ग्रसित होगी। यदि महिलाएं शिक्षित स्वावलंबी और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनेंगीं तो वर्तमान और आने वाले समय की कई समस्याओं से निजात मिल सकती है। इसलिए इस दिन का उद्देश्य शिक्षा या काम की जगह पर महिलाओं से भेदभाव घरेलू शोषण जबरन विवाह और कन्या भ्रूण हत्या इत्यादि के मुद्दों के बारे में समाज और महिलाओं को जागरूक करना है।
क्या है 2022 इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे की थीम
इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे 2022 के लिए भी एक खास थीम है। 11 अक्टूबर 2012 को पहला इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाया गया था। उस समय इसकी थीम थी," बाल विवाह को समाप्त करना"। इस साल 2022 की थीम है "हमारा समय अभी है- हमारे अधिकार, हमारा भविष्य" । यानी लड़कियां कह रहीं हैं कि अभी उनका समय है। वो अपने अधिकारों की बात कर रहीं हैं। अपने भविष्य की भी अब चिंता कर रही हैं। इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे का लक्ष्य 2030 तक लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण करना तो है ही, इसके साथ ही उन युवा लड़कियों की सहायता करना है जो बेहतर स्वास्थ्य, सेवा शिक्षा में समान अधिकार या किसी अन्य सुविधा से वंचित हैं।
लेकिन भारत में क्या हैं चुनौतियां
भले ही महिला सशक्तिकरण को लेकर तमाम सरकारी योजनाएं चलाईं जा रही हैं। साथ ही गर्ल एजुकेशन की भी बात हो रही है। लेकिन इनके बाद भी आंकडे बताते हैं कि देश में लड़कियों की शिक्षा से लेकर कोख में ही उनकी हत्या की जा रही है।
1901 की जनगणना के समय उत्तर प्रदेश में लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 938 स्त्री का था। 1981 में अल्ट्रासाउंड की शुरुआत के बाद यह सेक्स रेश्यो यानी लिंग अनुपात घटकर 882 स्त्रियों तक आ गया। 2011 में हुई जनगणना में 1000 लड़कों पर 912 लड़कियां ही बची थी। हाल ही में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में कुल लिंगानुपात चौंकाने वाले हैं 1000 पुरुषों पर 1020 स्त्रियों का लिंगानुपात है। अगर इस रिपोर्ट को देखेंगे तो लगेगा कि अब प्रति 1 हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या ज्यादा हो गई है। लेकिन इसके पीछे एक खास वजह है। असल में ये रिपोर्ट तैयार करते समय मौके पर सर्वे टीम ने मौके पर मौजूद लोगों की गणना की है। मसलन, एक घर में अगर 3 बच्चों समेत कुल 4 पुरुष और 5 महिलाएं मिलीं तो उन्हें ही गणना में शामिल किया गया।
अगर कोई पुरुष सदस्य नौकरी करने घर से बाहर किसी दूसरे शहर गया है तो उसे गणना में शामिल नहीं किया गया। इसलिए ये अंतर देखने को मिला है। क्योंकि ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में रोजगार की तलाश में पुरुष सदस्यों के दूसरे शहर में जाने की बात सामने आई है। इसलिए लिंग अनुपात बर्थ के टाइम पर 1000 पुरुषों पर 929 महिला ही है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में माइग्रेटेड पुरुषों की संख्या को नहीं गिना जाता है, जो पढ़ाई व्यापार और रोजी-रोटी के चलते उस समय अपने घर और गांव में उपस्थित नहीं थे। सेक्स रेश्यो एट बर्थ में पिछले 5 सालों में पैदा हुए बच्चों के लिंगानुपात को मापा जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, बेटियों की संख्या कम होने की वजह से 2012 में उत्तर प्रदेश में 10 फ़ीसदी पुरुषों की शादियां नहीं हो पाई थी। और 2050 तक ऐसे पुरुषों की संख्या बढ़कर 17% होने का अनुमान है।
राजस्थान के अलावा इन राज्यों में हर 3 में से 1 लड़की का बाल विवाह
बाल विवाह केवल भारत में ही नहीं दुनिया की के कई देशों और संस्कृतियों में एक प्रचलित प्रथा है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में एक तिहाई महिलाएं जो कि 70 बिलियन यानी 7000 करोड के करीब हैं, जिनकी शादी 18 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है। जिसमें 23 मिलियन यानी 230 लाख लड़कियों की शादी 15 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है। कम उम्र में शादी की वजह से यह लड़कियां स्कूली शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य से हमेशा के लिए वंचित हो जाती है। स्टेज आफ वर्ल्ड पापुलेशन (यूएनएफपीए) की रिपोर्ट 2020 के अनुसार, 23.3% महिलाओं की 18 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है। बिहार, पश्चिम बंगाल में हर 5 में से दूसरी लड़की का बाल विवाह होता है। झारखंड, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में हर 3 में से एक लड़की का बाल विवाह होता है। और 18 साल की उम्र से शादी करने वाली 32 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती है। 18 साल की होने के बाद शादी करने वाली 17 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा का सामना करती हैं। 2005 में 47% लड़कियों का बाल विवाह हुआ था। जबकि 2019- 21 में यह 23.3% पर आ गया था। बाल विवाह की शिकार हुई 60% महिलाएं 18 साल की उम्र से पहले ही मां बन जाती है।
लड़कियों की सफलता की कहानियां
इस बार के अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की थीम है" यह समय हमारा है हमारे अधिकार और भविष्य पर बात हो" ऐसे समय में जबकि सभी क्षेत्रों में लड़कियां आगे आ रही हैं।यह थीम एकदम सही लगती है। यहां कुछ ऐसी ही लड़कियों के बारे में बताने जा रहे हैं।
एयर इंडिया एक्सप्रेस में धनबाद की पहली महिला पायलट हैं सृष्टि सिंह। एयर इंडिया एक्सप्रेस में बतौर फर्स्ट ऑफिसर नवंबर 2016 से कार्यरत है। उन्होंने मिशन वंदे भारत के तहत दिल्ली से कुवांलालंपपुर में कोरोना संक्रमण काल के दौरान फंसे हुए 2500 भारतीयों को स्वदेश वापस लाने का काम किया था। सृष्टि सिंह एक मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी हैं। जिनकी शिक्षा दीक्षा धनबाद के हैप्पी चाइल्ड स्कूल से हुई। और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकैडमी रायबरेली से उन्होंने कमर्शियल पायलट का लाइसेंस प्राप्त किया। उनके माता-पिता ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने और चुनौतियों का सामना करने का हौसला दिया। अब एयर इंडिया एक्सप्रेस में अपनी सेवाएं दे रही हैं। और सफल पायलट के रूप में कई चुनौतियों का सामना करते हुए नए कीर्तिमान स्थापित कर रहीं हैं।
दूसरी कहानी है फलक फातिमा की। उन्होंने ना सिर्फ युवाओं के लिए रोल मॉडल के तौर पर ऊंचाइयों को छुआ है बल्कि सामाजिक सरोकार और कार्यों से जुड़कर राष्ट्रपति पुरस्कार भी हासिल किया। विगत 24 सितंबर को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था। फलक धनबाद झारखंड स्थित वासेपुर के रहने वाली हैं। वो स्कूल और कॉलेज के दिनों से सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेती रही हैं। 2018 में कॉलेज में राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ी और पौधे लगाने, रक्तदान जैसे अभियान का हिस्सा रही हैं। उन्होंने स्लम एरिया में जाकर बच्चों को शिक्षित करने का काम जारी रखा है। वे खुद रक्तदान करती हैं और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करती हैं।
भारत में आज भी हर घंटे 52 कन्या भ्रूण हत्या
भारत में कानूनी रूप से और प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण और बालिका भ्रूण हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। लेकिन कन्या भ्रूण हत्या चोरी छुपे अभी भी समाज में प्रचलित है। यदि गर्भपात नहीं कराया जाता तो बालिकाओं को बचपन में ही छोड़ दिया जाता है। 2011 के आंकड़ों के अनुसार, 11 मिलियन यानी 110 लाख त्यागे हुए बच्चों में 90% लड़कियां होती हैं। द स्टेट ऑफ वर्ल्ड पापुलेशन (UNFPA) 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, बीते 50 वर्षों में करोड़ों बेटियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया गया। 1970 से 2020 के बीच विश्व में 14.26 करोड़ बच्चियों को जन्म से पहले ही मार दिया गया। 4.6 करोड़ बेटियों को भारत में जन्म नहीं लेने दिया गया।
2013 से 2017 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल 4,60,000 लड़कियां गर्भ में ही मार दी गई। हर दिन 1260 और हर घंटे 52 कन्या भ्रूण हत्या होती है। अब हर घंटे 52 कन्या भ्रूण हत्या से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि भले ही दुनिया और देश भर महिला दिवस या नेशनल गर्ल चाइल्ड डे हो या फिर इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाया जाता हो लेकिन उसे धरातल पर लागू करने में अभी भी लापरवाही बरती जा रही है। इसे सरकार के साथ समाज को भी गंभीरता से लेने की जरूरत है ताकि कोख में ही उस कन्या की हत्या ना हो, जो कल एक नए संसार की रचना करती है।