Khalistani Terrorism in India : 1929 में उठी छोटी चिंगारी ने कैसे खालिस्तानी आतंक को जन्म दिया, जानिए मोहाली ब्लास्ट के पीछे की पूरी कहानी
Khalistani Terrorism in India : खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत 1929 में हुई थी, 1929 में कांग्रेस के लाहौर सेशन में मोतीलाल नेहरू ने भारत के पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा था। तब तीन समूहों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था....
मोना सिंह की रिपोर्ट
Khalistani Terrorism in India : चंडीगढ़ से सटे मोहाली के पुलिस इंटेलिजेंस हेड क्वार्टर में 9 मई शाम 7:45 पर अचानक तेज धमाका (Mohali Blast) हुआ। इस घटना में किसी को कोई चोट नहीं आई क्योंकि उस समय वहां कोई नहीं था। पर पुलिस के खुफिया विभाग की इमारत पर आरपीजी (रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड) ब्लास्ट की इस घटना ने पूरे राज्य और देश को हिला कर रख दिया है।
इस इमारत में पंजाब पुलिस (Punjab Police) के कई महत्वपूर्ण विभागों के कार्यालय हैं। इसमें एसटीएफ (Special Task Force), एजीटीएफ (Anti Gangester Task Force) और खुफिया संगठित अपराध नियंत्रण इकाई (OCCU) है। खुफिया संगठित अपराध नियंत्रण इकाई पुलिस के खुफिया विभाग की तीसरी मंजिल पर है और इसी फ्लोर को मुख्य निशाना बनाया गया था। ओसीसीयू पिछले कुछ समय में खासतौर पर गैंगस्टर और आतंकियों के खिलाफ काम कर रही है।
11 मई तक पंजाब पुलिस 18 से 20 खालिस्तानी आतंकियों (Khalistani Terrorism) की गिरफ्तारी कर चुकी है। आरपीजी से पुलिस कार्यालय पर अटैक के बाद से मोहाली में हाई अलर्ट है। और इस हमले की जिम्मेदारी प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने ली है। 9 मई की इस घटना के सिर्फ 1 दिन पहले यानी 8 मई की सुबह धर्मशाला में हिमाचल प्रदेश विधानसभा भवन (Legislative Assembly Of Himachal Pradesh) के गेट और दीवारों पर खालिस्तानी झंडे (Khalistani Flag) लगे मिले थे।
इस मामले की जांच भी एसआईटी (SIT) कर रही है। इसकी जिम्मेदारी भी सिख फॉर जस्टिस संगठन के आतंकी और लीडर गुरुपतवंत सिंह पन्नू (Gurpatwant Singh Pannu) ने ली है। इस घटना के 2 दिन पहले पुलिस ने करनाल से कुछ खालिस्तानी आतंकियों को बड़ी संख्या में विस्फोटक और हथियारों के साथ पकड़ा था।
यह आतंकी प्रतिबंधित संगठन बब्बर खालसा से ताल्लुक रखते थे और इन्हें पाकिस्तान (Pakistan) में रह रहे खालिस्तानी आतंकी हरविंदर सिंह रिंडा ने ड्रोन के जरिए हथियारों की सप्लाई की थी। किसान आंदोलन (Farmers Movement) के दौरान भी दिल्ली और पंजाब की सीमा पर खालिस्तान समर्थक नारेबाजी होने की खबरें आती रही हैं। सिख फॉर जस्टिस के चीफ और आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने नया वीडियो जारी कर 6 जून को खालिस्तान की मांग को लेकर वोट करने की भी अपील की है। गुरपतवंत सिंह पन्नू, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) के इशारे पर काम करता है।
एक के बाद एक खालिस्तानी आतंकी संगठन से जुड़ी इन सब घटनाओं ने एक बार फिर 80 से 90 दशक की याद दिला दी है। जिन खालिस्तानी आतंकी संगठनों (Khalistani Terrorism in India) का अस्तित्व लगभग समाप्त समझा जा रहा था उसने इस बार पूरी तैयारी के साथ सिर उठाया है। आइए जानते हैं कौन हैं खालिस्तानी आतंकी?और क्या है इनका इतिहास?
कब और कैसे शुरू हुआ खालिस्तान आंदोलन
खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत 1929 में हुई थी। 1929 में कांग्रेस (Indian National Congress) के लाहौर सेशन में मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) ने भारत के पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा था। तब तीन समूहों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था। पहला समूह था मुस्लिम लीग। जिसकी अगुवाई मोहम्मद अली जिन्ना (Mohd. Ali Jinnah) कर रहे थे। दूसरा समूह दलितों का था। जिसमें डॉक्टर अंबेडकर (Dr. Bhim Rao Ambedkar) दलितों के अधिकारों की मांग कर रहे थे। तीसरा समूह शिरोमणि अकाली दल का था। जिसके नेता मास्टर तारा सिंह थे। तारा सिंह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सिखों के लिए अलग राज्य की मांग रखी थी।
1940 में खालिस्तान नाम की किताब में पहली बार खालिस्तान (Khalistan) का जिक्र किया गया था। 1947 में यह मांग 'पंजाबी सूबा आंदोलन' में बदल गई थी। भारत के राज्य पुनर्गठन आयोग ने शिरोमणि अकाली दल की इस मांग मानने से इंकार कर दिया गया था। इसके बाद अगले 19 सालों तक अलग सिख सूबे के लिए आंदोलन और प्रदर्शन जारी रहे। इसके साथ ही हिंसा की घटनाएं भी बढ़ने लगी तब 1966 में इंदिरा गांधी ने भाषा के आधार पर पंजाब को तीन हिस्सों में बांटने का निर्णय लिया।
सिखों की बहुलता वाले इलाके को पंजाब, हिंदी भाषियों के लिए हरियाणा और तीसरा चंडीगढ़ जिसे, हरियाणा और पंजाब की साझा राजधानी और केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था। लेकिन कांग्रेस के इस फैसले और साझा राजधानी के विचार से बहुत से लोग नाखुश और असहमत थे। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद पाकिस्तान के आईएसआई के तार भी खालिस्तानी आंदोलन (Khalistani Terrorism in India) से जुड़ने लगे थे। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने खालिस्तान बनाने के लिए मदद करने का आश्वासन भी खालिस्तानी आतंकियों को दिया था। 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया था।
क्या था आनंदपुर साहिब प्रस्ताव?
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के जरिए 1973 में अकाली दल ने पंजाब के लिए स्वायत्तता यानी ज्यादा अधिकारों की मांग की थी। इसमें सिखों के लिए स्वतंत्र पंजाब और अलग संविधान की मांग की गई थी। 1980 तक इस प्रस्ताव का समर्थन करने वाले सिखों की संख्या काफी ज्यादा हो गई थी।
जरनैल सिंह भिंडरावाले का उदय
जरनैल सिंह भिंडरावाले (Jarnail Singh Bhindranwale), शुरुआत में गुरुद्वारे में रागी हुआ करता था। भिंडरावाला आनंद साहिब प्रस्ताव का कट्टर समर्थक था और इसी के चलते आगे चलकर वह खालिस्तानी आतंकी बना। मशहूर सिख पत्रकार खुशवंत सिंह ने भिंडरावाले के बारे में एक बार कहा था कि वह हर सिख को 32 हिंदुओं की हत्या के लिए उकसाता था। उसका कहना था कि इससे सिखों की समस्या जल्दी और हमेशा के लिए हल हो जाएगी। उस समय भिंडरावाले का जिस किसी ने भी विरोध किया उसकी भिंडरावाले के समर्थक बड़ी बेरहमी से हत्या कर देते थे।
सितंबर 1981 में पंजाब केसरी के एडिटर लाला जगत नारायण की हत्या भी भिंडरावाले के विरुद्ध लिखने की वजह से कर दी गई थी। इस मामले में भिंडरावाले का नाम आया था। भिंडरावाले ने इस मामले में सरेंडर भी कर दिया था। लेकिन उसके खिलाफ कोई सबूत ना होने की वजह से उसे छोड़ दिया गया। 1982 में भिंडरावाले ने शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन शुरू किया जो कि जल्दी ही सशस्त्र आंदोलन में बदल गया। बाद में सुरक्षाबलों से बचने के लिए भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर में शरण ली, वह 2 साल तक वहीं रहा और मंदिर परिसर में बने अकाल तख्त पर उसका कब्जा था। इस दौरान सरकार ने उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की।
भारतीय सेना का हस्तक्षेप
भिंडरावाले को पकड़ने के लिए इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने सेना द्वारा तैयार किए गए स्नैच एंड ग्रैब ऑपरेशन (Snatch And Grab Operation) की मंजूरी दे दी थी। इस ऑपरेशन के लिए लगभग 200 कमांडो को ट्रेनिंग भी दे दी गई थी। लेकिन इस ऑपरेशन की वजह से आम लोगों को काफी नुकसान होने की संभावना थी। इसलिए इसे ऐन मौके पर रोक दिया गया था। इसी दौरान भिंडरावाले ने कांग्रेस के सांसदों और विधायकों को हत्या की धमकियां देनी शुरू कर दी थी। इसके साथ ही भिंडरावाले की अगली योजना पंजाब के गांवों से हिंदुओं की सामूहिक हत्या की थी। इस योजना की भनक इंदिरा गांधी सरकार को लग चुकी थी। इसके बाद इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब में सेना भेजने का फैसला किया।
ऑपरेशन ब्लू स्टार
अप्रैल 1984 में पूर्व मेजर जनरल शुबेग सिंह ने खालिस्तानी आतंकियों को सेना की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी थी। और स्वर्ण मंदिर को किले में तब्दील कर दिया था। इंदिरा सरकार ने स्वर्ण मंदिर को भिंडरावाले और उसके खालिस्तानी समर्थकों से मुक्त कराने के लिए सेना (Indian Army) बुलाकर अभियान शुरू किया। जिसे ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) का नाम दिया गया। 1 से 3 जून 1984 के बीच अमृतसर में कर्फ्यू लगा दिया गया। रेल सड़क और हवाई आवागमन पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिए गए थे। स्वर्ण मंदिर की पानी और बिजली की सप्लाई बंद कर दी गई थी। मंदिर के एंट्री और एग्जिट को भी सील कर दिया गया था। सीआरपीएफ (CRPF) अमृतसर की सड़कों पर गश्त कर रही थी। 5 जून 1984 में रात करीब 10:30 बजे ऑपरेशन ब्लू स्टार का पहला चरण शुरू हुआ। स्वर्ण मंदिर (Golden Temple In Amaritsar) के अंदर की इमारतों पर सेना ने हमला शुरू किया। खालिस्तानी आतंकियों ने भी इसका भरपूर जवाब सेना पर बेशुमार गोलीबारी करके दिया।
अमृतसर के अलावा पंजाब के बाकी हिस्सों में सेना गुरुद्वारों और गांव से संदिग्ध खालिस्तानी आतंकियों (Khalistani Terrorism in India) को पकड़ रही थी। 6 जून को जनरल केएस बरार ने स्थिति को काबू में करने के लिए सरकार से टैंक की मांग की। टैंक द्वारा हुई गोलाबारी से स्वर्ण मंदिर की इमारत अकाल तख्त को भारी नुकसान पहुंचा। कुछ घंटों बाद भिंडरावाले और उसके कमांडरों के शव बरामद कर लिए गए। 7 जून को भारतीय सेना ने मंदिर परिसर पर पूरा कंट्रोल कर लिया था। 10 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया था। इस ऑपरेशन में सेना के 83 जवान शहीद हुए और 29 घायल हुए। 493 आतंकवादी और आम नागरिक मारे गए। लेकिन कई सिख संगठनों के अनुसार इसमें लगभग 3000 लोगों की जानें गई थी।
ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म होने के बाद की स्थिति क्या थी?
ऑपरेशन ब्लू स्टार में निर्दोष लोगों की मौत होने के विरोध में कांग्रेस से कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amarinder Singh) और अन्य सिख नेताओं ने इस्तीफा दे दिया था। खुशवंत सिंह और अन्य प्रमुख लेखकों ने अपने सरकारी पुरस्कार लौटा दिए थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) के चार महीने बाद 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी को उनके ही सिख बॉडीगार्ड ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों में लगभग 8000 से ज्यादा सिखों को मार दिया गया। सबसे ज्यादा दंगे दिल्ली में हुए थे।
कनाडा के खालिस्तानियों ने 23 जून 1985 को एयर इंडिया (Air India) के विमान को बम से उड़ा दिया था, जिसमें 329 लोगों की मौत हो गई थी। इसे भिंडरावाले की मौत का बदला करार दिया गया था। बब्बर खालसा संगठन (Babbar Khalsa Organisation) ने इसकी जिम्मेदारी ली थी। 10 अगस्त 1986 को ऑपरेशन ब्लू स्टार के लीडर पूर्व सेना प्रमुख जनरल ए. एस. वैद्य की पुणे में गोली मारकर हत्या कर दी गई। खालिस्तान कमांडो फोर्स ने इस हत्या की जिम्मेदारी ली। 31 अगस्त 1995 में पंजाब के सीएम बेअंत सिंह (Punjab CM Beant Singh) की कार के पास मानव बम ने खुद को उड़ा लिया था। जिससे उनकी मौत हो गई। बेअंत सिंह को पंजाब से आतंकवाद के खात्मे का श्रेय दिया जाता था।
क्या है सिख अलगाववादियों की मांग?
सिख अलगाववादियों (Sikh Sepetarists) की हमेशा एक ही मांग रही है। वह यह है कि पंजाब को अलग राष्ट्र खालिस्तान (Khalistan) बना दिया जाए। खालिस्तान का मतलब होता है, खालसे का स्थान। अलगाववादी खालिस्तान में पंजाब ,चंडीगढ़ और हरियाणा हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और उत्तराखंड के कुछ इलाकों को भी शामिल करना चाहते हैं।