MSP on Kharif crops : किसानों के साथ मोदी सरकार के धोखे का नया स्टाइल

MSP on Kharif crops : भारत खाद्य तेल और दालों जैसी वस्तुओं के लिए आयात पर निर्भर है। ऐसे में केंद्र सरकार को देश के किसानों को ज्यादा कीमत देने की जरूरत है। ताकि आयात पर निर्भरता को कम किया जा सके।

Update: 2022-06-11 03:39 GMT

MSP on Kharif crops : किसानों के साथ मोदी सरकार के धोखे का नया स्टाइल


रवींद्र गोयल का विश्लेषण

MSP on Kharif crops : कुछ दिनों पहले केंद्र सरकार ने 14 खरीफ फसलों ( Kharif Crops ) पर एमएसपी ( MSP ) की घोषणा की है। दावा किया जा रहा है कि एमएसपी में बढ़ोतरी अखिल भारतीय औसत उत्पादन लागत के ऊपर यानि कम से कम 50 प्रतिशत अधिक है, लेकिन हकीकत कुछ और है। इस मामले के जानकारों का कहना है कि सरकारी दावे सच के करीब नहीं हैं। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के बावजूद जमीन की कीमत और पूंजी लागत को किसानों की कुल लागत में केंद्र सरकार ने शामिल नहीं किया है। खुदरा और थोक महंगाई की तुलना में एमएसपी में बढ़ोतरी बहुत कम है।

सरकार ने 14 खरीफ फसलों ( तिलहन, दलहन, गल्ला और कपास ) के लिए इस साल के समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी है। सरकारी दावे की कहें तो सल 2022-23 के लिए खरीफ फसलों ( Kharif crops ) की एमएसपी ( MSp ) में बढ़ोत्तरी अखिल भारतीय औसत उत्पादन लागत के ऊपर कम से कम 50 प्रतिशत लाभ सुनिश्चित करती है। सरकारी दावा है कि बाजरा, तूर, उड़द, सूरजमुखी बीज, सोयाबीन एवं मूंगफली की एमएसपी में लाभ की मात्रा उत्पादन लागत से 50 प्रतिशत से भी अधिक है। एमएसपी में बढ़ोतरी क्रमशः 85%, 60%, 59%, 56%, 53% एवं 51% है।

MSP बढ़ोतरी में इन बातों का रखा गया ध्यान

केंद्र सरकार ( Modi government ) ने यह भी दावा किया है की इस तखमीने में "सभी भुगतान की गई लागतें जैसे मानव श्रम, बैल श्रम/मशीन श्रम, पट्टे की भूमि के लिए दिया गया किराया, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई प्रभार जैसे भौतिक साधनों के उपयोग पर व्यय, उपकरणों और फार्म भवनों का मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, पंप सैटों आदि के इस्तेमाल के लिए डीजल/बिजली, विविध व्यय और पारिवारिक श्रम का आरोपित मूल्य शामिल हैं।

जमीन और पूंजी लागत पर कौन फरमाएगा गौर

यहां यह स्पष्ट होना चाहिए कि सरकारी तखमीने में किसान की अपनी खुद की जमीन और पूंजी पर अनुमानित लागत ( जिनको शमिल करने का सुझाव स्वामीनाथन आयोग ने दिया था और किसानों की मांग भी रही है) शामिल नहीं है।

सरकारी दावे, सिर्फ झूठ का पुलिंदा

इतने सारे दावों के बावजूद इस साल खरीफ फसलों की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 4.44 फीसदी से 8.86 फीसदी के बीच हुई हैं। सोयाबीन में सबसे ज्यादा 8.86 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। बाजरे में सबसे कम 4.44 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक धान के एमएसपी में 5.15 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है।

खरीफ फसलों के मूल्य में बढ़ोतरी का हिसाब और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) द्वारा घोषित कीमतों की सच्चाई का पड़ताल करने के बाद यह साफ हो गया कि सरकारी दावे केवल एक झूठ का पुलिंदा भर है।

खुदरा और थोक मूल्य पहले की तुलना में काफी ज्यादा

आज खुदरा कीमतें और थोक कीमतें पिछले कई सालों के मुकाबले काफी ऊंची हैं। खुदरा कीमतें अप्रैल महीने में पिछले साल इसी समय के मुकाबले 7.79 फीसदी के हिसाब से बढ़ी हैं। यह दर पिछले 7 साल में सबसे ऊंची है। थोक महंगाई तो अप्रैल में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक खुदरा महंगाई के मुकाबले और भी तेजी से बढ़ी है। थोक महंगाई पिछले साल के मुकाबले 15 फीसदी ऊपर है। यह पिछले 17 साल में सबसे ऊंची दर पर है। केंद्रीय रिज़र्व बैंक ने भी इस साल महंगाई 7.6 फीसदी होने का अनुमान रखा है।

इसके अलावा सिटी बैंक के अर्थशास्त्री श्री समीरण चक्रबर्ती का कहना है कि उन्होंने कृषि उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली विभिन्न सामानों के लिए एक लागत सूचकांक का निर्माण किया है, जिसमें उर्वरक, कीटनाशक, मशीनरी, ट्रैक्टर, बिजली और डीजल जैसे आइटम शामिल हैं। इस सूचकांक के अनुसार कृषि उत्पादन की लागत पिछले छह महीनों में करीब 24 फीसदी और पिछले 12 महीनों में 20 फीसदी बढ़ी है। कृषि लागत में लगने वाली मेहनत का भी मूल्य होता है। मेहनत की लागत का हिस्सा सामान की लागत के बराबर ही होता है। पिछले साल कृषि में मजदूरी में बहुत कम बढ़त हुई है। अर्थात बहुत कम ग्रामीण मजदूरी में बढोत्तरी के बावजूद खेती के उत्पादन की लागत में 10% से अधिक औसत बढ़त का अनुमान है।

सरकार कर रही है किसानों के साथ भेदभाव 

सच तो यह है कि बढ़ी हुई लागत की भरपाई के लिए खरीफ की फसलों की एमएसपी ( MSP ) को कम से कम 10 प्रतिशत बढ़ाना ही चाहिए था। इसके उलट सरकार ने केवल 4.44 फीसदी से 8.86 फीसदी के बीच खरीफ ( Kharif Crops ) की कीमतें बढाकर किसानों यानि देश की आधी आबादी के साथ धोखा किया है। सरकारी दिवालियापन और विदेशपरस्त नीति की पोल खोलते हुए किसान नेता अशोक धावले ने सही कहा है कि ऐसा उस दौर में किया गया है जब खाद्य वस्तुओं की वैश्विक कीमतें बहुत अधिक हो गई हैं। भारत खाद्य तेल और दालों जैसी वस्तुओं के लिए आयात पर निर्भर है। ऐसे में अपने देश के किसानों को ज्यादा कीमत देने के बजाय सरकार विकसित देशों के किसानों को आयात के माध्यम से बहुत अधिक कीमत का भुगतान किया जायेगा। इसके बदले भारत सरकार को पने किसानों को लाभकारी मूल्य देना चाहिए। ताकि भारत की आयात निर्भरता को कम किया जा सके। ऐसा न कर सरकार उनके साथ भेदभाव कर रही है।


रवींद्र गोयल दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके हैं।

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