भारत दुनिया का एकमात्र तथाकथित लोकतंत्रिक देश जहां अपराधी, आतंकवादी, सरकार, मीडिया और पुलिस का एक ही चेहरा

जब देश की बाग़डोर अपराधियों के हाथ में आती है, तब देश न्यू इंडिया बन जाता है। वैसे भी महिलाओं के मामले में योगी और उनकी सरकार और पुलिस का रवैया कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में दूसरे बलात्कार के मामलों में पूरी तरह स्पष्ट हो चुका था...

Update: 2020-10-02 09:11 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

दुनियाभर में दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी सरकारें देश पर अपना घोषित-अघोषित एजेंडा थोपती हैं, देश में एक नए किस्म का उन्माद पैदा करती हैं, विरोधियों का दमन करती हैं, ऐसा इस दौर में दुनिया के बहुत देशों में सरकारें कर रही हैं। पर, भारत दुनिया का अकेला तथाकथित लोकतंत्र है, जहां इन सबके साथ ही अपराधी, आतंकवादी, प्रशासन, सरकार, मीडिया और पुलिस का चेहरा एक ही हो गया है। अब किसी के चहरे पर नकाब नहीं है और यह पता करना कठिन है कि इनमें से सबसे दुर्दांत या खतरनाक कौन है।

पुलिस जिसके साथ अन्याय होता है उसी को धमकाती है, उन्ही का एनकाउंटर करती है, उन्ही को जेल में बंद करती है और अपराधियों और आतंकवादियों को बचाती है, उनकी रक्षा करती है। फिर प्रशासन और सरकारें उन अपराधी पुलिस वालों को बचाती हैं और उन्हें इनाम भी देती हैं। पुलिस अपराधियों और आतंकवादियों को साफ़ बचाकर प्रशासन और सरकार के सहयोग से जनता के उठते विरोध के स्वर को कभी रास्ता रोककर, कभी महामारी का नाम लेकर, कभी जेल में बंद कर, कभी चरित्र हनन कर, कभी गोलियां चलाकर तो कभी चौराहों पर पोस्टर लगाकर दबाती है।

फिर मीडिया का काम वास्तविक खबरें दबाना, फ़ालतू खबरें महीनों चलाकर जनता का ध्यान भटकाना या फिर वास्तविक पीड़ितों का चरित्र हनन करना और अपराधियों और आतंकवादियों को सच्चे राष्ट्रभक्त घोषित करना रह जाता है। भारतीय मीडिया इस काम में निपुण है, वह समाचार कभी नहीं दिखाती बल्कि सरकार की तरह आपदा में अवसर तलाशती है और कचरे को सुनहरे पैकिंग में डाल कर जनता को सुनहरा भविष्य दिखाती है। इस कट्टर दक्षिणपंथी सरकार को मीडिया का अपराध और भौंडापन अभिव्यक्ति की आजादी दिखती है और विरोध के स्वर में यह आजादी नदारद हो जाती है और फिर देशद्रोह, षड्यंत्र, टुकडे-टुकडे गैंग का सदस्य और अर्बन नक्सल नजर आने लगता है।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इस सरकार को और बीजेपी वाली मानसिकता वाले सभी लोगों को पूरा देश एक बड़ा से कैनवास नजर आता है, जिसपर हरेक समय नए नारे लिखे जाते हैं और इन्ही नारों से न्यू इंडिया की बुनियाद रखी जा रही है। एक समय इस कैनवास पर बेटी बचाओ, बेटी पढाओं भी लिखा गया था। नारा तो सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया और धरातल पर महिलाओं पर अत्याचार और अपराध में मामले पहले से अधिक तेज होते चले गए। समाचार चैनलों पर सरकारी नुमाइंदे बलात्कार को छोटी घटना, विदेशों में भारत की छवि खराब करने की साजिश और दुर्घटना बताते रहे।

देश से भी अपने आप को बड़ा समझाने वाले कुछ लोग देश को गूढ़ ज्ञान देने लगे, भारत में रेप महीन होता बल्कि इंडिया में होता है। बीजेपी के एक प्रवक्ता किसी समाचार चैनल पर बैठकर रात में परिवारवालों को घर में बंद कर पुलिस द्वारा लाश जलाने की घटना को दुर्घटना बता रहे थे। यह केवल उस प्रवक्ता की वीभत्स और कुत्सित सोच नहीं है बल्कि पूरी पार्टी और सरकार की ही मानसिकता है।

पूरी दुनिया में महिलाओं की संसद में संख्या बढ़ने पर महिलाओं की सुरक्षा बढ़ती है और उनका सामाजिक महत्व बढ़ता है। हमारे देश में इसका ठीक उल्टा है, यहां महिला सांसदों या विधायकों की संख्या बढ़ने के साथ ही महिलाओं का स्तर और उनकी सुरक्षा रसातल में पहुंचने लगती है। महिलाओं से सम्बंधित अपराध या दूसरी समस्याओं पर सरकारी तौर पर लीपापोती करने में ये सभी सांसद महिलायें सबसे आगे हैं। बीजेपी की सभी महिला सांसदों के लिए पूरे देश की एक ही समस्या है, राहुल गांधी।

सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम यूपीएससी जिहाद की तो खूब चर्चा हो गई, यह भी सभी समझ गए कि सरकार इस घिनौने कार्यक्रम का समर्थन कर रही थी। दूसरी तरफ वास्तविकता यह है कि सरकार के तलवे चाटने के क्रम में प्रशासनिक सेवा अधिकारी, पुलिस अधिकारी, जांच एजेंसियां और मीडिया जिस तरह से पूरे समाज के साथ जिहाद कर रही है, उसे यदि एकत्रित किया जाए तो फिर महाभारत से भी मोटा ग्रन्थ तैयार हो जाएगा, या फिर सालों-साल का टीवी-धारावाहिक तैयार किया जा सकता है।

प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जब देश की बाग़डोर अपराधियों के हाथ में आती है, तब देश न्यू इंडिया बन जाता है। वैसे भी महिलाओं के मामले में योगी और उनकी सरकार और पुलिस का रवैया कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में दूसरे बलात्कार के मामलों में पूरी तरह स्पष्ट हो चुका था। हरेक मामले में जब तक बहुत दवाव नहीं पड़ा, तब तक योगी और उनका प्रशासन बलात्कारियों को संत घोषित करता रहा और पीड़ितों को धमकाता रहा, उन्हें जेल में बंद करता रहा।

प्रधानमंत्री भी मन की बात हरेक महीने करते हैं, चुनावी रैलियाँ भी सबसे अधिक करते हैं, आजकल वर्चुअल भाषण भी लगभग हरेक दिन दे रहे हैं, पर आजतक महिला सुरक्षा और लैंगिक समानता पर कभी कुछ नहीं कहा। रोटी बनाते समय महिलाओं का हाथ जलता है, और वे इसे पति को बताने को उतावली रहती हैं जैसे जुमले पधानमंत्री महिला जन-प्रतिनिधियों के बीच बताते हैं। प्रधानमंत्री के महिला सुरक्षा से सम्बंधित प्रवचन तीन तलाक से शुरू होते हैं और इसी पर ख़त्म हो जाते हैं। उनकी नजर में देश की महिलाओं की बस यही समस्या थी।

ऐसे मामलों में सरकारों के साथ न्यायालय भी खड़े दिखते हैं। न्यायालय भी बहुत कम मामलों में न्याय करते दीखते हैं, अधिकतर मामलों में तो सालों तक मुक़दमा चलने के बाद, हरेक गवाह के मर जाने के बाद न्यायालय बलात्कारियों को बरी कर देता है। बलात्कारी जेल जाते भी हैं तब भी बेल पर कुछ दिनों या महीनों में ही बाहर आ जाते हैं, और सबूत मिटाने के लिए कुछ हत्याएं करते हैं, कुछ लोगों को धमकाते हैं और फिर आजाद हो जाते हैं। हाथरस के मामले में भी, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्वतः-संज्ञान तो लिया है, पर क्या उस लड़की को कभी वापस कर पायेगा, जिसके मामले में 14 सितम्बर से प्रशासन और पुलिस लगातार लीपापोती करने में संलग्न था? क्या उनमें से किसी को सजा होगी जिन्होंने ऍफ़आईआर नहीं दर्ज किया, क्या उन प्रशासनिक अधिकारियों को कोई सजा होगी जो उस समय परिवार की गुहार के बदले अभियुक्तों की गुहार सुनाने में व्यस्त थे, क्या डीएम साहब को सजा होगी जो पीड़ित परिवार को लगातार धमका रहे हैं?

क्या उन मंत्रियों को कोई सजा होगी जो इस मामले को अपनी तरीके से उलझा रहे हैं, क्या उन बीजेपी प्रवक्ताओं को सजा होगी जो इसे दुर्घटना बता रहे हैं, छोटी घटना बता रहे हैं, क्या उन पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों को सजा मिलेगी जिन्होंने घर वालों को लाश देखने तक नहीं दिया और परिवार के विरोध के बाद भी रात में ही कुछ जलाकर पूरे सबूत को नष्ट कर दिया, क्या उन्हें सजा मिलेगी जिन्होंने सबूत मिटाकर यह घोषित कर दिया कि बलात्कार हुआ ही नहीं था, क्या उन्हें सजा मिलेगी जो दिनभर टीवी चैनलों पर बैठकर यह बताते रहे कि पीडिता की कोई हड्डी नहीं टूटी थी और क्या मुख्यमंत्री को सजा मिलेगी जिन्होंने पीडिता के मरने का इन्तजार किया और फिर परिवार को मदद के तौर पर रिश्वत दे दी ताकि वे लोग अपना मुँह बंद रखें? क्या गुमराह करने वाले मीडिया रिपोर्टिंग पर कोई सजा दी जायेगी?

यदि न्यायालयों को लगता है कि केवल पुलिस जिसे गुनाहगार बता कर पकड़ लाती है, उन्हें सजा देने का नाम ही न्याय है, तो फिर न्यू इंडिया की महिलायें कभी सुरक्षित नहीं हो सकतीं। इसका उदाहरण बार-बार सामने आता है - एक बलात्कार की चर्चा थमती भी नहीं है और इसी बीच में अनगिनत नए मामले सामने आ जाते हैं, और पुलिस, सरकार और प्रशासन अपनी परंपरा के अनुरूप अपराधियों को बचाने में और पीड़ितों को गुनाहगार साबित करने में संलग्न हो जाती है। ऐसा ही बार-बार होता रहेगा और सरकार, प्रशासन, पुलिस, जांच एजेसियाँ, आतंकवादी और अपराधी का चेहरा, चाल और चरित्र एक जैसा ही नजर आता रहेगा और सभी मिलकर समाज के विरुद्ध जेहाद करते रहेंगे।

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