Tarun Ke Swapn: सुभाष चंद्र बोस और तरुण के स्वप्न
Tarun Ke Swapn: आज के समय में जबकि हमारे देश की युवा शक्ति को सत्तावादी राजनीति करने वाले लोगों, राजनीतिक दलों और उनके आनुषंगिक संगठनों के द्वारा अपनी तुच्छ महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए विभाजन कारी संकीर्ण एजेंडे पर लगा दिया गया है ऐसे में सुभाष चंद्र बोस जैसे हमारे राष्ट्र निर्माण के महान नायकों में एक तरुण का स्वप्न किस तरह से काम करता था वह बहुत प्रासंगिक हो जाता है |
राकेश कुमार गुप्त की टिप्पणी
Tarun Ke Swapn: आज के समय में जबकि हमारे देश की युवा शक्ति को सत्तावादी राजनीति करने वाले लोगों, राजनीतिक दलों और उनके आनुषंगिक संगठनों के द्वारा अपनी तुच्छ महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए विभाजन कारी संकीर्ण एजेंडे पर लगा दिया गया है ऐसे में सुभाष चंद्र बोस जैसे हमारे राष्ट्र निर्माण के महान नायकों में एक तरुण का स्वप्न किस तरह से काम करता था वह बहुत प्रासंगिक हो जाता है |
आज ही के दिन यानी कि 23 जनवरी सन 1897 को जानकीनाथ बोस एवं श्रीमती प्रभावती को एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिनको दुनिया सुभाष चंद्र बोस के रूप में जानती है | जानकीनाथ बोस कटक शहर के प्रसिद्ध वकील थे सुभाष चंद्र बोस का जन्म भी कटक में ही हुआ था जो कि अब उड़ीसा में है। उस समय कटक बंगाल प्रांत का हिस्सा हुआ करता था। श्रीमती प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल 14 संतानों- जिनमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे सुभाष चंद्र बोस उनकी नौवीं संतान और पांचवें बेटे थे। सुभाष चंद्र बोस यानी नेताजी की प्रारंभिक शिक्षा कटक में, तत्पश्चात कोलकाता के प्रेसिडेंसी कालेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई | उनके इंडियन सिविल सर्विसेज में चयन से लेकर -उसको छोड़ने, कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करने और सार्वजनिक जीवन के बारे में काफी कुछ लोग जानते ही हैं।
एक बात बहुत उल्लेखनीय है कि सुभाष चंद्र बोस देश के उन चंद नेताओं में से थे जो उस वक्त देश के युवाओं के हृदय के सम्राट बने हुए थे। ऐसे सुभाष चंद्र बोस के मन में एक तरुण के क्या कौन से स्वप्न थे इसको जानना बेहद दिलचस्प होगा। स्वयं सुभाष चंद्र बोस ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने कुछ लेखों के आधार पर को संकलित करके 'तरुण के स्वप्न' नामक पुस्तक की रचना की।
उनके मत में एक तरुण का स्वप्न क्या है यह जानना बड़ा दिलचस्प है | वे कहते हैं कि एक उद्देश्य की सिद्धि के लिए, एक संदेश के प्रचार के लिए हमने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया है | सूर्य यदि संसार को आलोक से जगमगाने के लिए उदित होता है, सुगंध फैलने के लिए यदि उपवन में फूल खिलते हैं अमृतमय जलदान के लिए यदि नदी समुद्र की ओर दौड़ी जाती है तो हम भी का पूर्ण आनंद और उल्लास लेकर एक सत्य की प्रतिष्ठा के लिए संसार में आए हैं | वे कहते हैं कि हमें उस गूढ़ उद्देश्य का आविष्कार करना होगा जिससे हमारा व्यर्थ जीवन सार्थक बने, ध्यान, चिंता और कर्ममय जीवन की अभिज्ञता द्वारा हमें उस का आविष्कार करना ही होगा ।
हम यौवन की बाढ़ में लीन होते जा रहे हैं, संसार को आनंद का आस्वाद देने के लिए, क्योंकि हम आनंद स्वरूप हैं | आनंद के मूर्तिमान प्रतीक की तरह हम संसार में विचरण करेंगे | अपने आनंद में हम हसेंगे साथ ही दुनिया को भी दीवाना बना देंगे | हम जिस तरफ घूम पड़ेंगे निरानंद का अंधकार लजाकर भाग जाएगा | हमारे जीवनदायी स्पर्श के प्रभाव से रोग, शोक, ताप भाग खड़े होंगे।
इस दुखपूर्ण, वेदना-जर्जर नरकलोक को हम आनंद सागर से ओतप्रोत कर देंगे।
वे सत्यम शिवम सुंदरम को इस धरा पर चरितार्थ करने की बात करते हैं वे कहते हैं कि हम आशा, उत्साह, त्याग, ओज लेकर आए हैं| हम सृष्टि करने आए हैं क्योंकि सृष्टि में ही आनंद है | बुद्धि, तन, मन, प्राण देकर हम सृष्टि करेंगे | हमारे अंदर जो कुछ सत्य है, सुंदर है, शिव है, उसे अपने सृष्ट पदार्थ में पूर्ण रूप से झलका देंगे | आत्मदान में जो आनंद है, उस आनंद से हम विभोर होंगे | उस आनंद का आस्वाद पाकर पृथ्वी भी धन्य होगी |
अनंत आशा, असीम उत्साह, अपरिमेय तेज और अदम्य साहस लेकर हम आए हैं, तभी तो हमारा जीवन स्रोत कभी रुंध नहीं सकता | अविश्वास और निराशा के पर्वत सामने अड़ जाएं, संपूर्ण मानव जाति की शक्ति प्रतिकूल होकर आक्रमण करें, तब भी हमारी आनंदमयी गति चिरकाल तक अक्षुण्ण रहेगी |
आज के समय में जब धर्म के नाम पर युवाओं को भड़का कर तमाम तरह के प्रतिगामी शक्तियां गलत रास्ते पर ले जाने के लिए तत्पर हैं ऐसे में वे तरुण के धर्म की बात करते हैं | वे कहते हैं कि, "हमारा एक विशेष धर्म है, हम उसी धर्म का अनुसरण करते हैं | जो नवीन हैं, जो सरस है, इसका स्वाद दुनिया ने आज तक नहीं चखा, हम उसी के उपासक हैं | हम पुरातन में नवीन का, जड़ में चेतन का, प्रौढ़ में यौवन का बंधन में असीम का उदभाव करते हैं | हम इतिहास से प्राप्त पुरानी अभिज्ञता को हर समय, हर हालत में मानने को तैयार नहीं है | हम अनंत पथ के यात्री हैं, मगर अपरिचित पथ से ही हमें प्रेम है, अज्ञात भविष्य ही हमारे लिए प्रियतर है |" इस प्रकार वे सनातन धर्म के नाम पर चल रहे तमाम सारे अंधविश्वास और विभेद कारी सोच और रास्तों पर बहुत जबरदस्त प्रहार करते हुए दिखाई देते हैं |
वे कहते हैं कि, "हम चाहते हैं, 'The right to make blunders', हम भूल करने का अधिकार चाहते हैं और इसीलिए हमारे स्वभाव के प्रति सब की सहानुभूति नहीं है बहुतों की नजर में हम संसारत्यक्त और भाग्यहीन हैं |
इसी से हमें आनंद है, यहीं हम गर्वीले हैं | क्योंकि यौवन हमेशा हर जगह संसार से अलग और लक्ष्मी से विलग है | हम अतृप्त आकांक्षा के उन्मादना से दौड़ते हैं | समझदारों के उपदेश सुनने की हमें फुर्सत भी नहीं है | भूल करें, भ्रम में पड़े, गिर पड़े, तो भी हम उत्साह से वंचित न होंगे, पीछे कदम न रखेंगे | हमारी गति अभिराम है, वह कभी नहीं थमती |"
वे सिर्फ अपने ही देश की बात नहीं करते बल्कि एक विश्व भावना से ओतप्रोत होकर विश्व भर के युवाओं की ओर से अपनी बात रखते हैं | वे युवाओं को इतिहास का रचयिता मानते हैं | वे कहते हैं कि, "हम देश देश में स्वतंत्रता के इतिहास की रचना करते रहते हैं | हम शांति का जल छिड़कने यहां नहीं आए हैं, विवाद छेड़ने, संग्राम का संवाद देने, प्रलय की सूचना देने, हम आए हैं, आते हैं | जहां बंधन है, जहां अहमन्यता है, कुसंस्कार और संकीर्णता है, वहीँ हम खड्गहस्त उपस्थित हैं | हमारा एकमात्र काम है मुक्ति पथ को सर्वदा कांटों से रहित रखना क्योंकि मुक्ति सेना बिना बाधा आती जाती रहे |"
वे बहुत जबरदस्त तरीके से स्वतंत्रता और स्वाधीनता की वकालत करते हुए दिखाई देते हैं | वे संपूर्ण मनुष्यता के विकास पर जोर देते हैं और किसी भी प्रकार के कट्टरता के हामी नहीं है | वे कहते हैं कि, "हमारे लिए मनुष्य जीवन एक अखंड सत्य है | फिलहाल हम जो स्वाधीनता चाहते हैं, उस स्वाधीनता के बिना जीवन धारण करना एक विडंबना है | जिसकी प्राप्ति के लिए हमने युग युग में हंसते-हंसते अपना खून दिया है वह सर्वतोमुखी है | जीवन के हर एक क्षेत्र में हर तरफ मुक्तिवाणी का प्रचार करने हम आए हैं | चाहे समाज नीति हो, अर्थनीति हो, राष्ट्रनीति हो या धर्म नीति हो, जीवन के प्रत्येक भाग में हम सत्य के प्रकाश में आनंद का उच्छ्वास देखना चाहते हैं, हम उदारता के मौलिक सिद्धांतों की स्थापना चाहते हैं |"
वे कहते हैं कि अनादि काल से हम मुक्ति का संदेश सुना रहे हैं, स्वतंत्रता का गाना गा रहे हैं | बचपन से ही मुक्ति की आकांक्षा हमारी रग-रग में बहने लगती है | पैदा होते ही हम जो रो उठते हैं, हमारा वह रोना पार्थिव बंधनों के प्रति विद्रोह प्रदर्शित करने के लिए है | बचपन में रोना ही हमारा बल रहता है, किंतु यौवन के द्वार पर पहुंचते ही हमें भुजाओं और बुद्धि की सहायता मिलती है | इन भुजाओं और बुद्धि की सहायता से हमने क्या-क्या नहीं किया ? हर देश के इतिहास के प्रत्येक पृष्ठ पर पर हमारी कीर्ति ज्वलंत अक्षरों में लिखी हुई है | हमारी सहायता से सम्राट सिंहासन पर बैठे और हमारे संकेत से सभय सिंहासन छोड़ कर भाग खड़े हुए | जिस तरह हमने एक तरफ प्रेम के आंसुओं से ताजमहल का निर्माण किया है, उसी तरह दूसरी तरफ हमने अपने हृदय के रक्त से पृथ्वी को रंजीत किया है | हमारी संयुक्त शक्ति लेकर समाज, राष्ट्र, साहित्य, कला ,विज्ञान, युग युग में, देश देश में उन्नत हुआ है | फिर हमने जब कराल मूर्ति धारण कर तांडव नृत्य आरंभ किया है उसके एक-एक पद विक्षेप से कितने साम्राज्य धूल में मिल गए हैं |
"इतने दिन बाद हमने अपनी शक्ति पहचानी है अपना धर्म जाना है | अब कौन हमारा शासन कर सकता है ? कौन हमारा शोषण कर सकता है ? नवजागरण के युग में सबसे बड़ी बात, सबसे बड़ी आशा तरुणों का आत्म प्रतिष्ठा लाभ है | इसी से तो जीवन के हर क्षेत्र में यौवन का रक्तिम आभार दिखलाई पड़ेगा | यह तरुणों का आंदोलन जितना सर्वतो मुखी है, उतना ही विश्वव्यापी है | यह किस दिव्यलोक से पृथ्वी को उदभाषित करेंगे कौन कह सकता है ? हे युवा हृदयों ! उठो ! वह देखो उषा किरणें छिटक रही है |"