Vir Das 2 india controversy: वीर दास की कविता से उठे चुभते सवाल से घायल मोदी सरकार व उनके सिपहसलार

Vir Das 2 india controversy: वीर दास की कविता को लेकर विवादं गहराता जा रहा है। एक बड़ी संख्या कविता को सरकार को कठघरे में खडे़ करने के रूप में देखती है। जिनका मानना है कि कविता के बहाने उठे सवालों का सरकार को जवाब देना चाहिए। इन सवालों पर बहस होना लोकतांत्रिक देश में स्वस्थ परंपरा के रूप में लिया जाना चाहिए।

Update: 2021-11-19 11:40 GMT

जितेंद्र उपाध्याय का विश्लेषण

Vir Das 2 india controversy: वीर दास की कविता को लेकर विवादं गहराता जा रहा है। एक बड़ी संख्या कविता को सरकार को कठघरे में खडे़ करने के रूप में देखती है। जिनका मानना है कि कविता के बहाने उठे सवालों का सरकार को जवाब देना चाहिए। इन सवालों पर बहस होना लोकतांत्रिक देश में स्वस्थ परंपरा के रूप में लिया जाना चाहिए।

इसके इतर इस पूरे मामले को लेकर एक पक्ष और भी है, जो एक्टर और स्टैंडअप आर्टिस्ट वीर दास की अंग्रेजी कविता पर नाराजगी जता रहे हैं। देश की तमाम राजनैतिक पार्टियां और बुद्धिजीवी नाराजगी जताते हुए सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है।

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि कॉमेडियन वीर दास को प्रदेश में परफॉर्म करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि वीरदास की टिप्पणियों को लेकर उनके खिलाफ पुलिस में कई शिकायतें दर्ज कराई जा चुकी हैं। राहुल भी विदेश में भारत को बदनाम करते हैं। कपिल सिब्बल तथा अन्य कांग्रेसी नेता उनके समर्थक हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी विदेशी जमीन पर भारत को बदनाम करते है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख कमलनाथ भी ऐसा करते हैं। एक निजी समाचार चैनल के एंकर अमन चोपड़ा ने भी लाइव शो के दौरान वीर दास के कॉमेडी को सस्ता और फूहड़ बताते हुए उनके ही स्टाइल में कहा कि, मैं ऐसे भारत से आता हूं जहां छोटे-छोटे मसखरे थोड़े पैसे कमाने के लिए देश को गाली दे सकते हैं।

अब हम बात करते हैं वीरदास की कविताओं की लाइन पर। वह कहते हैं, मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां हमें पीएम से जुड़ी हर सूचना दी जाती है लेकिन हमें पीएमकेयर्स की कोई सूचना नहीं मिलती। कविता की यह लाइन मोदी सरकार को चुभना स्वाभाविक है। एक ऐसी सरकार जिसके प्रधानमंत्री जनता से सीधी बात तो करते हैं,लेकिन दूसरा पक्ष सामने नहीं होता है,बल्कि वह प्रसारण यंत्रों के सामने होता है। जहां वह सुन तो सकता है,पर अपनी बात नहीं कह सकता। सरकार की एजेंसियां अस्सी करोड़ लोगों को मुफत में अनाज देने का खुब प्रचार करती है, पर वे सारे सवालों का जवाब देने से कतराती जो उनके सेहत के लिए उपयुक्त नहीं होता। सौ करोड़ कोरोना डोज की प्रचार तो की जाती है, पर पीएमकेयर्स पर चर्चा नहीं की जाती है। वीरदास अपने कविता में कहते हैं, मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां हमें पीएम से जुड़ी हर सूचना दी जाती है लेकिन हमें पीएमकेयर्स की कोई सूचना नहीं मिलती। यह सवाल सरकार को भले ही नागवार लगे पर जिन्होंने इस फंड के लिए अपना हाथ बढ़ाया है,उनका जवाब मांगना अपराध नहीं है। वह आगे कहते हैं, मैं उस भारत से आता हूं, जहां जब हम हरे रंग (पाकिस्तान) से खेलते हैं तो हम नीले रंग (भारतीय क्रिकेट जर्सी) के हो जाते हैं और जब हम हरे रंग (पाकिस्तान) से हार जाते हैं तो हम अचानक नारंगी (भगवा) के हो जाते हैं। ये लाइन सांप्रदायिक राजनीति के पैरोकारों को चुभना स्वाभाविक है, पर यह सवाल तो लाजमी है।

वीर दास की कविता के कुछ प्रमुख अंश इस प्रकार हैं- मैं उस भारत से आता हूं, जहां बड़ी आबादी 30 साल से कम उम्र की है लेकिन हम 75 साल के नेताओं के 150 साल पुराने आइडिया सुनना बंद नहीं करते। ये सवाल युवाओं के देश में मंथन की बात करता है। इसे क्यों नहीं जायजा ठहराया जा सकता।

वीर दास अपनी कविता में कहते हैं, मैं किस भारत से आता हूं? मैं दो भारत से आता हूं वो भारत जिन्हें मैं अपने साथ मंच पर अभी लेकर आया हूं। मैं एक उस भारत से आता हूं, जहां बच्चे एक दूसरे का हाथ भी मास्क पहन कर पकड़ते हैं, फिर मैं उस भारत से आता हूं जहां नेता बिना मास्क पहने एक-दूसरे को मंच पर गले लगाते हैं। मैं उस भारत से आता हूं, जहां AQI 900 है लेकिन फिर भी हम रात में अपनी छतों पर लेटकर तारे देखते हैं। उनकी ये लाइने नेताओं को आइना दिखाता हुआ नजर आता है तो दूसरी लाइन वैज्ञानिकता के खिलाफ अंधभक्ति पर सवाल खड़ी करती है।

वे आगे कहते हैं,मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां हम दिन में औरतों की पूजा करते हैं और रात में उनका गैंगरेप करते हैं। मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम ट्विटर पर बॉलीवुड को लेकर अलग होने का दावा करते हैं, लेकिन थियेटर के अंधेरों में बॉलीवुड के लिए इकट्ठा जाते हैं। मैं एक ऐसे भारत से आता हूं, जहां हम कामुकता का मजाक उड़ाते हैं और तब तक ' हैं जब तक हम एक अरब लोगों तक नहीं पहुंच जाते। इनकी इस लाइनों में सरकार के नजर में वे भले हीे देशद्रोही नजर आते हैं। लेकिन पोंगापंथियों के विचार की अगुवाई करने वाले सत्ता के प्रतिनिधि इन सवालों को कैसंे खारिज कर सकते हैं। सही मायने में वीर दास के इस कविता की लाइनें असली सच्चाई से रूबरू करा रही है,जो आदर्श का चोला ओढे नेताओं के उपर से नकाब उतारती है।

वीर दास की कविता की पंक्तियां- इस पल की चाह है कि मैं अपने आप पर एक वीडियो बनाऊ, और मैं ऐसा नहीं करना चाहता क्योंकि मुझे याद दिलाया जाता है कि मैं एक ऐसे भारत से आता हूं, जहां पत्रकारिता मर चुकी है, क्योंकि अब आदमी फैंसी स्टूडियों में फैंसी कपड़े पहनते हैं और सड़क पर लैपटॉप लिए महिला पत्रकार सच्चाई बताती है।

वे कहते हैं, मैं उस भारत से आता हूं जहां हम इतनी जोर से हंसते हैं कि आप हमारी हंसी की खिलखिलाहट हमारे घर की दीवारों के बाहर तक सुन सकते हैं। और मैं उस भारत से भी आता हूं, जहां कॉमेडी क्लब की दीवारें तोड़ दी जाती हैं, जब उसके अंदर से हंसी की आवाज आती है। मैं उस भारत से आता हूं जहां के बुजुर्ग नेता अपने बाप के बारे में बात करना बंद नहीं करते और मैं उस भारत से आता हूं जहां के युवा नेता अपनी मां की सुनना बंद नहीं करते।

वे कविता में आगे सुनाते हैं, मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां औरतें साड़ी और स्नीकर पहनती हैं और इसके बाद भी उन्हें एक बुजुर्ग से सलाह लेनी पड़ती है, जिसने जीवन भर साड़ी नहीं पहनी। मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम शाकाहारी होने में गर्व महसूस करते हैं लेकिन उन्हीं किसानों को कुचल देते हैं, जो सब्जियां उगाते हैं। मैं उस भारत से आता हूं, जहां सैनिकों को हम पूरा समर्थन देते हैं तब तक, जब तक उनकी पेंशन प्लान पर बात ना आ जाए। अब ये लाइनेे किसी के लिए देशद्रोही हो सकता है,पर इन सवालों का जवाब दिए बिना सिरे से खारिज कर देना न्यायोचित नहीं होगा।

वे कहते हैं, मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम कभी भी समय से नहीं आ सकते चाहे कहीं भी जाएं, लेकिन कोविन वेबसाइट के मामले में जल्दी होते हैं। मैं उस भारत से आता हूं, जहां हमारे पास नौकर और ड्राइवर है लिकन फिर भी हम अमेरिका में अपना काम करने के लिए आते हैं। मैं उस भारत से आता हूं, जो चुप नहीं बैठेगा। मैं उस भारत से आता हूं, जो बोलेगा भी नहीं। मैं उस भारत से आता हूं, जो मुझे हमारी बुराइयों पर बात करने के लिए कोसेगा। मैं उस भारत से आता हूं, जहां लोग अपनी कमियों पर खुल कर बात करते हैं। मैं उस भारत से आता हूं जहां मुझे हर रोज पाकिस्तान जाने को कहा जाता हैं, और मैं उस भारत से आता हूं जहां पाकिस्तानी को हर दिन निमंत्रण दिया जाता है।

मैं एक ऐसे भारत से आता हूं जहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी और ज्यू है, और जब हम एकसाथ आसमान में देखते हैं तो बस एक चीज नजर आता है, वह है श्पेट्रोल के दामश्। आज मैं आप सब को छोड़कर भारत चला जाऊंगा। मैं किस भारत में लौटूंगा? दोनों भारत में जाऊंगा। मुझे किस भारत पर गर्व है? एक पर। किस भारत को मुझ पर गर्व है? दोनों में से किसी को नहीं।

बता दें कि वीर दास ने अपने कविता में दो तरह की भारत का जिक्र किया है। हास्य कलाकार ने अमेरिका के एक मंच पर सैंकड़ों की भीड़ के सामने कविता प्रस्तुत करते हुए वीडियो अपने यूट्यूब चैनल और इंस्टाग्राम पर भी शेयर किया। सोशल मीडिया पर यह विवादित कविता रातोंरात वायरल हो गया। लोग वीर दास को ट्रॉल करने लगे और उन्हें देशद्रोही बताने लगे। जबकि उनके सवालों जायज बता रहे हैं।

कॉमेडियन ने अपनी इस कविता में भारत की पत्रकारिता पर भी तीखा प्रहार किया। वीर दास ने लिखा कि, मैं एक ऐसे भारत से आता हूं, जहां पत्रकारिता मर चुकी है, क्योंकि अब आदमी फैंसी स्टूडियों में फैंसी कपड़े पहनते हैं और सड़क पर लैपटॉप लिए महिला पत्रकार सच्चाई बताती है।

वीर दास ने 15 नवंबर दिन सोमवार को छह मिनट का वीडियो अपलोड किया था। यह वीडियो वाशिंगटन डीसी के जॉन एफ कैनेडी सेंटर में उनके हालिया कार्यक्रम का हिस्सा है। इस पर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि कविताओं के बहाने उठे सवाल का जवाब लोग तो मांगेंगे ही।

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