गौतम अडानी समझ बैठे हैं खुद को भारत, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की चेतावनी 'राष्ट्रध्वज ओढ़कर देश को लूटने में लिप्त'

Gautam Adani : हिंडनबर्ग ने कहा है कि अडानी मूल प्रश्नों से ध्यान भटकाने के लिए राष्ट्रीयता का राग अलाप रहे हैं और भारत एक समृद्ध देश है, पर इसके भविष्य को अडानी जैसे अमीरों से ख़तरा है जो राष्ट्रध्वज ओढ़कर देश को लूटने में लिप्त हैं....

Update: 2023-01-31 09:54 GMT

Gautam Adani : 2.2 ट्रिलियन के सबसे बड़े कर्जदार पूंजीपति हैं अडानी, अगर वो देश छोड़कर भाग गए तो क्या होगा?

इंडिया और न्यू इंडिया दो हिस्सों में बंटे हमारे देश पर महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

We have two countries – India, where we live and New India, where poverty, unemployment and malnutrition do not exist. वर्ष 1978 में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनने से पांच महीने पहले एक इंटरव्यू में मार्गरेट थैचर ने ब्रिटेन की गरीबी के बारे में कहा था, अब देश में प्राथमिक स्तर पर गरीबी ख़त्म हो चुकी है, हम जिसे गरीबी कहते हैं वह लोगों के कारण है क्योंकि उन्हें पता नहीं है कि किस तरह पैसों का इस्तेमाल करना है, या फिर किस तरह खर्च करना है।

वर्ष 1996 में प्रधानमंत्री के पद से हटाने के 6 वर्षों बाद फिर एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, गरीबी आर्थिक नहीं है, बल्कि यह लोगों के व्यवहार से जुडी है। जाहिर है, उनके अनुसार गरीबी का सामाजिक या राजनीतिक नीतियों से कोई सम्बन्ध नहीं है, केवल व्यक्तित्व से जुडी है। थैचर ने प्रधानमंत्री रहते अमीरों के टैक्स की दर को कम किया, आम जनता को मिलाने वाली सरकारी सुविधाओं में कटौती की, अपनी नीतियों से उद्योगों को तबाह कर दिया और मजदूर संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया। पूरी दुनिया, विशेष तौर पर दक्षिणपंथी, निरंकुश और पूंजीवाद समर्थक थैचर की इन आर्थिक नीतियों की कायल है, और इसे थैचरोनोमिक्स का नाम दिया है।

भले ही यह ब्रिटेन की बात हो, पर आज भारत समेत लगभग पूरी दुनिया इन्हीं आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर चल रही है। इन नीतियों से गरीबी बढी और आर्थिक असमानता भी। पूरे दुनिया में यही हो रहा है। मार्गरेट थैचर ने अपने आप को वर्किंग क्लास का मसीहा बताया था, पर उनकी नीतियों की सबसे अधिक मार इसी वर्ग पर पडी थी।

हमारे देश में भी प्रधानमंत्री, उनके मंत्रियों या फिर उनके समर्थकों के हिसाब से देश में गरीब नहीं हैं, बेरोजगार नहीं हैं, भूखे नहीं हैं, कोई आर्थिक असमानता नहीं है, कोई शोषित नहीं है। दरअसल हम दो देशों में बाँट गए हैं – एक इंडिया है जहां हमलोग रहते हैं और बेरोजगारी, भूख, गरीबी, शोषण और प्रताड़ना झेलते हैं। दूसरा प्रधानमंत्री के सपनों का न्यू इंडिया है, जहां कोई भी समस्या नहीं है, सब केवल अमृत पीते हैं, कोई गरीब नहीं है, बेरोजगार नहीं है, भूखा नहीं है।

इंडिया का किसान बदहाल है, पर न्यू इंडिया का किसान आबाद है। इंडिया को अपनी विरासत, विविधता और इतिहास पर गर्व है, पर न्यू इंडिया में इन सबको नया नाम देने की होड़ लगी है। न्यू इंडिया के मुग़ल गार्डन को अमृत उद्यान कहा जा रहा है – अब वहां फूलों से अमृत बरसने लगे हैं और फूलों की खुशबू सौ-गुना से अधिक बढ़ गयी है। सत्ता जितनी भी गरीबों के विकास की परियोजनाओं पर अपनी पीठ लगातार थपथपाती है, उतनी की न्यू इंडिया के पूंजीपतियों को और अमीर और इंडिया के गरीबों को पहले से अधिक गरीब बना देती है।

गरीबी पर हमारे कट्टरपंथियों और बीजेपी समर्थकों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर विचार सीधा सा है – हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी 18 घंटे काम करते हैं, कभी छुट्टी नहीं लेते, फिर गरीबी कैसे हो सकती है – गरीबी की बातें करने वाले उनका अपमान करना चाहते हैं, उनकी अन्तरराष्ट्रीय छवि धूमिल करना चाहते हैं, यह बड़ी साजिश है, यह देश का अपमान है, यह देश की जनता का अपमान है। सत्ता भी भारत की गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, पर्यावरण विनाश, सामाजिक असमानता, धर्मान्धता और मौलिक अधिकारों से जुडी हरेक रिपोर्टों को खारिज करता रहता है और बड़ी बेशर्मी से इसे देशी-विदेशी साजिश का हिस्सा बताता है। फिर सत्ता की फ़ौज और मीडिया इन रिपोर्टों का चीरहरण करने में जुट जाता है।

न्यू इंडिया में नेता समेत हरेक आदमी अपने आप को चमत्कारी बताता है, चमत्कार का ढोंग करता है, और इसके बाद भी अपने आप को देश मानता है। इनमें से किसी के विरुद्ध आप बोलकर देखिये, तुरंत आईटी सेल की फ़ौज के साथ ही मेनस्ट्रीम मीडिया इसे देश का अपमान बताने लगेगा।

हाल में ही न्यू इंडिया के धनाढ्य गौतम अडानी की कंपनियों में वित्तीय अनियमितताओं से सम्बंधित एक रिपोर्ट अमेरिकी संस्था हिंडनबर्ग रिसर्च ने प्रकाशित की है। इसके जवाब में अडानी ग्रुप के चीफ फाइनेंस ऑफिसर ने कहा कि यह केवल एक कंपनी पर अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत पर हमला है – यह भारत की आजादी, भारतीय संवैधानिक संस्थाओं, ईमानदारी, देश के आगे बढ़ने की कहानी और देश की आकांक्षाओं पर हमला है।

इस वक्तव्य से जाहिर है, गौतम अडानी अपने आप को ही भारत समझ बैठे हैं। इसके जवाब में हिंडनबर्ग ने कहा है कि अडानी मूल प्रश्नों से ध्यान भटकाने के लिए राष्ट्रीयता का राग अलाप रहे हैं और भारत एक समृद्ध देश है पर इसके भविष्य को अडानी जैसे अमीरों से ख़तरा है जो राष्ट्रध्वज ओढ़ कर देश को लूटने में लिप्त हैं।

अभी तो प्रधानमंत्री जी पर बनी बीबीसी की डाक्यूमेंट्री को सोशल मीडिया पर प्रतिबंधित किया गया है, और अब पूरी तरह से बैन करने की तैयारी है – अब हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट का भी यही हश्र होना तय है। इस रिपोर्ट के बाद अडानी के शेयर में भारी गिरावट से सम्बंधित प्रश्न के जवाब में अडानी ग्रुप के चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर ने जो जवाब दिया उसमें तो और भी राष्ट्रवाद और गुलामी की जंजीरों से मुक्ति की झलक दिखती है। उन्होंने कहा कि इसकी तुलना जलियांवाला बाग के नरसंहार से की जा सकती है, जहां एक अंग्रेज अफसर के आदेश पर भारतीय सिपाहियों ने ही भारतीयों की हत्या कर दी – यहाँ पर भी एक अंग्रेज की रिपोर्ट पर भरोसा कर भारतीय शेयरधारक एक महान भारतीय को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

अडानी को आजतक तमाम संस्थाओं और प्रतिष्ठानों को सत्ता से उपहार के तौर पर लेते हुए कभी भारत का ख्याल नहीं आया, पर एक रिपोर्ट का झटका लगते ही अपने आप को भारत मान बैठे। अडानी इंडिया का नहीं बल्कि न्यू इंडिया का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां वे सत्ता से नजदीकी के कारण कुछ भी कर सकते हैं, पूरे इंडिया को खरीद सकते हैं। इस देश के दो हिस्सों में बंटने के बाद भी विडम्बना यही है कि राष्ट्रवाद और धर्मान्धता का बिगुल बजाते ही अडानी न्यू इंडिया में तो मसीहा करार दिए जायेंगें, पर इंडिया में भी भूखी और गरीब जनता उन्हें भारत ही मान बैठेगी।

न्यू इंडिया की मानसिकता इंडिया पर इस कदर हावी है कि सबको कंगाल करते, हाक और आवाज को छीनते लोग ही हमें ईश्वर नजर आने लगे हैं। हम भी यह मान बैठे हैं कि गरीबी समेत हमारी हरेक समस्याएं हमारी अपनी देन हैं, सरकारी नीतियों की नहीं। हा छोटेमोटे चमत्कार पर आवाज उठाते हैं, पर सत्ता के विशालकाय चमत्कार पर शांत रहते हैं और अपने दमन को भी ईश्वर का वरदान मानते हैं।

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