Ground Report : लाल सोने की खेती पर एक तरफ छुट्टा पशुओं का आतंक तो दूसरी तरफ कीटनाशक नहीं उपलब्ध करा रही योगी सरकार
Ground Report : लाल सोने की खेती पर एक तरफ छुट्टा पशुओं का आतंक तो दूसरी तरफ कीटनाशक नहीं उपलब्ध करा रही योगी सरकार
देवेश पांडेय की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के किसान समय के अनुसार कई प्रकार की खेती किया करते हैं। शरद ऋतु के आगमन से पर पूर्वांचल के आजमगढ जनपद के किसान लाल मिर्च यानि लाल सोना की खेती करते हैं, जिसकी उपज काफी अच्छी होती आयी है। इस बार भी आजमगढ़ के किसानों ने अपने खेतों में लाल मिर्च के पौधे लगाए थे, किंतु अभी फल भी नहीं लग पाया था कि किसानों की मुसीबतें शुरू हो गयी हैं। उनकी फसल को छुट्टा पशुओं ने तबाह करना शुरू कर दिया है।
गौरतलब है कि आजमगढ़ 46 लाख से ज्यादा आबादी वाला जिला है। इस जिले की 80 प्रतिशत जनता खेती किसानी के सहारे अपना जीवन निर्वाह करती है। आजमगढ के फूलपुर के किसान लाल मिर्च की खेती यानी लाल सोना के नाम से करते हैं और यही फसल उनकी आय का प्रमुख स्त्रोत होती है। इस बार बारिश के बाद आजमगढ के किसानों ने लाल मिर्च की खेती की थी, लेकिन उनकी खेती पर प्रकृति का ग्रहण लगने के साथ ही जिम्मेदार महकमों का ठप्पा भी लग गया है।
किसानों ने जैसे ही अपने खेतों में लाल मिर्च के पौधों को लगाया वैसे ही बारिश शुरू हो गई, जिसके कारण भारी मात्रा में पौधे पानी लगने के कारण गल गए। जैसे तैसे किसानों द्वारा व्यवस्था करके किसी प्रकार से पौधों को दुबारा लगाया तो छुट्टा पशु फसलों को तबाह कर रहे हैं। इसी के साथ फसलों में लगने वाले कीड़ों ने भी फसलों को बरबाद करना शुरू कर दिया है, किसान परेशान हैं मगर उनकी समस्या का समाधान करने वाला कोई नहीं है।
ब्लॉक और सोसायटी में नहीं हैं कीटनाशक दवाएं
किसानों द्वारा लाल मिर्च के पौधों को कीटो से बचाने के लिए कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना होता है। पूर्व की सरकारों द्वारा मिर्च की खेती के दौरान किसानों की सहायता के लिए सब्सिडी पर ब्लॉक और सोसायटी के बीज भंडार से कीटनाशक दवाएं उपलब्ध करवाई जाती थीं, परंतु पिछले चार पांच सालों से किसानों को कीटनाशक दवाएं नही मिल पा रही हैं, जिसकी वजह से उनकी मिर्च की फसल बर्बाद होती चली जा रही है।
इस बारे में हांसापुर खुर्द ग्राम के किसान फुन्नन पांडेय जो पिछले चालीस सालों से लगातार लाल मिर्च की खेती करते चले आ रहे हैं, कहते हैं 'हम सोसायटी के चक्कर पिछले 2 सप्ताह से लगा रहे हैं। मेरे साथ गांव के दर्जनभर किसान रोजाना ब्लॉक और सोसायटी के चक्कर लगाते हैं, इस उम्मीद में कि शायद कीटनाशक मिल जाये मगर लेकिन उनको कीटनाशक नहीं मिल पा रहा है। आखिर अपनी फसल की सुरक्षा हम कैसे करें।'
इस बारे में अहरौला ब्लॉक के ब्लाक डेवलेपमेंट आफिसर अरिवंद बिंद से बात की गयी तो वह कुछ और ही बताते हैं। कहते हैं अभी लखनऊ मुख्यालय से ही कीटनाशक नहीं आया है, ऐसे में हम लोग कैसे सप्लाई कर सकते हैं। किसानों को अब अपनी फसल की सुरक्षा करने के लिए मार्केट से ही कीटनाशक को लेना पड़ेगा, जो उन्हें महंगी कीमतों में उपलब्ध होगा।
छुट्टा पशु बने जी का जंजाल
कीड़ों के अलावा किसानों को लाल मिर्च की खेती की सुरक्षा के लिए रात दिन एक करके अपनी फसलों की रखवाली करनी पड़ रही है। अब दूसरी तरफ किसानों ने रबी की फसल की बुआई शुरू कर दी है, तो उनकी परेशानियां और ज्यादा बढ़ गयी हैं।
आजमगढ जिले के बूढनपुर तहसील के लगभग 7 लाख किसानों की यही पीड़ा है कि उनकी फसल की छुट्टा पशुओं से सुरक्षा कैसे करें, यह दिन ब दिन टेढ़ी खीर बनता जा रहा है। किसानों को सारे काम धंधे छोड़कर रात दिन एक कर फसलों की रखवाली करनी पड़ती है।
इस बारे में उपजिलाधिकारी नवीन प्रसाद बताते हैं, छुट्टा पशुओं से निजात दिलाने के लिए सभी लेखपालों को निर्देशित कर दिया गया है कि वह सफाई कर्मियों के सहयोग से छुट्टा पशुओं को पकड़कर गौशाला में भेजवाने का प्रयास करें, परंतु एक भी छुट्टा पशु अभी गौशाला नहीं पहुंचा है, जिसके कारण किसान रात दिन एक करके अपने खेतो में तंबू और मचान लगाकर फसल की रखवाली कर रहे हैं।
सरकार की नीतियों से परेशान किसान फुन्नन पांडेय कहते हैं, 'राज्य की सत्तासीन सरकार की तरफ से हम लोगों को कोई मदद नहीं मिल पा रही है। ब्लाक पर या सोसायटी पर कीटनाशक नहीं मिल रहा है।'
वहीं किसान दुर्गेश यादव की शिकायत है कि छुट्टा पशुओं से जीवन हराम हो गया है। रात दिन एक करके हम लोग फसल की रखवाली कर रहे हैं। इनका आतंक इस कदर है कि परिवार का कोई ना कोई एक सदस्य हमेशा खेत में रहता है।'
स्थानीय बसपा नेता प्रेमसागर मोदनवाल कहते हैं, मेरे द्वारा क्षेत्र के किसानों की इस समस्या को लेकर कई बार आवाज उठाई गई, परंतु अधिकारी मनमर्जी में लगे हुए हैं।उन्हें किसानों की कोई परवाह नहीं है। किसानों की फसले छुट्टा पशु बर्बाद कर रहे हैं। सरकार सिर्फ कहती है कि पशुओं को पकड़कर गौशाला में भेजवायेंगे, परंतु ये सिर्फ जुमलेबाजी है।
लाल मिर्च की खेती
आजमगढ के किसान लाल मिर्च की खेती को लाल सोना के नाम से करते हैं। यह फसल सितम्बर के महीने में किसान अपने खेतो में लगाते हैं। इस फसल के लिए आजमगढ की बलुई दोमट मिट्टी सर्वथा उपयुक्त होती है। हालांकि इस फसल की खेती करते हुए किसानों को भारी लागत लगाने के साथ ही दिनभर में करीब 3 से 4 बार मिर्च की सिंचाई करनी होती है।
आजमगढ़ की लाल मिर्च का इतिहास
आजमगढ़ के फूलपुर इलाके में विशेष तौर पर पैदा की जाने वाली लाल सोना यानि भरूआ लाल मिर्च की खेती काफी प्रमुखता के साथ की जाती है। पहले यहां के किसान नकदी फसल के रूप में गन्ने की खेती किया करते थे, लेकिन सरकार की लापरवाही और गन्ने का वाजिब रेट नहीं मिलने के कारण किसानों ने लाल मिर्च की खेती पर जोर देना शुरू कर दिया है। इसी कारण पूरे जिले के साथ ही फूलपुर के बनबीरपुर, मेंजवा, बक्शपुर, मुंडियार, मुंडवर,चमाला, हांसापुर, पकड़ी, मुबारकपुर, गहजी, लेदौरा, बनरपुरा, दुलारपुर, सुदनीपुर, जगदीशपुर, नियाउज, पूरब पट्टी, अंधेर पट्टी, दुर्बासा, कोल, पवई, माहुल, मिल्कीपुर, खुरासो, पल्थी, सिंगारपुर, धर्मदासपुर इलाके में बड़े पैमाने पर लाल मिर्च की खेती की जाने लगी।
लाल मिर्च का व्यापार एवं उपयोगिता
आजमगढ़ से लाल मिर्च का व्यापार पूर्वांचल के बाकी जिलों के साथ ही कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली जैसे महानगरों तक होता है। यहां से सीजन के दिनों में प्रतिदिन 700 से 800 टन लाल मिर्च निकलती है। इस मिर्च के व्यापार के दौरान करीब 8 से 10 हजार लोग व्यापार करके अपना जीवन यापन करते है। इस मिर्च का प्रयोग भरवा मिर्च के रूप में किया जाता है।
जिम्मेदार अधिकारियों की मानें तो पशुओं को पकड़कर गौशाला में भेजवाने का निर्देश दिया गया है। उपजिलाधिकारी नवीन प्रसाद कहते हैं, कई किसानों ने सीएम हेल्पलाइन पर भी शिकायत की थी। मेरे द्वारा टीम भेजी गई थी तो टीम के सदस्यों ने बताया कि पशु जंगलों और नदियों की तरफ भाग जाते हैं जिस कारण से उनको पकड़ पाना कठिन हो जाता है।'