सरकार की डपोरशंखी घोषणाओं के बीच भूख की त्रासदी झेलता विकलांग राजेंद्र, सरकारी दफ्तरों के सैकड़ों चक्कर काटने के बाद भी नहीं बना पहचान पत्र
राजेंद्र नगेसिया : पहचानपत्र के लिए सरकारी दफ्तरों के अनगिनत चक्कर काटने के बाद भी नहीं साबित कर पा रहा खुद को विकलांग
विशद कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। झारखंड के लातेहार जिला के महुआडांड़ प्रखंड अंतर्गत ओरसापाठ पंचायत के सुरकई गांव का रहने वाला है विकलांग राजेन्द्र नगेसिया। उसकी उम्र 45 वर्ष है, जिसे न तो दिव्यांग पेंशन मिलती है, न ही सरकार की ओर से विकलांगों को मिलने वाली व्हीलचेयर या इलैक्ट्रोनिक चेयर ही मिल पायी है, क्योंकि सरकारी आंकड़ों के जनकल्याणकारी योजनाओं में शामिल होने के लिए जरूरी दस्तावेजों में उसका आधार कार्ड और बैक एकाउंट नहीं है।
राजेन्द्र नगेसिया का न तो राशन कार्ड है और न अपना आवास है। यानी कोई भी पहचान जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी भी नहीं बन पायी है। यह सभी तरह की सरकारी सुविधाओं से वंचित है। जीवन का गुजारा भीख मांगकर करता है और वर्तमान में महुआडांड़ प्रखंड के अम्बाटोली पंचायत का गुरगुटोली गांव में दूसरों के घर पर रहता है।
राजेन्द्र नगेसिया के पिता हवरा किसान के पूर्वज गाँव गोदी टोला, ग्राम पंचायत सामरी पाठ (छत्तीसगढ़) में रहते थे। उसके पिता रोजगार के अभाव में महुआडांड़ मजदूरी करने आए थे। महुआडांड़ में प्रभु साव के घर में इसके पिता किराया के मकान में रहते थे। इसी किराए के घर में राजेन्द्र नगेसिया का जन्म हुआ। आज उसकी उम्र लगभग 45 साल की हो चुकी है। यह बचपन से विकलांग नहीं हैं। 10 वर्ष पूर्व एक दुर्घटना में राजेंद्र का बांया पैर क्षतिग्रस्त हो गया, जिस कारण वह अब काम नहीं कर पाता है। राजेन्द्र नगेसिमा के माता-पिता और पत्नी अब इस दुनिया में नहीं हैं। एक बेटा है जो रोजगार की तलाश में पलायन कर चुका है, उसका कोई अता-पता नहीं है। कुछ साल पहले राजेंद्र सुरकई पाठ ओरसा में बहन-बहनोई के यहां रहता था, लेकिन बहन-बहनोई की भी मौत हो गई और राजेंद्र वापस महुआडांड़ गुरगुटोली आकर भीख मांगकर गुजारा करने लगा है।
सबसे दुखद बात यह है कि नगेसिया आदिवासी की श्रेणी में आता है, लेकिन कोई भी दस्तावेज नहीं होने के कारण राजेन्द्र नगेसिया इस लाभ से भी वंचित है।
जनज्वार से हुई बातचीत में राजेन्द्र नगेसिया बताता है, उसके पूर्वज 50 साल पहले महुआडांड़ आये थे, जो साहूकारों के घरों में धांगर का काम (बिना किसी निश्चित मजदूरी या वेतन के घर का हर काम को करना) करते थे। हमारा कोई पहचान पत्र नहीं है, न ही कोई ठिकाना है, जहां शाम होती है, वहीं बसेरा होता है। आधार कार्ड एवं वोटर कार्ड नहीं रहने के कारण दिव्यांग पेंशन भी नहीं मिलती।
राजेंद्र कहता है, 'अपना पहचान पत्र बनवाने के लिए प्रखंड मुख्यालय में ?अनगिनत बार सरकारी कार्यालय के चक्कर काटकर थक चुका हूं। 10 वर्ष पूर्व एक दुर्घटना में बायां पैर क्षतिग्रस्त हो गया, जिससे काम करने में असमर्थ हूं। गरीबी के कारण सही से इलाज नहीं हो पाया है। दिव्यांग अवस्था में अकेला रहता हूं, पैर से अपाहिज हूं, शरीर भी सही से काम नहीं करता है। ऐसी परिस्थिति में पेट भरने के लिए भीख मांगने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था। जीने का एकमात्र सहारा एक बेटा था, वह भी पता नहीं कहां है, उसका कोई हाल—खबर नहीं है। अब बैसाखी ही मेरा एकमात्र सहारा है।'
फिलहाल राजेंद्र सुरकई गांव छोड़ चुका है और वह अमवाटोली के गुरगूटोली में रहता है।
झारखण्ड के कैबिनेट मंत्री के संज्ञान में आने के बाद भी कोई सुधार नहीं
दिव्यांग राजेन्द्र की खबर एक स्थानीए अखबार और एक स्थानीय न्यूज़ पोर्टल पर आयी थी तो झारखण्ड के कैबिनेट मंत्री चम्पई सोरेन ने इसे संज्ञान लिया था और लातेहार डीसी अबु इमरान को राजेंद्र भगत को सभी सुविधाएं मुहैया कराने का निर्देश दिया था। लातेहार उपायुक्त महुआडांड़ बीडीओ को दिव्यांग राजेन्द्र को सुविधा मुहैया कराने का निर्देश दिया। तब बीडीओ दिलीप टुड्डू द्वारा राहत सामग्री के तौर पर मात्र 10 किलो चावल मुहैया कराकर औपचारिकता पूरी कर ली गई, जबकि इस सुविधा के साथ उसका दस्तावेज में सबसे पहले आधार कार्ड बनाना जरूरी है।
दूसरी तरफ मामले की जानकारी मल्टीआर्ट एसोसिएशन डालटनगंज को हुई तो उसकी ओर से भी राजेन्द्र को राहत सामग्री मुहैया कराई गई, जिसमें 25 किलो चावल, दाल, तेल, नमक, चना गुड़ और नहाने का साबुन दिया गया।
मेरी बेटी भात-भात चिल्लाते हुए मर गयी
इस मामले में स्थानीय पत्रकार वसीम अख्तर कहते हैं, 'राजेन्द्र नगेसिया भले ही भीख मांगकर खाता है, लेकिन वह काफी संवेदनशील है। वह जहां भी किसी के घर में डेरा जमाता है, वह मांगकर लाई हुई सामग्री को उन्हें दे देता है, क्योंकि यह क्षेत्र काफी बदहाल है। वह जहां भी रुकता है उस परिवार की स्थिति भी काफी दयनीय होती है। बीडीओ द्वारा दिया गया चावल भी वह जहां ठहरा था, उन्हें दे दिया। उसके लिए चावल से ज्यादा जरूरी हैं दस्तावेज, क्योंकि दस्तावेज होने के बाद ही उसे दिव्यांग पेंशन मिलतह, व्हीलचेयर या इलेक्ट्रोनिक चेयर मिलती, बैक एकाउंट खुलता, राशन कार्ड बनता, प्रधानमंत्री आवास की भी सुविधा मिलती, स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिलता। लेकिन बीडीओ दिलीप टुड्डू ने चावल देकर, फोटो खिंचवाकर कर लातेहार उपायुक्त को भेज दिया और उपायुक्त ने मंत्रालय को बता दिया कि मंत्री जी के आदेश पर संज्ञान लेकर काम किया जा रहा है।
ऐसी कहानी अकेले राजेन्द्र नगेसिया की नहीं है, कितने ही राजेन्द्र नगेसिया हैं, जिन पर हमारी नजर नहीं जाती या हम उन्हें देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। भले ही हमारी राजकीय व्यवस्था में जनकल्याणकारी योजनाओं की लंबी फेहरिस्त हो, सरकारी घोषणाओं में किसी को भूखा नहीं रहने देने के लंबे—लंबे विज्ञापन देकर व्यवस्था आत्ममुग्ध होकर यह मानने को तैयार न हो कि कोई भूखा भी हो सकता है। लेकिन सच तो यह है कि उन योजनाओं तक की पहुंच जरूरतमंदों को कितनी है, यह राजेन्द्र नगेसिया जैसों को ही पता है।
राजेन्द्र नगेसिया जैसों की कहानी के बीच बताना जरूरी हो जाता है कि 2017 में बिना प्रभावित परिवारों को बताये झारखण्ड में लाखों राशन कार्ड रद्द किये गए थे। राज्य सरकार का दावा था कि इनमें ज्यादातर कार्ड 'फ़र्ज़ी' थे, लेकिन हाल ही में J-PAL का एक अध्ययन से यह साफ हो गया है कि रद्द किये गए कार्डों में ज़्यादातर फ़र्ज़ी नहीं थे। यह अध्ययन स्थानीय शोधकर्ताओं और कार्यकर्ताओं के दावों की पुष्टि करता है, जिन्होंने पहले ही स्थानीय जांच के आधार पर सरकार के दावे को गलत ठहराया था।
27 मार्च 2017 को झारखंड की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने कहा था, 'सभी राशन कार्ड जिन्हें आधार नंबर के साथ जोड़ा नहीं गया है, वे 5 अप्रैल 2017 को निरर्थक हो जाएंगे... लगभग 3 लाख राशन कार्ड अवैध घोषित किए गए हैं।' इस बाबत सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, झारखंड सरकार द्वारा 27 मार्च 2017 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गयी थी।
22 सितंबर 2017 को झारखंड सरकार ने अपने एक हजार दिनों की सफलताओं पर एक पुस्तिका जारी कर कहा था, 'आधार नंबर के साथ राशन कार्ड को सीड करने का काम शुरू हो गया है। इस प्रक्रिया में 11 लाख, 64 हजार फर्जी राशन कार्ड पाए गए हैं। इसके माध्यम से, राज्य सरकार ने एक वर्ष में 225 करोड़ रुपये बचाये हैं, जिनका उपयोग अब गरीब लोगों के विकास के लिए किया जा सकता है। 99 % राशन कार्ड आधार के साथ सीड किए गए हैं।'
10 नवंबर 2017 को, खाद्य विभाग (झारखण्ड सरकार) ने स्पष्ट किया कि हटाए गए राशन कार्डों की संख्या असल में 6.96 लाख थी, न कि 11 लाख। इसमें सबसे हास्यास्पद पहलू यह रहा कि रद्द किये गए कार्डों को "फ़र्ज़ी" आदि कहा जाता रहा।
जहां 22 सितंबर 2017 को झारखंड सरकार ने अपने एक हजार दिनों की सफलताओं पर अपनी पीठ थपथपाई, वहीं 28 सितंबर 2017 को सिमडेगा जिले की 11 वर्षीय संतोषी कुमारी की भूख से हुई मौत ने पूरे राज्य को हिला दिया। संतोषी कुमारी की मौत 'भात दे, भात दे' करते हुए हुई थी। उसके पूरे परिवार चार—पांच दिनों से कुछ नहीं खाया था।
दरअसल संतोषी नाम की बच्ची के परिवार का राशन कार्ड, आधार से लिंक न होने के कारण 22 जुलाई 2017 को रद्द किया गया था। यह जानकारी खुद सरयू राय, तत्कालीन खाद्य आपूर्ति मंत्री द्वारा दी गई थी। संतोषी कुमारी स्कूल में मिलने वाला मध्याह्न भोजन घर लाती थी, जिसे परिवार के सदस्य थोड़ा—थोड़ा खाकर गुजारा कर लेता था। मां भी कहीं कहीं काम करके कुछ लाती थी। किसी कारण स्कूल एक सप्ताह से बंद था, जिस वजह से मध्याह्न भोजन का मिलना बंद हो गया। ऐसे में पूरा परिवार चार—पांच दिनों से कुछ नहीं खाया और संतोषी की जान चली गई।
2020 में बोकारो जिले के कसमार का भूखल घासी 6 मार्च को जीवन का जंग हार गया। उसकी मौत के पहले उसके घर में लगातार चार दिनों तक चूल्हा नहीं जला था, मतलब बीमार भूखल घासी को लगातार चार दिनों से खाना नहीं मिला था।
वंचित तबके की समस्याएं बढ़ा रही है डिजिटल सरकारी सहायता
वहीं गढ़वा जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी दूर और भण्डरिया प्रखण्ड मुख्यालय से करीब 30 किमी उत्तर पूर्व घने जंगलों के बीच 700 की अबादी वाला एक आदिवासी बहुल कुरून गाँव की 70 वर्षीया सोमारिया देवी की भूख से मौत 02 अप्रैल हो गई। सोमरिया देवी अपने 75 वर्षीय पति लच्छू लोहरा के साथ रहती थी। उसकी कोई संतान नहीं थी। मृत्यु के पूर्व यह दम्पति करीब 4 दिनों से अनाज के अभाव में कुछ खाया नहीं था। इसके पहले भी ये दोनों बुजुर्ग किसी प्रकार आधा पेट खाकर गुजारा करते थे।
गौरतलब है कि दिसंबर 2016 से लेकर अप्रैल 2020 तक 24 लोगों की जान भूख के कारण गई है। ये वो आंकड़े हैं जो किसी न किसी सूत्र से मीडिया तक पहुंच पाये थे। जो मीडिया तक नहीं पहुंच पाये, वे गुमनाम रह गए। भुखमरी से हुई मौतों में से लगभग आधी मौतें किसी न किसी तरीके से आधार से सम्बंधित समस्याओं से जुड़ी थीं।
प्रख्यात अर्थशास्त्री कार्तिक मुरलीधरन, पॉल नीहाउस और संदीप सुखटणकर द्वारा इस अध्ययन के तहत झारखण्ड में 10 रैंडम ढंग से चुने गए ज़िलों में 2016-2018 में रद्द हुए राशन कार्डों का शोध किया गया है। अध्ययन के परिणाम इस प्रकार हैं — 2016 और 2018 के बीच 10 ज़िलों में 1.44 लाख राशन कार्ड रद्द किये गए थे। कुल रद्द किए गए कार्डों के 56% (एवं कुल कार्डों के 9%) आधार से जुड़े नहीं थे।
रद्द किये गए राशन कार्डों में से 4,000 कार्डों की जांच में पाया गया कि लगभग 90% रद्द किये गए राशन कार्ड फ़र्ज़ी नहीं थे। बस लगभग 10% थोड़ा संदिग्ध थे, यानी वह परिवार जिनका पता नहीं लगाया गया था। जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार दिसम्बर 2016 से 2020 तक झारखंड में भूख से 24 लोगों की मौत भोजन की अनुपलब्धता के कारण हुई है।