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मेरी बेटी भात—भात चिल्लाते हुए मर गयी

Janjwar Team
17 Oct 2017 4:47 PM GMT
मेरी बेटी भात—भात चिल्लाते हुए मर गयी
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मोदी जी के सपनों के भारत में सभी नागरिकों का आधार कार्ड से लिंक होना जरूरी कर दिया गया है और कमजोरों के लिए आधार के बिना सांस लेना भी सरकारी और उसके मातहत विभागों ने दूभर कर दिया है...

जनज्वार, रांची। थोड़ा पढ़ा—लिखा आदमी तो आधार कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसलों पर जिरह कर लेता है, लेकिन गांव—देहात और शहरी अनपढ़—गरीबों का बहुत बड़ा तबका आधार के चक्रव्यूह में बुरी तरह उलझ गया है। ऐसा नहीं था कि पहले उनकी जिंदगी बहुत अच्छी जा रही थी, लेकिन आधार के पेंचों ने उनको गरीबी और तंगहाली के और बड़े दुष्चक्र में धकेल दिया है।

पिछले दो—तीन दिनों से इसी आधार की वजह से झारखंड के सिमडेगा जिले की 11 वर्षीय नाबालिग संतोषी कुमारी की मौत की खबर सनसनी की तरह फैल रही है। पिछले महीने 28 सितंबर को हुई मौत के मामले में मीडिया द्वारा बताया जा रहा है कि संतोषी कुमारी के पास आधार न होने की वजह से खाना नहीं मिला, जिससे उसकी 28 सितंबर को मौत हो गयी

गौरतलब है कि रांची से 70 किलोमीटर दूर सिमडेगा जनपद के जलडेगा गांव की संतोषी कुमारी का परिवार राशन कार्ड को आधार से नहीं जुड़वा पाया था, जिस वजह से उसे राशन नहीं मिल रहा था। राशन नहीं मिलने से घर में 8 दिन तक चूल्हा नहीं जल पाया था। बड़े तो किसी तरह भूख सहन कर गए, मगर भूख की वजह से 11 वर्षीय संतोषी की मौत हो गई।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस परिवार को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन स्कीम (पीडीएस) के तहत राशन मिलता था। फूड सिक्योरिटी को लेकर काम करने वाली संस्था राइट टू फूड कैंपेन ने इस मामले के बाद दावा किया कि पीडीएस स्कीम के तहत गरीबों को मिलने वाला राशन इस परिवार को पिछले कई महीनों से नहीं दिया जा रहा था, क्योंकि इस परिवार का राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं था।

संतोषी की मौत के बाद उसकी मां कोईली बताती हैं कि, पिछले कई दिनों से घर चूल्हा नहीं जला था। बच्चों की छुट्टियां चल रही थी और वे भूखे थे। मैं राशन की दुकान पर चावल लाने गई, लेकिन आधार कार्ड राशन कार्ड से नहीं जुड़ने के कारण दुकानदार ने मुझे राशन नहीं दिया।

कोईली देवी रोते हुए कहती हैं कि पहले संतोषी को स्कूल से खाना मिल जाता था, लेकिन स्कूल बंद था दुर्गा पूजा की छुट्टियों के वजह से जिसके चलते मिड डे मील नहीं मिला और मेरी बेटी भात-भात चिल्लाते हुए मर गई।

झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्र कहते हैं, 'संतोषी की मौत में आधार एक बहाने की तरह है, समस्या झारखंड के गरीबों को भरपेट भोजन न मिलने की है। और यह हालत लाखों लोगों की है। 17 साल पहले आदिवासियों के लिए बने इस राज्य में आदिवासी भूख से मर जाता है, सवाल यह नहीं बना, बल्कि सवाल आधार न होने की सनसनी बनी। क्या जिनके पास आधार है, उन्हें पीडीएस और मिड डे मिल में खाना मिल रहा है, क्या वे लोग भूख से पीड़ित नहीं या वे लोग धीमी मौत के शिकार नहीं हैं। यह एक बड़ा सवाल है, जिसे आधार की सनसनी में नहीं समेटा जाना चाहिए।'

झारखंड के फूड एंड सिविल सप्लाइज मंत्री कहते हैं कि इसमें विभाग की कोई गलती नहीं है। हमने सभी अधिकारियों को पहले से निर्देश दिया था कि अगर किसी का राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं है फिर भी उसे राशन दिया जाए। पर अधिकारियों ने यह स्वीकार किया कि संतोषी के परिवार का राशन कार्ड चूंकि आधार से लिंक नहीं था, इसलिए उसे पीडीएस के लाभार्थियों की लिस्ट से बाहर कर दिया गया था।

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