Chardham Yatra: चारधाम यात्रा में मात्र 27 दिन में 104 श्रद्धालुओं की मौत, जानिये क्या है बड़ी वजह
Chardham Yatra: नहीं थम रहा मौत का सिलसिला, मरने वालों का आंकड़ा 100 के पार, जानें अपडेट्स
Chardham Yatra: उत्तराखंड की आर्थिकी का बड़ा आधार समझी जाने और 6 महीने तक चलने वाली उत्तराखंड की चारधाम यात्रा शुरू होने के महीने भर के अंदर ही श्रद्धालुओं की होने वाली मौतों का आंकड़ा शतक तक पहुंच जाना बड़ी चिंता का विषय बन गया है। पिछली तीन यात्राओं से तुलना करने पर पता चलता है कि इस साल महज जितनी मौतें 27 दिन में हुई हैं, उतनी पिछली तीन यात्राओं के पूरे सीजन में भी नहीं हुई थी।
तीर्थयात्रियों की मौतों की यह चिंता इसलिए भी अधिक है कि मई माह में अभी तक हुई तमाम मौतें हार्ट अटैक, ऑक्सीजन की कमी या और दूसरी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त होने से हुई हैं। लेकिन इससे आगे जून और उसके दो माह बाद में होने वाली बरसात और उसके बाद होने वाले भूस्खलन की वजह से होने वाले तमाम संभावित हादसों से भी इन तीर्थयात्रियों को दो-चार होना है। एक तो उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के चलते बरसात के दिनों में पहाड़ पर होने वाले प्राकृतिक हादसों पर किसी का बस पहले ही नहीं था। उस पर केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी ऑल वेदर रोड योजना के निर्माण ने पहाड़ों को इतना कमजोर कर दिया है कि कब कहां कौन सा पहाड़ मामूली बरसात से दरक जाए, कहा नहीं जा सकता।
कोविड के चलते दो साल बंद रही उत्तराखंड की चारधाम यात्रा का औपचारिक शुभारंभ मई माह की तीन तारीख को हुआ था। चारधाम यात्रा शुरू होते ही तीर्थयात्रियों का रेला उत्तराखंड में उमड़ना शुरू हो गया। तीर्थयात्रियों के साथ ही मई की तपिश भरी गर्मी से राहत लेने के लिए पहाड़ों पर पिकनिक मनाने वाले भी इस दौड़ में शामिल हुए तो पहला खेल यात्रा मार्ग पर यात्रियों से लूट-खसोट का शुरू हुआ। लूट का शोर-शराबा होने पर इसे उत्तराखंड को बदनाम करने की साजिश करार दिए जाने लगा, लेकिन सच्चाई इतनी थी कि प्रशासन को मजबूरन इस लूट पर लगाम लगाने के लिए आगे आना पड़ा जिससे यात्रियों को कुछ हद तक राहत मिली।
यात्रा के पहले ही हफ्ते में तीर्थयात्रियों की कई मौतों के बाद अब राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए। चौतरफा हुई आलोचनाओं के बाद राज्य सरकार की ओर से इस मामले में लीपापोती के प्रयास शुरू होने लगे। भाजपा के एक प्रवक्ता ने तो इन मौतों को मोक्ष बताते हुए यहां तक कह दिया कि यह तीर्थयात्री मोक्ष प्राप्त करने यहां आ रहे हैं। हास्यापद बयानों से इतर राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने संजीदगी दिखाते हुए तीर्थयात्रियों की इन मौतों से संबंधित आंकड़े दिखाकर मौतों की वजह व ऐसी परिस्थिति से बचने के लिए बकायदा एडवाइजरी जारी की। इसके बाद भी चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थ यात्रियों में मरने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीके शुक्ला ने मीडिया को बताया, शनिवार 28 मई को जिन 4 यात्रियों की मृत्यु हुई है, उनमें 64 वर्षीय रताकोंडा शेखर बाबू निवासी लक्ष्मीनारायण, आंध्र प्रदेश, 71 वर्षीय पेमा पाटीदार वार्ड नं-03 अंबिका पाथ, अंगज रेव्न्यू एरिया, मध्य प्रदेश, 62 वर्षीय प्रेमजी रामजी बाई यादव, तेहरसी सीतारामनगर, भरतनगर रोड भावनगर, गुजरात तथा बीरेंद्र सिंह कटारा, कनवर बाद मध्य प्रदेश की मृत्यु हुई है। केदारनाथ यात्रा में ही कुल 48 यात्रियों की मृत्यु हो चुकी है। सीएमओ ने बताया कि शनिवार को 267 यात्रियों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराई गई।'
चारधाम यात्रा में अब तक कुल 104 यात्रियों को अपनी जान गवांनी पड़ी है। इन सभी मौत का प्रमुख कारण हृदयगति रुकना बताया जा रहा है। ऊंचाई वाले स्थानों पर यात्रा के दौरान तीर्थ यात्रियों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। शनिवार को भी 267 यात्रियों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराई गई। यहां एक पहलू यह भी है कि सरकार के कहने के बाद भी लोग अपना हेल्थ चेकअप नहीं करा रहे हैं। उन्हें इस बात की आशंका है कि अनफिट होने की दशा में वह चारधाम यात्रा से वंचित रह जायेंगे। जिस वजह से उम्रदराज व बीमार लोगों को ऊँचाई वाली जगहों पर पहुंचते ही लोगों को दिक्कतें होने लगी हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में तीन मई को चारधाम यात्रा (Chardham Yatra 2022) की शुरुआत हुयी थी, जिसमें तीर्थयात्रियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मात्र 27 दिन अंदर सौ से भी ज्यादा मौतों के बावजूद अबतक दस लाख से ज्यादा तीर्थयात्री चारधाम के दर्शन करने पहुच चुके हैं। यात्रा शुरू होने के बाद से अब तक तीर्थयात्रियों की बड़ी संख्या में मौतों की पुष्टि स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ शैलजा भट्ट भी कर चुकी हैं। सिर्फ 26 मई को ही यात्रा के दौरान 16 तीर्थयात्रियों की मौत हुयी थी।
स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ.शैलजा भट्ट ने मीडिया के साथ जानकारी साझा की कि अब तक 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं की ओपीडी की गई। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए केदारनाथ धाम में 24 फिजिशियन, 133 चिकित्सक, 12 आर्थोपैडिक सर्जन व 65 नर्सिंग एवं पैरामेडिकल स्टॉफ 15-15 दिनों के रोटेशन के अनुसार ड्यूटी पर तैनात किए गए हैं। केदारनाथ की विषम परिस्थितियों को देखते हुए चार अतिरिक्त चिकित्सक भी केदारनाथ अस्पताल में तैनात किए गए हैं। चारधाम यात्रा को सुरक्षित संचालित कराने के लिए यात्रा मार्गों पर 117 एंबुलेंस तैनात की गई हैं।
कांग्रेस ने खोल रखा है मोर्चा, लेकिन असर कुछ नहीं
तीर्थयात्रियों की मौतों पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने राज्य सरकार की घेराबंदी करने लायक बयान तो दिए हैं। लेकिन उसके नतीजे नहीं आए हैं। हमेशा की तरह पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तो सोशल मीडिया पर टिप्पणी कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। रावत की इस पोस्ट का सार है कि यह सरकारी लापरवाही की हद है। तीर्थयात्रियों की मौतों की खबरें राज्य के रूप में हम सबका मुँह चिढ़ा रही हैं। यदि इसी तरीके से मौतें होती रहीं तो हमारे राज्य के विषय में देशभर में क्या संदेश जायेगा, इस पर भी कुछ विचार होना चाहिए। जबकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन मेहरा का कहना है कि चारधाम यात्रा के फुलप्रूफ सरकारी दावों के बीच वह खुद बारह दिन तक यात्रा क्षेत्र में रहे। उसी समय मैंने यहां ऑक्सीजन की ज़रूरत बताते हुए लेह लद्दाख की तरह यात्रा मार्ग पर ऑक्सीजन पार्लर्स लगवाए जाने की मांग की थी। लेकिन घमंड में चूर सरकार के मंत्री ने इसे उस समय मज़ाक में लिया। लेकिन जब वहां मौतों की संख्या बढ़ी तो सरकार को मजबूरन वहां ऑक्सीजन सिलेंडर्स भेजने पड़े। कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावों पर भी सवाल उठाया है, ''अब यह साबित हो चुका है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगाया कि उन्होंने अपने प्रचार के लिए केदारनाथ नाम का प्रयोग तो किया लेकिन यात्रा के दौरान यात्रियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की। देश भर के श्रद्धालुओं से केदारनाथ आने का आह्वान करने के बाद भी यहां मूलभूत व्यवस्थाएं करने में उनकी सरकार पूरी तरह नाकाम हुई है।
स्वास्थ्य महकमा नहीं मानता विभाग की कोई खामी
एक तरफ जहां चारधाम यात्रा में तीर्थयात्रियों की मौतों की संख्या सिहरन पैदा करती है तो दूसरी तरफ राज्य का स्वास्थ्य महकमा इसे विभाग की कमजोरी नहीं मानता। विभाग का कहना है कि राज्य में पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं हैं। अधिकांश तीर्थयात्रियों की मौतों के पीछे उनकी स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही व गर्म मैदानी क्षेत्र से एकाएक ठंडे पहाड़ी क्षेत्र में आने के कारण तापमान से शरीर का असंतुलन बनना मुख्य वजह है। तीर्थयात्रियों की भीड़ ज्यादा होने की वजह से भी यात्री हड़बड़ी में उपवास के साथ यात्रा में जल्दबाजी कर रहे हैं। इससे उनकी तबीयत बिगड़ रही है। शुगर व ब्लड प्रेशर के पचास साल से अधिक उम्र के यात्रियों के लिए यह स्थिति जानलेवा हो जाती है। इसीलिए यात्रा मार्ग पर विभाग द्वारा यात्रियों की स्क्रीनिंग कर गंभीर रोगों से पीड़ित उम्रदराज लोगों को यात्रा न करने की सलाह दी जा रही है।
अग्निपरीक्षा के पांच माह शेष
छः महीने तक चलने वाली चारधाम यात्रा का पहला महीना जैसा भी बीता हो, सरकार की असली अग्निपरीक्षा इसके बाद शुरू होनी है। जून में मानसून के सक्रिय होते ही पहाड़ों में आपदा सीजन की शुरुआत हो जाती है। जगह-जगह होने वाले भूस्खलन से सड़के बंद होना आम बात है। हालांकि राज्य का ऑल वेदर रोड इसी आश्वासन के सहारे निर्माणाधीन है कि इस पर मौसम की कोई मार नहीं पड़ेगी। लेकिन इस रोड के निर्माण के दौरान बने जगह-जगह पर मलवे के डंपिंग जोन और सड़क किनारे के पहाड़ जो बेहद कमजोर स्थिति में आ चुके हैं, खुद ही बड़े खतरे के रूप में देखे जा रहे हैं। तमाम पर्यावरणविद इन खतरों के प्रति अरसे से आगाह करते आ रहे हैं। लेकिन सरकार ने उनकी कोई सुध नहीं ली है। ऐसे में मामूली सी बरसात भी इस क्षेत्र में बड़े हादसे की वजह बनने की जो आशंकाएं पर्यावरणविदो द्वारा व्यक्त की जा रही हैं, वह निर्मूल ही साबित हों। इसकी केवल आस ही की जा सकती है।
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