धरनारत शिक्षकों का कहना है कि अनिश्चितकालीन धरने के बाद भी एलजी महोदय शिक्षक विरोधी फैसले पर कायम रहे तो वे आमरण अनशन के लिए बाध्य होंगे...
जनज्वार, दिल्ली। दिल्ली में पिछले 7 सालों से दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हजारों ठेके पर काम करने वाले शिक्षक कार्यरत हैं। इन सालों में दिल्ली में सत्ताधीन रहीं सरकारों से ये शिक्षक अपने नियमितीकरण की मांग करते रहे। मगर नियमितीकरण तो दूर, किसी ने उनकी मांगों पर कान तक नहीं दिया।
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने ठेके पर काम कर रहे शिक्षकों की मांगों पर जरूर ध्यान दिया। 4 अक्टूबर 2017 को विधानसभा के विशेष सत्र में ठेके पर काम करने वाले शिक्षकों के हित में एक विधेयक पारित किया गया। विधेयक को कानून का रूप देने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल के पास हस्ताक्षर हेतु भेजा गया, मगर उपराज्यपाल ने पास किए गए इस विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं किए।
इससे गुस्साए शिक्षक दिल्ली अतिथि शिक्षक संघ की अगुवाई में सड़क पर उतर आए हैं। 19 दिसंबर 2017 को ठेके पर काम करने वाले इन शिक्षकों ने अपनी मांगों को लेकर किए गए तमाम प्रदर्शनों के पश्चात भी अपने पक्ष में फैसला न होता देख अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है। धरनारत शिक्षकों की मांग है कि उन्हें परमानेंट किया जाए और जब तक परमानेंट नहीं किया जाता तब तक उन्हें डेली बेसिस पर नहीं बल्कि परमानेंट शिक्षकों को जो वेतनमान दिया जाता है, वही दिया जाए।
LG साहब के पर्सनल सेक्रेटरी रविधवन से हालांकि धरनारत शिक्षकों की बातचीत हुई, मगर इससे कोई ऐसी उम्मीद नहीं बंधी कि एलजी महोदय शिक्षकों के हित में कोई फैसला लेंगे। धरनारत शिक्षकों का कहना है कि अनिश्चितकालीन धरने के बाद भी एलजी महोदय शिक्षक विरोधी फैसले पर कायम रहे तो वे आमरण अनशन के लिए बाध्य होंगे।
फिलहाल दिल्ली में कुल 1024 सरकारी स्कूल हैं। अभी इन स्कूलों में 26—27 हजार के बीच परमानेंट शिक्षक हैं और 17 हजार गेस्ट टीचर हैं। सैकड़ों स्कूल तो गेस्ट टीचर्स के भरोसे ही चल रहे हैं।
डेली बेसिस पर काम कर रहे गेस्ट टीचरों की मांग है कि उन्हें भी परमानेंट शिक्षकों के बराबर वेतनाम और अन्य सुविधाएं मिले। अभी तक इन्हें काम के दिनों के हिसाब से पैसा दिया जाता है, जबकि महीने में कई छुट्टियां आ जाती हैं, जिन दिनों का पैसा काट दिया जाता है।