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राजनीति

कालाजार से मरे आदिवासी की पत्नी की बस एक ही मांग, जीने-खाने की कुछ व्यवस्था कर दें हेमंत सोरेन

Janjwar Team
19 March 2020 1:11 PM GMT
कालाजार से मरे आदिवासी की पत्नी की बस एक ही मांग, जीने-खाने की कुछ व्यवस्था कर दें हेमंत सोरेन
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बीते सात साल में झारखंड में सरकारी फाइल में कालाजार से मौत का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है। बिहार के बाद झारखंड देश का दूसरा ऐसा राज्य है, जहां कालाजार सबसे भयावह रूप में है...

दुमका से राहुल सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार। बिहार के बाद झारखंड देश का दूसरा ऐसा राज्य है, जहां कालाजार सबसे भयावह रूप में है। यहां सरकारी फाइलों में हर साल कालाजार के सैकड़ों मामले दर्ज होते हैं, जो वास्तविक आंकड़े से कम हो सकते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात यह कि बीते सात साल में झारखंड में सरकारी फाइल में कालाजार से मौत का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है। जबकि इस बीमारी के रोगियों के आंकड़े में झारखंड से बहुत पीछे यूपी-बंगाल में मौत के मामले दर्ज हुए हैं।

हाल में दुमका जिले के एक कालाजार पीड़ित शख्स की मौत हुई, जिस मामले को स्वयं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संज्ञान में लिया। पीड़ित के गांव मंत्री को भी भेजा। सरकारी ट्विटर हैंडल पर भी उस मामले को कालाजार का ही बताया गया, उसके बावजूद अपना रिकार्ड खराब होने की चिंता में डाॅक्टर यह साबित करते रहे कि सनातन नामक उस व्यक्ति की मौत कालाजार से नहीं दूसरी वजहों से हुई है, भले ही वह कालाजार से पीड़ित था। शायद ऐसी ही जिद की वजह से 2017 में कालाजार के समूल उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करने से देश चूक गया।

13 मार्च को जब सनातन मरांडी ने दुमका मेडिकल काॅलेज अस्पताल में दम तोड़ दिया तो इसे कालाजार से मौत की वजह माना गया। सनातन मरांडी कालाजार से पीड़ित थे, इस बात को डाॅक्टरों ने भी स्वीकार किया। लेकिन डाॅक्टरों ने यह दलील दी कि 35 साल के करीब के रहे सनातन की मौत कालाजार से नहीं, हृदय गति रुकने से हुई। दुमका मेडिकल काॅलेज अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डाॅ रवींद्र कुमार ने कहा- सनातन कालाजार से पीड़ित था लेकिन उसकी मौत कालाजार से नहीं हुई, वह हृदय रोग से पीड़ित था और उसके शरीर में खून की कमी थी।

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प्रखंड स्तर के एक डाॅक्टर ने यह भी तर्क दिया कि सनातन के अंदर एचआइवी के लक्षण पाए गए और हृदय गति रुकने से उनकी मौत हुई। जबकि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मामले को कालाजार के केस के रूप में ही संज्ञान में लिया। मुख्यमंत्री ने न सिर्फ इस मामले में जरूरी पहल करने का निर्देश राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को दिया, बल्कि एक मंत्री को पीड़ित के गांव भी भेजा। डाॅक्टरों ने इस सामान्य तथ्य को नजरअंदाज किया कि कालाजार की वजह से ही खून की कमी होती है।

नातन मरांडी का गांव सठियारी झारखंड की घोषित उपराजधानी दुमका से करीब 38 किलोमीटर की दूरी पर जरमुंडी प्रखंड में स्थित है। मुख्यमार्ग से काफी अंदर बसे इस गांव में जाने के लिए कच्ची सड़क तक नहीं है और आपको उबड़-खाबड़ पगडंडियों का ही सहारा लेना होगा। यह पूरी तरह से आदिवासियों का गांव हैं, जहां मरांडी, मुर्मू, हेंब्रम आदि आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं।

गांव पठारी भूमि पर है, इसलिए उसके दो टोले हैं, ऊपरी टोला व नीचला टोला। 70 के करीब घर होंगे। सनातन मरांडी का घर नीचले टोले में है। गांव के दोनों टोले में एक-एक चापानल है और उसे पानी की टंकी से भी कनेक्ट किया गया है, जो सोलर सिस्टम पर काम करता है।

गांव में प्रवेश करते ही हमारी मुलाकात सुखदेव सोरेन से होती है। सुखदेव बताते हैं कि गांव में गंदगी का अंबार है, दो ही चापानल है जिस पर पूरा गांव निर्भर है। भीड़ लगी रहती है और अधिक लोड के कारण उसके आसपास गंदगी भी है, जो हमारे यहां के लोगों के बीमार होने का एक कारण है। सुखदेव को दुनियादारी की अच्छी समझ है, क्योंकि वे एल एंड टी कंपनी में पहले बाहर में काम कर चुके हैं, लेकिन परिवार की जिम्मेवारियों को लेकर फिर गांव में ही रहने का निर्णय लिया। वे अपने गांव के माली हालत की ओर भी बातचीत में यह कह कर इशारा कर देते हैं कि सबके पास छोटी-मोटी खेती है और 30-40 लड़के गांव के बड़े शहरों में मजदूरी करते हैं।

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कालाजार बीमारी से ग्रसित होने के बाद मौत के शिकार हुए सनातन मरांडी के पिता डुगरू मरांडी व मां सोनी टुडू से हमारी मुलाकात होती है। वे बड़े स्पष्ट रूप से कहते हैं कि उनके बेटे सनातन मरांडी की मौत कालाजार से ही हुई है। डुगरू बताते हैं कि करीब सालभर से उनका बेटा बीमार था और वे पैसे की दिक्कत की वजह से अच्छे से इलाज नहीं करा सके। जबकि नियमतः सरकारी महकमे को ज्ञात होने के बाद कालाजार मरीज की मुफ्त में उत्तम से उत्तम निःशुल्क कराने का आदेश सरकार की ओर से है। डुगरू मरांडी का एक और दुःख है कि उनके तीन बेटे में एक की पहले ही हिमाचल प्रदेश में दुर्घटना में मौत हो गयी थी, जो वहां कमाने गया था।

सनातन मरांडी के पिता / फोटो :राहुल सिंह

सरकार के संज्ञान में मामला आने के बाद मंत्री ने किया गांव का दौरा

नातन मरांडी की मौत के मामले को मुख्यमंत्री द्वारा संज्ञान लेने के बाद मंत्री बादल स्वयं तीन दिन पहले गांव आए थे और उनके साथ पूरा सरकारी अमला भी आया था। उस सयम परिवार को 60 किलो चावल व पांच हजार रुपये दिए गए और कई सारे वादे किए गए। सनातन की एक बहन मानसिक रोगी है, जिसका रांची के मनोचिकित्सालय में इलाज कराने का मंत्री ने भरोसा दिलाया है। उस लड़की के पैरों में घरवाले चैन व ताला मार कर रखते हैं, ताकि वह कहीं इधर-उधर भाग न जाए।

नातन का परिवार और यह गांव यह भी अहसास कराता है कि हमारा आदिवासी समाज अब भी विकास से कितना दूर है। सनातन के परिवार में अब उसके भाई को छोड़ कर कमाने वाला कोई शख्स नहीं है, जबकि वह अपने पीछे अपनी पत्नी व चार बच्चों को छोड़ गए हैं। सरकार का 60 किलो अनाज उनकी भूख कब तक बुझाएगा।

जमीनी हकीकत और सरकारी आंकड़ों में मौत की शून्य संख्या

रायकिनारी पंचायत के अंतर्गत आने वाले सठियारी गांव में बारे में कहा जाता है कि यहां पहले भी कई मौतें कालाजार के कारण हुई हैं। हालांकि अधिकारियों का दावा इतना भर ही है कि यहां पहले कालाजार के आठ मरीज मिले थे, जिनका इलाज करा कर उन्हें घर भेज दिया गया।

रअसल, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले सात सालों में झारखंड में कालाजार से एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है। यह आंकड़ा नेशनल वेक्टर बोर्न डिजिज कंट्रोल प्रोग्राम के अनुसार है और उसकी वेबसाइट पर हर साल झारखंड के खाते में शून्य आंकड़ा दर्ज है, जबकि बिहार के बाद झारखंड में ही कालाजार के सबसे अधिक मरीज मिलते हैं। इसी सात साल की अवधि में झारखंड की तुलना में बहुत कम केस दर्ज होने वाले राज्य उत्तरप्रदेश व पश्चिम बंगाल में भी कालाजार के कारण मौत के मामले दर्ज किए गए, लेकिन झारखंड में एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ।

सनातन को कालाजार से पीड़ित मानने के बाद भी उसकी मौत को कालाजार से मौत न मानने की सरकारी महकमे की जिद्द की वह वजह है कि ये केस रजिस्टर में दर्ज नहीं हो पाते और जिले से राज्य और राज्य से फिर केंद्र के पास नहीं जाते। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि झारखंड के चार जिलों दुमका, गोड्डा, साहेबगंज व पाकुड़ में कालाजार की स्थिति बेहद गंभीर है और अधिकांशत आदिम जनजाति व जनजाति वर्ग के लोग इसके शिकार होते हैं।

प्रखंड मुख्यालयों में तैनात डाॅक्टर भी यह बताते हैं कि उनके पास कालाजार के मामले बहुत आते हैं। कालाजार के खतरों को देखते हुए ही <राज्य सरकार ने महामारी अधिनियम के तहत इसे अधिसूचित बीमारी घोषित कर रखा है, ताकि इसके इलाज में लापरवाही नहीं हो।

कालाजार उन्मूलन के लक्ष्य में भारत पिछड़ा

दुमका, गोड्डा, साहेबगंज एवं पाकुड़ राष्ट्रीय कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम के अंदर आने वाले जिले हैं, जिसके लिए केंद्र सरकार अच्छा बजट आवंटन करती है। डाॅक्टरों केस होते हुए भी उसकी वजह से मौत नहीं होने के जिद भरे रवैये की वजह से ही भारत 2017 के दिसंबर तक कालाजार को देश से पूर्ण उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने से वंचित रह गया, जबकि तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उसी साल अपने बजट भाषण में इसके लिए बजटीय प्रावधान का एलान करते हुए यह संकल्प दोहराया था कि हम इस साल इसे देश से पूर्णतः खत्म कर देंगे।

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2014 में केंद्र सरकार ने कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सहयोग से कालाजार उन्मूलन अभियान की शुरुआत की थी। यह कार्यक्रम चार राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश व पश्चिम बंगाल को ध्यान में रख कर आरंभ किया गया। हालांकि केरल, सिक्किम, पंजाब, असम व उत्तराखंड में भी इसके मामले मिलते रहे हैं।

भारत में कालाजार के मामले (सत्रोत : स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय)

रकारी आंकड़े बताते हैं कि बिहार और झारखंड में कालाजार के दर्ज मामलों में 2013 से 2019 के छह सालों की अवधि में तीन चौथाई की कमी आयी है। 2019 में बिहार में 2416 जबकि झारखंड में 539 मामले दर्ज किए गए। वहीं जारी वर्ष 2020 में बिहार में 316 व झारखंड में 92 मामले दर्ज किए गए। हालांकि जमीनी स्तर पर वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं, क्योंकि ये संख्या सिर्फ सरकारी रजिस्टर में दर्ज किए गए मामलों पर आधारित हैं।

कालाजार क्या है, क्यों होता है?

कालाजार एक वैक्टर जनित बीमारी है, जिसका सही समय पर इलाज नहीं हो तो यह जानलेवा हो जाता है। यह परजीवी लिश्मैनिया डोनोवानी के कारण होता है, जो परजीवी बालू मक्खी के द्वारा फैलता है। भारत में एंथ्रोपोनोटिक कालाजार व पोस्ट कालाजार डरमल लिशमैनियासिस टीबी के साथ कालाजार व एचआइवी के साथ कालाजार पाया जाता है, जो मनुष्यों से बालू मक्खी में ओर फिर मनुष्य में संचारित हो जाता है। यह जिस बालू मक्खी से फैलता है वह 6 फीट से अधिक ऊंचाई पर उड़ नहीं सकती।

ह सामान्यतः फुदकती है और मादा बालू मक्खी ऐसे स्थान पर अंडे देती है जो नमी युक्त, छायादार व जैविक पदार्थाें से भरीपूरी हो। यह 16-20 दिन जीवित रहती है और जहां होती है वहां कालाजार का खतरा कई गुणा अधिक होता है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को तेज बुखार आता है। भूख प्यास कम लगने लगती है और वजन कम होने लगता है। व्यक्ति के शरीर में खून कम होने लगता है।

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