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समाज

झारखंड में भूख से एक और मौत, चार दिनों से नहीं जला था चूल्हा

Janjwar Team
9 March 2020 11:36 AM GMT
झारखंड में भूख से एक और मौत, चार दिनों से नहीं जला था चूल्हा
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भूख से हुई तमाम मौतों को प्रशासन बीमारी से हुई मौत साबित करने में जुट जाता है। सिमडेगा की 11 वर्षीया संतोषी की मौत हो, या रामगढ़ के 40 वर्षीय चिंतामल मल्हार की, सभी मौतों को प्रशासन उसे बीमारी से हुई मौत साबित करने की कवायद में सफल भी हो जाता है...

बोकारो से विशद कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। झारखंड के बोकारो जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर है कसमार प्रखंड अंतर्गत सिंहपुर पंचायत का करमा शंकरडीह टोला। अगल-बगल में बसे इस दो टोले में लगभग 35 घर दलितों के हैं। लगभग भूमिहीन इन दलितों के पास रोजगार का कोई स्थायी साधन न होने के कारण बरसात को छोड़कर दूसरे अन्य मौसम में ये लोग रोजगार के लिए देश के अन्य राज्यों मेंं पलायन करने को मजबूर होते हैं। जहां बरसात में ये लोग गांव के आस-पास के अन्य किसानों के खेतों में मजदूरी करते हैं, वहीं अन्य मौसम में हाथ-आरी से लकड़ी चीरने का काम, मिट्टी काटने का काम तथा आस-पास के क्षेत्रों में मकान निर्माण में दैनिक मजदूरी का काम करते हैं, वहीं कुछ लोग अन्य राज्यों में पलायन कर जाते हैं।

भूखल घासी उर्फ लुधू घासी (42 वर्ष) भी एक साल पहले तक बैंगलोर में काम करता था। एक साल पहले उसके मां-पिता का एक सप्ताह के अंतराल में देहांत हो गया। वह बैंगलोर से घर आया। सामाजिक रीति-रिवाज के अनुसार उसे ही मुखाग्नि देनी पड़ी। जब वह बैंगलौर से लौटकर आया था तब उसकी तबियत ठीक नहीं थी। सामाजिक रीति रिवाज के चक्कर में उसे रोज नहाने और बिना वस्त्र के रहने के कारण उसकी तबियत और बिगड़ती चली गई।

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स सामाजिक रीति रिवाज के चक्कर में उसकी आर्थिक स्थिति भी काफी कमजोर हो गई तथा समुचित इलाज नहीं होने के कारण वह शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो गया तथा पुन: रोजगार के लिए बेंगलुरु नहीं जा सका। वह गांव में ही कभी-कभी दैनिक मजदूरी कर लिया करता था। पत्नी रेखा देवी भी इधर उधर कुछ काम करने लगी थी, बावजूद घर की बदहाली बरकरार रही, खाने के लाले पड़ने लगे। अंतत: उसे सबसे बड़ा 14 वर्षीय बेटा की पढ़ाई छुड़वाकर गांव से करीब 16 किमी दूर स्थित पेटरवार के एक होटल में काम करने को भेजना पड़ा।

मृतक भूखल घासी की पत्नी व परिजन

फिर भी कोई अंतर नहीं आया क्योंकि भूखल घासी में काम करने क्षमता पूरी तरह समाप्त हो चुकी थी। 'एक तो करेला उपर से नीम चढ़ा' वाली स्थिति हो गई। एक तो बीमारी उपर से खाने के लाले। अंतत: भूखल घासी 6 मार्च 2020 को जीवन की जंग हार गया। उसकी मौत के पहले उसके घर में लगातार चार दिनों तक चूल्हा नहीं जला था, मतलब बीमार भूखल घासी को लगातार चार दिनों से खाना नहीं मिला था।

सकी खबर जब एक स्थानीय अखबार में आई, तब मानो बोकारो जिले के ही नहीं बल्कि राज्य के सरकारी अमलों में उनके कर्तव्य बोध का मानो उफान उमड़ पड़ा। उसके पांच बच्चे है जिसमें तीन बेटी व दो बेटों में सबसे बड़े बेटे की उम्र 14 वर्ष है। झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव, निदेशक संतोष कुमार, बोकारो उपायुक्त मुकेश कुमार, जिला आपूर्ति पदाधिकारी भूपेंद्र ठाकुर, बेरमो एसडीओ प्रेम रंजन समेत कई अधिकारी पहुंचे और घटना की जानकारी ली, थोक भाव में संवेदना भी व्यक्त की और घटना पर दुख भी जताया।

भूखल घासी की भूख से हुई मौत का जायजा लेता सरकारी महकमा

जैसा कि इस तरह के हर मामले में होता है, उच्चाधिकारी अपने मातहतों पर अपना भड़ास निकालते हैं। सचिव ने बीडीओ, एमओ व सिंहपुर पंचायत के मुखिया की जमकर क्लास ली। पीड़ित परिवार को कई सुविधाएं ऑन द स्पॉट मुहैया कराई गई। मृतक की पत्नी रेखा देवी के नाम पर तुरंत राशन कार्ड बनवाकर या गदिया। साथ ही तुरंत उसके नाम पर विधवा पेंशन की भी स्वीकृति हो गयी। अम्बेडकर आवास की भी स्वीकृति हो गयी। मृतक की पत्नी रेखा देवी के नाम पर पारिवारिक योजना का लाभ स्वीकृत कर 10 हजार रुपये तुरंत भुगतान किया गया। सचिव द्वारा बाकी 20 हजार रुपये खाता खोलवाकर जल्द से जल्द ट्रांसफर करने का निर्देश दिया गया।

ताते चलें कि भूखल घासी की मौत की खबर 6 मार्च की शाम को ही कसमार प्रखंड के बीडीओ राजेश कुमार सिन्हा को दी गई थी, लेकिन तीन चार घंटा बीत जाने के बाद भी जब कोई भी अधिकारी या कर्मी नहीं पहुंचा तो देर रात परिजनों व ग्रामीणों ने भूखल घासी का अंतिम संस्कार कर दिया। चूंकि स्थानीय शमसान घाट नदी और जंगल किनारे है, इसलिए जंगली जानवरों के भय से कुछ घंटे इंतज़ार के बाद ग्रामीणों ने शव जला दिया। इस कारण शव का पोस्टमार्टम नहीं हो पाया।

भूखल घासी की भूख से हुई मौत की खबर पढ़कर बियाडा के एक उद्यमी 70 वर्षीय रतनदेव सिंह काफी आहत नजर आए। रतनदेव सिंह इस मामले पर स्थानीय अधिकारी व कर्मचारी सहित पंचायत प्रतिनिधयों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने की बात करते हैं। उनका मानना है कि सरकार योजनाएं बनाती है, मगर उसे ईमानदारी और सुव्यवस्थित तरीके से लागू करने की जिम्मेवारी स्थानीय निकाय का होता है।

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वे कहते हैं कि मुखिया अपने क्षेत्र के सभी लोगों की दशा-दुदर्शा से परिचित होता है, किसे सरकारी योजनाओं के लाभ की जरूरत है किसे नहीं है, वह अच्छी तरह जानता है। ऐसे में भूखल घासी जैसे लोगों के पास सरकारी राशन कार्ड का न होना, बहुत बड़ा सवाल है। क्योंकि भूखल घासी का नाम पहले से ही बीपीएल सूची में दर्ज है। रतनदेव सिंह कहते हैं कि ऐसे मामलों में क्षेत्र के मुखिया पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि जैसे ही ऐसे मामलों में मुखिया को दोषी बनाया गया, उसके बाद से ही ऐसे मामलों में कमी आनी शुरू हो जाएगी।

दूसरी तरफ भूखल घासी का नाम बीपीएल सूची में दर्ज रहने के बाद भी उसके पास सरकारी राशन कार्ड के नहीं होने के कारण पर मृतक के गांव के बगल की गांव टोंडरा निवासी समाजिक कार्यकर्ता जब्बार अंसारी बताते हैं कि पूरा प्रखंड दलालों के कब्जे में है। वे ही तय करते हैं कि किसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए और किसे नहीं।

ता दें कि भूखल घासी का बीपीएल सूची में नाम दर्ज है, जिसका नंबर है 7449, बावजूद इसका सरकारी राशन कार्ड नहीं था। झारखंड में भूख से मरने की यह कोई पहली घटना नहीं है। पिछले तीन साल के दरम्यान राज्य में भूख से 23 मौतें हुई हैं। हर मौत पर सरकारी अमला दो-चार दिन तक अपनी सक्रियता इस कदर दिखाता है गोया ऐसी घटना अब अंतिम होगी। मगर पुन: सारा कुछ यथावत हो जाता है।

जे की बात तो यह है कि भूख से हुई तमाम मौतों को प्रशासन बीमारी से हुई मौत साबित करने में जुट जाता है। सिमडेगा की 11 वर्षीया संतोषी की मौत हो, या रामगढ़ के 40 वर्षीय चिंतामल मल्हार की, सभी मौतों को प्रशासन उसे बीमारी से हुई मौत साबित करने की कवायद में सफल भी हो जाता है और सरकारी आंकड़ों में भूख से होने वाली मौत गायब हो जाती है, यही कारण है कि ऐसी मौतों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते हैं। वैसे भी इन मौतों को बीमारी या कुपोषण मान भी लिया जाय, तो भी इन मौतों में जो कारण उभर कर सामने आते हैं वे भोजन की अनुपलब्धता ही दर्शाते हैं।

खिर क्या कारण है कि भूख से मरने वालों में दलित और आदिवासी होते हैं। पिछले तीन वर्षों में भूख से हुई मौतों के आंकड़े साफ दर्शाते हैं। जो आंकड़े उपलब्ध हैं उसके अनुसार दिसम्बर 2016 से अबतक झारखंड में भूख से लगभग 23 लोगों की मौत भोजन की अनुपलब्धता के कारण हुई है-

1. इंदरदेव माली (40 वर्ष) हजारीबाग — दिसंबर 2016

2. संतोषी कुमारी (11 वर्ष) सिमडेगा — 28 सितंबर 2017

3. बैजनाथ रविदास, (40 वर्ष) झरिया — 21 अक्टूबर 2017

4. रूपलाल मरांडी, (60 वर्ष) देवघर — 23 अक्टूबर 2017

5. ललिता कुमारी, (45 वर्ष) गढ़वा — अक्टूबर 2017

6. प्रेममणी कुनवार, (64 वर्ष) गढ़वा — 1 दिसंबर 2017

7. एतवरिया देवी, (67 वर्ष) गढ़वा — 25 दिसंबर 2017

8. बुधनी सोरेन, (40 वर्ष) गिरिडीह — 13 जनवरी 2018

9. लक्खी मुर्मू (30 वर्ष) पाकुड़ — 23 जनवरी 2018

10. सारथी महतोवाइन, धनबाद — 29 अप्रील 2018

11. सावित्री देवी, (55 वर्ष) गिरिडीह — 2 जून 2018

12. मीना मुसहर, (45 वर्ष) चतरा — 4 जून 2018

13. चिंतामल मल्हार, (40 वर्ष) रामगढ़ — 14 जून 2018

14. लालजी महतो, (70 वर्ष) जामताड़ा — 10 जुलाई 2018

15. राजेंद्र बिरहोर, (39 वर्ष) रामगढ़ — 24 जुलाई 2018

16. चमटू सबर, (45 वर्ष) पूर्वी सिंहभूमि — 16 सितंबर 2018

17. सीता देवी, (75 वर्ष) गुमला — 25 अक्टूबर 2018

18. कालेश्वर सोरेन, (45 वर्ष) दुमका — 11 नवंबर 2018

19. बुधनी बिरजिआन, (80 वर्ष) लातेहार — 1 जनवरी 2019

20. मोटका मांझी, (50 वर्ष) दुमका — 22 मई 2019

21. रामचरण मुंडा, (65 वर्ष) लातेहार — 5 जून 2019

22. झिंगूर भूंइया, (42 वर्ष) चतरा — 16 जून 2019

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