Begin typing your search above and press return to search.
पर्यावरण

कोरोना से भी भयानक महामारियों वाले वायरस से जूझेगी दुनिया, शोध ने किया आगाह

Prema Negi
14 April 2020 12:56 PM GMT
कोरोना से भी भयानक महामारियों वाले वायरस से जूझेगी दुनिया, शोध ने किया आगाह
x

क्या महामारी के दौर खत्म होने के बाद दुनिया पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक समानता और लैंगिक समानता की तरफ ध्यान देगी, या फिर पहले जैसी ही समस्याएं बनी रहेंगी...

कोरोना की भयावहता के बीच अधिकतर प्रयोगशालाएं बंद हैं और वैज्ञानिक एक दल जैसा काम नहीं कर सकते। फिर भी किये जा रहे हैं ढेर सारे अध्ययन, उम्मीद की जानी चाहिए कि इन वास्तविक प्रयोगों के नतीजे भविष्य की नीतियों में शामिल किये जायेंगे, जिससे अगली बार यदि कोई आपदा आये तो इंसान पहले से अधिक मजबूत होकर उसका मुकाबला कर सके...

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। दार्शनिक फ्रेडेरिक एंगेल्स ने कहा था, प्रकृति पर अपनी मानवीय विजय से हमें आत्म-प्रशंसा में विभोर नहीं होना चाहिए, क्योंकि प्रकृति हरेक ऐसी विजय का हमसे प्रतिशोध लेती है। यह कथन आज के माहौल में पूरी तरह से सटीक बैठता है, जबकि प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करने का खामियाजा हम कोविड 19 के तौर पर भुगत रहे हैं।

कोरोना वायरस के पनपने का मुख्य कारण ऐसे वायरस हैं जो घने जंगलों के जानवरों में रहते थे, पर प्राकृतिक संसाधनों का विनाश कर हमने इन जन्तुओं को अपने इतने नजदीक पहुँचा लिया है कि उनके वायरस अब मनुष्यों तक पहुँच कर महामारी का रूप ले रहे हैं। अभी तो इससे भी भयानक वायरस के प्रसार के कयास लगाये जा रहे हैं।

मार्च 2020 में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार म्यांमार के जंगलों में मिलने वाले चमगादड़ों से कोरोना वायरस की 6 बिलकुल नई प्रजातियाँ खोजी गयीं हैं, जो दुनिया में अब तक कहीं नहीं मिली हैं। हालांकि इनकी संरचना सार्स, मर्स और कोविड 19 से भिन्न है, और इनका मनुष्यों पर प्रभाव अभी नहीं पता है, पर इतना तो तय है कि कोविड 19 से जूझ रही दुनिया आगे भी महामारी वाले वायरसों की चपेट में आ सकती है।

यह भी पढ़ें : कोरोना वायरस के खिलाफ प्रभावी हो सकता है एंटी वायरल ड्रग रेमेडिसविर : ICMR

स अध्ययन को स्मिथसोनियन यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, म्यांमार के कृषि मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय के वैज्ञानिकों ने संयुक्त तौर पर स्मिथ्सोनिअल ग्लोबल हेल्थ प्रोग्राम के तहत किया है। यह शोधपत्र पलोस वन नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इसके अनुसार आगे के अध्ययनों से यह स्पष्ट होगा कि ये नए वायरस मनुष्यों के लिए कितने खतरनाक है।

शोधपत्र के मुख्य लेखक मार्क वलितुत्तो के अनुसार वायरस से पनपने वाली महामारी से इतना तो स्पष्ट है कि मनुष्य का स्वास्थ्य, पर्यावरण और वन्यजीवों के स्वास्थ्य से जुड़ा है। पूरी दुनिया में मनुष्य और वन्यजीवों के बीच की दूरी कम होती जा रही है, इसलिए यह आवश्यक हो चला है कि इस वायरस को वन्यजीवों में ही खोज लिया जाए, उनमें परिवर्तन का अध्ययन किया जाए और वे कैसे दूसरे जंतुओं या मनुष्य में फैलते हैं, इसका समय रहते अध्ययन किया जाए।

न्हीं अध्ययनों से भविष्य में कोविड 19 जैसी दूसरी महामारी को नियंत्रित किया जा सकेगा। स्मिथसोनियन ग्लोबल हेल्थ प्रोग्राम के तहत उन परिस्थितियों को खोजा जा रहा है, जिसमें ऐसे वायरस मनुष्यों तक पहुंचते हैं। इसमें अध्ययन के क्षेत्र वे इलाके हैं जहां भूमि-उपयोग परिवर्तन या फिर इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के कारण मनुष्यों की आबादी वन्यजीवों के बहुत नजदीक आ गई है।

यह भी पढ़ें : जानें कोरोना से लड़ने में अमेरिका क्यों चूका? ट्रंप प्रशासन ने की ये बड़ी गलतियां

जून 2017 के वायरल एवोल्युशन नामक जर्नल के अंक में कोलंबिया यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दुनियाभर के चमगादड़ों की प्रजातियाँ कोरोनावायरस का भण्डार हैं, जिसमें हजारों प्रकार के वायरस पाए जाते हैं। इस दल ने 3 महादेशों के 20 देशों में वन्यजीवों से लगभग 100 प्रकार के कोरोना वायरस की खोज की थी, जिसमें से 98 प्रतिशत चमगादड़ों की विभिन्न प्रजातियों में मिले थे। इस दल के अनुसार दुनिया भर में मिलने वाले चमगादड़ों की सभी प्रजातियों में लगभग 3204 प्रकार के कोरोनावायरस मौजूद होंगे।

न्दन स्थित जूलॉजिकल सोसाइटी के प्रोफ़ेसर एंड्रू कनिंघम के अनुसार पहले से ही और खतरनाक वायरसों के फ़ैलने के बारे में वैज्ञानिकों ने आगाह किया था। सार्स वायरस के सन्दर्भ में वर्ष 2017 के एक अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया था कि हॉर्सशू नामक प्रजाति के चमगादड़ में सार्स जैसे वायरसों का भण्डार है, इसके साथ ही दक्षिणी चीन में वन्यजीवों का बाजार आने वाले वर्षों में अनेक नए रोगों को जन्म देने में सक्षम है।

यह भी पढ़ें : चीन में CORONA के दोबारा उभार के चलते बढ़ रही अफ्रीकियों पर नस्ली हिंसा की वारदातें

स महामारी के दौर में पूरी दुनिया एक बड़ी प्रयोगशाला बन गई है। इस समय विज्ञान के साथ ही समाज विज्ञान, मानव व्यवहार विज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में भी बहुत सारे अनुसंधान किये जा रहे हैं, क्योंकि आज किसी प्रयोग या अध्ययन के लिए किसी प्रयोगशाला की जरूरत नहीं है। पूरी दुनिया ही इस दौर में प्रयोगशाला बनी है। पर्यावरण वैज्ञानिक लॉकडाउन के बाद से गिरते वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण का अध्ययन कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार गैसों के उत्सर्जन में आती कमी का आकलन कर रहे हैं।

स समय अधिकतर देशों के नागरिक घरों में बंद हैं, और अपने आप को प्रयोगशालाओं में पिंजड़े में बंद चूहों की तरह समझ रहे हैं। इस समय समाज विज्ञानी भी लोगों को प्रायोगिक चूहे ही समझ रहे हैं, जिस पर बहुत सारे अध्ययन किये जा सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के नोबेल प्राइज विजेता अर्थशास्त्री जेम्स हेक्मैन, समाज शास्त्रियों को अनुसंधान के लिए आगे आने का आह्वान करते हुए कहते हैं, किसी भी संकट की स्थिति को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। हमें इस दौर में नयी जानकारी मिलेगी जिससे हम अपना भविष्य और बेहतर कर सकते हैं। यह एक अकल्पनीय मौका है, जब अधिक से अधित प्राकृतिक और वास्तविक अध्ययन किये जा सकते हैं।

मेरिका और यूरोप में इस समय अनेक अध्ययन किये जा रहे हैं, या फिर पुराने अध्ययनों को नए सिरे से किया जा रहा है। कोई इस आपदा का अध्ययन बच्चों के मनोविज्ञान पर शोध कर रहा है, कोई कोविड 19 के बाद से अमेरिका और यूरोप में पनपे एशियाई समुदाय के मुखर विरोध का अध्ययन कर रहा है तो कोई शोध कर रहा है कि तनाव झेलते लोग किसी खबर को कैसे परखते हैं और कैसे किसी खबर को विश्वसनीय मानते हैं?

यह भी पढ़ें : एक तिहाई पाकिस्तानियों ने कहा कोरोना वायरस है अमेरिका-इजराइल की साजिश

र्थशास्त्री यह अध्ययन करने में जुटे हैं कि एक अनिश्चित पर विश्वस्तरीय आपदा से उद्योग और बाजार कैसे निपटते हैं। शिक्षाशास्त्री अब ऑनलाइन शिक्षा और परम्परागत क्लासरूम शिक्षा में अंतर खोज रहे हैं। अनेक वैज्ञानिक और मनोविज्ञानी परम्परागत प्रयोगों और इस समय के प्रयोगों में अंतर भी समझा रहे हैं।

मान लीजिये, बेरोजगारी और रोजगार प्राप्त लोगों के व्यवहार का अध्ययन किसी वैज्ञानिक को करना है, तो सामान्य समय में यह एक कठिन और दीर्घकालीन अध्ययन होगा, पर आज के दौर में इसपर वास्तविक अध्ययन आसानी से किया जा सकता है। राजनीति शास्त्र में व्यापक अध्ययन किया जा रहा है कि सरकार की नीतियों और आपदा प्रदंधन में क्या अंतर होता है। दूसरे लोग अध्ययन कर रहे हैं कि अनिश्चित माहौल में नीति निर्धारक कैसे योजनायें बनाते हैं।

यह भी पढ़ें : कोरोना फैलने से पहले ही नवंबर में खुफिया एजेंसी ने दी थी चेतावनी, अमेरिकी न्यूज चैनल का सनसनजीखेज दावा

न दिनों अध्ययन और शोध का क्षेत्र बहुत व्यापक और जीवंत है, पर अधिकतर प्रयोगशालाएं बंद हैं और वैज्ञानिक एक दल जैसा काम नहीं कर सकते। फिर भी, बहुत सारे अध्ययन किये जा रहे हैं। आशा की जानी चाहिए कि इन वास्तविक प्रयोगों के नतीजे भविष्य की नीतियों में शामिल किये जायेंगे, जिससे अगली बार यदि कोई आपदा आये तो मानव जाति पहले से अधिक मजबूत होकर उसका मुकाबला कर सके।

र्यावरण विज्ञानी यह सुनिश्चित करें कि भविष्य का विकास प्रकृति के साथ और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के साथ होगा. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या महामारी के दौर खत्म होने के बाद दुनिया पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक समानता और लैंगिक समानता की तरफ ध्यान देगी, या फिर पहले जैसी ही समस्याएं बनी रहेंगी? इसका जवाब तो भविष्य के गर्त में ही छुपा है, जिसका हमें इंतज़ार करना पड़ेगा।

Next Story

विविध