अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज के निर्माण कार्य पर खर्च कर दिए 206 करोड़, पीने के पानी का ठिकाना नहीं
सात साल बाद भी पूरा नहीं हुआ उत्तराखंड में अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य, 327 में से 206 करोड़ रुपये हो चुके खर्च, 170 करोड़ रुपये दे चुकी केंद्र सरकार, 2012 में शुरु हुआ था निर्माण कार्य...
अल्मोड़ा से विमला की रिपोर्ट
उत्तराखंड के अल्मोड़ा के पाण्डेखोला में सात साल बाद भी 327 करोड़ के अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य अब तक पूरा नहीं हो पाया है। साल 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा इसका बिल पास किया गया था। फिर साल 2012 में इसका निर्माण कार्य शुरु किया गया जो पानी की कमी, ठेकेदारों को समय पर पेमेंट न हो पाने के कारण अबतक चल रहा है।
अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल गोपाल नौटियाल ने बताया कि 2004 में कांग्रेस सरकार द्वारा यह बिल पास किया गया था। 2012 में इसके निर्माण का कार्य उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को सौंपा गया। यह योजना केन्द्र सरकार से स्वपोषित है। 327 करोड़ का बजट है जिसमें केन्द्र सरकार 170 करोड़ रुपये दे चुकी है। 215 में से 206 करोड़ रुपये के कार्य हो चुके हैं।
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गोपाल नौटियाल आगे कहते हैं कि कालेज पिछले सत्र से ही शुरू होना था। फैकल्टी की दिक्कत के कारण नहीं हो पाया। अगले सत्र 2020 में कक्षाएं संचालित हो जाएंगी जिसके लिए स्टाफ की नियुक्ति शुरू हो गई है। 42 डॉक्टर नियुक्त हो चुके हैं। अन्य स्टाफ के लिए सरकार से अनुमति मांगी गई है जैसे ही सरकार से अनुमति मिलती है नियुक्ति करेंगें।
प्रोजेक्ट मैनेजर एन.सी. लोहनी का कहना है कि पैसा टाइम पर नहीं आया इसलिए अभी तक निर्माण कार्य रूका हुआ है। 2012 में जब योजना शुरू हुई तब से हमें 215 करोड़ ही मिला है, 2014 में एस्टीमेट बनाया गया था। इसमें अभी 250 के आसपास मजदूर हैं जो काम कर रहे हैं। पहले बैच के 100 बच्चों के लिए बिल्डिंग तैयार है। बाकी कब होगी पता नहीं, अगर बजट आया तो करेंगें।
उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के सुपरवाइजर राजेंद्र सिंह मेहरा ने कहा, पांच वर्ष पहले इसका शिलान्यास हुआ है। निर्माण कार्य चल रहा है। 2 करोड़ 16 लाख का बजट अभी तक मिला है। 112 करोड़ अभी रिलीज होना बाकी है। उनका कहना है कि निर्माण कार्य अभी तक पूरा न होने का कारण पानी भी है। यहां पर पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। जल संस्थान के द्वारा जो पानी दिया जाता है उससे यहां की पूर्ति नहीं होती है।,
राजेंद्र सिंह मेहरा आगे बताते हैं, 'पानी की कमी की वजह से कई दिनों तक काम बन्द रहता है। हमें यहां पर पानी खरीदना पड़ रहा है। मजदूर लगाकर कोशी नदी से पानी की व्यवस्था करते हैं। कोशी नदी यहां से लगभग 8 किलोमीटर दूर है। पेयजल निगम को पीने के पानी का एस्टीमेट दिया गया है जो अभी लागू नहीं हुआ है। वो कहते हैं कि सरकार अगर टाइम पर बजट और पानी की व्यवस्था करें तो काम समय पर काम हो सकता है।'
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नाम न बताने की शर्त पर वहां के एक कर्मचारी ने बताया कि मेडिकल कॉलेज अब लगभग पूरा होने को है। अबतक यहां पर पीने के पानी की व्यवस्था नहीं की गई है। बिल्डिंग के कामों के लिए जो पानी आता है वह एकदम खारा पानी है जो पीने योग्य नहीं है। जो आ भी रहा है वह भी प्रयाप्त मात्रा में नहीं मिल रहा है। पानी की कमी की वजह से कई दिनों तक यहां पर काम नहीं चलता। सरकार बजट भी टाइम पर नहीं देती जिससे ठेकेदार मजदूरों को समय पर पेमेंट नहीं कर पाते। अगले सत्र से कक्षाएं संचालित करने की घोषणा तो कर दी लेकिन स्टाफ क्वाटरों में अभी तक पानी व्यवस्था नहीं हुई है। उचित फर्नीचर की व्यवस्था भी नहीं है।
सामाजिक कार्यकर्ता पूरन चन्द्र तिवारी सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, बात सिर्फ मेडिकल कॉलेज की नहीं है, उत्तराखंड में जो कॉलेज पहले खुल चुके हं वो भी ढंग से नहीं चल रहे हैं। जहां तक अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज की बात है 2012 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ। करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी मूलभूत सुविधाएं नहीं है।
उन्होंने आगे कहा, 'हर साल सरकार आश्वासन ही दे रही है कि अगले सत्र से कालेज शुरू होगा। वह आश्वासन तक ही सीमित है। पूरा हो भी जाता है तो स्टाफ की कमी होगी, डॉक्टर नहीं होंगे। श्रीनगर गढ़वाल का मेडिकल कालेज है वहां अभी तक स्टाफ नहीं है। अभी तक जितने भी मेडिकल कॉलेज उत्तराखंड में बने हैं उनकी हालत खस्ता है।'
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उन्होंने आगे कहा कि सुशीला तिवारी अस्पताल की बात करें तो इसकी हालत बहुत खराब है। आए दिन उसके उपकरण खराब हो जाते हैं, अच्छे डॉक्टर और सर्जन नहीं हैं। दवाईयां नहीं है, मेडिकल कॉलेज बना भी देते हैं तो उनका क्या फायदा। यही हाल डिग्री कालेजों का भी है। ग्रामीण क्षेत्रों में जो डिग्री कालेज हैं वहां स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो रही है। शिक्षा व्यवस्था इतनी मंहगी कर दी है कि आम घरों के बच्चे पढ़ ही नहीं सकते।
पूरन चंद्र तिवारी आगे कहते हैं, 'अभी जेएनयू का प्रकरण चल रहा है इतने बच्चे निकलते हैं, बौद्धिक चेतना है उसके बाद भी केंद्र सरकार उसे नष्ट कर देना चाहती है। गरीब तबके का बच्चा भी वहां पढ़ सकता है। जनवादी विचारधारा है इसलिए उनका दमन किया जा रहा है।'