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शिक्षा

उत्तराखण्ड में दलित छात्रावासों में खराब खाने और गंदे पानी से रोगों की बढ़ी संभावना, पीलिया-पथरी की शिकायतें आईं सामने

Nirmal kant
20 Nov 2019 12:54 PM GMT
उत्तराखण्ड में दलित छात्रावासों में खराब खाने और गंदे पानी से रोगों की बढ़ी संभावना, पीलिया-पथरी की शिकायतें आईं सामने
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उत्तराखंड सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा प्रत्येक जिला मुख्यालय में अंबेडकर छात्रावास स्थापित किए गए हैं, ये छात्रावास भी इन छात्रों की बुनियादी समस्याओं को भी हल नहीं कर पाते हैं...

अल्मोड़ा से किशोर कुमार की रिपोर्ट

त्तराखंड में अनुसूचित जाति की आबादी लगभग बीस फीसदी है। यहां दलित समुदाय का बहुत छोटा सा हिस्सा ही उच्च शिक्षा हासिल कर पाता है। उसकी वजह यह है कि गांव या नजदीकी इलाके में उच्च शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं है इसलिए दूरदराज से आने वाले दलित समुदाय के छात्रों को उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए जिला मुख्यालय स्थित डिग्री कॉलेजों का रुख करना पड़ता है।

लेकिन इन शहरों में भी जातिवाद उनका पीछा नहीं छोड़ता है और कमोबेश साधन विहीन ये छात्र अपनी जाति के कारण किराए पर कमरा पाने में असमर्थ रहते हैं। उनकी इन्हीं समस्याओं को देखते हुए उत्तराखंड सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा प्रत्येक जिला मुख्यालय में अंबेडकर छात्रावास स्थापित किए गए हैं। ये छात्रावास भी इन छात्रों की बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाते।

छात्रावास कॉलेजों से काफी दूरी पर बनाए गए हैं, जहां से कॉलेज तक पहुंचने के लिए छात्रों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। कई बार तो यह दूरी 5 से 10 किलोमीटर तक की भी है। अल्मोड़ा का अंबेडकर छात्रावास फलसीमा, कॉलेज से 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर है। आवागमन के साधन आमतौर पर उपलब्ध नहीं होते और जो होते हैं उनमें हर रोज इन गरीब बच्चों का काफी पैसा केवल आने जाने में ही खर्च हो जाता है। गौरतलब है कि इन छात्रावासों में अधिकतम 50 बच्चों के रहने की व्यवस्था है जिनमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अनुसूचित जाति के बच्चों को रखा जाता है। यह चयन मेरिट के आधार पर होता है।

छात्रों को प्रतिदिन 69 रुपये की दर से मिलता है भोजन

छात्रावासों से जुड़ी दूसरी सबसे बड़ी समस्या भोजन की है। नियमानुसार इन छात्रावासों में मैस्स की व्यवस्था होनी चाहिए लेकिन सभी छात्रावासों में यह व्यवस्था मौजूद नहीं है। जहां यह व्यवस्था मौजूद है वहां इसे ठेकेदारी पर चलाया जाता है और प्रतिदिन प्रति छात्र 69 रुपये की दर से भोजन छात्रों को मुहैया कराया जाता है। गौरतलब है कि 69 रुपये में गुणवत्ता युक्त भोजन मिलना नामुमकिन है। यह भी देखने लायक है कि जनजाति छात्रावासों में यह दर 100 रुपये की है। अल्मोड़ा के अंबेडकर हॉस्टल में चार टाइम का मैन्यू का बोर्ड लगा हुआ है, मगर बामुश्किल दो समय का खाना मिल पाता है।

श्रम पद्धति छात्रावासों में 200 रुपये की है और खेल छात्रावासों में 150 से 200 रुपये के बीच की है। 69 रुपये में जो भोजन इन छात्रों को मुहैया कराया जाता है वह इतना खराब है खाया भी नहीं जा सकता। कहने को तो कागज में भोजन का मैन्यू की बना हुआ है लेकिन वह मैन्यू केवल कागज में ही है। आजतक एक बार भी मैं मैन्यू के हिसाब से भोजन कभी भी छात्रों को उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। पानी की व्यवस्था के लिए फिल्टर या आरओ आदि की व्यवस्था भी बेहद खराब और दोषपूर्ण है। खराब किस्म के फिल्टर लगाए गए हैं जिससे अधिकांश छात्र पीलिया, किडनी, स्टोन जैसी कई बीमारियों का शिकार पिछले कई वर्षा में हुए हैं।

''भोजन का रेट तो बढ़ेगा। मुख्यमंत्री की ओर से घोषणा की जा चुकी है। भोजन के रेट के टेंडर हो चुके हैं। पांच-दस दिन में शासन का आदेश भी निकल जाएगा। उसके बाद ही यह प्रक्रिया प्रारंभ होगी।'' यशपाल आर्य, समाज कल्याण मंत्री

पिछले तीन सालों से नहीं मिली छात्रवृत्ति

छात्राओं के लिए पृथक छात्रावास की व्यवस्था भी नियमानुसार होनी चाहिए लेकिन केवल दो ही जगह पर पूरे प्रदेश में छात्राओं के लिए प्रथक छात्रावास बने हुए हैं। पिछले 3 साल से अनुसूचित जाति के छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति को सरकार की तरफ से अकारण ही रोक दिया गया है जिससे अति गरीब तबके से आने वाले इन छात्रावासों के छात्रों के पढ़ाई और अन्य खर्चे निकालने मुश्किल हो गए हैं। गांव में रहने वाले गरीब मां-बाप इनकी पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ हैं, जिस कारण कई बच्चे पढ़ाई छोड़ने को भी विवश हुए हैं।

छात्रावास में फर्नीचर, साफ-सफाई, शौचालय एवं सुरक्षा की व्यवस्था बहुत ही खराब है। सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं, यहां तक कि छात्राओं के छात्रावास में भी समुचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं है। नियमानुसार समाज कल्याण विभाग द्वारा सभी छात्रावासों में वार्डन, गार्ड और आकस्मिक स्थिति के लिए एक पैरामेडिक की नियुक्ति की जानी चाहिए थी लेकिन अधिकांश छात्रावासों में वार्डन की व्यवस्था भी नहीं। छोटी-छोटी समस्याओं के लिए भी छात्रों को बहुत अधिक परेशान होना पड़ता है।

'2017-18 की छात्रवृत्ति सिर्फ ओबीसी की नहीं मिली है और 2018-19 की बाकी सभी (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आदि) को नहीं मिली है। अनुसूचित जाति के लगभग 20 प्रतिशत छात्र अभी रह गए हैं। जो टेक्नीकल इश्यू की वजह से रह गए हैं। 2018-19 का अभी सत्यापन हो चुका है ।' गीताराम नौटियाल, समाज कल्याण निदेशक

जिले के छात्रावास में 50 छात्र ही ले सकते प्रवेश

छात्र संख्या को 50 तक सीमित रखना भी एक समस्या है। 1 जिले में केवल अधिकतम 50 बच्चे ही इन छात्रावासों में प्रवेश ले सकते हैं। अनुसूचित जाति के अन्य बच्चों को कमरा ना मिलने, पढ़ाई व रहने का खर्च का न उठा पाने के कारण अधूरी पढ़ाई ही छोड़कर काम की तलाश करनी पड़ती है। लंबे समय से छात्रों की मांग रही है कि प्रत्येक अंबेडकर छात्रावास में एक अंबेडकर लाइब्रेरी का प्रावधान भी किया जाए जिसमें प्रतियोगी परीक्षाओं के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी बच्चों को पढ़ने को मिल सकें। इस ओर भी समुचित ध्यान नहीं दिया जा सका है।

पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो रहे अनुसूचित जाति के छात्र

इन समस्याओं के अलावा भी कई अन्य समस्याओं से छात्र निरंतर रूबरू होते हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए छात्रों ने अपने अध्यक्ष किशोर कुमार के नेतृत्व में समाज कल्याण अधिकारी, जिलाधिकारी, विधायक समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य, सांसद और सीधे मुख्यमंत्री तक से बात कर कई बार प्रतिवेदन और ज्ञापन दिए हैं। कई बार मुलाकात की जा चुकी हैं, लेकिन समस्याएं जस की तस बनी हुई है। सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से कमजोर अनुसूचित जाति समुदाय के बच्चे सरकार द्वारा समुचित संरक्षण के अभाव में अपनी पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। शायद सरकार यही चाहती है।

योगेश कुमार

भीमराव अंबेडकर छात्रावास फलसीमा के योगेश कुमार बताते हैं कि यहां बहुत तकलीफ उठानी पड़ रही है। रास्ते में कभी-कभी जानवरों का आतंक रहता है। यहां छात्रावास में भी कई बार जानवर दिख जाते हैं। रात को बाघ दिख जाते हैं। यहां खाने की भी समस्या है, भोजन लेट मिलता है, गुणवत्तापूर्ण भोजन नहीं मिलता है। तीन साल हो गए हैं लेकिन अनुसूचित जाति की छात्रवृत्ति नहीं मिल रही है।

छात्रावास में रहने वाले एक अन्य छात्र अभिषेक कुमार बताते हैं कि यहां की समस्या बहुत भयावह है। यहां जंगली जानवर हॉस्टल का दरवाजा दर खटखटा जाते हैं। यहां खाना अच्छा नहीं मिलता है। पिछले दो-तीन दिनों से खाने में महक आ रही है। मेरी दरख्वास्त है कि सभी को छात्रावास में अच्छा मिले।

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