Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

सोशल मीडिया आज के दौर का सबसे घातक हथियार, इसके झूठ-अफवाह और फरेब के गहरे जाल में फंसा समाज का हर तबका

Janjwar Desk
24 Feb 2023 12:48 PM IST
सोशल मीडिया आज के दौर का सबसे घातक हथियार, इसके झूठ-अफवाह और फरेब के गहरे जाल में फंसा समाज का हर तबका
x

file photo

Social media : दुनिया में हिंसा और घृणा फैलाने वालों के लिए सोशल मीडिया के प्लेटफोर्म किसी जन्नत से कम नहीं है और ऐसे लोगों के एकजुट होने का इससे अच्छा माध्यम कोई और हो नहीं सकता...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Social media is the leading cause for erosion of democracy globally. घातक हथियारों का उपयोग युद्ध में किया जाता है, पर इन जैविक और परमाण्विक हथियारों से भी अधिक खतरनाक सोशल मीडिया है, जो पूरी दुनिया को खोखला करता जा रहा है और जनता को तबाह कर रहा है। युद्ध और इसमें उपयोग किये जाने वाले हथियारों का प्रभाव एक क्षेत्र में पड़ता है, पर सोशल मीडिया का हथियार तो वैश्विक है।

सोशल मीडिया ने झूठ, अफवाह और फरेब का ऐसा जाल बुना है जिससे समाज का हरेक तबका प्रभावित है। समाज बिखर रहा है, प्रजातंत्र मर रहा है, महिलाओं की सुरक्षा खतरे में है और निरंकुश तानाशाही का दौर वापस आ गया है – इन सबके बीच सोशल मीडिया वाली टेक कंपनियों का मुनाफ़ा बढ़ता जा रहा है।

हाल में ही शी-पर्सिस्टेड (ShePersisted) नामक संस्था ने मोनेटाइज़िंग मिसोगिनी (Monetizing Misogyny) नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट को सोशल मीडिया द्वारा हंगरी, भारत, बाजील, इटली और तुनिशिया में महिलाओं पर हमले, चरित्र हनन और धमकियों के व्यापक अध्ययन के बाद तैयार किया गया है। इसके अनुसार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म महिलाओं के प्रति हिंसा फैलाकर मालामाल हो रहे हैं।

सामान्य से लेकर विशेष महिलायें – सभी इस हिंसा की चपेट में हैं। हाल में ही न्यूज़ीलैण्ड की पूर्व प्रधानमंत्री जेसिन्दा आर्डर्न ने और स्कॉटलैंड की अकेली मंत्री निकोला स्टर्जन ने अपना त्यागपत्र देते समय एक जैसी ही बात कही थी – दोनों ही सोशल मीडिया पर अपने विरुद्ध चलाये जा रहे हिंसक अभियान से आहट थीं और यही पद को छोड़ने का मुख्य कारण है।

ऐसे हिंसक अभियान पूरी दुनिया में दक्षिणपंथी विचारधारा और कट्टरपंथियों की विपक्ष, विरोधियों और पत्रकारों के प्रति राजनीति से जुड़े हैं और इसे सोशल मीडिया पूरी बेशर्मी से आगे बढ़ा रहा है। ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया पर ऐसे मेसेज गलती से पहुँच जाते हैं, बल्कि सोशल मीडिया का मौलिक डिजाईन ही हरेक प्रकार के नफरत के व्यापक प्रसार के लिए ही तैयार किया गया है, और ऐसे ही नफरत के व्यापक प्रसार पर सोशल मीडिया की कमाई टिकी है।

दुनियाभर में राजनीतिक चुनावों के बीच सोशल मीडिया इसी नफरत और अफवाह के बाजार से अपना मुनाफ़ा बढाता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान दुनिया में जहा भी चुनाव हुए हैं – हरेक जगह सोशल मीडिया ने निरंकुश और दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों के समर्थन में झूठ, और अफवाह का व्यापक प्रसार किया है, और अनेकों मामले में हिंसा भी भड़काई है।

सोशल मीडिया के प्रभाव से चुनावों से सम्बंधित हिंसा चुनाव नतीजों के दिन ख़त्म नहीं होती बल्कि महीनों बाद तक सुलगती रहती है। इसका उदाहर जनवरी में ब्राज़ील में देखने को मिला और इससे पहले अमेरिका में भी देखा गया था। दुनियाभर से प्रजातंत्र को ख़त्म करने का काम सोशल मीडिया बड़े पैमाने पर कर रहा है। कुछ दशक पहले तक निरंकुश सत्ता के लिए जन समर्थन जुटाना जितना दुरूह था, अब सोशल मीडिया के जमाने में यह काम उतना ही आसान हो गया है। यह सब सोशल मीडिया द्वारा प्रसारित इनफार्मेशन पोल्यूशन का कमाल है।

सोशल मीडिया वाली टेक कंपनियों ने अपने प्लेटफॉर्म को इस तरह के फीचर्स से लैस किया है जिससे चुनावों के दौरान अफवाह और झूठ का बाजार गर्म रहे और सडकों पर हिंसा भड़कती रहे। पिछले 2 वर्षों के दौरान ही अमेरिका, ब्राज़ील, जर्मनी और केन्या के चुनावों में सोशल मीडिया की दखलंदाजी पूरी दुनिया देख चुकी है। इसी दौरान म्यांमार, केन्या और इथियोपिया में सोशल मीडिया द्वारा हिंसा को भी भड़काया गया है, पर चुनावों के सन्दर्भ में भविष्य और भी भयानक है।

सोशल मीडिया द्वारा चुनावों में दखलंदाजी के नए तरीके सामने आ रहे हैं तो दूसरी तरफ वर्ष 2023 और 2024 के दौरान भारत समेत दुनिया के 90 देशों में चुनाव होने हैं जिसमें 2 अरब से अधिक मतदाता शरीक होंगें। वर्ष 2023 में ही दुनिया के 70 देशों में चुनाव होने हैं। जाहिर है, सोशल मीडिया हरेक जगह कट्टरपंथियों की हिंसक राजनीति को आगे बढ़ाएगा।

सोशल मीडिया पर किस तरह किसी भी देश में चुनावों में दखलंदाजी के लिए टेक कंपनियों के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय गिरोह काम करता है इसका उदाहरण ब्राज़ील में देखने को मिला। ब्राज़ील में जनता के बीच सोशल मीडिया ने मेल-इन-वोटिंग के विरोध में तमाम पोस्ट का प्रसार किया। तथ्य यह है कि ब्राज़ील में मेल-इन-वोटिंग चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है, यह जर्मनी और अमेरिका में मान्य है।

दुनिया में हिंसा और घृणा फैलानेवालों के लिए सोशल मीडिया के प्लेटफोर्म किसी जन्नत से कम नहीं है और ऐसे लोगों के एकजुट होने का इससे अच्छा माध्यम कोई और हो नहीं सकता। सोशल मीडिया की अनेक साइट्स ऐसी हैं, जिन पर आप अपनी पसंद से ग्रुप बना सकते हैं। दुनियाभर में घृणा और हिंसा फैलाने वालों के लिए ये सभी साइट्स पसंदीदा अड्डा हैं, जहां ऐसे लोग लगातार किसी वर्ण के विरुद्ध, किसी नस्ल के विरुद्ध या फिर किसी विचारधारा के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं। जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर नील जॉनसन ने सोशल मीडिया पर हिंसा और घृणा फैलाने वाले समूहों का बारीकी से अध्ययन किया है, और इससे सम्बंधित उनका लेख प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका नेचर ने प्रकाशित किया था।

टोनी ब्लेयर इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया के इस दौर में लोकलुभावनवादी सत्ता को विस्थापित करना एक कठिन काम है क्योंकि दूसरे दल या फिर नेता उतना झूठ नहीं बोल पाते जितना लोकलुभावनवादी नेता बोलते हैं, और सोशल मीडिया पर सच नहीं बल्कि झूठ और हिंसा का बोलबाला है। रिपोर्ट के अनुसार लोकलुभावनवादी सत्ता से दूसरे राजनीतिक दल उनके अंदाज में नहीं लड़ सकते, या मुकाबला कर सकते। दूसरे दलो को यदि सही में मुकाबला करना है तो फिर उन्हें अपना एक स्पष्ट एजेंडा बनाकर जनता के बीच उतरना होगा और लोकलुभावनवादी नेताओं के विरोध पर आधारित प्रचार से बचना होगा।

इस दौर में सूचनाओं के आदान प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम सोशल मीडिया है. यही सोशल मीडिया अब लोगों को गुमराह, प्रभावित और दिग्भ्रमित करने का एक कपटी हथियार बन गया है। दुष्प्रचार तो केवल इसका पहला चरण है, जिसके प्रभाव से लोकतंत्र ध्वस्त हो रहा है, पड़ोसी देशों को चकमा दिया जा रहा है और लोगों की सोच का दायरा निर्धारित किया जा रहा है।

सोशल मीडिया को बाजार तक लाने वाली कंपनियों ने आरम्भ में लोगों को व्यापक अनियंत्रित जानकारी और स्वच्छंद वातावरण से सशक्तीकरण का झांसा दिया था, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, अलबत्ता यह दुष्प्रचार और गलत जानकारियों का ऐसा सशक्त माध्यम बन गया, जिससे एक साथ करोड़ों लोगों को आसानी से गुमराह किया जा सकता है। हालत यहाँ तक पहुँच गयी है की सही जानकारियों पर लोगों ने भरोसा करना बंद कर दिया है और गलत समाचारों को दुनियाभर में पहुंचाया जा रहा है।

दुनियाभर की वे शक्तियां, जिनका अस्तित्व दुष्प्रचार और अफवाहों पर ही टिका है, उनके लिए तो ये एक अनमोल माध्यम बन गया है। इन शक्तियों ने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि तेजी से वैश्विक होती दुनिया में अधिकतर लोग दुविधा में हैं और ऐसे स मय उनके विचारों को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। दुनियाभर के देशों में पिछले कुछ वर्षों के भीतर ही एकाएक घुर दक्षिणपंथी दलों का सरकार पर काबिज होना महज एक इत्तिफाक नहीं है, यह सब सोशल मीडिया की ताकत है। आज स्थिति यह है की आप किसी घटना या फिर वक्तव्य की सत्यता को परखने का कितना भी प्रयास करें, दुष्प्रचार बढ़ता ही जाता है।

सोशल मीडिया ने सामाजिक और राजनीतिक मान्यताएं पूरी तरह से बदल दी हैं। हिंसा, घृणा और झूठ जो समाज में कई परतों के भीतर छुपा था अब सामने आ रहा है और इसका समाज और सत्ता पर परिणाम भी स्पष्ट हो रहा है।

Next Story

विविध