बिहार विधान परिषद चुनाव:बीजेपी में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति

नामांकन का कार्य 18 जून से शुरू हो चुका है। दावेदार लामबंदी और खेमेबाजी में जुट गए हैं तो पार्टी जातिगत समीकरण साधने की कवायद में है...

Update: 2020-06-21 13:09 GMT

जनज्वार ब्यूरो पटना। विधानसभा कोटे से बिहार विधान परिषद की सात सीटों के लिए चुनावी तिथि की घोषणा हो चुकी है। इसके साथ ही राज्यपाल मनोनयन कोटे से भी सीटें खाली हुईं हैं। सभी दलों में एक अनार और सौ बीमार वाली स्थिति है। अभी किसी भी दल ने अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है पर दावेदार लामबंदी और गणेश परिक्रमा में जुट गए हैं।विधानसभा के चुनाव भी इसी वर्ष होने हैं, लिहाजा राजनैतिक दल जातीय समीकरण साधने की कवायद में जुटे हैं। एक-एक कर सभी दलों के दावेदारों पर नजर डालेंगे पर आज सबसे पहले बीजेपी के दावेदारों पर नजर डालते हैं।

विधान परिषद में भारतीय जनता पार्टी इस बार अपने कम से कम सात नेताओं की उपस्थिति बनाने की योजना बना रही है। पार्टी का लक्ष्य है कि मनोनयन कोटे से पांच और विधायक कोटे से भाजपा के दो विधान पार्षद हों। इसे देखते हुए विधान परिषद में जाने के लिए भाजपा में दावेदार सक्रिय हो गये हैं। जातीय गोलबंदी तो की ही जा रही है, साथ-साथ राजनीतिक आधार भी सशक्त करने में दावेदार जुट गये हैं।

अभी भाजपा की विधान परिषद में सात सीटें रिक्त होने जा रही है। इन रिक्त सीटों में से दो पार्षद विधायक कोटे से जबकि पांच गर्वनर कोटे से चुने जायेंगे। संप्रति संजय मयूख, कृष्ण कुमार और राधा मोहन शर्मा भाजपा कोटे से पार्षद हैं। इस बार कौन उम्मीदवार होंगे,यह अगले एक दो दिनों में होनेवाली भाजपा चुनाव समिति की बैठक में तय होगा। फिलहाल विधान परिषद की सात सीटों के लिए भाजपा में दो दर्जन से भी ज्यादा दावेदार हैं।

जातीय आधार पर यदि दावेदारी की चर्चा करें तो कुशवाहा समाज से पटना नगर निगम के पूर्व उप महापौर रूप नारायण मेहता, भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष रह चुकीं हेमलता वर्मा और रत्नेश कुशवाहा की दावेदारी सामने आ रही है। ये तीनों नेता भाजपा के बड़े नेताओं से जुड़े हुए हैं।

कायस्थ कोटा से संजय मयूख का फिर उम्मीदवार होना तय माना जा रहा है। संजय मयूख बिहार से दिल्ली तक अपनी पैठ बनाने वाले नेताओं में शुमार हैं। फिलहाल वे पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया सह प्रभारी हैं।वे गृहमंत्री अमित शाह के गुड बुक में भी शुमार हैं। हालांकि उनकी दावेदारी को पूर्व सांसद आरके सिन्हा के पुत्र ऋतुराज सिन्हा से चुनौती मिल रही है। इन दोनों के अलावा भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेश वर्मा भी प्रबल दावेदार हैं।

क्या चुनाव समिति किसी एक कुशवाहा के नाम पर मुहर लगाती है, इस पर सभी टकटकी लगाये बैठे हैं। अतिपिछड़ा वर्ग से भी बीजेपी में दावेदारों की संख्या कम नहीं है। ऐसे दावेदारों में प्रवीण तांती, प्रमोद चंद्रवंशी, जयनाथ चौहान और संजय चंद्रवंशी का नाम चर्चा में है। अतिपिछड़ा वर्ग से विधान परिषद में जाने के लिए जो भी नाम चर्चा में हैं, वे पार्टी में किसी न किसी मंच मोर्चे में हैं। चर्चा है कि सभी दावेदार राजनीतिक स्तर पर भी लॉबी कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी के कोटे से कुर्मी जाति का कोई प्रतिनिधि पिछले ३०सालों से विधान पार्षद नहीं बना है। १९९० में राम प्यारे लाल विधान पार्षद बने थे। कुमुद बिहारी सिंह पिछले दो बार से दावेदारी करते रहे हैं, लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही। वे डिप्टी सीएम सुशील मोदी के करीबी माने जाते हैं। वैसे आम तौर पर माना जाता है कि कुर्मी जाति के उम्मीदवार जदयू कोटे से ही जाएंगे।

दलित समाज से गोपालगंज के पूर्व सांसद जनक चमार, जबकि यादव वर्ग से सीवान के पूर्व सांसद ओम प्रकाश यादव की दावेदारी सामने आ रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में गठबंधन के कारण गोपालगंज और सीवान दोनों सीट जदयू के कोटे में चली गई थी, जिस कारण सिटिंग होते हुए भी बीजेपी ने इन दोनों सांसदों की टिकट काट दी थी। इन दोनों के अलावा वैश्य समाज से सुरेश रूंगटा और राजेन्द्र गुप्ता का नाम भी चर्चा में है। राजेन्द्र गुप्ता भाजपा कोटा से एक बार एमएलसी रह चुके हैं। सुरेश रूंगटा का मामला पिछले कई टर्म से किसी न किसी वजह से अटकता आ रहा है। रूंगटा पथ निर्माण मंत्री नंद किशोर यादव के बाल सखा है। यदि राजेन्द्र गुप्ता का मामला किसी कारण से अटका तो सुरेश रूंगटा के परिषद में जाने का रास्ता खुल सकता है। विधान परिषद के लिए 18 जून से नामांकन शुरू हो गया है। २५ को नामांकन की अंतिम तिथि है। २६ को स्कूटनी होगी। २९ को नामांकन वापसी का आखरी दिन है।

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