लालू प्रसाद के रघुवंश बाबू छोड़ गए राजद, तेजस्वी-तेजप्रताप के बड़बोलेपन ने जाने को किया मजबूर!
लालू प्रसाद को भेजे अपने संक्षिप्त हस्तलिखित इस्तीफे में उन्होंने लिखा है 'जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद आपके पीठ पीछे 32 वर्षों तक खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं, पार्टी नेता, कार्यकर्ता तथा आमजन ने मुझे बड़ा स्नेह दिया, मुझे क्षमा करें...
जनज्वार ब्यूरो, पटना। तो आखिरकार लालू प्रसाद के 'ब्रह्म बाबा' रघुवंश प्रसाद सिंह नहीं माने और उन्होंने पार्टी भी छोड़ दी। इससे पहले उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब भी उन्होंने अस्पताल से ही इस्तीफा भेजा था और अब भी अस्पताल से ही इस्तीफा भेजा है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद को उन्होंने अपना हस्तलिखित इस्तीफा दिल्ली के उस एम्स अस्पताल से भेजा है, जहां वे इलाज के लिए अभी भर्ती हैं।
लालू प्रसाद को भेजे अपने संक्षिप्त हस्तलिखित इस्तीफे में उन्होंने लालू प्रसाद के साथ 32 वर्षों तक खड़े रहने की चर्चा की है। उन्होंने लिखा है 'जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद आपके पीठ पीछे 32 वर्षों तक खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं। पार्टी नेता, कार्यकर्ता तथा आमजन ने मुझे बड़ा स्नेह दिया, मुझे क्षमा करें।'
रघुवंश प्रसाद वैशाली संसदीय क्षेत्र में अपने चिरप्रतिद्वंद्वी रामा सिंह की पार्टी में इंट्री की खबर से नाराज चल रहे थे। पिछले कुछ दिनों से रामा सिंह के राजद में शामिल होने की खबरें आ रहीं थीं। राम किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह वैशाली लोकसभा क्षेत्र में रघुवंश सिंह के पुराने प्रतिद्वंद्वी हैं और साल 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने रघुवंश सिंह को 1 लाख से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया था।
कहा जा रहा है कि रामा सिंह को पार्टी में लाने के लिए तेजस्वी यादव ज्यादा सक्रिय हैं चूंकि उन्हें लगता है कि राघोपुर, जहां से वे विधायक हैं और अगला चुनाव भी लड़नेवाले हैं, वहां रामा सिंह उनके लिए ज्यादा मददगार साबित हो सकते हैं।
वैसे रघुवंश सिंह केंद्रीय मंत्री सहित कई बड़े पदों पर रह चुके हैं और निर्वविवाद और साफ-सुथरी छवि के नेता माने जाते हैं, जो बिहार की राजनीति में कम ही देखने को मिलता है। रघुवंश सिंह पहली बार साल 1977 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक बनकर सदन में पहुंचे थे। उस वक्त वे बेलसंड विधानसभा क्षेत्र से जीते थे।
उसके बाद वे बिहार सरकार में मंत्री भी बने। साल 1977 से 1979 तक तत्कालीन सरकार में वे विद्युत मंत्रालय के मंत्री रहे। उसके बाद 1995 में तत्कालीन लालू प्रसाद की सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। इस बीच वे साल 1990 में विधान परिषद के सदस्य बने और बिहार विधान परिषद के डिप्टी स्पीकर रहे।
साल 1996 में वे पहली बार लोकसभा सांसद बने थे और उसके बाद वे 5 दफा सांसद रहे। केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकारों में वे एक बार राज्यमंत्री और एक बार कैबिनेट मंत्री रहे। साल 1996 में वे केंद्रीय पशुपालन राज्यमंत्री और 1997 में वे खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के कैबिनेट मंत्री बने थे।
बिहार की राजनीति में जातीय गणित का काफी अहम रोल होता है। रघुवंश प्रसाद सिंह राजपूत जाति से आते हैं और माना जाता है कि राजद में वे इस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस वर्ग के राजद से जुड़ाव के वे एक बड़े फैक्टर थे। लिहाजा ऐन चुनावों के पहले उनके पार्टी छोड़ देने से राजद को एक बड़ा झटका लगा है।
हालांकि इसकी पटकथा कुछ दिन पहले ही लिखी जा चुकी थी, जब वे कोरोना से संक्रमित होकर पटना एम्स में भर्ती थे और वहीं से पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दे दिया था। वैसे इसकी पटकथा उससे भी पहले उस वक्त लिखी जा चुकी थी, जब जगदानन्द सिंह को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई थी।
उस वक्त भी रघुवंश सिंह की नाराजगी की खबरें आम हुईं थीं और उसके बाद से उन्होंने पटना के पार्टी दफ्तर जाना छोड़ दिया था। उसके बाद से मीटिंग और प्रेस कॉन्फ्रेंस आदि भी वे पटना स्थित अपने आवास से ही करते थे। कहा जा रहा है कि रामा सिंह की एंट्री की खबरों ने इसमें आग में घी का काम कर दिया।
वैसे उनको मनाने की कोशिश भी कम नहीं हुई। चर्चा थी कि तेजस्वी यादव ने पिछले दिनों दिल्ली एम्स जाकर उनसे मुलाकात की थी, पर वे नहीं माने। लालू प्रसाद के स्तर से भी उनको मनाने की कोशिश हुई, पर इस बार ब्रह्म बाबा नहीं माने।
पिछले दिनों लालू प्रसाद के बड़े पुत्र तेजप्रताप यादव ने रघुवंश प्रसाद को लेकर एक बयान दे दिया था कि पार्टी एक समुद्र है और उसमें से एक लोटा पानी निकल जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। कहा जाता है कि इसके बाद लालू प्रसाद ने तेजप्रताप को रांची तलब कर लिया था।