बिहार: दोनों प्रमुख गठबन्धनों से अलग कई छोटे दल भी मैदान में, एक्जिट पोल वास्तविक साबित हुए तो क्या है इनका भविष्य

एक्जिट पोल्स में इन दलों को सीटें मिलती नहीं दिख रहीं हैं, ऐसे में मैदान में उतरी दर्जन भर से ज्यादा इन पार्टियों का भविष्य आखिर क्या होगा, क्या इनका वजूद आगे भी बरकरार रहेगा या फिर ये महज चुनावी पार्टियां बनकर रह जाएंगी...

Update: 2020-11-08 09:56 GMT

जनज्वार ब्यूरो, पटना। बिहार में तीसरे फेज की वोटिंग खत्म होने के बाद एग्जिट पोल के आंकड़े सामने आ गए हैं। अब तक 8 से ज्यादा चैनलों के आंकड़े सामने आए हैं। इनमें से ज्यादातर में तेजस्वी सरकार बनने के संकेत हैं, जबकि कुछ एक्जिट पोल में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया गया है। चाणक्या और आजतक के एक्जिट पोल में तो महागठबंधन को भारी बहुमत मिलता दिखाया गया है।

एक्जिट पोल्स में मैदान में उतरे छोटे दलों यानि महागठबंधन और एनडीए से इतर लड़ रहे दलों को सीटें मिलती नहीं दिख रहीं हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि मैदान में उतरी दर्जन भर से ज्यादा छोटी पार्टियों का भविष्य आखिर क्या होगा। क्या इनका वजूद आगे भी बरकरार रहेगा या फिर ये महज चुनावी पार्टियां बनकर रह जाएंगी।

इस बार के बिहार चुनावों में पप्पू यादव के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक एलायंस यनि पीडीए और उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट सहित अन्य कई छोटे दल भी मैदान में थे। कई ऐसे दल भी चुनाव में उतरे हुए थे, जो दूसरे प्रदेशों में स्थित हैं और बिहार में न तो उनका कोई सांगठनिक ढांचा है, न बिहार में उन्होंने कभी काम किया है, पर संभावनाएं तलाशने के लिए मैदान में कूद पड़े थे। इनमें से कई दलों को तो बिहार के राजनेता, पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक-समीक्षक भी नहीं जानते थे।

पहले चर्चा करते हैं एनडीए और महागठबंधन से इतर दूसरे गठबन्धनों की। जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव के नेतृत्व में बनाए गए प्रगतिशील डेमोक्रेटिक एलाइंस में चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाली आजाद समाज पार्टी, एमके फैजी के नेतृत्व वाली सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (STPI) और बीपीएल मातंग के नेतृत्व वाली बहुजन मुक्ति पार्टी थे।

वहीं 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट' नाम के गठबंधन में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा (RLSP), मायावती की BSP, समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक), जनतांत्रिक पार्टी (सोशलिस्ट) पार्टी थे।

प्रगतिशील डेमोक्रेटिक एलाइंस की ओर से पप्पू यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया गया था, जबकि ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट की ओर से उपेंद्र कुशवाहा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए गए थे। बात अगर इन दलों के बिहार में आधार की करें, तो पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के सिंबल पर किसी भी सदन में अबतक कोई पहुंच नहीं सका है, हालांकि वे खुद अन्य दल एवं निर्दलीय और उनकी पत्नी रंजीता रंजन कांग्रेस के टिकट पर सांसद जरूर बनीं हैं।

उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को थोड़ी-बहुत चुनावी सफलता जरूर मिली है और वे एनडीए की सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री भी रहे हैं, पर यह सफलता उन्हें तब मिली है, जब वे एनडीए या फिर यूपीए जैसे किसी बड़े गठबंधन का हिस्सा बनकर चुनाव मैदान में उतरे हैं। बसपा पिछले 25 वर्षों से ज्यादा समय से बिहार के मैदान में उतरती रही है और उसे भी बिहार में थोड़ी बहुत चुनावी सफलता पहले मिलती रही है।

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने अबतक पिछले उपचुनाव में ही एकमात्र सीट जीती है। इनके अलावा अन्य दलों की बिहार में उपस्थिति अबतक शून्य ही रही है। माना जाता है कि इन दलों का चर्चा योग्य कोई सांगठनिक ढांचा भी बिहार में नहीं है।

इन दलों के अलावा भी लगभग आधा दर्जन छोटे दल मैदान में थे। चुनावी एक्जिट पोल के अनुसार छोटी पार्टियों को सीटें मिलती नहीं दिख रहीं। ऐसे में यह सवाल प्रासंगिक हो जाता है कि बिहार में इन छोटे दलों का भविष्य क्या होगा। क्या ये दल बिहार में जनता के बीच काम करेंगी और 5 साल बाद अगले चुनाव में दमदार उपस्थिति दिखाएंगी या फिर सीधा अगले चुनावों के समय ही बिहार की जनता इनकी झलक देखेगी।

Tags:    

Similar News