बिहार में ओवैसी की इंट्री और समाजवादी जनता दल से गठजोड़ विपक्ष के लिए क्यों है खतरे की घण्टी?
बिहार में राजद का एमवाई समीकरण मुख्य आधार वोटबैंक माना जाता है, एम यानि मुस्लिम और वाई मतलब यादव, अनुमान के आधार पर राज्य में लगभग 17 फीसदी मुस्लिम और 13 फीसदी यादवों की आबादी मानी जाती है, यानि दोनों की कुल मिलाकर आबादी 30 प्रतिशत के लगभग हो जाती है और यह एक जिताऊ आंकड़ा हो जाता है.....
जनज्वार ब्यूरो, पटना। असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम ने बिहार में चुनावी गठबंधन भी कर लिया है। ओवैसी ने उस दल के साथ गठजोड़ किया है, जिसका यूँ तो अभी बिहार में कोई खास असर नहीं है, पर उसके सुप्रीमो उस वर्ग से आते हैं, जो बिहार में मुख्य विपक्षी दल राजद का आधार वोटबैंक माना जाता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि यह गठबंधन विपक्षी दलों के वोटबैंक में ही सेंधमारी न कर दे। इसे मुख्य रूप से राजद के लिए खतरे की घण्टी कहा जाय तो गलत नहीं होगा।
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम ने देवेंद्र प्रसाद यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल के साथ गठबंधन का एलान किया है। ओवैसी ने पटना में यह घोषणा करते हुए कहा कि इस गठबंधन का नाम सेक्युलर डेमोक्रेटिक एलायंस होगा। उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम वोटों पर किसी का एकाधिकार नहीं है। अबतक मुस्लिमों को छला गया है। इस दौरान उन्होंने मुख्य विपक्षी दल राजद पर भी हमला बोल दिया।
बिहार में राजद का एमवाई समीकरण मुख्य आधार वोटबैंक माना जाता है। एम यानि मुस्लिम और वाई मतलब यादव। अनुमान के आधार पर राज्य में लगभग 17 फीसदी मुस्लिम और 13 फीसदी यादवों की आबादी मानी जाती है। यानि दोनों की कुल मिलाकर आबादी 30 प्रतिशत के लगभग हो जाती है। यह एक जिताऊ आंकड़ा हो जाता है।
माना जाता है कि इसी आंकड़े की बदौलत राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने बिहार में डेढ़ दशक तक राज किया। उस दौर में अक्सर कहा जाता था कि बैलेट बॉक्स से लालू प्रसाद जिन्न निकालते हैं, समझा जा सकता है कि वह जिन्न यही समीकरण होता था।
अब ऐसे में ओवैसी अगर राजद के प्रति आक्रामक रुख अपना रहे हैं तो इसके पीछे बड़ा सन्देश नजर आ रहा है। यह संदेश तब और पुख्ता हो जाता है, जब उनकी पार्टी एक ऐसे दल के साथ गठजोड़ करती है, जिसके सुप्रीमो राजद के मुख्य आधार वोट वाले वर्ग से आते हैं।
ओवैसी ने बिहार में 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। उनकी पार्टी द्वारा 18 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान भी कर दिया गया है। वैसे ओवैसी की पार्टी का बिहार में अबतक सीमित प्रभाव रहा है, जो सीमांचल के जिलों तक सिमटा हुआ है। हालांकि मुस्लिम वर्ग में अब उनकी पार्टी का आकर्षण धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। विधानसभा उपचुनाव में सीमांचल की एक सीट जीतकर उनकी पार्टी राज्य में अपना खाता भी खोल चुकी है।
ओवैसी की मुस्लिमों को लेकर आक्रामकता से जो भी वोट हासिल होंगे, सत्ताधारी गठबंधन को ही मुख्यतः इसका लाभ मिलने की संभावना दिखती है और इसका सीधा नुकसान विपक्षी महागठबंधन और खासकर राष्ट्रीय जनता दल को हो सकता है। इसे देखते हुए राजद खेमे की टेंशन बढ़ी हुई हो तो कोई आश्चर्य नहीं।