राजद में बड़ी टूट, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह का इस्तीफा तो 5 विधान पार्षद हुए जदयू में शामिल
रघुवंश प्रसाद सिंह राजद के बड़े नेता हैं, केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं,अब तक हर परिस्थिति में लालू प्रसाद का साथ देते रहे हैं....
जनज्वार ब्यूरो, पटना। बिहार के मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल को चुनाव से पहले बड़ा झटका लगा है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि अभी उन्होंने राजद छोड़ने की घोषणा नहीं की है। वे कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद पटना एम्स में भर्ती हैं। मंगलवार 23 जून को उन्होंने वहीं से अपना इस्तीफा भेज दिया है। पार्टी के 5 विधान पार्षद भी आज राजद से इस्तीफा देकर जदयू में शामिल हो गए हैं। विधान परिषद के कार्यकारी सभापति द्वारा इन्हें मान्यता दे दी गई है।
बिहार में चुनावी सरगर्मी शुरू है। अगले कुछ माह में विधानसभा चुनाव होने हैं। अभी 9 सीटों के लिए विधान परिषद चुनाव हेतु नामांकन चल रहा है। इसी बीच में 23 जून को हुईं एक पर एक पॉलिटिकल आघात से राजद में हड़कंप मच गया है। राजद लगातार जदयू में टूट होने के दावे करता रहा है, पर आज उसी में टूट के बाद उसके नेताओं से कुछ कहते नहीं बन रहा है। जदयू बड़ी संख्या में राजद विधायकों के भी टूटने का दावा कर रहा है। जदयू के नेता राजद के दो तिहाई विधायको के संपर्क में होने के दावे कर रहे हैं।
इधर पार्टी की स्थापना के पहले से लालू प्रसाद के निकट सहयोगी रहे पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह के पद से इस्तीफे को पार्टी के अंदर बड़े असंतोष का परिणाम माना जा रहा है। रघुवंश प्रसाद सिंह इतने नाराज हैं कि एम्स में कोरोना का इलाज कराने हेतु भर्ती रहने के बाद ठीक होने का इंतजार करने के बजाय वहीं से इस्तीफा भेज दिया। इससे पहले वे लालू प्रसाद के साथ हर विपरीत परिस्थिति में मजबूती के साथ खड़े रहे हैं।
एक बार उनके कांग्रेस में जाने की अटकलें भी सामने आईं थीं, पर वे राजद में डटे रहे थे। केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार में जब लालू प्रसाद रेलमंत्री बने थे तो अपने कोटे से उन्होंने रघुवंश प्रसाद सिंह को ग्रामीण विकास मंत्री बनवाया था। लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद भी वे मजबूती से राजद के साथ खड़े रहे थे। हालांकि हाल के दिनों में सवर्ण आरक्षण पर राजद के विरोध, पार्टी में परिवारवाद के बढ़ते मामलों तथा कुछ अन्य निर्णयों के उन्होंने सार्वजनिक रूप से विरोध किया था।
22 जून को पूर्व सांसद लोजपा के रामा सिंह के राजद में शामिल किए जाने की खबर आई थी, इसे लेकर भी वे खासे नाराज थे। रामा सिंह 29 जून को राजद में शामिल होने वाले हैं। रामा सिंह उनके लोकसभा क्षेत्र वैशाली में उनके राजनैतिक प्रतिद्वंदी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में रामा सिंह एनडीए की ओर से लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। तब उन्होने यूपीए की ओर से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे रघुवंश सिंह को हरा दिया था। हालांकि अगली बार 2019 के संसदीय चुनाव में लोजपा ने रामा सिंह की जगह वीणा देवी को टिकट दे दिया था। इससे रामा सिंह लोजपा से नाराज थे और राजद में आना चाह रहे हैं।
इधर बिहार विधान परिषद में राजद के पांच विधान पार्षदों कमरे आलम, संजय प्रसाद, दिलीप राय, राधाचरण सेठ और रणविजय सिंह पार्टी से इस्तीफा देकर जदयू में शामिल हो गए हैं। विधान परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह ने मीडिया को जानकारी दी कि हर तरह के सत्यापन के बाद इन्हें जदयू विधान पार्षद के रूप में मान्यता दे दी गई है। इन पांचों के राजद से इस्तीफा वाली चिट्ठी के हस्ताक्षरों का मिलान शपथ ग्रहण के वक्त किए गए हस्ताक्षर और विधान परिषद के सत्रों में किए गए हस्ताक्षर से किया गया है। इसके अतिरिक्त पर्सनल वेरिफिकेशन करने के बाद इनको जदयू विधान पार्षद की मान्यता दे दी गई है।
इसके बाद अब बिहार विधान परिषद में फ़िलहाल राजद सदस्यों की संख्या महज 3 रह गई है। ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को भी झटका लगने वाला है और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की उनकी कुर्सी भी छिन सकती है। 75 सदस्यीय बिहार विधान परिषद में मुख्य विपक्षी दल के दर्जे के लिए कुल सदस्यों का 1/10 अर्थात न्यूनतम 8 सदस्य होने चाहिए। राजद के पास अब 3 सदस्य ही बच गए हैं। परिषद की 9 सीटों पर चल रही चुनावी प्रक्रिया में भी संख्या बल के हिसाब से राजद को 3 सीट ही मिल सकती है। ऐसे में राबड़ी देवी की कुर्सी जानी तय मानी जा रही है।
बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी शुरू होते ही सियासी उठापटक भी चालू हो गई है। ये घटनाएं उसी उठापटक का नतीजा मानी जा रहीं हैं। आगे भी नेताओं का एक दल से दूसरे दल में आवागमन जारी रहने की संभावना जताई जा रही है।
हालांकि बिहार के मुख्य विपक्षी दल राजद के चुनाव तैयारियों को आज की घटना से गहरा धक्का लगा है। राजद में लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद तेजस्वी ने कमान संभाली थी। उस वक्त उनका राजनीतिक अनुभव शून्य था और पार्टी में अंदरखाने उनका विरोध भी हुआ था। परिवारवाद की बातें भी उठीं थीं, पर खुलकर कोई सामने नहीं आया था और बात दब गई थी। पर हाल के दिनों में पारिवारिक और राजनैतिक दोनों मोर्चों पर उन्हें जूझना पड़ा है।
बताया जा रहा है कि अभी के विधान परिषद चुनाव में उम्मीदवारी के लिए तेजप्रताप यादव अड़े हुए हैं, चूंकि महुआ विधानसभा क्षेत्र में उन्हें खतरा लग रहा है। इससे भी पार्टी में नाराजगी है। 22 जून को तेजस्वी के विधानसभा क्षेत्र राघोपुर के कार्यकर्ताओं ने उनके आवास के बाहर प्रदर्शन किया था। उनकी नाराजगी इस बात से थी कि पूर्व मंत्री भोला राय को विधान परिषद उम्मीदवार क्यों नहीं घोषित किया जा रहा। राघोपुर लालू परिवार की पुरानी सीट है और यहां से लालू प्रसाद और राबड़ी देवी भी विधायक रह चुके हैं। अभी तेजस्वी यादव वहीं से विधायक हैं। भोला राय ने तब लालू प्रसाद के लिए अपनी सिटिंग सीट छोड़ दी थी। ऐसे में राजद के नीति निर्धारकों के लिए आत्ममंथन के लिए सँभवतः यह सबसे सही वक्त है।