स्वघोषित CM उम्मीदवार पुष्पम प्रिया बोलीं, हैक हो गया EVM, मुखिया जितना भी नहीं मिला वोट

पुष्पम प्रिया जोर-शोर से बिहार चुनाव में कूदी थीं और लालू व नीतीश पर 30 साल से बिहार को लाॅकडाउन रखने का आरोप लगाया था, लेकिन उनके लिए बांकीपुर में खुद की जमानत बचाना मुश्किल हो गया है...

Update: 2020-11-10 10:11 GMT

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर चुनाव में कूदीं पुष्पम प्रिया चौधरी को मुखिया जितने भी वोट नहीं मिले और चुनावी मतगणना में उनकी चर्चा भी नहीं है। पुष्पम प्रिया ने इसके बाद ट्वीट कर बिहार में इवीएम हैक किए जाने का आरोप लगाया है। पुष्पम प्रिया ने आरोप लगाया है कि उनके वोट एनडीए के लिए चोरी हो गए। उन्होंने कहा कि जिन समर्थकों ने उनके सामने जाकर वोट डाले वे भी वोट उनके खाते में नहीं दिख रहे हैं। ध्यान रहे कि भारत में गुप्त मतदान की व्यवस्था है।

पुष्पम प्रिया जदयू के पूर्व विधान परिषद सदस्य व राजद नेता विनोद चौधरी की बेटी हैं और लंदन स्कूल इकोनाॅमिक्स से उन्होंने पढाई की है। अपने प्रोफाइल व बिहार में लालू-नीतीश राज में 30 साल तक बिहार में लाॅकडाउन रहने का नारा देकर चुनाव लड़ा था और कहा था कि अब बिहार खुलेगा।

पुष्पम प्रिया ने अपनी पुलुरल्स पार्टी से बिहार के विभिन्न इलाकों में बड़ी संख्या में उम्मीदवार भी उतारे, जिसमें ज्यादातर युवा व प्रोफेशनल लोग थे, लेकिन अबतक उनका कहीं से खाता भी नहीं खुला है।

खुद पुष्पम प्रिया 751 वोटों तक कुछ देर पहले तक सीमित थीं। पटना की बांकीपुर सीट पर वे भाजपा के सीटिंग एमएलए नितिन नवीन व कांग्रेस उम्मीदवार व शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा के खिलाफ मुकाबले में कूदीं थीं। खबर लिखे जाने तक नितिन नवीन ने लव सिन्हा पर अच्छी-खासी बढत बना ली है। पुष्पम प्रिया को मिल रहे वोट से यह आशंका भी है कि उनकी जमानत जब्त हो जाएगी।



पुष्पम प्रिया ने बिहार विधानसभा चुनाव में औद्योगिक बंदी को बड़ा चुनाव मुद्दा बनाने का प्रयास किया। वे अपने दौरे के क्रम में बंद औद्योगिक इकाइयां का फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करतीं थीं। मालूम हो कि बिहार में कृषि आधारित दर्जनों मंझोली व छोटी औद्योगिक इकाइयां बंद हैं। हालांकि पुष्पम प्रिया द्वारा इन्हें बहस में लाने का प्रयास चुनावी रूप से उन्हें लाभ नहीं पहुंचा पाया।

दरअसल, भारतीय राजनीति में पहले भी कई बार प्रोफेशनल्स जोर-अजमाइश कर चुके हैं, लेकिन उन्हें अपवाद छोड़ कभी सफलता नहीं मिली है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में बनी आम आदमी पार्टी में भी बड़ी संख्या में प्रोफेशनल्स जुड़े थे, लेकिन उनमें अधिकतर पहले ही अपनी नौकरियां छोड़ एक्टिविजम में जुट चुके थे और यह उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता की सबसे प्रमुख वजह है।

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