लोजपा एनडीए में रहे या जाय, जदयू को मतलब नहीं, चिराग की बयानबाजी गुजरी है नागवार!

राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि जदयू की ऐसी सोच बन चुकी है कि लोजपा एनडीए में रहे या जाए, उसे मतलब नहीं, जदयू का मानना है कि लोजपा बीजेपी की रिस्पांसिबिलिटी है....

Update: 2020-07-07 10:49 GMT

जनज्वार ब्यूरो, पटना। जदयू अब लोजपा को ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नही है। लोजपा एनडीए का हिस्सा रहेगी या नहीं, इसमें भी जदयू की अब ज्यादा दिलचस्पी नहीं रही। राजनैतिक गलियारों से यह बड़ी खबर निकल कर सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्तर पर ऐसा फैसला लिया जा चुका है। उन्हें करीब से जानने वालों की समझ है कि वे किसी के दबाव में नहीं आते और अपनी शर्तों पर राजनीति करते हैं। इसी समझ के आधार पर यह बात कही जा रही है। इस बात का समर्थन विगत 3-4 दिनों में हुई घटनाएं भी कर रहीं हैं।

माना जा रहा है कि हाल के दिनों में लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने जिस तरह सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर आक्रामक बयान दिए हैं, उससे नीतीश कुमार खासे नाराज हैं। उनको जानने वाले कहते हैं कि वे नाराजगी सार्वजनिक रूप से खुल कर व्यक्त नहीं करते, बल्कि उनके द्वारा किए गए फैसलों के बाद उनकी नाराजगी का पता चलता है।

राज्य में विधायक कोटे से होने वाले विधान पार्षदों का चुनाव हो चुका है, पर राज्यपाल के मनोनयन कोटे के विधान पार्षदों का मामला लटका हुआ है। विधान पार्षदों का मनोनयन राज्यपाल जरूर करते हैं, पर मुख्यमंत्री जिसके नाम की अनुशंसा करते हैं, उन्हीं का मनोनयन होता है।

3 दिन पूर्व राज्य कैबिनेट की बैठक हुई। बैठक में कई प्रस्ताव पास किए गए। पर बैठक में राज्यपाल कोटे से विधान पार्षदों के मनोनयन का प्रस्ताव नहीं आया। पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि लोजपा के 1 सीट पर मनोनयन को लेकर जिच हो गई थी।

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पार्टी सूत्र यह भी बताते हैं कि उनकी समझ साफ है कि भाजपा के साथ जदयू का पुराना लंबा गठबंधन है। 2015 में भाजपा ने लोजपा को अपने साथ रखकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। लोजपा भी कहती रही है कि उसका गठबंधन भाजपा से है, न कि जदयू से। ऐसे में जदयू लोजपा कीलायबिलिटी क्यों ले।

वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी ने अपने फेसबुक पोस्ट में ऐसा ही इशारा किया है। वे फेसबुक पर व्यंग्य और इशारों के रूप में ही लिखा करते हैं। 4 जुलाई को उन्होंने लिखा 'तीर श्रेष्ठ ने 6 मंथ पहले ही फूल श्रेष्ठ को बोल दिया था कि झोपड़ी आपका हेडेक है, आप समझिए।' तीर जदयू का चुनाव चिह्न है। झोपड़ी लोजपा का तो कमल का फूल बीजेपी का। श्रेष्ठ का आशय पार्टी अध्यक्ष से है। श्री भेलारी राजनैतिक घटनाक्रमों पर पैनी नजर रखते हैं।

राजनैतिक पहलुओं के जानकार लोग बताते हैं कि विधानसभा चुनाव में जदयू अकेले 115 से 120 सीट पर लड़ने की तैयारी में है। भाजपा के लिये 100 से 105 सीट तक और लोजपा के लिये 23 सीट छोड़ने का मन जदयू ने बनाया है। एक और बात कही जा रही है कि जदयू ने अपना प्रस्ताव दे दिया है कि राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से बीजेपी और जदयू दोनों बराबर सीटें लें। बीजेपी अपनी सीट में से लोजपा के लिए जितनी चाहे उतनी सीट छोड़ दे।

लोजपा की मनोनयन वाली सीट पर दावेदारी और विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटों पर दावेदारी जदयू को भी सूट नहीं कर रहा है। लिहाजा उसने अपना रुख बना लिया है। बताया जाता है कि भाजपा को भी स्पष्ट कर दिया गया है कि लोजपा को कैसे संतुष्ट करना है, यह उनकी जिम्मेदारी है।

3 जुलाई को राज्यपाल कोटे से विधान परिषद के लिए 12 सीट के मनोनयन सम्बन्धी निर्णय कैबिनेट में नही आ सका। सूत्र बताते हैं कि जदयू ने अपनी 7 सीटों में से लोजपा को 1 भी सीट देने से साफ मना कर दिया। उसका कहना था कि भाजपा चाहे तो अपने कोटे की सीट में से एक सीट दे सकती है, पर इसपर भाजपा को ऐतराज है। बताया जाता है कि इसी जिच के बीच यह मामला लटक गया।

वरिष्ठ पत्रकार संजय वर्मा कहते हैं 'जदयू किसी भी सूरत में लोजपा को तबज्जो देने के मूड में नहीं है। और न ही उसकी दिलचस्पी कि वो एनडीए में रहे या जाय। कैबिनेट मीटिंग में मनोनयन वाले प्रस्ताव के न लाए जाने के पीछे लोजपा के 1 सीट के लिए हुई जिच ही कारण थी।'

जानकारों की मानें तो इतनी बयानबाजी के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोजपा को टॉलरेट करने को अब तैयार नहीं हैं। पिछले दिनों लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान द्वारा सरकार और खासकर नीतीश कुमार पर निजी बयानबाजी की गई, वह नागवार गुजरी है।

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