योगी सरकार ने वाराणसी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय की 2 एकड़ जमीन का पट्टा सौंपा बिजली विभाग को, सैकड़ों छात्रों-शिक्षक-कर्मचारियों का धरना

राज्य सरकार द्वारा नियमों के विरूद्ध जमीन का पट्टा बिजली विभाग को दे दिया गया है, जबकि नियम यह है कि सबसे पहले कार्य परिषद में इसे पास करवाना होता है, हर विश्वविद्यालय कैम्पस का विस्तार किया जाता है और हमारे कैम्पस को छोटा किया जा रहा है...

Update: 2022-11-22 07:30 GMT

योगी सरकार ने वाराणसी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय की 2 एकड़ जमीन का पट्टा सौंपा बिजली विभाग को, सैकड़ों छात्रों-शिक्षक-कर्मचारियों का धरना

देवेश पांडेय की रिपोर्ट

पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र बनारस जिसे वह क्योटो बनाने का दावा करते हैं, वह आये दिन चर्चाओं का केंद्रबिंदु बना रहता है। फिलहाल एक बार फिर यह छात्रों और शिक्षकों द्वारा किये जा रहे आंदोलन के कारण चर्चा में है।

बनारस के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में दर्जनों छात्र और शिक्षक पिछले 40 दिनों से लगातार विश्वविद्यालय की जमीन की रक्षा के लिए भूमि बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले धरने पर बैठे हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि शासन प्रशासन की मिलीभगत से यूनिवर्सिटी की जमीन का पट्टा बिजली विभाग के नाम कर दिया गया है, जबकि इस जमीन पर छात्रों के लिए हॉस्टल बनाया जाना प्रस्तावित था।

घटनाक्रम के मुताबिक संपूर्णानंद विश्वविद्यालय कैम्पस में शहर के तेलियाबाग इलाके से सटे हुए 2 एकड़ में फैले खेलकूद परिसर को बिजली विभाग को पट्टे के बतौर आवंटित कर दिया गया है। अब इस 2 एकड़ जमीन पर बिजली विभाग को पूर्ण अधिकार रहेगाा, वह इसका जिस तरह चाहे वैसे इस्तेमाल कर सकता है। कहा जा रहा है कि बिजली विभाग इस भूमि का इस्तेमाल अपने विभागीय कार्यों के लिए करेगा। विरोध में 3 नवंबर को 161 कर्मचारियों के हस्ताक्षरयुक्त चेतावनी पत्र को कुलपति को भेजा गया था और इसकी प्रतिलिपि कुलाधिपति से लेकर जिलाधिकारी को भी आंदोलन​कारियों द्वारा भेजी गयी।

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जमीन विवाद को लेकर चल रहे धरने के बारे में असलियत जानने के लिए जनज्वार टीम विश्वविद्यालय परिसर में पहुंची, जहां पर आंदोलन जारी है। यहां भारी संख्या में अध्यापक समेत छात्र भी कुलपति कार्यालय के बाहर धरने पर बैठे हुए थे। आंदोलन में हिस्सेदारी कर रहे प्रोफेसर रामपूजन पांडेय कहते हैं, 'राज्य सरकार ने जिला प्रशासन को आदेश जारी कर विश्वविद्यालय के एक भाग का पट्टा बिजली विभाग को दे दिया है। हमारी मांग है कि हमारे विश्वविद्यालय की जमीन छात्रों के लिए है, उसे किसी अन्य विभाग को हस्तांतरित किया जाना गलत है।

रामपूजन पांडेय कहते हैं, कुलपति और रजिस्ट्रार शासन के अंग हैं इसलिए हम शासन के आदेशों के खिलाफ नहीं जाते हैं इसलिए अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्वक सत्याग्रह कर रहे हैं। योगी सरकार को चाहिए था कि हमें और जमीन देकर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान करती, मगर उसके विपरीत हमारे ही परिसर की जमीन हड़पने का काम शुरू कर दिया है, जोकि न्यायोचित नहीं है।

वहीं आंदोलन में हिस्सेदारी कर रहे भूमि बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष पद्माकर मिश्र कहते हैं, राज्य सरकार द्वारा हमारी भूमि का अवैध रूप से पट्टा बिजली विभाग के नाम कर दिया गया है। जब तक हमारी भूमि का पट्टा रद्द करके विश्वविद्यालय को वापस नहीं दिया जाता है, तब तक धरना जारी रहेगा।

छात्र नेता जगदम्बा मिश्रा कहते हैं, राज्य सरकार द्वारा नियमों के विरूद्ध जमीन का पट्टा बिजली विभाग को दे दिया गया है, जबकि नियम यह है कि सबसे पहले कार्य परिषद में इसे पास करवाना होता है, जो कि नहीं करवाया गया। इस बारे में कुलपति द्वारा कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया गया। हर विश्वविद्यालय कैम्पस का विस्तार किया जाता है और हमारे कैम्पस को छोटा किया जा रहा है, जो कि गलत है।'

पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष शशिकांत पांडेय कहते हैं, विश्वविद्यालय की जमीन का अवैध तरीके से बिजली विभाग के नाम पट्टा करवा दिया गया है, जिसके बारे में किसी से भी राय नहीं ली गई है और हम लोग आंदोलनरत है। हमारी जमीन सरकार को वापस करनी होगी, वरना हम लोग आंदोलन करते रहेंगे।

आंदोलनकारी कहते हैं विश्वविद्यालय कुलपति को जमीन बचाने के लिए आंदोलन का नेतृत्व करना चाहिए था, मगर वह आंदोलन करने वालों को नोटिस भेजकर अपनी मंशा स्पष्ट कर रहे हैं। हमारे शांतिपूर्ण आंदोलन से विश्वविद्यालय का कोई कार्य प्रभावित नहीं हो रहा है, लेकिन फिर भी विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से प्रो. रामपूजन पांडेय, प्रो. अमित कुमार शुक्ल, प्रो. जितेंद्र कुमार, लालजी मिश्र तथा कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुशील कुमार तिवारी से स्पष्टीकरण मांगा गया है।

इस बारे में विश्वविद्यालय का पक्ष जानने के लिए जब जनज्वार ने रजिस्ट्रार केशलाल से बातचीत की तो उनका कहना था कि यह शासन स्तर का फैसला है, इसमें हम लोग कुछ भी नहीं कर सकते हैं। यह फैसला सीधे शासन से जिला प्रशासन के पास आया था और उसी के द्वारा निर्णय लिया गया है। इस बात को विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों को समझना चाहिए। प्रशासन ने आंदोलनकारी कर्मचारियों को काम पर लौटने के लिए 11 नवम्बर तक का समय दिया था, उसके बाद उनके वेतन में कटौती करने की चेतावनी भी दी थी। अगर अब भी आंदोलनकारियों ने प्रशासन की बात नहीं मानी तो भविष्य में और सख्त एक्शन लिया जायेगा।'

आंदोलनकारियों का आरोप है कि शासन स्तर एवं कुलपति के बीच सीधे वार्तालाप के बाद पट्टा बिजली विभाग के नाम कर दिया गया। इसके लिए विश्वविद्यालय की कार्य परिषद से एक बार भी सलाह भी नहीं ली गई और न ही इस बात का ध्यान रखा गया कि छात्रों के लिए हॉस्टल बनाने हेतु जो जमीन रिजर्व रखी गयी थी, उसे बिजली विभाग को सौंपकर छात्रों के साथ अन्याय किया जा रहा है। इसी के खिलाफ 17 अक्टूबर 2022 से लगातार विश्वविद्यालय परिसर में ही छात्र और अध्यापकों का आंदोलन जारी है।

गौरतलब है कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए हॉस्टल की व्यवस्था नहीं है, जिसको देखते हुए यूनिवर्सिटी कार्य परिषद की अनुशंसा पर इस जमीन पर हॉस्टल बनाने की योजना थी। इसके लिए विश्वविद्यालय की कार्य परिषद ने बाकायदा अपने यहां से अनुमोदन पत्र बनाते हुए कुलपति के हस्ताक्षर के साथ जून 2022 में ही शासन को भेज दिया था। इसके लिए विश्वविद्यालय परिसर में इसी साल जुलाई में राज्यपाल के मुख्य सचिव ने दौरा भी किया था। तब विश्वविद्यालय के अधिकारियों को इसके लिए फटकार भी लगी थी कि इतने बड़े कैंपस में छात्रों के लिए हॉस्टल की व्यवस्था क्यों नहीं है।

जमीन की माप के लिए आयी टीम को खदेड़ा आंदोलनकारियों ने

आंदोलन के बाद से 16 अक्टूबर को विश्वविद्यालय परिसर के अंदर जमीन की नाप के लिए बिजली विभाग की टीम बाकायदा फोर्स के साथ गई थी। इस दौरान विश्वविद्यालय अध्यापक संघ, कर्मचारी संघ, अधिकारी संघ और छात्र संघ ने संयुक्त रूप से मोर्चा लिया और मापी टीम को कैम्पस से ही खदेड़ लिया। वहां से मापी टीम अपनी जान बचाकर किसी तरह भागी। इसके बाद अतिरिक्त फोर्स को बुलाकर मामले को शांत करवाया गया था।

विश्वविद्यालय परिसर में आंदोलन समाप्त होने की कोई संभावना न देखकर कुलसचिव केशलाल की तरफ से सभी अध्यापकों और कर्मचारियों को काम पर लौटने का आदेश भी जारी किया गया और अपने आदेश में सख्त चेतावनी दी गयी कि जो भी कर्मचारी कार्य पर वापस नहीं लौटते हैं, उनको अनुपस्थित मानते हुए सैलरी काट ली जायेगी। मगर कुलसचिव द्वारा धमकाने के बावजूद आंदोलनकारी शिक्षकों ने पीछे हटने का नाम नहीं लिया, बल्कि आंदोलन और ज्यादा तेज होता जा रहा है।

कुलपति पर कई बार लग चुके हैं गंभीर आरोप

सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति हरेराम त्रिपाठी पर शिक्षक और कर्मचारी कई बार पहले भी गंभीर आरोप लगा चुके हैं। आरोपों के बाद कुलपति को झुकना पड़ता है और अपने आदेशों को वापस लेना पड़ता है।

गौरतलब है कि मई 2021 में विश्वविद्यालय में अध्यापकों के रिक्त पदों को भरने के लिए वैकेंसी निकाली गई थी, जिसका रिजल्ट अप्रैल 2022 में घोषित किया गया। रिजल्ट में अनियमितता का आरोप लगाकर अध्यापक परिषद आंदोलन पर चला गया था और मनमाने तरीके से अपने चहेतों के सेलेक्शन को लेकर राज्यपाल तक से शिकायत कर दी थी, जिसके बाद राज्यपाल के हस्तक्षेप से रिजल्ट को रोक दिया गया और संशोधित रिजल्ट जारी करने के लिए आदेश जारी किया गया था।

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का इतिहास

इस विश्वविद्यालय की स्थापना अंग्रेजों के शासनकाल में 1791 में शासकीय संस्कृत महाविद्यालय के रूप में हुई थी। इसके बाद 1894 में सरस्वती भवन गंथ्रालय का निर्माण किया गया और 22 मार्च 1958 को यूपी के तत्कालीन सीएम डॉ. सम्पूर्णानंद के प्रयासों से इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला था। 1974 में इसका नया नामकरण सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय किया गया था।

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