Allahabad Ground Report : शंकरगढ़ के छिपिया गांव में आदिवासियों को घर बनाने के लिए देनी पड़ रही वन विभाग को 10 हजार रुपये घूस
Allahabad Ground Report : अब यहां गांव खाली करने के बजाय भ्रष्टाचार का एक नया तंत्र खड़ा हो गया है, ग्रामीणों का कहना है कि घर बनाने के बदले उनसे वन विभाग घूस ले रहा है....
Tribal village reality : आए दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने राज्य के विकास को लेकर सुर्खियों में बने रहते हैं, लेकिन आज भी वह अपने राज्य की वास्तविकता से अंजान हैं, या फिर ध्यान नहीं देना चाहते। राज्य में आज भी बड़ी तादाद में ऐसे लोगों की जिनकी सालाना इनकम 50 हजार रूपए भी नहीं है। इनके पास रहने के लिए एक अच्छा मकान तक नहीं है। इन्हे सरकार द्वारा चलाई गई विभिन्न योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है, न तो इन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ ही मिल सका। ऐसे में सवाल उठता है की गरीबों के लिए बनाई गई विभिन्न योजनाओं का लाभ आखिर मिल किसे रहा है। आखिर किधर जा रहे हैं सरकार के पैसे?
इलाहाबाद के शंकरगढ़ स्थित छिपिया गांव में आदिवासियों के लगभग 150 परिवार रहते हैं। यहां के हालात देखकर शासन प्रशासन के दावों की असलियत सामने आती हैं। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश बार्डर पर बसा यह गांव यूपी में आता है। ग्रामीणों का आरोप है वन विभाग उन पर गांव खाली करने का दबाव डाल रहा है, हम दशकों से यहां रहते आ रहे हैं आखिर कहां जायें अपने पुश्तैनी गांव को छोड़कर। हालांकि अब यहां गांव खाली करने के बजाय भ्रष्टाचार का एक नया तंत्र खड़ा हो गया है, ग्रामीणों का कहना है कि घर बनाने के बदले उनसे वन विभाग घूस ले रहा है।
गौरतलब है की आदिवासियों के इस गांव में 800 से अधिक लोग निवास करते हैं, जिसमें 150 से अधिक घर है। यहां 350 से अधिक वोटर्स होने के बावजूद भी यह लोग गरीबी की मार से जूझ रहे हैं। इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। इन्हे इनका हक बताने वाला कोई नहीं है।
वन विभाग के अंतर्गत आने वाले इस गांव में रहने वाले आदिवासियों का आरोप है कि पिछले कुछ वर्षों से वन विभाग ने इनका जीना दुश्वार कर दिया है। वन विभाग का कहना है कि छपिया गांव वन विभाग के अंतर्गत आता है, इसलिए इसे खाली किया जाए, किंतु यह गरीब असहाय लोग घर से बेघर नहीं होना चाहते हैं। आखिरी अपने पुश्तैनी घर को छोड़ कर जायें भी तो कहां। इनका कहना है यहां से कहां जायेंगे हम, कहां बनाएंगे अपना घर। वन विभाग वाले हमारी मजदूरी का फायदा उठाते हुए भ्रष्टाचार का एक नया तंत्र अपना रहे हैं।
जनज्वार टीम से बातचीत के दौरान गांव की महिलायें बताती हैं, इस बस्ती में लोगों को घर बनाने के लिए वन विभाग को घूस देनाी होता है, वरना वे लोग घर नहीं बनाने देते हैं। लेकिन हमारे पास आय का कोई स्रोत नहीं है, जिसके कारण हम उन्हें घूस में इतनी बड़ी रकम देने में सक्षम नहीं हैं। हम बहुत मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं।
ग्रामीण महिलायें बताती हैं, यहां एक कमरा बनाने के लिए वन विभाग को दस हजार रुपए घूस देने पड़ते हैं। बता दें कि इनकी आय का स्रोत इतने कम हैं कि यह लोग सालाना पचास हजार भी नहीं कमा पाते हैं। ये आदिवासी ग्रामीण अशिक्षा और बेरोजगारी के दलदल में इस तरह फंस गए हैं, जहां से इनका निकलना अत्यधिक मुश्किल है फिर भी सरकार को इनकी हालत नहीं दिखाई दे रही है।
ग्रामीण आरोप लगाते हैं, योगी जी की सरकार आने के बाद से प्रदेश में भ्रष्टाचार और अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया है। बीजेपी के सरकार में आने के बाद वन विभाग वाले हमारे साथ मनमानी कर रहे हैं। हम मायावती की सरकार में ज्यादा खुश थे, किंतु जब से योगी की सरकार आई है तब से यहां गैरकानूनी काम बढ़-चढ़कर किया जाता है।
फरियाद सुनने वाला कोई नहीं
ग्रामीण आरोप लगाते हैं, जिस नेता को हम अपनी सेवा के लिए वोट देकर कुर्सी पर बिठाते हैं वह भी हमारी बात नहीं सुनते हैं। यहां तक की यहां के प्रधान, विधायक भी हमारी फरियाद नहीं सुनते हैं। आखिर कौन सुनेगा हमारी आवाज, हम अपनी मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम हैं।